Last Updated on November 5, 2023 by admin
सिरस (शिरीष) का पेड़ (Shirish Tree in Hindi)
सिरस का पेड़ पूरे भारत के जंगलों में पाया जाता है। इसके पेड़ पहाड़ी क्षेत्रों में 8 हजार फुट की उंचाई तक पाए जाते हैं। यह छायादार और अधिक पत्तों वाला पेड़ है। इसका पेड़ मध्यम आकार का होता है और इसकी टहनियां चारों ओर फैली हुई होती है। इसके तने भूरे रंग के खुरदरे व कटे-फटे होते हैं। इसके अंदर की छाल लाल, कड़ी व खुरदरी होती है और बीच में सफेद रंग की होती है। इसके पत्ते इमली के पत्तों के समाने लेकिन कुछ बड़े होते हैं। इसके फूल पीले व सफेद रंग के होते हैं जिससे सुगंध आती रहती है। इसके फल 4 से 12 इंच लम्बे, चपटे व पतले होते हैं जिसमें 6 से 22 बीज होते हैं। सिरस के पेड़ में बरसात के मौसम में फूल और सर्दी के मौसम में फल लगते हैं जो काफी समय तक पेड़ों पर लगे रहते हैं। इसके फल और फूल अलग प्रकार के होते हैं। इसके पेड़ तीन प्रकार के होते हैं- काला, लाल और सफेद।
सिरस (शिरीष) का विभिन्न भाषाओं मे नाम :
कुलनाम | मिमोसेसीज़। |
संस्कृत | भण्डिल, शुक पुष्प, शुकप्रिय, शिरीष |
हिन्दी | सिरस, शिरीष |
मराठी | शेगटा, शेवगा |
गुजराती | सरस, सरसडो, काकीयो |
फारसी | दरख्तेजक्रिया |
अरबीं | सुल्तानुल्-अशजार |
तैलगु | दिरसेनमु, दिरासना |
पंजाबी | शरीं, सिरस, सरीह रासायनिक |
सिरस (शिरीष) के गुण :
- सिरस वात, पित और कफ को कम करता है।
- यह दर्द को शांत करता है।
- फोड़े को ठीक करता है।
- विष के प्रभावों को दूर करता है और आंखों के रोग को नष्ट करता है।
- इससे लिंग का ढीलापन दूर होता है।
- इससे खांसी नष्ट होती है।
- यह वीर्य बढ़ता है।
- इससे कुष्ठ नष्ट होता है।
- इससे प्रमेह ठीक होता है ।
- यह पीलिया ठीक करता है।
सिरस (शिरीष) के फायदे और उपयोग (Shirish ke Fayde aur Upyog)
1. खांसी :
- पीले सिरस के पत्तों को घी में भूनकर दिन में 3 बार लेने से खांसी खत्म होती है।
- 50 ग्राम सिरस के बीजों को पानी में मिलाकर काढ़ा बना लें और यह काढ़ा प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करें। इससे खांसी में आराम मिलता है।
2. सिर का दर्द :
- सिर का दर्द सुबह सूर्योदय के साथ शुरू होता है और सूर्यास्त के साथ ठीक होता है। ऐसे सिर दर्द में सिरस के ताजे 5 फूल गीले रूमाल में लपेटकर सूर्योदय से पहले सूंघना चाहिए। इससे सिर का दर्द ठीक होता है।
- आधे सिर का दर्द जुकाम बिगड़ने से भी होता है। ऐसे में सिरस के बीज, छाल और फूलों को अलग-अलग पीसकर शीशी में भर लें। यह प्रतिदिन सूंघने से आधे सिर का दर्द ठीक होता है।
- सिर दर्द में सिरस के फूलों को सूंघने से सिर का दर्द ठीक होता है।
- सिर दर्द से पीड़ित रोगी को सिरस के बीजों और मूली के बीजों को पीसकर सूंघना चाहिए। इससे सिर का दर्द और आधासीसी (आधे सिर का दर्द) का दर्द ठीक होता है।
3. पीलिया : सिरस की छाल को पीसकर 2 चम्मच की मात्रा में पानी में रात को भिगो दें और सुबह इसे छानकर खाली पेट पीएं। इससे पीलिया के रोग में लाभ मिलता है।4. पेशाब का रुक जाना : सिरस के फूल को पीसकर 2 चम्मच की मात्रा में 2 चम्मच मिश्री के साथ एक गिलास पानी में घोलकर पीने से पेशाब खुलकर आता है।
