Last Updated on August 6, 2020 by admin
इस लेख में क्रम से 100 रोगों का उल्लेख करते हुए उनमें लाभ करने वाले योगासन तथा अन्य यौगिक क्रियाओं की नामावली प्रस्तुत की गई है। इनसे भिन्न अन्य रोगों में भी यह योगासन तथा यौगिक-क्रियाएँ लाभकारी सिद्ध होती हैं।
बताये जा रहें योगासनों का अभ्यास किसी सुयोग्य गुरु के निर्देशन में ही किया जाना उचित रहेगा।
रोग अनुसार योगासन व हितकारक यौगिक क्रियाओं की तालिका : Rog ke Anusar Yoga in Hindi
(1) अग्निमांद्य (Yogasan For Indigestion in Hindi) – पद्मासन, वज्रासन, मत्स्यासन, धनुरासन, शीर्षासन और पश्चिमोत्तासन। इनके अभ्यासों में जठराग्नि प्रदीप्त होती है।
(2) अम्लता (एसिडिटी) (Yogasan For Acidity in Hindi) – शीतली, शीतकारी तथा प्लाविनी प्राणायाम एवं नाड़ी शोधन क्रिया-इन्हें शलभासन के साथ करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
(3) अनिद्रा (Yogasan For Insomnia in Hindi) – योगनिद्रा, शीतली, शीतकारी तथा प्लाविनी प्राणायाम, सूर्य भेदन प्राणायाम और शीर्षासन।
(4) अर्श (बवासीर) (Yogasan For Piles in Hindi) – पश्चिमोत्तासन, सुप्त वज्रासन, सर्वांगासन, वज्रासन, जानु शिरासन, चक्रासन, मत्यस्यासन, सिद्धासन, गोमुखासन, वज्रासन के साथ मूलबन्ध, चोचरी मुद्रा और महामुद्रा।
नोट-ये आसन दोनों प्रकार की (खूनी और बादी) बवासीर में हितकर है।
(5) आमवात (Yogasan For Rheumatism in Hindi) – मयूरासन, पश्चिमोत्तासन, चक्रासन, मत्स्येन्द्रासन, बद्धपद्मासन और वृश्चिकासन। बाद में सूर्यांगासन तथा शीर्षासन करें।
(6) आन्त्र-वृद्धि – शीर्षासन, सर्वांगासन तथा विपरीत करणी-मुद्रा।
(7) आमाशयिक विकार – धनुरासन।
(8) आन्त्र-रोग (आँतों की बीमारी) – सर्वांगासन, ऊर्ध्व-सर्वांगासन,ऊर्ध्व-पद्मासन, पश्चिमोत्तासन, वृक्षासन, जानु शिरासन, मयूरासन, चक्रासन, मत्स्येन्द्रासन, भुजंगासन, बद्ध पद्मासन तथा गर्भासन । अन्त में उष्ट्रासन करें।
(9) उदराध्मान (अफारा) (Yogasan For Flatulence in Hindi) – धनुरासन, शलभासन, भुजंगासन ।
(10) उदर-विकार – भुजंगासन, शलभासन तथा हलासन।
(11) कब्ज (Yogasan For Constipation in Hindi) – शलभासन, धनुरासन, पश्चिमोत्तासन, जानुशिरासन, भुजंगासन, मत्स्यासन, अर्द्ध-मत्स्यासन, मयूरासन, चक्रासन, ताड़ासन, भुजंगासन, सुप्त-वज्रासन, कर्ण पीड़ासन, हलासन, उत्तान पादासन, पाद-हस्तासन, भूमिपाद मस्तकासन तथा पवन मुक्तासन । अन्त में सर्वांगासन और शीर्षासन करें। मूलबन्ध भी हितकर है।
(12) कुष्ठ (Yogasan For Leprosy in Hindi) – सर्वांगासन, दुग्धाहार के साथ नित्य नियमित रूप से करते रहने से दीर्घकाल में लाभ होता है।
