Last Updated on August 22, 2023 by admin
सोरायसिस एक ऐसा त्वचा रोग है जिसमें शरीर के किसी भी हिस्से पर लाल और खुजली वाले दाने हो जाते हैं जो काफी परेशानी उत्पन्न करते हैं। आयुर्वेद में सोरायसिस को एक दोषजन्य विकार माना गया है और इसके इलाज के लिए कई सुरक्षित और प्राकृतिक उपचार बताए गए हैं। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से सोरायसिस का इलाज संभव है और मरीजों को इससे लंबे समय तक राहत मिल सकती है। चलिए जानते हैं सोरायसिस के आयुर्वेदिक उपचारों के बारे में।
सोरायसिस के कारण (psoriasis ke karan in hindi)
आयुर्वेद के अनुसार, सोरायसिस तीनों दोषों – वात, पित्त और कफ की विकृति से होता है।
- वात और कफ दोष से सूखी और खुजली वाला सोरायसिस होता है।
- पित्त दोष से नाखूनों के नीचे फूलन और लाल दाने होते हैं।
- सभी तीनों दोषों की विकृति से शरीर के विभिन्न हिस्सों में दाने और स्कैल्स हो जाते हैं।
सोरायसिस के प्रकार (psoriasis ke prakar in hindi)
आयुर्वेद में सोरायसिस के लक्षणों के आधार पर इसे प्रमुख रूप से निम्न प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
- वात सोरायसिस – शरीर के कुछ हिस्सों में खुजली वाले दाने होते हैं।
- कफ सोरायसिस – मोटी और चिपचिपी स्कैल्स होती हैं।
- पित्त सोरायसिस – त्वचा में लालिमा और जलन रहती है।
- रक्त सोरायसिस – नाखूनों के नीचे सूजन और दर्द रहता है।
- क्षत सोरायसिस – त्वचा पर छाले और खुले घाव हो जाते हैं।
इस वर्गीकरण से सोरायसिस के प्रकार की पहचान कर उचित उपचार किया जा सकता है।
सोरायसिस का आयुर्वेदिक विधि से उपचार (psoriasis ka ayurvedic me ilaj in hindi)
आयुर्वेद में सोरायसिस के इलाज के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया जाता है जिसमें मरीज के शरीर और मन, दोनों का संपूर्ण उपचार किया जाता है।
आहार और जीवनशैली में बदलाव
- पित्त वर्धक खाद्य पदार्थों का परहेज ज़रूरी है।
- मानसिक तनाव कम करने के लिए योग और ध्यान लाभकारी है।
जड़ी-बूटियों के उपयोग
- हल्दी, नीम, तुलसी जैसी जड़ी-बूटियाँ लाभकारी हो सकती हैं।
- ये दानों की लालिमा और खुजली को कम करती हैं।
डिटॉक्सीफिकेशन थेरेपी
- पंचकर्म से शरीर के विषाक्त तत्व बाहर निकलते हैं।
- वमन, विरेचन, बस्ति आदि प्रक्रियाएँ शरीर को डिटॉक्स करती हैं।
- इससे त्वचा स्वस्थ और दाने मुक्त होती है।
(और पढ़े – सोरायसिस के लक्षण, कारण, इलाज, दवा और उपचार )
सोरायसिस में आहार और जीवनशैली में बदलाव (psoriasis me kya khaye in hindi)
- पित्त को बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन न करें जैसे तला-भुना, मसालेदार और गरम भोजन।
- अंडा, मांस, समुद्री भोजन और अल्कोहल का सेवन न करें।
- ताजा फल, सब्जियाँ, दही और दलिया लें।
- धूप से बचने और पर्याप्त नींद लेने का प्रयास करें।
- योग और ध्यान से तनाव कम करें।
- वजन नियंत्रण में रखें।
सोरायसिस के उपचार में लाभदायक जड़ी-बूटियाँ और आयुर्वेदिक दवाएँ (psoriasis ke liye ayurvedic dawa in hindi)
1. हल्दी: हल्दी में एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं जो सोरायसिस के दानों के दर्द और सूजन को कम करने में मदद करते हैं। हल्दी के पेस्ट या पाउडर को प्रभावित जगहों पर लगाने से राहत मिल सकती है।
2. नीम: नीम प्राकृतिक रूप से एक ब्लड प्यूरिफायर और डिटॉक्सीफायर का काम करता है। नीम का तेल या नीम की पत्तियों का लेप लगाने से त्वचा को साफ करने में मदद मिलती है और दानों की खुजली कम होती है।
