Last Updated on August 4, 2020 by admin
ऊषापान किसे कहते हैं ? : Ushapan Kya Hai
उषापान इन आयुर्वेद –
प्रातःकाल सूर्योदय के प्रथम, बिस्तर त्यागते ही, बिना शौचादि से निवृत्त हए बासी मुंह 250 मि.ली. से 750 मि.ली. तक या इससे भी अधिक स्वच्छ तांबे के बर्तन में रखा बासी पानी, नासिका द्वारा या मुँह से चूस-चूसकर नित्य पीने से सम्पूर्ण शरीर विकार रहित हो जाता है। यही ‘ऊषापान’ है।
सुबह बासी मुंह पानी पीने की विधि :
ऊषापान विधि –
☛ सूर्यास्त के बाद बाहर और भीतर से खूब भली प्रकार से साफ-स्वच्छ किए हुए विशुद्ध ताँबे के पात्र में रात्रि भर जल भरकर रख दें। इससे उसमें ताँबे के कुछ स्वास्थ्य-वर्द्धक गुण आ जाते हैं । ताँबे के पात्र में रखा हुआ जल 12 घण्टे में विशुद्ध हो जाता है।
☛ चाँदी के पात्र में रखा हुआ जल और भी अधिक विशुद्ध होता है, किन्तु ऊषापान हेतु-ताँबे का ही बर्तन उत्तम होता है ।
☛ शुद्ध, छना हुआ, कूपोदक, गंगोदक, हंसोदक भरकर और ताँबे के ही ढक्कन से ढंककर किसी साफ, ऊँची और खुली हुई जगह पर रख दें, जहाँ कीड़े-मकोड़ों की उपस्थिति न हो और जहाँ केवल आकाश का ही साया हो। ऐसी दशा में यदि जल पात्र ढंका न जाए तो और भी अधिक अच्छा है क्योंकि जल खुला रहने से उस पर रात में आकाश के विभिन्न नक्षत्रों का प्राकृतिक और रासायनिक प्रभाव पड़ता है।
☛ सवेरे सूर्योदय से 3 घण्टे पूर्व शुभदर्शन आदि क्रियाओं से निवृत्त और निरालस्य हो अपनी नाक के दाहिने स्वर को देखें, वह चलता है या नहीं। यदि वह चलता हो तो उस तरफ की नाक के छिद्र को अच्छी तरह से साफ करके, उस छिद्र से वह पानी धीरे-धीरे पीना चाहिए। यदि उस समय दाहिना स्वर न चलता हो तो उसी समय थोड़ी देर के लिए बाँयी करवट लेट जाना चाहिए। ऐसी क्रिया करने से दाँया स्वर चालू हो जाएगा और तब उसी दाहिने नथुने से उस पानी को पीना चाहिए। यदि नाक द्वारा पानी पीने का अभ्यास न हो तो मुख द्वारा ही धीरे-धीरे स्वाद लेते हुए उस पानी को पी जाना चाहिए किन्तु प्रत्येक दशा में-दाहिने स्वर का चलते रहना अनिवार्य है।
☛ मुख की अपेक्षा नाक द्वारा उषापान विशेष लाभकारी सिद्ध होता है। नासिका द्वारा ऊषापान करने का अभ्यास पहले एक तोला पानी से प्रारम्भ करना चाहिए और बाद में इसकी मात्रा धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिए । याद रखें कि जब तक नाक द्वारा पानी पीने का अभ्यास न हो जाए, तब तक मुख द्वारा ही पानी पीकर लाभान्वित हुआ जा सकता है।
☛ ऊषापान करने के पहले नाक और मुँह को भली प्रकार साफ कर लेना चाहिए और तब शीशे के गिलास को उषा जल से भरकर नाक या मुँह द्वारा धीरे-धीरे पीना चाहिए ।
☛ यदि ऊषापान से अधिक लाभ की आकांक्षा हो तो ऊषाजल में कभी-कभी थोड़ा नमक भी मिला लिया करें। 250 मि.ली. जल में 2 रत्ती भर नमक पर्याप्त है। नमकीन ऊषाजल पान करने से शरीर की उष्णता सम रहती है।
(1 रत्ती = 0.1215 ग्राम)