(13) कृमि – वृश्चिकासन, पश्चिमोत्तासन, मत्स्येन्द्रासन, नौकासन, उत्थित मेरुदण्डासन, जानु-शिरासन, सर्वांगासन, चक्रासन और शीर्षासन । शंख प्रक्षालन क्रिया भी हितकर है।
(14) कमर दर्द (Yogasan For Lumbago Pain in Hindi) – पद्मासन, सुखासन, वज्रासन, सुप्त वज्रासन, मत्स्येन्द्रासन, अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन, त्रिकोणासन, उत्कटासन, गोमुखासन, ऊर्ध्व सर्वांगासन, मत्स्यासन, उष्ट्रासन, हलासन, भुजंगासन, पश्चिमोत्तासन, धनुरासन, एकपाद शलभासन, द्विपाद शलभासन, नौकासन, सुप्त ऊर्ध्वहस्तासन, शशकासन, चक्रासन, वृक्षासन, मयूरासन तथा सूर्य नमस्कार।
(15) कष्टार्तव (मासिक धर्म कष्ट से आना) (Yogasan For Dysmenorrhoa in Hindi) – सर्वांगासन, हलासन तथा नौलि । इन अभ्यासों से मासिक-धर्म के समय कष्ट नहीं होता।
नोट-मासिकधर्म के दिनों में अभ्यास करना वर्जित है।
(16) कामेन्द्रियों का अल्प विकास – सर्वांगासन, भुजंगासन, शशकासन, हनुमानासन, विपरीतकरणी मुद्रा तथा उड्डियान बन्ध ।
(17) कटिविकार – धनुरासन एवं शलभासन।
(18) कामशक्ति की निर्बलता (सैक्स डिवीलिटी) – सर्वांगासन, भुजंगासन, गरुड़ासन, पश्चिमोत्तासन, मत्स्यासन, अर्द्धमत्स्येन्द्रासन, शशकासन, ताड़ासन, कन्धरासन, सुप्त-वज्रासन, उष्ट्रासन तथा विपरीतकरणी-मुद्रा के साथ उड्डियान-बन्ध, मूलबन्ध, योग-मुद्रा, अश्विनीमुद्रा तथा महामुद्रा।
(19) खट्टी डकारें – पश्चिमोत्तासन, भुजंगासन, चक्रासन, उष्ट्रासन, कर्ण पीड़ासन, जानु शिरासन, सर्वांगासन, ऊर्ध्व सर्वांगासन व शीर्षासन में विशेष लाभप्रद हैं। शीघ्र लाभ प्राप्ति हेतु-मत्स्यासन, मत्स्येन्द्रासन, गर्भासन तथा ऊर्ध्व पद्मासन का अभ्यास श्रेष्ठ रहता है।
(20) खाँसी (Yogasan For Cough in Hindi) – सुप्त वज्रासन, ऊर्ध्व सर्वांगासन, शीर्षासन, मत्स्यासन, पश्चिमोत्तानासन तथा जानु शिरासन के अतिरिक्त-कपाल भित्ति, उज्जायी प्राणायाम तथा भस्त्रिका प्राणायाम भी हितकारी हैं। नियमित रूप से ऊर्ध्व सर्वांगासन तथा शीर्षासन करने वाले अभ्यासी इस रोग से ग्रस्त ही नहीं होते।
(21) गठिया-वात (Yogasan For Arthritis in Hindi) – पवन मुक्तासन, पश्चिमोत्तानासन, अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन, हलासन, धनुरासन, त्रिकोणासन, जानुशिरासन, पर्वतासन, गोमुखासन और कूर्मासन।
(22) गण्डमाला – इस रोग की प्रारम्भिकावस्था में शीर्षासन तथा ऊर्ध्व सर्वांगासन के अभ्यास से लाभ की आशा की जा सकती है।
(23) गर्दन और पीठ के विकार –अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन, हलासन, भुजंगासन, भ्रामरी प्राणायाम एवं कपाल भाति।