3. तुलसी: तुलसी के पत्तों में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण पाए जाते हैं। तुलसी के पत्तों का सेवन या तेल बनाकर सोरायसिस जैसे त्वचा संक्रमण पर लगाने से राहत मिल सकती है। तुलसी में मौजूद यूजीनॉल नामक यौगिक त्वचा की स्वस्थ कोशिकाओं के विकास में सहायक होता है।
4. एलोवेरा: एलोवेरा में एंटी-इन्फ्लेमेटरी और एंटी-माइक्रोबायल गुण होते हैं जो सोरायसिस की जलन और खुजली को कम करने में मदद करते हैं। एलोवेरा जेल को प्रभावित जगहों पर लगाने से राहत मिल सकती है।
5. अश्वगंधा: अश्वगंधा में रक्त शोधक गुण होते हैं जो सोरायसिस के दानों को खत्म करने में मदद करते हैं। अश्वगंधा के सेवन व तेल को लगाने से लाभ मिल सकता है।
6. गिलोय: गिलोय एक प्राकृतिक डिटॉक्सीफायर है जो सोरायसिस में शरीर से विषाक्त तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है। गिलोय का रस पीने से फायदा मिल सकता है।
7. खैर: खादिर या खैर (Khair) में त्वचा के लिए लाभदायक गुण पाए जाते हैं। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट त्वचा कोशिकाओं की क्षति से बचाते हैं।
8. त्रिफला : त्रिफला हर्बल मिश्रण है जिसमें हरड़, बहेड़ा और आंवला शामिल होते हैं। ये पाचन तंत्र को साफ करते हैं और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालते हैं। त्रिफला का सेवन सोरायसिस जैसे त्वचा रोगों में लाभदायक हो सकता है।
(और पढ़े – सोरायसिस के 6 सबसे प्रभावशाली घरेलू उपचार)
सोरायसिस में फायदेमंद आयुर्वेदिक तेल और लेप (psoriasis ke liye ayurvedic tel in hindi)
आयुर्वेद में सोरायसिस के इलाज के लिए कुछ प्राकृतिक तेलों और लेपों का उपयोग किया जाता है। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
1. नीम तेल के सोरायसिस में लाभ: नीम तेल में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण होते हैं, जिनसे त्वचा के संक्रमण को रोकने में मदद मिलती है। नीम तेल का नियमित उपयोग सोरायसिस जैसी समस्याओं में आराम प्रदान कर सकता है। यह त्वचा की स्वस्थ प्रक्रियाओं को सुधारने में मदद करता है।
2. कालमेघ तेल: कालमेघ तेल का उपयोग सोरायसिस के रोगी की त्वचा को बल प्रदान करने में मदद कर सकता है। यह त्वचा की सुरक्षा बढ़ाकर वात और कफ दोष को नियंत्रित करता है जो सोरायसिस के लक्षणों का कारण बनते हैं। कालमेघ तेल में शोथहरण गुण होते हैं जिनसे सूजन और जलन जैसे लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है। इस तेल का नियमित उपयोग त्वचा के अस्तर को साफ़ करने में मदद करता है और सोरायसिस के पैच को कम करने में सहायक होता है।
कालमेघ तेल का नियमित उपयोग करने से सोरायसिस के फिर से उभरने की संभावना को कम किया जा सकता है। कालमेघ तेल में प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो त्वचा के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता हैं। कालमेघ तेल का मसाज करने से शरीर में शांति मिलती है और तनाव को कम करने में यह मदद करता है, जिससे सोरायसिस के लक्षणों में सुधार होता है।
3. महामंजिष्ठादि तेल: महामंजिष्ठादि तेल में एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं, जिनसे सोरायसिस के लक्षणों में सुधार हो सकता है। यह सूजन, जलन, और खुजली को कम करने में मदद करता है।
महामंजिष्ठादि तेल सोरायसिस के बढ़ते हुए पैचों को कम करने में सहायक होता है। यह तेल शरीर के अंदर की मलश्च्छमता को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है, जिससे रक्त में अशुद्धियों का निकालना सुगम हो सकता है।
