Last Updated on August 17, 2019 by admin
त्वचा से जानें स्वास्थ्य का हाल :
त्वचा हमारे शरीर का सबसे बड़ा अंग है। इसके बहुत से कार्य हैं,जिसमें शरीर को सुरक्षा प्रदान करना भी शामिल है। कोमल, चिकनी, सुंदर, ओजयुक्त, दमकती त्वचा स्वस्थ होने की निशानी है। इसके विपरीत फोड़े-फुसी, पिम्पल्स, दाद-खाज़ एवं धब्बों से युक्त त्वचा रोगी होने की निशानी है।
हमारे शरीर के अंगों की लगभग सभी क्रियाविधि का असर हमारी त्वचा के रंग-रूप पर अवश्य पड़ता है। जब शरीर के अंग एवं ग्रंथियाँ अपना कार्य ठीक से नहीं करेंगी तो उसका सीधा एवं तुरंत या देर-सबेर प्रभाव त्वचा पर पड़ेगा ही। त्वचा हमारे शरीर से अपशिष्टों को भी बाहर निकालती है इसलिए यदि शरीर में अपशिष्टों की वृद्धि होगी तो भी त्वचा इससे प्रभावित होगी तथा उसके रंग-रूप में परिवर्तन अवश्य होगा। खून एवं लसिका की मात्रा तथा उनकी अवस्था का असर भी त्वचा पर दिखाई पड़ता है। त्वचा के द्वारा रोगों का पता 3 चीज़ों से लगाया जाता है :
(1) त्वचा की अवस्था
(2) त्वचा का रंग तथा
(3) त्वचा पर उपस्थित धब्बे या निशान।
त्वचा से रोगों की पहचान :
1- नम या गीली त्वचा –
अधिक मात्रा में तरल लेने से त्वचा गीली प्रतीत होती है। अधिक मात्रा में पानी, फलों का जूस, दूध एवं चीनी लेने से त्वचा नम रहती है।
नम त्वचा बताती है कि रोगी का रक्त पतला है, उसे ज़्यादा पसीना आता है, उसे मूत्र भी ज़्यादा आता है। ऐसे व्यक्ति में चक्कर, याददाश्त में कमी, मंदबुद्धि, डायरिया आदि लक्षण या रोग पाए जा सकते हैं।
2- तैलीय या ऑयली त्वचा –
सामान्यतः त्वचा हल्की-सी ऑयली होती है। अत्यधिक वसा या फैटी खाद्य पदार्थ खाने वालों की त्वचा अधिक तैलीय होती है। घी, तेल एवं एनिमल प्रोटीन अधिक मात्रा में लेने वालों की त्वचा तैलीय होती है। गालब्लैडर या किडनी में पथरी, ब्रेस्ट या ओवरी अथवा गर्भाशय में गाँठ या सिस्ट, मधुमेह आदि होने पर भी त्वचा अधिक तैलीय हो जाती है।
3- रूखी या ड्राय त्वचा –
रूखी त्वचा शरीर में पानी की कमी को इंगित करती है। लेकिन यह रूखापन त्वचा के नीचे अत्यधिक फैट जमने पर भी होता है। क्योंकि फैट की सतह या लेयर पानी को त्वचा तक नहीं पहुँचने देगी जिससे कि त्वचा रूखी दिखाई देगी। रूखी त्वचा से मुक्ति पाने वालों को अपनी डाइट में पानी की मात्रा बढ़ाना चाहिए साथ ही फैट की मात्रा को घटाना चाहिए।
4- खुरदरी या रफ़ त्वचा –
इस प्रकार की त्वचा बताती है कि व्यक्ति अधिक मात्रा में प्रोटीन एवं जटिल फैट का सेवन कर रहा है। अधिक मात्रा में शुगर, सॉफ्ट ड्रिंक्स, दवाइयाँ एवं रसायन का सेवन करने वालों की भी त्वचा खुरदरी हो जाती है। धमनियों में फैट जमने से या धमनियाँ सख्त होने के कारण भी त्वचा खुरदरी हो जाती है।
6- पीली त्वचा –
लिवर एवं गालब्लैडर के रोगों में त्वचा का रंग पीला हो जाता है।
सफ़ेद रंग लिवर, गालब्लैडर, स्प्लीन एवं लसिका ग्रंथियों के सुचारू रूप से कार्य नहीं करने के कारण त्वचा का रंग सफेद हो सकता है। अत्यधिक दूध एवं अन्य डेयरी उत्पाद खाने वालों में भी त्वचा का रंग सफेद हो सकता है।
7- लाल रंग –
हृदय एवं रक्त वाहिनी के रोग, फेफड़ों की समस्या, अधिक मात्रा में मसालों का सेवन करने के कारण त्वचा का रंग लाल हो सकता है।