(24) गर्भाशय सम्बन्धी दोष – बस्ति अथवा एनिमा द्वारा गर्भाशय की सफाई करने के बाद ऊर्ध्व सर्वांगासन, शीर्षासन तथा सूर्य-भेदन।
(25) गले के रोग (Yogasan For Throat Diseases in Hindi) – सर्वांगासन, शीर्षासन, सिंहासन, हलासन, सुप्त वज्रासन, मत्स्यासन के अतिरिक्त – जालन्धर बन्ध, जल-नेति, कपाल भाति, भ्रामरी, शीतली तथा उज्जायी प्राणायाम।
(26) गुर्दे के रोग (Yogasan For Kidney Disease in Hindi) – पश्चिमोत्तानासन, ऊर्ध्व मत्स्येन्द्रासन, धनुरासन, उष्ट्रासन, गोमुखासन, शशकासन, भुजंगासन और हलासन ।
(27) गैस की बीमारी (Yogasan For Gas Trouble in Hindi) – जानु शिरासन, पवन मुक्तासन, धनुरासन तथा चक्रासन।
(28) घुटनों के रोग – शीर्षासन के साथ तेल मालिश एवं आक के पत्तों द्वारा सेंक करना हितकर रहता है। सेंक घुटनों के ऊपर ही करना चाहिए । पत्तों के ऊपर तेल चुपड़कर उन्हें गरम करने के बाद रोगग्रस्त स्थान पर रखकर सेंकना हितकर रहता है ।
(29) चर्म रोग (Yogasan For Skin Disease in Hindi) – सूर्य नमस्कार के साथ शंख-प्रक्षालन तथा नाड़ी शोधन प्राणायाम करना हितकर है।
(30) जम्हाईयाँ आना – सर्वांगासन, शीर्षासन, सूर्य-भेदन । इनसे लगातार जम्हाइयाँ आते रहने की बीमारी दूर हो जाती है।
(31) जीर्ण ज्वर – शीर्षासन, मयूरासन, जानु शिरासन, चक्रासन, मत्स्येन्द्रासन, ऊर्ध्व सर्वांगासन तथा सूर्य-भेदन।
नोट-ज्वर की स्थिति में आसनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ज्वर न रहने की अवस्था में ही आसन किए जा सकते हैं, परन्तु तब भी किसी अनुभवी व्यक्ति के निर्देशन में ही अभ्यास करना चाहिए।
(32) जुकाम (Yogasan For Cold in Hindi) – ऊर्ध्व सर्वांगासन, शीर्षासन, सूर्य भेदन प्राणायाम तथा जलनेति करने से लाभ होता है। स्वस्थावस्था में इन्हें करते रहने पर जुकाम होता ही नहीं।
(33) जंघा-रोग – सर्वांगासन, ऊर्ध्व सर्वांगासन, मत्स्येन्द्रासन, जानु शिरासन, पश्चिमोत्तानासन, कर्ण पीड़ासन, हस्त पादांगुष्ठासन तथा सूर्य भेदन प्राणायाम।
जाँघों के दोषों को दूर करने हेतु- हस्तभुजासन, द्विहस्तभुजासन, एक पादशिरासन, वातयनासन, प्राणायाम और चतुष्कोणासन ।
(34) झुर्रियाँ (Yogasan For Wrinkles in Hindi) – शीर्षासन, विपरीत-करणी तथा योगमुद्रा । इनके नियमित अभ्यास से चेहरे और शरीर की झुर्रियाँ दूर हो जाती हैं।
(35) ताप-तिल्ली- सर्वांगासन, ऊर्ध्व सर्वांगासन, पश्चिमोत्तानासन, मत्स्येन्द्रासन, उष्ट्रासन, वृश्चिकासन, मयूरासन, चक्रासन तथा शीर्षासन के साथ प्राणायामा इनका अभ्यास ताप-तिल्ली रोग में हितकर है, किन्तु ये अभ्यास ज्वरावस्था में न किए जाएँ। किसी सुयोग्य गुरु के निर्देशन में ही इनका अभ्यास किया जाना उचित रहेगा।
(36) थकान (Yogasan For Fatigue in Hindi) – शवासन, शयनासन, दण्डासन तथा प्रेतासन।