महामंजिष्ठादि तेल के अंतर्गत एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं जो त्वचा पर माइक्रोबियल संक्रमण को कम करने में मदद करता हैं। इसमें प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो त्वचा के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं और सोरायसिस के पैचों को शांति प्रदान करते हैं।
4. जापापुष्पादि लेप: जापापुष्पादि लेप का नियमित उपयोग सोरायसिस प्रभावित त्वचा की सफाई में सहायक हो सकता है। इस लेप में मौजूद जापा पुष्प, दारुहरिद्रा जैसी जड़ी-बूटियों में शोथ कम करने वाले गुण होते हैं। यह सोरायसिस के लक्षणों जैसे सूजन, जलन और खुजली को कम करने में लाभदायक होता है।
इस लेप में मौजूद प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट्स, त्वचा के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं और सोरायसिस के प्रभावित क्षेत्रों को शांत करने में सक्षम होते हैं। इसके अलावा, इसमें एंटी-माइक्रोबियल गुण भी होते हैं जो त्वचा पर होने वाले बैक्टीरियल और फंगल संक्रमण को रोकते हैं।
5. पांचतिक्त घृत: पांचतिक्त घृत में एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं जो सोरायसिस के लक्षणों जैसे सूजन, जलन और खुजली को कम करने में मददगार हो सकते हैं। इस घृत में मौजूद नीम, गुड़ूची जैसी जड़ी-बूटियां शरीर के वात और कफ दोषों को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं। वात-कफ नियंत्रण से सोरायसिस के कई लक्षणों में राहत मिलती है। इस घृत के नियमित प्रयोग से त्वचा की संरचना में सुधार होता है और यह त्वचा को मुलायम एवं स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है।
कृपया ध्यान दें कि आयुर्वेदिक उपचारों का उपयोग करने से पहले एक विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें और उनके निर्देशों का पालन करें। आपकी स्थिति के आधार पर उपचार का सही चयन किया जा सकता है।
सोरायसिस के लिए पंचकर्म थेरेपी
पंचकर्म चिकित्सा में शरीर से विषाक्त तत्वों को बाहर निकाला जाता है:
वमन
- वमन में उल्टी कराकर पित्त दोष को शोधित किया जाता है।
- वमन कराने के लिए वमन औषधियों का प्रयोग किया जाता है।
- यह पित्त दोष को कम करने में प्रभावी होता है।
विरेचन
- विरेचन से पेट की सफाई होती है और मल शोधन होता है।
- यह पित्त और कफ दोष को दूर करने में सहायक होता है।
- विरेचक ओषधियों से विरेचन किया जाता है।
नस्य
- नस्य चिकित्सा में नाक से तरल पदार्थ निकालकर शिरोशोधन किया जाता है।
- यह शिरोरोग को दूर करने में प्रभावी होता है।
- तेल या द्रव्य का नस्य लगाकर यह किया जाता है।
रक्तमोक्षण
- रक्तमोक्षण में शरीर से विषाक्त रक्त निकाला जाता है।
- इसमें सूजन वाली जगह से साधन द्वारा रक्त निकाला जाता है।
- यह विषाक्त रक्त को बाहर निकालने में मदद करता है।
बस्ति
- बस्ति चिकित्सा में गुदा मार्ग से द्रव्य दिया जाता है।
- यह वात दोष को शोधित करने में सहायक होता है।
- तेल या द्रव्य के बस्ति द्वारा यह किया जाता है।
- बस्ति से वात दोष दूर होता है और राहत मिलती है।
इस प्रकार पंचकर्म चिकित्सा से सोरायसिस में लाभ मिलता है। (और पढ़े – पंचकर्म चिकित्सा क्या है ,विधि ,फायदे और नुकसान)
योग और प्राणायाम
- सूर्य नमस्कार, धनुरासन जैसे योग आसन रक्त संचार बढ़ाकर सोरायसिस में लाभदायक हैं।
- भस्त्रिका प्राणायाम और अनुलोम-विलोम श्वास से तनाव कम होता है।
- योग निद्रा और ध्यान से मानसिक शांति मिलती है।
सोरायसिस के आयुर्वेदिक उपचार में इन बातों का रखे ध्यान :
सोरायसिस के उपचार में सफलता के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- रोग की प्रकृति विश्लेषण कर रोगी की संवेदनशीलताओं के आधार पर उपचार किया जाना चाहिए।