8- नीली त्वचा –
लिवर की कार्यप्रणाली में गड़बड़ी, स्प्लीन तथा पैंक्रियाज़ में समस्या होने पर त्वचा का रंग नीला होने लगता है। यदि त्वचा के किसी हिस्से में रक्त का प्रवाह बाधित होता है, तो भी त्वचा नीली होने लगती है।
9- एक्ज़िमा –
त्वचा पर रूखे, कठोर, उभरे हुए सफ़ेद, पीले या लालिमायुक्त पैच को एक्ज़िमा कहते हैं। एक्ज़िमा का कारण उत्सर्जनतंत्र एवं सर्कुलेटरी सिस्टम में गड़बड़ी है। हृदय, लिवर एवं किडनी में चर्बी या फैट जमा होना एक्ज़िमा का प्रमुख कारण है।
खाने में अत्यधिक डेयरी प्रॉडक्टस, नॉनवेज़, शुगर एवं अंडा लेने वालों में एक्ज़िमा की समस्या अधिक होती है। अंडे को तेल या बटर में तलकर खाने वालों को एक्ज़िमा होने की संभावना अत्यधिक होती है। यदि आप एक्ज़िमा से पीड़ित हैं, तो अपने भोजन से फैटी वस्तुएँ बिलकुल अलग कर दीजिए।
10- पिम्पल्स –
अत्यधिक फैट, शुगर एवं जंक-फूड्स लेने वालों को पिम्पल्स अधिक होते हैं। पिम्पल्स लाल तथा सफेद रंग के होते हैं। पिम्पल्स शरीर के ऊपरी हिस्से में होते हैं। अधिकतर पिम्पल्स गालों पर, माथे पर, नाक एवं ठोड़ी पर होते हैं। कंधों, कमर एवं पीठ पर भी पिम्पल्स होते हैं। पिम्पल्स जिस स्थान पर होते हैं वे किसी अंग की क्रियाविधि की खराबी को इंगित करते हैं। जैसे :
माथे पर पिम्पल्स – आँतें
गालों पर पिम्पल्स – फेफडे
मुँह के आस-पास – प्रजनन तंत्र
नाक पर – हृदय
जबड़ों पर – किडनी
पीठ पर – फेफड़े
छाती पर – फेफड़े एवं हृदय
कंधों पर – पाचनतंत्र
पिम्पल्स के उपरोक्त स्थान बताते हैं कि संबंधित अंगों की क्रियाविधि में गड़बड़, उन पर सूजन एवं फैट जमा होने के कारण हुई है। यदि हम संबंधित अंगों का उपचार करेंगे, तो उन विशिष्ट स्थानों के पिम्पल्स भी ग़ायब हो जाएँगे।
11- त्वचा पर लाल निशान –
त्वचा पर लाल निशान तेज़ बुख़ार के बाद उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे : टाइफ़ॉइड, न्यूमोनिया, यू.टी.आई., मलेरिया आदि।
12- त्वचा पर काले निशान –
ये काले निशान अपनी स्थिति (अर्थात जहाँ पर यह निकलते हैं) से अंग विशेष की क्रियाविधि में आई बाधा को भी दर्शित करते हैं। जैसे : चेहरे पर दाईं आँख के नीचे के काले निशान लिवर रोग, तो बाईं आँख के नीचे के काले निशान किडनी एवं यौनांगों की अति क्रियाशीलता की तरफ़ इशारा करते हैं।
नाक के नथनों के पास की त्वचा पर काले निशान किडनी एवं ब्लैडर की समस्या की निशानी है। गालों पर काले निशान फेफड़ों की समस्या बताते हैं, तो होंठों के आसपास के हिस्से पर काले निशान पाचनतंत्र (आमाशय तथा आँतों) की समस्या के सूचक हैं। माथे पर काले निशान स्प्लीन एवं गालब्लैडर की समस्या की तरफ़ इशारा करते हैं। छाती पर काले निशान होना यह बताता है कि हृदय में इन्फेक्शन हुआ था।
13- त्वचा पर नीले निशान –
त्वचा पर नीले रंग के निशान होना यह बताता है कि रक्त नलिकाओं में कहीं कोई अवरोध है। केपेलरीज़ के फटने से भी त्वचा पर नीले निशान उभर आते हैं।
अत्यधिक मीठा खाने वाले एवं किडनी तथा परिसंचरण (सर्कुलेटरी) तंत्र की गड़बड़ी से भी इस प्रकार के निशान बन जाते हैं।
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