(37) दन्त-रोग (Yogasan For Dental Disease in Hindi) – शीर्षासन से दन्त रोग में विशेष लाभ होता है। दन्त रोगों से छुटकारा पाने के लिए नित्य-नियमित रूप से मंजन अथवा दाँतुन करना परमावश्यक है तथा पेट की सफाई भी आवश्यक है और साथ ही उदर-विकारों में लाभप्रद अभ्यासों (आसनों) को भी करना चाहिए।
(38) दमा (Yogasan For Asthma in Hindi) – शीर्षासन, मत्स्यासन, शलभासन, सुप्त वज्रासन, उष्ट्रासन, सर्वांगासन, भुजंगासन तथा शवासन के साथ शंख प्रक्षालन, भस्त्रिका, कपाल भाति तथा उज्जायी प्राणायाम । इनका दीर्घकालीन नियमित अभ्यास आवश्यक है।
(39) ध्वज भंग – सर्वांगासन, पश्चिमोत्तासन तथा योग-मुद्रा ।
(40) धारणा विकास – नाड़ी शोधन, योग निद्रा तथा त्राटक । इनके अभ्यास से धारणा-शक्ति का विकास होता है।
(41) नाक, कान तथा गले के रोग – सिंहासन एवं मत्स्यासन के साथ जल-नेति तथा शीतली प्राणायाम।
(42) नाक में घाव – कपाल भाति, नेति तथा नाड़ी शोधन।
नोट-इन अभ्यासों को किसी सुयोग्य गुरु के निर्देशन में ही करना चाहिए।
(43) नाड़ी-दौर्बल्य – शीर्षासन तथा शवासन।
(44) नाड़ी सम्बन्धी रोग – हस्त पादात्तानासन, मत्स्यासन, धनुरासन तथा चक्रासन।
(45) नेत्र-रोग (Yogasan For Eye Disease in Hindi) – सर्वांगासन, ऊर्ध्व सर्वांगासन, शीर्षासन, जलनेति और त्राटक।
(46) पतले दस्त – हलासन, शंख प्रक्षालन, मूलबन्ध तथा अग्निसार क्रिया।
नोट-इन्हें सुयोग्य गुरु के निर्देशन में ही करना चाहिए।
(47) पाचन-क्रिया सम्बन्धी विकार (Yogasan For Digestive Disorders in Hindi) – वज्रासन, भुजंगासन, ताड़ासन, गोमुखासन, शलभासन, मयूरासन, पश्चिमोत्तानासन, गर्भासन, त्रिकोणासन, अर्द्धमत्स्येन्द्रासन, अग्निसार क्रिया तथा योगमुद्रा।
(48) पाण्डु रोग (Yogasan For Jaundice in Hindi) – सर्वांगासन, ऊर्ध्व सर्वांगासन, शीर्षासन, मत्स्यासन, मत्स्येन्द्रासन, जानु शिरासन, पश्चिमोत्तानासन, चक्रासन तथा भुजंगासन के साथ सूर्य भेदन प्राणायाम।
नोट-यह अभ्यास पीलिया रोग में भी लाभ करते हैं।
(49) पैर और जांघ के रोग (Yogasan For Foot and Thigh Disease in Hindi) – वज्रासन, वीरासन, हनुमानासन, पद्मासन, गरुड़ासन, अर्द्धपश्चिमोत्तानासन तथा पर्वतासन।
(50) पीठ का दर्द (Yogasan For Back Pain in Hindi) – भुजंगासन, शशकासन, धनुरासन, सुप्त वज्रासन, गोमुखासन तथा पश्चिमोत्तानासन।
(51) पीनस – शीर्षासन तथा ऊर्ध्व सर्वांगासन के साथ ही नाक द्वारा ताजा पानी पीना लाभकर रहता है।
नोट-इन अभ्यासों को योग्य गुरु के निर्देशन में करना चाहिए।
(52) पेट का घाव – योग-निद्रा, नाड़ी-शोधन, शीतली तथा शीतकारी प्राणायाम। इन्हें भी योग्य गुरु के निर्देशानुसार ही करें।
