Last Updated on November 2, 2019 by admin
गत वर्ष मुझे चारधाम यानी ब्रदीनाथ, केदारनाथ, यमनोत्री एवं गंगौत्री प्रवास का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इन पवित्र स्थलों के दर्शन करने के उपरान्त मैं हिमाचल प्रदेश के कुल्लु-मनाली व धर्मशाला क्षेत्रों में भी गया। इन क्षेत्रों में मैंने देखा कि जगह-जगह मार्ग पर शुद्ध शिलाजीत बेची जा रही है और इसे बेचने वाले अपनी शिलाजीत के शुद्ध होने का दावा करते हुए उसे बड़े महंगे दामों में बेच रहे हैं। 100 रु. प्रति 10 ग्राम की शिलाजीत मोलभाव करने पर 10 रु. प्रति 10 ग्राम मिल जाती है फिर भी खरीदने वाला घाटे में रहता है क्योंकि वह नकली निकलती है।
शिलाजीत शुद्ध और असली हो, साथ ही इसका सेवन उचित मात्रा में और विधिविधान के अनुसार ही किया जाए तभी इसके अपेक्षित लाभ प्राप्त होते हैं।
शिलाजीत क्या है ? : Shilajit in Hindi
शिलाजीत दरअसल पत्थर की शिलाओं से पैदा होता है इसीलिए इसको शिलाजीत कहा जाता है। तमाम आयुर्वेदाचार्य और आयुर्वेदिक ग्रन्थ इसे पर्वत की शिलाओं से उत्पन्न हुआ मानते हैं तो कुछ आधुनिक विद्वान इसे पार्थिव द्रव्य न मान कर पर्वतीय वनस्पतियों का निर्यास (Exudation) मानते हैं यानी एक वेजीटेबल प्रॉडक्ट मानते हैं। उनकी राय में चूंकि यह शिलाओं से बहता हुआ आता है इसलिए इसे शिलाजतु कहा गया है। सुश्रुत संहिता (चिकित्सा स्थान) में कहा गया है –
मासे शुक्रे शुचौ चैव शैलाः सूर्यां शुता पिताः ।
जतुप्रकाशं स्वरसं शिलाभ्यः प्रस्रवन्ति हि॥
अर्थात् – जेष्ठ और आषाढ़ मास में सूर्य की तीव्र किरणों द्वारा तपे हुए पर्वत, लाख के समान रस बहाते हैं यही रस शिलाजतु कहलाता है। चरक संहिता में भी कहा गया है –
‘हेमाद्याः सूर्य संतप्ताः स्रवन्ति गिरिधातवः ।
जत्वाभं मृदु मृत्सराच्छं यन्मलं तच्छिलाजतु ।’
अर्थात् – सुवर्ण आदि पर्वतीय धातुएं सूर्य के ताप से सन्तप्त होकर लाख के समान पिघली हुई, कोमल चिकनी मिट्टी के समान स्वच्छ मल का स्राव (बहाव) करती हैं। इसे ही शिलाजीत कहते हैं।
आयुर्वेद में शिलाजीत के चार भेद बताये हैं- सुवर्ण, चांदी, तांबा और लोहा, इन चार धातुओं से उत्पन्न शिलाजीत क्रम से श्रेष्ठ होता है। चरक संहिता में कहा गया है –
गोमूत्र गन्धयः सर्वे सर्व कर्मसु यौगिकाः।
रसायन प्रयोगेषु पश्चिमस्तु विशिष्यते ।।
अर्थात् – सामान्यतः सभी प्रकार के शिलाजीत गौ मूत्र जैसे गन्ध वाले होते हैं और वे सभी तरह के विकारों को दूर करने के लिए उपयुक्त होते हैं। रसायन की दृष्टि प्रयोग करने के लिए लौह शिलाजतु सर्वोत्तम है।