5. खूनी बवासीर :
- सिरस के बीजों को बारीक पीसकर तेल में मिलाकर 4 दिन तक रखें। फिर इस तेल को गर्म करके छान लें और मस्सों पर प्रतिदिन लगाएं। इससे बवासीर के मस्से सूखकर गिर जाते हैं।
- 100 ग्राम सिरस के बीज और 50 ग्राम मिश्री को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 2 चम्मच प्रतिदिन 4 बार ठंडे पानी से फंकी लें। इससे बवासीर में खून का आना बंद होता है और बवासीर भी ठीक होता है।
6. बवासीर :
- 6 ग्राम सिरस के बीज और 3 ग्राम कलियारी की जड़ को पानी के साथ पीसकर बवासीर पर लेप करने से बवासीर ठीक होता है।
- सिरस के बीज, कूठ, आक का दूध, पीपल और सेंधा नमक बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और इसका लेप बवासीर पर करें। इससे बवासीर के मस्से सूख जाते हैं।
- मुर्गे की बीट, चौंटली, हल्दी और पीपल बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर बवासीर के मस्सों पर लेप करने से मस्से सूख जाते हैं।
- कलियारी की जड़, दंती मूल और चीता बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और बवासीर पर लेप करें। इससे बवासीर ठीक होता है।
7. चेहरे की सुन्दरता के लिए : प्रतिदिन सिरस के फूलों को पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे में निखार आता है। इससे चेहरे के दाग, धब्बे, मुंहासे आदि खत्म होते हैं। इसका इस्तेमाल कम से कम 1 महीने तक करें।
8. दांत दर्द :
- दांतों में सड़न व दर्द होने पर 100 ग्राम सिरस के बीज और 40 ग्राम कालीमिर्च को बारीक पीसकर प्रतिदिन मंजन करें। इससे दांतों का दर्द व सड़न दूर होता है।
- सिरस की गोंद और कालीमिर्च को पीसकर मंजन करने से दांत का दर्द बंद हो जाता है।
9. दांतों में ठंडा या गर्म से दर्द होना, दांत हिलना :
- ठंडा या गर्म चीजों के प्रयोग से यदि दांतों में दर्द हो तो 50 ग्राम सिरस की छाल को 2 गिलास पानी में उबालें। फिर 1 गिलास पानी रहने पर छानकर इससे कुल्ला करें। इससे दर्द दूर होने के साथ दांतों का हिलना दूर होता है।
- सिरस की छाल का चूर्ण बनाकर प्रतिदिन मंजन करने से दांतों का दर्द ठीक होता है।
10. वीर्य की कमजोरी :
- सिरस की छाल और फूल बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और यह 1 चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन करें। इसके सेवन से वीर्य गाढ़ा होता है और कामशक्ति बढ़ती है।
- सिरस के बीजों का चूर्ण 2 ग्राम लेकर इसमें दुगनी मात्रा में चीनी मिलाकर प्रतिदिन गर्म दूध के साथ सुबह-शाम लेने से वीर्य बढ़ता है।
11. गला बैठना : सिरस की छाल और हल्दी को एक साथ पीसकर तेल में सेंक लें और गले पर लेप करके रूई लगाकर पट्टी बांध दें। इससे तुरंत गला खुल जाता है।
12. कब्ज :
- कब्ज से पीड़ित रोगी को 30 ग्राम सिरस के बीज और 30 ग्राम हर्र को पीसकर गर्म पानी के साथ 10 दिन तक सेवन करने से कब्ज दूर होती है। इससे पेट का फुलना भी ठीक होता है।
- सिरस के बीजों का चूर्ण 10 ग्राम, 5 ग्राम हरड़ का चूर्ण और 2 चुटकी सेंधा नमक। इन सभी को पीसकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन रात को खाना खाने के बाद सेवन करें। इससे कब्ज दूर होती है।
13. खाज-खुजली, दाद :