(53) पेट का दर्द (Yogasan For Stomach Ache in Hindi) – मत्स्येन्द्रासन, मयुरासन तथा शीर्षासन। इन अभ्यासों में गुरु से निर्देश अवश्य लें।
(54) पेट की नाड़ियों और माँसपेशियों की निर्बलता – पश्चिमोत्तानासन, उत्थित मेरुदण्डासन, शशकासन, पवन मुक्तासन, हलासन, उष्ट्रासन, गरुड़ासन, मकरासन, वृश्चिकासन और त्रिकोणासन।
(55) पेट का विकार (Yogasan For Stomach Disease in Hindi) – पवन मुक्तासन, पाद हस्तासन, धनुरासन, हलासन, शशांकासन तथा उड्डियन बन्ध ।
(56) प्रदर रोग (Yogasan For Leucorrhoea in Hindi) – शीर्षासन तथा सूर्य नमस्कार के साथ शंख प्रक्षालन तथा महाबन्ध मुद्रा।
इनके साथ बिना नमक तथा बिना शक्कर का भोजन करना चाहिए। मासिक धर्म काल में इन अभ्यासों को करना निषेध है।
(57) प्रमेह – हलासन तथा सर्वांगासन ।
(58) प्लीहा – विकार-शलभासन, हलासन तथा नौलि। इन्हें करते समय योग्य गुरु का निर्देशन आवश्यक है।
(59) फुफ्फुस विकार (Yogasan For Lung Disease in Hindi) – प्राणायाम के साथ शलभासन। इन्हें करते समय योग्य गुरु के निर्देशन में करना चाहिए।
(60) बहरापन (Yogasan For Deafnes in Hindi) – सिंहासन तथा शीर्षासन । इसके साथ ही भ्रामरी प्राणायाम तथा नेति की क्रिया भी करें।
(61) बाँझपन (Yogasan For Infertility in Hindi) – पश्चिमोत्तानासन, सुप्त वज्रासन, गरुड़ासन, शीर्षासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन, ऊर्ध्व मत्स्यासन के साथ योगमुद्रा, महामुद्रा, अश्विनी मुद्रा, उड्डियन बन्ध । (नोट-ये अभ्यास मासिक धर्म के दिनों में न करें।)
(62) बाँहों के रोग (Yogasan For Arms Diseases in Hindi) – वज्रासन, मत्स्यासन, धनुरासन, सर्वांगासन, पाद हस्तासन, ऊर्ध्व पद्मासन, द्विहस्त भुजासन, कुक्कुटासन, बद्ध पद्मासन, चक्रासन तथा तोलासन।
(63) बुद्धि विकृति (Yogasan For Brain Diseases in Hindi) – ऊर्ध्व सर्वांगासन तथा शीर्षासन।
(64) वृद्धावस्था – शीर्षासन तथा सर्वांगासन।
(65) ब्रह्मचर्य पालन – सिद्धासन, पद्मासन व भस्त्रिका प्राणायाम।
(66) मधुमेह (डायबिटीज) (Yogasan For Diabetes in Hindi) – हलासन, सर्वांगासन, पश्चिमोत्तानासन, जानु शिरासन, मत्स्यासन, अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन, भुजंगासन, वातायनासन, शशंकासन, वज्रासन, द्विहस्त, भुजासन, गोमुखासन तथा सूर्य नमस्कार के साथ योगमुद्रा, मूलबन्ध के साथ भस्त्रिका, भ्रामरी, नाड़ीशोधन, शीतकारी एवं शीतली प्राणायाम।
(67) मानसिक तनाव (Yogasan For Mental Stress in Hindi) – सर्वांगासन, शीर्षासन, शवासन, आनन्द मदिरासन, वज्रासन, गर्भासन, शलभासन, हलासन तथा शशांकासन । योगमुद्रा के साथ त्राटक, अजयाजय एवं नाड़ी शोधन प्राणायाम।