- आवश्यकतानुसार विभिन्न उपचारों का उचित संयोजन किया जाना चाहिए।
- नियमित रूप से उपचार लेने की प्रतिबद्धता ज़रूरी है।
- आयुर्वेदिक चिकित्सक के साथ नियमित फॉलो-अप आवश्यक है।
- लक्षणों में सुधार का मूल्यांकन कर उपचार में बदलाव किया जाना चाहिए।
- चिकित्सक द्वारा दिए गए उपचारों और दवाओं का पालन ज़रूरी है।
- आहार व दिनचर्या में बदलाव बनाए रखने होंगे।
- तनाव प्रबंधन पर लगातार ध्यान देना होगा।
- योग, ध्यान व पर्याप्त नींद व व्यायाम ज़रूरी है।
- सोरायसिस को बढ़ाने वाली चीजों से परहेज करना होगा।
इस तरह आयुर्वेदिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में नियमित रूप से उपचार लेकर सोरायसिस पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
सोरायसिस के आयुर्वेदिक इलाज के जोखिम
सोरायसिस के आयुर्वेदिक इलाज में कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए और कुछ जोखिम फैक्टर्स पर ध्यान देना चाहिए:
दवा प्रतिक्रियाएं
- कुछ जड़ी-बूटियां अन्य दवाओं के साथ प्रतिक्रिया कर सकती हैं।
- डॉक्टर की सलाह के बिना जड़ी-बूटियों का सेवन न करें।
आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख
- केवल अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक की निगरानी में इलाज कराएं।
- गलत इलाज से समस्या बढ़ सकती है।
गुणवत्ता नियंत्रण
- कुछ आयुर्वेदिक दवाओं में गुणवत्ता नियंत्रण की समस्या हो सकती है।
- भरोसेमंद कंपनी की दवाएं ही लें।
इन बातों का ध्यान रखकर सोरायसिस का आयुर्वेदिक इलाज किया जाना चाहिए।
सोरायसिस: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न: सोरायसिस क्या है?
उत्तर: सोरायसिस एक त्वचा की बीमारी है जिसमें त्वचा पर लाल और सूजे हुए पैच हो जाते हैं। यह मुख्य रूप से कोहनियों, घुटनों और कमर के निचले हिस्से में होता है।
प्रश्न: सोरायसिस के मुख्य लक्षण क्या हैं?
उत्तर: सोरायसिस के मुख्य लक्षणों में त्वचा पर लाल और मोटे पैच, खुजली, सूजन, जलन और दर्द शामिल हैं। कभी-कभी पीले पपड़ीदार पैच भी हो सकते हैं।
प्रश्न: सोरायसिस के कारण क्या हैं?
उत्तर: सोरायसिस के कारणों में आनुवंशिकता, प्रतिरक्षा प्रणाली की कमजोरी, हार्मोनल असंतुलन और कुछ संक्रमण शामिल हो सकते हैं।
प्रश्न: सोरायसिस का इलाज क्या है?
उत्तर: सोरायसिस के इलाज में दवाएं, लेज़र थेरेपी, फोटोथेरेपी और आयुर्वेदिक उपचार शामिल हो सकते हैं। मरीज की स्थिति के आधार पर इलाज किया जाता है।
प्रश्न: सोरायसिस से बचाव के उपाय क्या हैं?
उत्तर: सोरायसिस से बचने के लिए तनाव कम करना, वजन नियंत्रित रखना, धूम्रपान न करना और त्वचा की उचित देखभाल करना जैसे उपाय किए जा सकते हैं।
निष्कर्ष
सोरायसिस के आयुर्वेदिक इलाज में एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया जाता है जो इस बीमारी को जड़ से खत्म करने में मददगार साबित होता है। आहार और जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव, प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का उपयोग, तेल और लेप से उपचार तथा पंचकर्म जैसी डिटॉक्स थेरेपी का नियमित रूप से संयोजन करने से सोरायसिस के लक्षणों में काफी सुधार देखा गया है। भविष्य में और अधिक शोधों से आयुर्वेदिक चिकित्सा की प्रभावशीलता साबित होगी। इसमें संदेह नहीं कि एक अनुभवी आयुर्वेद चिकित्सक की देखरेख में सोरायसिस से पीड़ित मरीजों को लंबे समय तक लाभ प्राप्त हो सकता है।
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।