- सिरस की छाल को पानी में पीसकर दाद, खाज, खुजली पर प्रतिदिन सुबह-शाम लेप करने से खुजली व दाद ठीक होता है।
- सिरस के फूलों को पीसकर किसी भी शर्बत में एक चम्मच मिलाकर पीने से खून साफ होता है और त्वचा के सभी रोग ठीक होते हैं।
- सिरस के बीज को पीसकर चंदन की तरह लगाने से खाज-खुजली दूर होती है।
14. उल्टी : सिरस के बीजों का 1 चम्मच चूर्ण 1 कप पानी में मिलाकर उबाल लें और इसमें 1 चम्मच शहद मिलाकर हर आधे घंटे पर रोगी को पिलाएं। इससे उल्टी बंद होती है।
15. दस्त (अतिसार) : सिरस के बीजों के चूर्ण दिन में 3 बार खाने से दस्त का बार-बार आना बंद होता है।
16. जलोदर (पेट में पानी भरना) : जलोदर रोग से पीड़ित रोगी को सिरस की छाल का काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए। इससे पेट का पानी पेशाब के रास्ते से बाहर निकल जाता है।
17. पित्ती उछलना : सिरस के फूलों को पानी में पीसकर पित्ती के दाने पर लेप करने से जलन शांत होती है। शरीर पर लेप करने के साथ रोगी को सिरस के फूल को पीसकर 1 चम्मच की मात्रा में 1 चम्मच शहद के साथ चटाना चाहिए। इससे पित्ती के दाने ठीक होते हैं और जलन में आराम मिलता है।
18. सिफलिस (उपदंश) :
- सिरस के पत्तों की राख, घी या तेल में मिलाकर उपदंश के दाने पर लगाने से दाने ठीक होते हैं।
- सिरस की छाल को पानी में घिसकर रसौत मिलाकर उपदंश के घावों पर लगाने से घाव समाप्त होते हैं।
- सिरस की छाल के चूर्ण को शहद में मिलाकर उपदंश के घावों पर लगाने से जल्द लाभ मिलता है।
19. अंडकोष की सूजन : सिरस की छाल को पीसकर लेप करने से अंडकोषों की सूजन समाप्त होती है।
20. मूर्च्छा (बेहोशी) : सिरस के बीज और कालीमिर्च बराबर मात्रा में लेकर बकरी के पेशाब के साथ पीसकर आंख में काजल की तरह लगाएं। इससे सन्निपात बुखार में उत्पन्न बेहोशी दूर होती है।
21. कुष्ठ :
- 15 ग्राम सिरस के पत्ते और 2 ग्राम कालीमिर्च को पीसकर 40 दिन तक सेवन करने से कुष्ठ (कोढ़) रोग नष्ट होता है।
- सिरस के बीजों का तेल निकालकर प्रतिदिन रोगग्रस्त स्थान पर लगाने से कुष्ठ ठीक होता है। इससे कुष्ठ के कीड़े व अन्य त्वचा रोग भी समाप्त होता है।
22. विसर्प रोग : सिरस की छाल का बारीक चूर्ण लेकर 100 बार पानी में भिगोएं और फिर इसमें घी में मिलाकर लेप करें। इससे विसर्प रोग के फोड़-फुन्सियां ठीक होती है।
23. कमजोरी : 1 से 3 ग्राम सिरस की छाल का चूर्ण घी के साथ मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है और शरीर का खून साफ होता है।
24. कीट दंश :
- सिरस के फूलों को पीसकर जहरीले कीड़ों के डंक पर लेप करने से विष उतर जाता है।
- सिरस के बीजों को थूहर के दूध में पीसकर लेप करने से किसी भी जहरीले कीड़े का विष समाप्त होता है।
25. व्रण या जख्म :
- सिरस की छाल का काढ़ा बनाकर जख्म को धोने और पत्तों को जलाकर लगाने से जख्म ठीक होते हैं।
- सिरस की छाल, रसांजन और हरड़ का चूर्ण बनाकर जख्म पर छिड़कने या शहद मिलाकर लगाने से जख्म ठीक होता है।
26. मिर्गी या पागलपन : सिरस के बीज और करंज के बीजों को पीसकर सिर पर लेप करने से गर्मी के कारण उत्पन्न पागलपन दूर होता है। इससे मिर्गी के दौरे और आंखों के रोग भी लाभ मिलता है।
27. आंखों के विकार :