(68) मानसिक निराशा (Yogasan For Mental Disappointment in Hindi) – शीर्षासन, शलभासन, हलासन, शशांकासन, वज्रासन, योगनिद्रा तथा योगमुद्रा।
(69) मासिक धर्म सम्बन्धी विकार (Yogasan For Menstrual Disorders in Hindi) – धनुरासन, भुजंगासन, सर्वांगासन, हलासन, वज्रासन, शवासन, मत्स्यासन, शलभासन, पश्चिमोत्तासन, सुप्त वज्रासन तथा द्विहस्त-भुजासन, विपरीतकरणी मुद्रा के साथ वज्रौली, अश्विनी, महामुध का उड्डियन बन्ध । मासिक धर्म में अभ्यास करना निषेध है।
(70) मासिक धर्म बन्द हो जाने पर (Yogasan For Amenorrhea in Hindi) – पश्चिमोत्तासन, शीर्षासन, हलासन, भुजंगासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन तथा धनुरासन के साथ विपरीत-करणी में अश्विनी, योगमुद्रा, महामुद्रा तथा उड्डियन बन्ध।
नोट-ये अभ्यास असमय में मासिक धर्म बन्द हो जाने की स्थिति में लाभकर हैं परन्तु गर्भावस्था के कारण यदि मासिक-धर्म बन्द हो गया हो तो इनका प्रयोग न करें।
(71) माँसपेशियों की दृढ़ता के लिए – भुजंगासन, पद्मासन तथा धनुरासन।
(72) मोटापा (Yogasan For Obesity in Hindi) – पश्चिमोत्तासन, बद्धपद्मासन, अर्द्धमत्स्येन्द्रासन, मत्स्येन्द्रासन, सर्वांगासन, ऊर्ध्व सर्वांगासन, वृश्चिकासन, गर्भासन, उत्तानपादासन, मयूरासन, हलासन,धनुरासन, चक्रासन, शलभासन तथा तोलांगुलासन । योगमुद्रा के साथ उड्डियन बन्ध और नाड़ी शोधन प्राणायाम तथा सूर्य भेदन प्राणायाम।
(73) यकृत-विकार (Yogasan For Liver Disorder in Hindi) – शशकासन, भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन, हलासन, शीर्षासन, पश्चिमोत्तानासन, सर्वांगासन, मयूरासन, गर्भासन, बद्धपद्मासन, हस्त पादोत्तानासन तथा उष्ट्रासन के साथ सूर्य नमस्कार।
(74) यौन विकार (Yogasan For Sexual Dysfunction in Hindi) – शीर्षासन, धनुरासन तथा सर्वांगासन।
(75) रक्तचाप में कमी (लो-ब्लड प्रेशर) (Yogasan For Low Blood Pressure in Hindi) – नाड़ी शोधन प्राणायाम के साथ भस्त्रिका, भूमिपाद, मस्तकासन और वज्रासन के साथ भस्त्रिका और नाड़ी शोधन प्राणायाम।
(76) रक्तचाप में वृद्धि (हाई-ब्लडप्रैशर) (Yogasan For High Blood Pressure in Hindi) – पवन मुक्तासन, वज्रासन, शशकांसन के साथ शीतली, शीतकारी तथा भ्रामरी प्राणायाम ।
(77) रक्तभाराधिक्य (रक्तभार की अधिकता) – शवासन तथा योग निद्रा।
(78) रक्ताल्पता (Yogasan For Anemia in Hindi) – भुजंगासन, शलभासन, हलासन, सर्वांगासन, शवासन, शीर्षासन, पश्चिमोत्तानासन, मत्स्यासन तथा सूर्य नमस्कार के साथ नाड़ी शोधन एवं शीतली प्राणायाम।