अब सवाल यह उठता है कि पर्वतीय क्षेत्रों में वर्ष के अधिकांश दिनों में ठण्ड का मौसम ही रहता है और कुछ दिनों की सूर्य की धूप से सन्तप्त होकर यह द्रव्य आखिर कितनी मात्रा में उपलब्ध हो सकता है। शिलाजीत हिमालय पर्वत श्रृंखला के पर्वतीय पत्थर में होता है और भारत, पाकिस्तान, चीन के इन क्षेत्रों के पर्वतीय पत्थरों में कुछ प्रतिशत में रहता है। इसकी पर्याप्त मात्रा प्राप्त करने के लिए इसे इन पत्थरों से विशेष विधि द्वारा शोधन कर निकाला जाता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
✦ संस्कृत – शिलाजतु, गिरिज।
✦ हिन्दी – शिलाजीत ।
✦ पंजाबी – शिलाजीत ।
✦ बंगला – शिलाजतु ।
✦ तामिल – उरग्यम् ।
✦ मराठी – शिलाजीत ।
✦ कन्नड़ – कुलबेचरु ।
✦ तेलुगु – शिलाजतु ।
✦ गुजराती – शिलाजीत ।
✦ अरबी – हाज़र उलमूसा ।
✦ इंग्लिश – एस्फाल्ट (Asphalt) ।
✦ लैटिन – एस्फाल्टम् पंजाबिनम (Asphaltum Punjabinum) ।
असली शिलाजीत की पहचान : Shudh Shilajit ki Pehchan Kaise Kare
आयुर्वेद में वर्णित इस द्रव्य की प्रशंसा पढ़ कर किसी भी व्यक्ति के मन में शिलाजीत के प्रति उत्सुकता और इसको सेवन कर लाभ उठाने की लालसा पैदा हो सकती है। इसीलिए शिलाजीत का उपयोग करने सम्बन्धी यह स्पष्ट चेतावनी दे देना हम ज़रूरी समझते हैं कि जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि जो शिलाजीत आप खरीद रहे है वह असली और शुद्ध है और उसमें किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं है तब तक उसका सेवन न करें वरना मनोवांछित लाभ न मिलने पर इस उपयोगी और अभूतपूर्व गुणों से युक्त द्रव्य को आप बेकार चीज़ समझने लगेंगे।
हमारा आपसे अनुरोध है कि आप अच्छी कम्पनी का शिलाजीत ही उपयोग में लाएं। वैसे शुद्ध शिलाजीत की जांच पड़ताल सम्बन्धी कुछ सामान्य उपाय यहां प्रस्तुत कर रहे हैं –
☛ शिलाजीत के ज़रा से टुकड़े को कोयले के अंगारे पर डालने से धूआं न उठे और खूटे की तरह खड़ा हो जाए तो उसे असली समझें।
☛ सूख जाने पर उसमें गोमूत्र जैसी गन्ध आये ।
☛ रंग काला और पतले गोंद के समान हो ।
☛ हलका व चिकना हो ।
तो ऐसे शिलाजीत को शुद्ध और उत्तम समझें।
शिलाजीत शोधन विधि :
5 किलो शिलाजीत के पत्थरों को छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ कर एक भगोने में 30-40 लीटर गर्म पानी में गला दें। 2-3 दिन तक गलाने के बाद उसमें गोमूत्र या त्रिफला क्वाथ (हरड़, बहेड़ा, आंवला) अच्छे से मिला कर 24 घण्टे भीगने दें। फिर इसे उबाल कर ऊपर-ऊपर का शिलाजीत युक्त साफ़ जल निथार लें। भगोने में जो शेष रह जाए उसमें भी गोमूत्र एवं गर्म पानी मिला कर दूसरे दिन उसका पानी भी निथार लें। अब इस निथरे हुए जल को भट्टी पर चढ़ा कर अच्छी तरह उबालें। जब पूरा पानी उड़ जाएगा तब काले डामर के समान रबड़ी जैसा शिलाजीत निकलेगा जिसे किसी साफ़ पात्र में इकट्ठा कर लें यही शुद्ध शिलाजीत है। इसे अग्नितापी शिलाजीत कहते हैं।