- सिरस के पत्तों का रस काजल की तरह आंखों में लगाने से आंखों का दर्द समाप्त होता है।
- सिरस के पत्तों के रस में कपड़े को भिगोकर सुखा लें और फिर कपड़े को पत्तों के रस में भिगोकर सुखा लें। इस तरह इसे 3 बार भिगोएं और फिर इस कपड़े की बत्ती बनाकर चमेली के तेल में जलाकर काजल बना लें। इस काजल को प्रतिदिन आंखों में लगाने से आंखों के सब रोग दूर होते हैं।
- सिरस के बीजों की मींगी तथा खिरनी के बीज का कुछ भाग लेकर पीसकर लें और इसे पानी मे उबालकर सिरस के पत्तों के रस के साथ घोट लें। इसके बाद इसकी गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इन गोलियों को स्त्री के दूध में घिसकर आंखों में लगाने से आंखों का फूला व माण्डा दूर होता है।
28. दांतों की कमजोरी : सिरस की जड़ का काढ़ा बनाकर गरारे करने से तथा सिरस की जड़ का चूर्ण बनाकर मंजन करने से दांत मजबूत होते हैं। इससे मसूढ़ों के सभी रोग दूर होता है।
29. गंडमाला (गले की गांठ या गिल्टी) :
- सिरस के 6 ग्राम बीजों को पीसकर सुबह-शाम सेवन करने से गंडमाला रोग ठीक होता है। इसके बीजों को पीसकर गले की गांठ पर लेप करने से गांठ नष्ट होती है।
- सिरस के बीज का चूर्ण एक भाग को दुगने शहद में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रखकर मुंह बंद करके 2 सप्ताह तक धूप में सूखाएं। 2 सप्ताह के बाद इसे निकालकर प्रतिदिन 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम प्रयोग करने से गंडमाला रोग ठीक होता है और सूजन मिटती है।
30. मूत्र विकार :
- 10 ग्राम सिरस के पत्तों को पानी में घोटकर मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पीने से पेशाब की जलन समाप्त होती है।
- सिरस के बीजों का तेल लस्सी में मिलाकर पीने से पेशाब की जलन खत्म होती है।
31. चर्मरोग :
- सफेद सिरस की छाल को पानी के साथ पीसकर जख्म, खुजली व दाद पर लगाने से सभी प्रकार के त्वचा रोग ठीक होते हैं।
- सिरस के पत्तों की पोटली बनाकर फोड़े-फुन्सियों व सूजन के ऊपर बांधने से लाभ मिलाता है।
- गर्मी के फोड़े-फुन्सी व पित्त की सूजन पर सिरस के फूलों का पीसकर लेप करें। इससे सूजन दूर होती है और फोड़े-फुन्सी ठीक होती है।
- सिरस के बीज का उपयोग करने से त्वचा के अर्बुद और गांठ समाप्त होती है।
32. विष विकार : सिरस की जड़, छाल, पत्ते, फूल और बीजों को गाय के पेशाब में पीसकर लेप करने से सब प्रकार के विष का असर समाप्त होता है।
33. दांत निकलना : सिरस के बीजों को काले या लाल धागा में माला बनाकर बच्चों को पहनाने से दांत निकलते समय कोई परेशानी नहीं होती।
34. पायरिया : सिरस की छाल का काढ़ा बनाकर बार-बार कुल्ला करने से पायरिया रोग ठीक होता है। इससे मसूढ़ों से खून आना बंद होता है।
35. रतौंधी (रात को दिखाई न देना) : रतौंधी से पीड़ित रोगी को आंखों में सिरस के पत्तों का रस 1 से 2 बूंद डालना चाहिए और इसके पत्तों का काढ़ा 30 से 60 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम पीना चाहिए। इससे रतौंधी ठीक होता है और आंखों की रोशनी बढ़ती है।
36. मसूढ़ों का फोड़ा : सिरस की छाल या पत्तों का काढ़ा बनाकर बार-बार कुल्ला करने से मसूढ़ों की सूजन, फोड़े व दर्द ठीक होते हैं।