(79) रक्त विकार (Yogasan For Blood Poisoning in Hindi) – नाड़ी शोधन प्राणायाम तथा शीतली प्राणायाम, ऊर्ध्व सर्वांगासन, शीर्षासन तथा कण्ठबन्ध।
(80) रीढ़ की हड्डी के विकार – हलासन, पश्चिमोत्तानासन, धनुरासन, त्रिकोणासन, चक्रासन, शीर्षासन, भुजंगासन, शीर्ष पादासन, उष्ट्रासन, पाद-हस्तासन, शशकासन, वृश्चिकासन तथा अर्द्धमत्स्येन्द्रासन।
(81) वात-रोग (Yogasan For Rheumatism in Hindi) – वज्रासन, पद्मासन तथा धनुरासन ।
(82) वायु-विकार (Yogasan For Gas Trouble in Hindi) – पवन मुक्तासन तथा पश्चिमोत्तानासन के साथ शंख प्रक्षालन, भुजंगिनी मुध, अग्निसार क्रिया तथा नौलि।
(83) वीर्य-रोग – सिद्धासन, बद्ध पद्मासन, दण्डासन, गौमुखासन, सर्वांगासन तथा मूलबन्ध।
(84) वृक्क विकार (Yogasan For Renal Disease in Hindi) – अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन, धनुरासन, हलासन, भुजंगासन, पश्चिमोत्तानासन, उष्ट्रासन, गोमुखासन और शशकासन ।
(85) शक्ति-विकास के लिए (Yogasan to Increase Strength in Hindi) – ऊर्ध्व पद्मासन, उत्थित पद्मासन, मयूरासन, तोलासन, चक्रासन तथा वक्रासन के साथ सूर्य भेदन प्राणायाम ।
(86) शरीर के ऊपरी भाग के विकार – धनुरासन, पद्मासन, भुजंगासन, उष्ट्रासन, कुक्कुटासन तथा पादहस्तासन । इनके अभ्यास से शरीर के ऊपरी भाग की नाड़ियों तथा माँसपेशियों के विकार दूर होकर वे पुष्ट होती हैं।
(87) शरीर के निम्न भाग के विकार – जानु शिरासन, त्रिकोणासन, शलभासन, पाद-हस्तासन, गोमुखासन और वातायनासन । इनके अभ्यास से शरीर के निम्न भाग की नाड़ियों तथा माँसपेशियों के विकार दूर होकर वे पुष्ट होती हैं ।
(88) शिरो-रोग (सिर सम्बन्धी बीमारियाँ) – सर्वांगासन तथा शीर्षासन इनसे मस्तिष्क सम्बन्धी अनेक प्रकार के रोग दूर होते हैं।
(89) साइटिका पेन (Yogasan For Sciatica in Hindi) – वज्रासन, गरुड़ासन, गोमुखासन एवं हनुमानासन।
(90) शुक्र-तारल्य (वीर्य का पतलापन) – सर्वांगासन और भस्त्रिका प्राणायाम।
(91) शोथ (सूजन) – शीर्षासन एवं ऊर्ध्व सर्वांगासन । जिस अंग में सूजन हो-उस अंग की नसों का खिंचाव करने वाले आसन लाभकर रहते हैं । शोथ दूर करने हेतु कोई भी अभ्यास करते समय किसी सुयोग्य गुरु से निर्देश अवश्य ले लेना चाहिए।
(92) सुस्ती (Yogasan For Lethargy in Hindi) – सूर्य भेदन प्राणायाम, योग निद्रा, त्राटक तथा नाड़ी शोधन प्राणयाम । प्रायः सभी आसन तथा प्राणायाम सुस्ती को दूर करते हैं।
(93) सन्धि-पीड़ा – अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन।
(94) स्वप्नदोष (नाईट डिसचार्ज) (Yogasan For Night Emission in Hindi) – शीर्षासन, हलासन, पश्चिमोत्तानासन तथा योगमुद्रा । इन अभ्यासों से स्वप्नदोष रोग दूर हो जाता है।