सूर्यतापी शिलाजीत प्राप्त करने के लिए उपरोक्त विधि से प्राप्त निथारे हुए जल को एक कलाई किये हुए पात्र में छान कर भर लें और उस पात्र को सूर्य की धूप में रखने से रोज़ शाम को या दूसरे दिन सुबह ऊपर के भाग में दूध की मलाई के समान शिलाजीत की मलाई आ जाती है। उस मलाई को खुरच कर या कलछी से अलग बरतन में निकाल कर सुखा लेने पर शुद्ध शिलाजीत प्राप्त होती है।
शिलाजीत के पात्र, जिससे रोज मलाई उतारी जाती है उसमें मलाई आ रही हो और तेज़ धूप के कारण यदि जल सूख जाए या कम हो जाए तो आवश्यकता के अनुसार त्रिफला क्वाथ मिला लें। जब मलाई आना बन्द हो जाए तो शेष कचरे को फेंक दें।
शिलाजीत का सेवन कैसे करें ? सेवन विधि :
शिलाजीत की 2-2 गोली या शुद्ध शिलाजीत 4-4 रत्ती (500 मि.ग्रा.) सुबह-शाम दूध के साथ लेना चाहिए।
शिलाजीत का सेवन करते हुए लाल मिर्च, जलन करने वाले उष्ण प्रकृति के पदार्थ, भारी गरिष्ठ पदार्थ, तेज़ मिर्च मसाले, शराब, अण्डे, मांस, मछली, कुलथी, मकोय, तेल, गुड़, खटाई, अति धूप या अति गर्मी, रात्रि जागरण, दिन में सोना, मल-मूत्र के वेग को रोकना, क़ब्ज़, अधिक श्रम या व्यायाम, इन सबका त्याग रखना बहुत आवश्यक है।
शुद्ध शिलाजीत खाने के फायदे : Shilajit Benefits in Hindi
1- वात रोगों को दूर करने वाला –
शिलाजीत में स्नेह और लवण गुण होने से यह वातघ्न है ।
2- पित्त जन्य विकारों को सम करने वाला –
रस गुण होने से शिलाजीत पित्तघ्न है ।
3- कफ जन्य रोगों को हरने वाला –
शिलाजीत तीक्ष्ण गुण होने से श्लेष्मघ्न है ।
4- भूख बढ़ाने वाला –
मेदोघ्न, चरपरी और तीक्ष्ण गुण होने से दीपन है ।
5- खून को साफ करने वाला –
कड़वा रस होने से रक्त विकार नाशक है ।
6- पेट के कीड़े दूर करने मे लाभदायक –
चरपरा, तीक्ष्ण और उष्ण गुण होने से कृमिघ्न होती है ।
7- बल बढ़ाने वाला –
शिलाजीत स्निग्ध होने से पौष्टिक, बल्य व आयुवर्द्धक होती है ।
8- शरीर के विजातीय द्रव्य का नाश करने वाला –
यह वृष्य, विषनाशक, मंगल (रसायन) और अमृतरूप (सत्ववर्द्धक) गुणों की प्राप्ति कराने वाली होती है।
9- स्मरणशक्ति बढ़ाने मे लाभदायक –
शुद्ध शिलाजीत के सेवन से धातुक्षीणता और मूत्ररोग दूर होते हैं तथा स्मरणशक्ति बढ़ती है।
10 – भगवान धन्वन्तरिजी कहते हैं कि सब प्रकार का शिलाजीत कड़वा, चरपरा, कुछ कषाय रस युक्त, सर (वात और मल प्रर्वतक या सर्वत्र पहुंच जाने वाला), विपाक में चरपरा, उष्णवीर्य, कफ और मेद का शोषण करने और मल का छेदन करने वाला है।