37. अतिक्षुधा, भस्मक, भूख का अधिक लगना : सिरस, गूलर और छोंकरा का चूर्ण घी में मिलाकर पीने से भूख का अधिक लगना ठीक होता है।
38. जुकाम का बंद हो जाना : सिरस के बीजों का बारीक चूर्ण बनाकर सूंघने से बंद जुकाम खुल जाता है और जुकाम बंद होने से उत्पन्न सिर दर्द भी ठीक होता है।
39. नपुंसकता :
- 20 से 40 मिलीलीटर सिरस के फूलों का रस सुबह-शाम मिश्री मिले दूध के साथ खाने से नपुंसकता दूर होती है और इससे शीघ्रपतन में भी लाभ मिलता है।
- सिरिस के बीज का चूर्ण 1 से 2 ग्राम की मात्रा में मिश्री मिले दूध के साथ सुबह-शाम लेने से वीर्य गाढ़ा होता है और संभोग शक्ति बढ़ती है।
- 3 से 6 ग्राम सिरस की छाल का चूर्ण घी व चीनी में मिलाकर गर्म दूध के साथ 2 बार पीएं। यह कामशक्ति को बढ़ता है और नपुंसकता दूर होती है।
- सिरस के फूलों का रस, बीज का चूर्ण और छाल का चूर्ण एक साथ मिश्री मिले दूध के साथ खाया जायें तो शरीर की कमजोरी दूर हो जाती है।
- सिरस के बीजों को सुखाकर पीस लें और इसमें 3 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करें। इससे नपुंसकता दूर होती है।
40. कान का दर्द : सिरस के पत्तों का रस गर्म करके उसके अंदर थोड़ी सी हींग मिलाकर कान में डालने से कान का दर्द दूर होता है।
41. प्रदर रोग : 1 ग्राम सिरस की छाल के चूर्ण को देशी घी में मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से ‘वेत प्रदर में लाभ मिलता है।
42. मासिक का बंद होना : सिरस की कोपले, समुद्रफेन, बायविडंग, बड़ी इलायची तथा गज पीपल बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और इसकी बत्ती बनाकर योनि में रखें। इससे मासिकस्राव नियमित होता है।
43. गिल्टी (ट्यूमर) : सिरिस के बीजों का चूर्ण 1 से 2 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने गिल्टी की सूजन कम होती है और गिल्टी समाप्त होती है।
44. शीतपित्त : शीतपित्ती के दाने निकलने पर सिरस के फूलों का पानी के साथ पीसकर लेप करें और इसके फूलों को पीसकर 1 चम्मच की मात्रा में 1 चम्मच शहद के साथ सेवन करें। इससे दाने नष्ट होते हैं और शीतपित्त ठीक होता है।
45. पेट के कीड़े: 10 ग्राम सिरस की छाल को लगभग 500 मिलीलीटर पानी में अच्छी तरह पका लें और जब पानी केवल 100 मिलीलीटर बाकी रह जाए तो छानकर पीएं। इससे दस्त के साथ कीड़े निकल जाते हैं।
46. योनिकंद : सिरस के बीज, इलायची, समन्दर झाग, जायफल, बायविंडग और नागकेसर आदि को बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर रुई की बत्ती बनाकर योनि में रखने से योनि के सभी रोग समाप्त होते हैं।
47. शीतला (मसूरिका) ज्वर : सिरस के पेड़ की छाल, पीपल की छाल, लिसौढ़े की छाल तथा गूलर की छाल। इन सभी को पीसकर छान लें और गाय के घी में मिलाकर चेचक के दाने पर लगाएं। इससे चेचक के दाने समाप्त होते हैं और जलन शांत होती है।
48. आग से जल जाने पर : शरीर के जले हुए भाग पर सिरस के पत्तों को मलने से जलन शांत होती है।
Read the English translation of this article here ☛ Shirish (Albizia Lebbeck): 47 Incredible Uses, Benefits, Dosage and Side Effects
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