(95) स्नायविक तनाव – शवासन, कूर्मासन, सूर्य-भेदन, भ्रामरी, शीतली प्राणायाम, कपालभाति तथा योगनिद्रा।
(96) स्नायविक दुर्बलता – शीर्षासन, सर्वांगासन, हलासन, चक्रासन, धनुरासन, शलभासन, पश्चिमोत्तानासन, वज्रासन, अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन, गर्भासन तथा शशकांसन के साथ नाड़ी शोधन प्राणायाम करने से विशेष लाभ होता है। ये अभ्यास स्नायुओं को पुष्ट बनाते हैं।
(97) स्मृतिह्रास (Yogasan For Memory loss in Hindi) – सर्वांगासन, शवासन, शलभासन तथा योग-निद्रा, कपाल भाति, भ्रामरी एवं शीतली प्राणायाम । इन अभ्यासों से स्मरण शक्ति तीव्र होती है।
(98) स्लिप डिस्क (Yogasan For Slip Disc in Hindi) – भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन और मकरासन ।
(99) सफेद बालों को काला करने हेतु – ऊर्ध्व सर्वांगासन तथा शीर्षासन का नित्य नियमित रूप से आधा घण्टे का अभ्यास करते रहने से बाल यानि केशों का सफेद होना दूर होकर बाल प्राकृतिक रूप से काले होने लग जाते हैं।
(100) हकलाना (Yogasan For Stutter in Hindi) – नौकासन, सिंहासन, उत्थित मेरुदण्डासन तथा शीर्षासन के साथ शीतली एवं भ्रामरी प्राणायाम। इनका नियमित अभ्यास करना आवश्यक है।
आवश्यक निर्देश :
☛ एक-एक बीमारी हेतु उपर्युक्त तालिका में कई-कई आसनों तथा यौगिक क्रियाओं का जहाँ उल्लेख किया गया है वहाँ आपको जो भी अभ्यास सहज प्रतीत हो, उसी का अभ्यास करें। यदि संभव हो सके तो एक रोग के लिए वर्णित अनेक अभ्यासों में एकाधिक अभ्यास भी एक साथ किए जा सकते हैं।
☛ शारीरिक शक्ति के विकास हेतु तथा सामान्य रोगों के नाश हेतु उपरोक्त तालिका में वर्णित योगासनों तथा अन्य यौगिक क्रियाओं का अभ्यास किए जा सकते हैं । परन्तु यदि रोग पुराना हो अथवा बिगड़ा हुआ हो अथवा किसी रोग की ठीक-ठीक पहचान न हो पाई हो तो ऐसी स्थिति में किसी सुयोग्य योग-चिकित्सक की सम्मति तथा निर्देश लिए बिना उन अभ्यासों को कदापि नहीं करना चाहिए।
☛ वृद्धजनों और बीमार व्यक्तियों को वे अभ्यास नहीं करने चाहिए, जो कठिन अथवा कष्टकारी प्रतीत हों । आरम्भ में सरल अभ्यासों में सफलता प्राप्त कर लेने के उपरान्त ही, यदि मन में उत्साह हो तो बाद में कठिन अभ्यास भी किए जा सकते हैं।
☛ जो अभ्यास जितनी देर तक अथवा जितनी बार करने हेतु निर्देश दिया गया है, उसे उतनी बार तथा उतने-उतने समय तक ही करना पर्याप्त रहता है । यदि शरीर अशक्त हो तो किसी अभ्यास को दुहराने की संख्या में कमी तो की जा सकती है। परन्तु स्वस्थ शरीर होते हुए भी किसी अभ्यास को उल्लिखित संख्या से अधिक बार दोहराना प्रायः निरर्थक ही रहता है तथा कभी-कभी हानिकारक भी सिद्ध होता है।