11- शिलाजीत के सेवन से प्रमेह, कुष्ठ, अपस्मार, उन्माद, श्लीपद, कृत्रिम विष, शोष (क्षय), शोथ, अर्श, गुल्म, पाण्डु और विषम ज्वर आदि रोग थोड़े ही समय में दूर हो जाते हैं। यह बहुत काल से मूत्र में आने वाली शर्करा और पथरी का भेदन करके उसे बाहर निकाल देता है।
12- महर्षि आत्रेय कहते हैं –
अनम्लं च कषायं च कटु पाके शिलाजतु।
नात्युष्णशीतं धातुभ्यश्चतुर्थ्यस्तस्य सम्भवः ।।
न सोऽस्ति रोगो भुवि साध्य रूपः शिलाह्वयं यं न जयेत् प्रसा।
तत्काल योगै विधिभिः प्रयुक्तं स्वस्थस्य चोर्जा विपुलां ददाति ।।
अर्थात् – शिलाजतु अनम्ल (खट्टी नहीं),कषाय रस प्रधान, विपाक में कटु, न अधिक उष्ण, न अधिक शीत अपितु समशीतोष्ण है। इसकी उत्पत्ति सोना से, चांदी से, तांबा से और कृष्ण लोह से होती है। विधिपूर्वक सेवन करने पर यह वाजीकरण तथा रोगनाशक होता है। इस पृथ्वी पर ऐसा कोई रोग नहीं है जिसे उचित समय पर, उचित योगों के साथ विधिपूर्वक शिलाजीत का प्रयोग करके बलपूर्वक नष्ट न किया जा सके। स्वस्थ मनुष्य भी यदि शिलाजीत का विधिपूर्वक प्रयोग करता है तो उसे उत्तम बल प्राप्त होता है।
रोग उपचार में शिलाजीत के उपयोग और अनुपान :
आयुर्वेद में जितना महत्व पथ्य और अपथ्य के पालन को दिया गया है उतना ही ‘अनुपान के सेवन’ को भी दिया गया है। शिलाजीत का विभिन्न रोगों में अलग-अलग अनुपान (दवा के साथ या बाद ली जानेवाली वस्तु) के साथ प्रयोग किया जाता है और रोगी को इसके सम्पूर्ण लाभ प्राप्त होते हैं। कुछ महत्वपूर्ण रोगों में, शिलाजीत का सेवन करने में उपयोगी, अनुपानों की जानकारी प्रस्तुत की जा रही है।
1- ज्वर का शमन करने के लिए – नागर मोथा और पित्त पापड़ा के क्वाथ के साथ लेना चाहिये ।
2- मोटापा दूर करने के लिए – एक गिलास पानी में 2 चम्मच शहद घोल कर इसके साथ आधा ग्राम शुद्ध शिलाजीत या शिलाजीत की 2 गोली लेना चाहिए । अधिक लाभ के लिए इसके साथ मेदोहर गूगल की 2-2 गोली भी ले सकते हैं।
3- स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए – गाय के दूध के साथ के साथ लें।
4- शोथ (सूजन) व असाध्य रोगों के लिए – गोमूत्र के साथ लें ।
5- पथरी के लिए – गोखरू काढ़े के साथ लें ।
6- धातु क्षीणता या शारीरिक कमज़ोरी के लिए – केशर और मिश्री मिले दूध के साथ सेवन करें।
7- मूत्र रोग में – छोटी इलायची और पीपल का समभाग चूर्ण के साथ लेना चाहिये ।
8- मधुमेह रोग में – सालसारादिगण के क्वाथ के साथ लेना चाहिये ।
9- प्रमेह के लिए – समभाग बंग भस्म मिला कर दूध के साथ या शहद व त्रिफला चूर्ण के साथ लें।
शिलाजीत निर्मित आयुर्वेदिक दवा (योग) :