☛ आरम्भ में 2-3 दिन तक ऊषापान मुख से ही करें, तदुपरान्त धीरे-धीरे नाक से ऊषापान करने का अभ्यास करें। नाक से ऊषापान करते समय आराम से बैठकर मुँह को जरा ऊँचा कर लें। फिर गिलास के किनारे को दाहिने नथुने से (जिसका स्वर चालू अवश्य होना चाहिए) लगावें । अब शनैः-शनैः पानी को नाक के रास्ते से भीतर जाने दें। पहली बार के गए पानी को पेट में न जाने दें, अपितु मुँह के रास्ते उसे बाहर निकाल दें। इससे नाक और मुँह की अन्दरूनी सफाई हो जाएगी। फिर सिर को जरा पीछे की ओर झुकाकर दाहिने नथुने से पानी धीरे-धीरे गले में जाने दें और वहाँ 1-1 गूंट पानी खींचकर पेट में उतारें। इस प्रकार कुछ दिनों के अभ्यास से ही पानी अपने आप ही पेट के अन्दर जाने लगेगा।
☛ नाक से पानी पीने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और न पानी को श्वास की सहायता से ही भीतर खींचना या सुड़कना चाहिए । हल्का जुकाम होने पर भीतर, गले के आस-पास जैसा अनुभव होता है, वैसी ही बेचैनी पहले नाक द्वारा पानी पीने पर कुछ घण्टों तक बनी रहती है। नाक से पानी पीते समय कभी-कभी आँखों में आँसू भर आते हैं तथा अन्दर कुछ झनझनाहट-सी भी होती है, किन्तु इनसे घबराना नहीं चाहिए। अभ्यास हो जाने पर ये कष्ट स्वतः ही दूर हो जाते हैं।
सुबह बासी मुंह कितना पानी पीना चाहिए :
ऊषापान की मात्रा –
ऊषा जलपान की मात्रा कितनी होनी चाहिए? इसका उतर यह है कि ऊषा जलपान की कोई मात्रा निर्धारित नहीं की जा सकती। इसकी उचित मात्रा उतनी ही समझनी चाहिए, जितना पीने वाले व्यक्ति की प्रकृति के अनुकूल पड़े। विभिन्न स्वास्थ्य सम्बन्धी ग्रन्थों में इसकी मात्रा 1 लीटर तक लिखी है। आयुर्वेद के ‘भाव-प्रकाश’ में इसकी मात्रा 288 ग्राम लिखी है।
ऊषापान सम्बन्धी अन्य आवश्यक सावधानियाँ व जानकारियाँ :
सुबह बासी मुंह पानी पीने में बरते ये सावधानियाँ –
- ऊषापान करने के बाद फिर सो जाना ठीक नहीं है।
- बासी मुंह पानी पीने (ऊषापान) के थोड़ी देर पश्चात् शौच हेतु जाना चाहिए उसके बाद कुल्ला-दातुन करके बाहर खुली हवा में निकल जाना लाभकारी सिद्ध होता है।
- ऊषापान के असर से शरीर में उत्पन्न हुई शीतल लहर शरीर में सम रूप में कार्य करे, इसके लिए 15-20 मिनट तक केवल लेटे रहना भी लाभदायक सिद्ध होता है। ऐसी दशा में भी सोना नहीं चाहिए।
- कुछ चिकित्सकों का कहना है कि रोगियों को विशेषकर सिरदर्द और पेट के विकारों से पीड़ित रोगियों को बासी मुंह पानी पीने के बाद एक नींद ले लेना लाभ करता है, किन्तु साधारणतः हम ऐसा करने की राय नहीं देते।
- बहुत-से लोग प्रायः ऊषापान करना इस भय के कारण प्रारम्भ नहीं करते हैं कि किसी दिन नागा हो जाने से कदाचित कोई हानि हो । ऐसी कोई बात नहीं है। ऊषापानकरने वाला अभ्यासी यदि बीच में एकाध दिन नागा कर दें, तो इससे उसे कोई भी हानि की आशंका नहीं होती। हाँ, यदि कोई अभ्यासी इस क्रिया को छोड़ना चाहे तो उसे एकाएक न छोड़ बैठे, बल्कि जल की मात्रा थोड़ी-थोड़ी प्रतिदिन घटाते हुए नागा करने लग जाए और फिर एक दिन उषःपान के अभ्यास को पूर्णतयः छोड़ देना चाहिए।
