सर्वांगासन करने का तरीका और इसके लाभ

Last Updated on September 10, 2021 by admin

सर्व+अंग+आसन – अर्थात् सभी अंगों के उचित पोषण के लिए किए जानेवाले आसन को ‘सर्वांगासन’ कहते हैं।
सर्वांगासन करने से ऊर्जा का सीधा प्रवाह गर्दन की ओर हो जाता है और मस्तिष्क की तरफ़ रक्त प्रवाह बेहतर होता है। सर्वांगासन से गर्दन और रीढ़ के जोड़ में चुस्ती आती है और लचीलेपन में मदद मिलती है। शरीर के विविध तंत्रों में संचार बढ़ता है, जिससे जागरूकता में अत्यधिक वृद्धि होती है।

सर्वांगासन के लाभ (Sarvangasana ke Labh in Hindi)

  • थायराइड (Thyriod) और पैराथाइराइड (Parathyriod) ग्रंथि को सक्रिय और स्वस्थ रखना इस आसन का प्रमुख कार्य है।
  • रक्त संचार पाँव से सिर की ओर बढ़ने के कारण हृदय पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है तथा मस्तिष्क को भी रक्त से पूर्ण लाभ मिलता है। परिणामस्वरूप हृदय, फेफड़े और मस्तिष्क के समस्त उपांगों को भरपूर पोषण मिलता है।
  • सर्वांगासन के अभ्यास से पसीने की दुर्गंध का नाश होता है।
  • इस आसन से सिर के बाल स्वस्थ, सुंदर, काले और घने होते हैं तथा बालों के समस्त रोगों का नाश होता है।
  • सर्वांगासन नाक, कान और नेत्र रोगों में लाभ पहुँचता है।
  • इसके अभ्यास से गले से संबंधित रोग शीघ्र दूर होने लगते हैं तथा स्वर-यंत्र पर अनुकूल प्रभाव देखने को मिलता है।
  • चेहरे व त्वचा से संबंधित समस्त रोगों का नाश होता है और देह कांतियुक्त होती है।
  • यह आसन स्वप्नदोष नाशक होता है।
  • सर्वांगासन मेधा वृद्धि कर स्मरण-शक्ति बढ़ाता है और ब्रह्मचर्य को दृढ़ करता है।
  • इस आसन से तालू से झड़नेवाला चंद्ररस कंठ प्रदेश में रुक जाता है। चंद्ररस के प्रभाव से चिर यौवन कायम रहता है।

आसन की प्रकृति :

व्यायामात्मक।

सर्वांगासन करने की विधि (Sarvangasana Karne ki Vidhi in Hindi)

सर्वांगासन करने का तरीका और इसके लाभ

इस आसन में शिक्षार्थी (साधक) को पीठ के बल आराम से लेटने के पश्चात् दोनों एड़ी-पंजों को आपस में जोड़ना चाहिए और हाथों को जंघा से मिलाना चाहिए। पूरक करते हुए पैरों को धीरे-धीरे (like crane maclive) 90 अंश तक उठाना और कमर को ऊपर उठाते हुए पीठ को ऊपर की ओर इस प्रकार सीधा करते हैं कि ठोढ़ी कंठकूप से चिपक जाए और गरदन के नीचे का संपूर्ण शरीर लंबवत् हो जाए।

तदंतर कमर के ऊर्ध्व हिस्से को हाथों से पकड़कर सहारा देते हैं। कुहनियाँ लंबवत् जमीन पर चिपकी रहती हैं। संपूर्ण क्रिया में घुटने व एड़ी-पंजे पूरी तरह खिंचे रहते हैं। अधिकतम समय रुकने के बाद सबसे पहले पैरों को रेचक के साथ सिर की ओर लेकर जाना, तदंतर कमर को जमीन पर रखकर पाँव 90 अंश तक लाएँगे और हाथ नीचे लंबवत् कर लेंगे।
पूरक करने के पश्चात् धीरे-धीरे पैरों को वापस लाएँगे और रेचक क्रिया कर शवासन करेंगे।

  1. पीठ के बल चित लेटना। पैरों की एड़ी-पंजे आपस में जोड़ना और नीचे की ओर पंजे दबाना,
    साथ ही हाथों को जंघा के साथ जोड़ना। पूरक करते हुए पैरों को धीरे-धीरे 90 अंश तक उठाना।
  2. कमर को ऊपर उठाते हुए उसे हाथ का सहारा दें। कुहनी जमीन पर टिक जाएगी। पैरों और पीठ को एक सरल रेखा में लंबवत् करें। श्वास छोड़ दें ।
  3. पुनः रेचक कर पैर सिर की ओर ले जाएँ। हाथ जमीन पर रखकर नितंब नीचे रख दें। पैरों को 90 अंश पर रोकें और पूरक क्रिया करें। धीरे-धीरे पैर वापस लाएँ और शवासन करें।

समयावधि :

इस आसन को पूर्ण स्थिति में तीन से पाँच मिनट तक रोके रखना चाहिए।

श्वास संयोजन :

  1. प्रारंभ में 90 अंश-पर्यंत पूरक।
  2. 90 अंश से लंबवत् पूर्व स्थिति-पर्यंत अंत:कुंभक।
  3. पूर्ण स्थिति में श्वास की सामान्य गति।
  4. 150 अंश तक रेचक।
  5. 150 अंश से पुन: 90 अंश तक बाह्य कुंभक।
  6. 90 अंश पर पूरक व अंत:कुंभक से 0 अंश तक आना। अंत में रेचक करना।

सर्वांगासन करने से पूर्व ध्यान में रखने योग्य बातें (Sarvangasana Karne se Pahle)

  • इस आसन को सुबह के समय किया जाना सर्वोत्तम माना गया है । अगर यह संभव नही तो शाम को इस आसन को करने से 4 – 5 घंटे पहले भोजन कर लें।
  • शौच आदी से निवृत हो पेट खाली होने की अवस्था में ही इस आसन का अभ्यास किया जाना चाहिए।

सर्वांगासन करने में सावधानी (Sarvangasana Karne me Savdhani in Hindi)

  1. यह आसन थायरायड (चुल्लिका ग्रंथि), यकृत एवं प्लीहा की वृद्धि में वर्जित है।
  2. अति अल्प आयु के छात्र इसका अभ्यास अति सावधानी से करें।
  3. पित्त प्रकृति के छात्र-छात्राओं के लिए विशेषज्ञ की सलाह पर ही यह आसन करना उचित रहेगा।

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