शिलाजीत के गुण व लाभ के विषय में पढ़ कर ऐसे गुणकारी द्रव्य का सेवन कर लाभ उठाने की इच्छा पैदा होना स्वाभाविक है अतः इसका सेवन करने वालों की इच्छा की पूर्ति के लिए हम शिलाजीत से बने कुछ महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक योगों का परिचय तथा उनकी उपयोगिता सम्बन्धी विवरण यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।
नोट – ये सभी योग बने बनाये बाज़ार में मिलते हैं।
1) शिलाजतु वटी –
शिलाजतु वटी के घटक द्रव्य –
शुद्ध शिलाजीत, शुद्ध गूगल, लौह भस्म, बंग भस्म और स्वर्ण माक्षिक भस्म इस वटी के घटक द्रव्य होते हैं।
मात्रा और सेवन विधि –
इसकी 2-2 गोली सुबहशाम दूध के साथ ली जाती है।
शिलाजतु वटी के फायदे व उपयोग –
✥ यह वटी वातज प्रमेह, शर्करामेह, इक्षुमेह तथा मधुमेह में अति लाभकारी है।
✥ जिन रोगियों में वात रोग के साथ प्रमेह भी हो उनके लिए यह उत्तम फलदायी है।
✥ पूयमह व्रण व विद्रधि में पूय (मवाद) को सुखाने में यह वटी अद्वितीय कार्य करती है।
✥ जो पुरुष वीर्य-विकार और यौन दौर्बल्य से ग्रस्त एवं दुःखी हैं वे इस वटी का सेवन, पूर्ण लाभ होने तक, निरन्तर रूप से करें तो सब विकारों और व्याधियों से मुक्त हो कर पूर्ण सक्षम और सशक्त हो सकते हैं। ✥ सब प्रकार के प्रमेह, मूत्र रोग और धातुओं की क्षीणता नष्ट कर, शरीर की धातुओं को पुष्ट करने वाला यह योग आयुर्वेद का आशीर्वाद है।
2) शिवा गुटिका –
शिवा गुटिका के घटक द्रव्य –
शिलाजीत से बनने वाले इस महायोग में शिलाजीत के साथ विदारीकन्द, बंसलोचन, दालचीनी,
नाग के शर, शतावरी, क्षीरकाकोली, पुष्करमूल जैसे कई घटक द्रव्य और भावना द्रव्यों का उपयोग होता है।
मात्रा और सेवन विधि –
2-2 गोली सुबह-शाम दूध या शहद के साथ सेवन करें।
शिवा गुटिका के फायदे व उपयोग –
✥ इस महाऔषधि के सेवन से कई बीमारियां और कमजोरियां दूर हो जाती हैं।
✥ चूंकि शिवा गुटिका में शिलाजीत जैसा शक्तिशाली द्रव्य होता है अतः यह बलवीर्यवर्द्धक और पौरुष शक्ति वर्द्धक योग भी है।
✥ यह शुक्र में विद्यमान दूषित तत्वों का शोधन करती है, शरीर में बढ़ी हुई उष्णता का शमन कर स्तम्भन शक्ति बढ़ाती है,
✥ यह शुक्र की क्षीणता और शिथिलता दूर करती है और वीर्य शक्ति बढ़ा कर नपुंसकता नष्ट करती है।
✥ इस गुटिका निरन्तर सेवन करने से शरीर हृष्ट-पुष्ट होता है और चेहरा तेजस्वी होता है।
✥ यदि एक वर्ष तक नियमित रूप से, उचित आहार-विहार करते हुए सेवन कर ली जाए तो यह वटी एक तरह से शरीर का कायाकल्प ही कर देती है।
✥ यह मधुमेह, वात प्रकोप और वातजन्य रोगों तथा दर्द दूर करने वाली विश्वसनीय औषधि है।
3) शिलाप्रमेह वटी –
शिलाप्रमेह वटी के घटक द्रव्य –
इस योग के घटक द्रव्य हैं- शुद्ध शिलाजीत मधुमेह दमन चूर्ण, प्रमेह गज केसरी, गिलोय सत्व, आमलकी रसायन और तेजपान ।
मात्रा और सेवन विधि –
2-2 गोली दूध या पानी के साथ भोजन के आधा घण्टा पूर्व ।