- ऊषापान का पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिए यह भी आवश्यक है कि ऊषापान का करने वाला अभ्यासी कुछ-न-कुछ व्यायाम भी अवश्य करें तथा सात्विक भोजन करने का नियम बनाए रखें ।
- ग्रीष्मकाल में किया गया ऊषापान अमृत के समान लाभदायक सिद्ध होता है। इस क्रिया को आरम्भ करने वाले लोग यदि इसे फाल्गुन मास (फरवरी या मार्च) से आरम्भ करें तो अच्छा रहता है।
- भारतवर्ष जैसे गरम जलवायु वाले देशों में ऊषापान करना परम लाभकारी रहता है।
आइये जाने बासी मुंह पानी पीने से क्या लाभ होता है (ushapan benefits in hindi)।
सुबह बासी मुंह पानी पीने के फायदे : Subah Basi Muh Pani Peene ke Fayde in Hindi
बासी मुंह पानी पीने (ऊषापान) से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते है –
1). अमृत के समान हितकारी – लाभ के सम्बन्ध में सबसे पहले तो हम यह बता दें कि आयुर्वेद में ऊषापान को अमृत-पान की संज्ञा दी गई है।
2). रक्त शुद्धि मे सहायक – ऊषापान से-कोष्ठ साफ होता है, अभ्यासी को पित्तजनित रोग नहीं सताते और रक्त शुद्ध होकर उससे हृदय, मस्तिष्क तथा स्नायुमण्डल को बल प्राप्त होता है।
( और पढ़े – खून की खराबी दूर करने के 12 घरेलु आयुर्वेदिक उपाय )
3). निरोगी दीर्घायु प्रदान करे – वैद्यक ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में लिखा है सूर्य निकलने के समय 8 अंजुली जल पीने से मनुष्य कभी बीमार नहीं पड़ता है, बुढ़ापा नहीं सताता और 100 वर्ष से पहले मरता भी नहीं है।
( और पढ़े – स्वस्थ और निरोगी जीवन के लिये आहार ज्ञान )
4). शरीरगत रोगों का नाशक करे – वैद्यक ग्रन्थों में लिखा है कि – बवासीर, सूजन, संग्रहणी, ज्वर, पेट के रोग, कोष्ठबद्धता, कोठे की खराबियाँ, चर्बी का बढ़ जाना, मूत्र सम्बन्धी पीड़ाएँ, रक्त-पित्त के विकार, नासिका आदि से रक्तस्राव, कान, सिर, नितम्ब तथा कमर दर्द, नेत्र दोष आदि अनेक बीमारियाँ सुबह अभ्यासपूर्वक जलपान करने से अच्छी हो जाती है ।
5). आंतों को मजबूत करे – ऊषापान का जल गुर्दो में जाकर उसे शक्तिशाली बनाता है और आँतों को पुष्ट करता हुआ उसमें संचित मल को बाहर निकालने में सहायक होता है । मूत्रपिण्डों द्वारा शोषित होकर और वहाँ पर रहने वाले दूषित पदार्थों में मिलकर यह जल-मूत्र रूप में बाहर निकल जाता है।
6). शरीर की गर्मी दूर करे – इसका कुछ अंश स्वेद और प्रश्वास के रूप में भी निकलता है और जो बचा रहता है वह शरीर के पाचक रसों से मिलकर शरीर के विभिन्न अंगों में प्रवाहित होता है। जिसके परिणामस्वरूप पाचक-रस परिपुष्ट और परिपक्व होकर जल, रक्त की बढ़ी हुई उष्णता का शमन करके शरीर की आन्तरिक गर्मी को कम करता है तथा उसे पसीने के रूप में बाहर निकाल देता है एवं उदर या आमाशय में संचित लार आदि पदार्थों को धोकर आमाशय और अन्तड़ियों में पहुँचा देता है।
( और पढ़े – शरीर की गर्मी दूर करने के 16 देसी उपाय )
7). आंतों की सफाई में लाभदायक – इस जल से अधपचे अन्न, मल के टुकड़े आदि बहकर गुदामार्ग द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
8). नेत्र ज्योति बढ़ाने वाला – ऊषापान नित्य करने से बुद्धि निर्मल होती है, आँखों की ज्योति बढ़ती है, सिर के बाल समय से पूर्व ही श्वेत नहीं होते तथा इसका अभ्यासी समस्त रोगों से बचा रहता है।
9). आँखों के रोग दूर करे – आँख आना, रतौंधी आदि विकार भी दूर होकर स्पष्ट दृष्टि की प्राप्ति होती है।
10). शरीर की गर्मी शांत करे – जिनकी प्रकृति गरम है, जिन्हें नाक से खून गिरने की बीमारी है, जिन्हें लू अर्थात् ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली गर्म हवा जल्दी असर कर जाती है तथा उनका मस्तिष्क थोड़ा सा भी दिमागी कार्य करने से थक जाता है, ऐसे लोगों के लिए ऊषापान ही ऐसी एक विशेष क्रिया है, जो उन्हें स्थायी लाभ पहुँचा सकती है।
11). शरीर की आंतरिक सफाई करे – ऊषाजल पेट में जाकर पचता नहीं है, उसका काम अन्तड़ियों आदि भीतरी अवयव समूह को धोकर साफ कर देना एवं उन्हें शक्ति और उत्तेजना प्रदान करके स्वयं उन धोए हुए मलों के साथ पेशाब, पसीना और मल के रास्ते द्वारा शरीर से बाहर निकल जाना है।
12). पेट व मूत्र सम्बंधित रोगों को दूर करे – ऊषापान का सबसे अधिक लाभ यही होता है कि मलाशय और मूत्राशय पर उसका प्रभाव बहुत ही अच्छा तथा बहुत ही शीघ्र पड़ता है। जिससे पेट के प्रायः समस्त विकार धीरे-धीरे शान्त हो जाते हैं और उनकी पुनरावृत्ति भी नहीं होने पाती।
सुबह बासी मुंह पानी पीने के दुष्प्रभाव : Subah Basi Muh Pani Pine ke Nuksan in Hindi
- ऊषापान में इतने गुण होते हुए भी कुछ लोगों को यह मुआफिक नहीं आता और जिनकी प्रकृति के अनुकूल यह न पड़े, इसे उन्हें करना भी नहीं चाहिए ।
- ऊषापान आरम्भ कर देने पर शौच की शिकायत मिट जाती है, पेशाब खुलकर आने लगता है, भूख खूब बढ़ती है तथा गहरी नींद आने लगती है। यदि ऊषापान का अभ्यास करने के बाद 10-15 दिनों में ही यह लक्षण प्रकट न हों तो समझना चाहिए कि ऊषापान का प्रयोग अनुकूल नहीं पड़ रहा और ऐसा होने पर इसे छोड़ ही देना चाहिए, यही अच्छा है।
- ऊषापान से शरीर में शीतलता उत्पन्न होती है, अतः शीतकाल में इस क्रिया का उपयोग समझ-बूझकर करना चाहिए ।
- सर्द प्रकृति वाले व्यक्तियों एवं उन लोगों को, जिनके फेफड़े कमजोर हैं-यह ऊषापान कम लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
- यह देखा गया है कि ग्रीष्म ऋतु के समाप्त हो जाने के बाद यह क्रिया या प्रयोग सभी लोगों को लाभकारी सिद्ध नहीं होती।
- कफ प्रकृति वाले व्यक्तियों को गर्मी के दिनों में भी ऊषापान सोच-समझकर करना चाहिए।
- पित्त की कमी वाले व्यक्ति को भी ऊषापान अनुकूल नहीं पड़ता।
- जुलाब लेने की हालत में, आँव की बीमारी में, घाव पकने की दशा में तथा हिचकी, वात, न्यूमोनियाँ एवं क्षय रोग से ग्रसित रोगियों को ऊषापान नहीं करना चाहिए।