शिलाप्रमेह वटी के फायदे व उपयोग –
✥ इस योग के सेवन से मधुमेह रोग के कारण उत्पन्न हुई और बढ़ी हुई शर्करा पर नियन्त्रण हो जाता है भले ही
शर्करा केवल रक्त में बढ़ी हुई हो या मूत्र में भी आती हो। दरअसल इस योग के सेवन से अग्न्याशय (Pancreas) सबल होकर पर्याप्त मात्रा में इन्सुलिन बनाने लगता है।
✥ यह वटी मधुमेह रोग के लक्षण जैसे मुंह सूखना, अधिक प्यास लगना, अधिक मात्रा में बार-बार पेशाब आना, ज्यादा भूख लगना फिर भी वज़न कम होना, शरीर में कमज़ोरी व थकावट रहना, त्वचा पर जल्दी ठीक न होने वाले फोड़े फुन्सी होना, नेत्र विकार, नपुंसकता आदि को दूर करने वाली होती है।
✥ इस योग में शिलाजीत होने से मधुमेह, प्रमेह आदि के साथ-साथ धातु दौर्बल्य, मधुमेह जन्य नपुंसकता तथा अन्य यौन रोग भी इसके सेवन से नष्ट होते हैं।
4) मधुमेह नाशिनी गुटिका –
मधुमेह नाशिनी गुटिका के घटक द्रव्य –
शुद्ध शिलाजीत, त्रिवंगभस्म, गुड़मार, नीम की पत्तियां इसके घटक द्रव्य हैं।
मात्रा और सेवन विधि –
2-2 गोली सुबह-शाम दूध के साथ।
मधुमेह नाशिनी गुटिका के फायदे व उपयोग –
✥ यह वटी रक्त में बढ़ने वाली और पेशाब में जाने वाली शर्करा को नियन्त्रित करने वाली औषध है।
✥ यह मधुमेह पर नियन्त्रण के साथ-साथ इस रोग से उत्पन्न शारीरिक एवं मानसिक कमजोरी, नपुंसकता आदि उपद्रवों को भी दूर करती है।
5) वीर्य शोधन वटी –
वीर्य शोधन वटी के घटक द्रव्य –
शुद्ध शिलाजीत, रोप्यभस्म (चांदी भस्म), बंग भस्म, प्रवाल पिष्टी, गिलोय सत्व, भीमसेनी कपूर।
मात्रा और सेवन विधि –
1 से 2 गोली सुबह-शाम दूध के साथ।
वीर्य शोधन वटी के फायदे व उपयोग –
✥ वीर्यशोधन वटी शुक्र को शुद्ध करके उसमें मौजूद दूषित तत्वों को नष्ट करती है,
✥ उष्णता कम करके स्तम्भन शक्ति बढ़ाती है
✥ यह शुक्राशय और शुक्र (वीर्य) वाहिनी के वात प्रकोप और शिथिलता को दूर करती है।
✥ इसके सेवन से प्रमेह, धातुरोग, मूत्ररोग तथा यौन संस्थान की निर्बलता आदि विकार दूर होते हैं।
✥ शुक्रमेह, अधिक स्त्री सहवास, हस्तमैथुन, स्वप्नदोष आदि कारणों से वीर्य का अतिक्षय होने में इस वटी का सेवन आशातीत लाभ देता है।
( और पढ़े – वीर्य शोधन वटी के फायदे और नुकसान )
शिलाजीत के नुकसान : Side Effects of Shilajit in Hindi
शिलाजीत एक लाभकारी पौष्टिक द्रव्य है पर कुछ स्थितियों में इसका सेवन वर्जित भी है।
1- शिलाजीत का सेवन पित्त प्रधान प्रकृतिवालों को नहीं करना चाहिए।
2- पित्त-प्रकोप हो, आंखों में लाली रहती हो, जलन होती हो और शरीर में गर्मी बढ़ी हुई हो ऐसी स्थिति में भी शिलाजीत का सेवन नहीं करना चाहिए।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)