Last Updated on April 14, 2021 by admin
तनावग्रस्त व्यक्ति अनेक तरीकों से अपना तनाव दूर करने की कोशिश कर रहा है। बढ़ती हुई नशाखोरी तथा अन्य विघातक आदतें इसके उदाहरण हैं। इन चीजों के अधिक प्रभाव में व्यक्ति अपनी चिंता तथा थकान को थोड़ी देर भूल जाता है, किंतु लम्बे अंतराल में यह चीजें व्यक्ति की जीवंतता को ही समाप्त कर देती हैं। तनाव दूर होना तो दूर रहा, वह अनेक जटिलताओं को ही जन्म देता है। तनाव को हम अन्य विधियों से भी दूर कर सकारात्मक शक्ति प्राप्त कर सकते हैं। इन विधियों में योग अनन्यतम है।
स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य योग :
गति तथा अशांति आधुनिक जीवन की विशेषताओं में प्रमुख हैं। इस गति का प्रधान उद्देश है – भौतिकवादी उन्नति तथा सुख प्राप्त करना। इस गति की सख्त प्रक्रिया ने जीवन में काफी अशांति पैदा की है। इस अशांति के कारण अनेक तनावजन्य रोग उत्पन्न हुए हैं, जिनसे मानवता के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। अतः आज का व्यक्ति शारीरिक रूप से थका हुआ तथा मानसिक रूप से असंतुलित है। वर्तमान में योग बड़ा ही लोकप्रिय हुआ है। विकसित पश्चिमी देशों में तो योग ने धूम मचा रखी है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य शारीरिक, मानसिक तादात्म्य के लिए योग अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ है।
( और पढ़े – योग के जरुरी नियम )
कैसे काम करता है योग :
मानव मन हमेशा चंचलता से भरा रहता है, जिसके चलते मानसिक ऊर्जा का क्षय होता रहता है। इसके अलावा असंख्य प्रकार की बातें विचार-तरंगों के रूप में सतत प्रवाहित होने के कारण मन पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है। पतंजलि मुनि का कहना है कि इन मानसिक वृत्तियों तथा तरंगों को रोकना ही योग है। योग वह विधा है, जो चंचल मन को स्थिर बना देती है। अतः योग मन के व्यवस्थापन का विज्ञान है।
आधुनिक मानव का मन आज के तेज जीवन के कारण अत्यंत चलायमान हो गया है। मन में अत्यधिक तीव्रता से उठने वाली विचार-तरंगें उसकी मानसिक क्षमता का ह्रास कर देती हैं। मानसिक ऊर्जा को पुनः प्राप्त करने तथा विश्रांति के लिए यौगिक विधियां अत्यंत लाभदायक सिद्ध हुई हैं। यह विधियां ऊर्जा–संरक्षण के सिद्धांत पर आधारित हैं। योग के परिणाम शांतिकारक तथा परम विश्रांति देने वाले होते हैं। इसलिए वे हमें दीर्घायु बनाते हैं।
( और पढ़े – रोग के अनुसार योग आसन )
योग के आठ अंग :
यम, नियम –
पतंजलि मुनि के द्वारा अष्टांग योग का प्रतिपादन अत्यंत ही वैज्ञानिक तथा विधिवत् है। इसका पहला अंग यम है, जिसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह सम्मिलित हैं। नियम योग का दूसरा अंग है। शुद्धि, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर–प्रणिधान इसमें समाहित हैं। यम तथा नियम संयम तथा परिपालन के रूप में हैं। आज के जीवन में इन संयमों तथा परिपालनों का स्वीकार काफी कठिन प्रतीत होता है। लेकिन हम जितना ही इसका पालन करेंगे, उतनी ही मनःशांति प्राप्त होगी।
आसन –
आसन एक निश्चित, स्थिर तथा आरामदायक मुद्रा है। वह हमारे शरीर के आंतरिक महत्वपूर्ण अंगों पर दबाव पैदा करता है तथा शरीर की स्फूर्ति तथा लचीलापन बनाए रखता है। आसनों के संवर्धनात्मक तथा वैद्यकीय महत्व का विशद विवेचन विद्वानों द्वारा कई ग्रंथों में किया जा चुका है।
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प्राणायाम –
प्राणायाम सांस लेने की वह विधि है, जिसके द्वारा सांस की प्रक्रिया को संतुलित तथा विधिवत् बनाया जाता है। सांस जीवन का आधार है। गलत ढंग से सांस लेने के कारण अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। प्राणायाम हमें सही तथा वैज्ञानिक तरीके से सांस लेना सिखाता है।
( और पढ़े – प्राणायाम के प्रकार ,विधि और उनके लाभ )
प्रत्याहार –
प्रत्याहार का अर्थ है – कुछ समय के लिए बाह्य जगत से अपनी चेतना को हटा देना । मन में दुःखद तथा क्लेशकारी उत्तेजना जारी रहना तनाव का कारण है। तनाव से मुक्त होने के लिए अपनी चेतना को इन क्लेशकारी उत्तेजनाओं से कुछ समय तक हटाना आवश्यक है। दुःखद उत्तेजनाओं को हटाना शारीरिक तथा मानसिक विश्रांति का मूल है। प्रत्याहार हमें यह सिखाता है कि हम इन बाह्य उत्तेजनाओं से अपनी चेतना को इच्छानुसार कैसे हटा सकते हैं।
धारणा, ध्यान –
धारणा का अर्थ है – एकाग्रता। इस प्रक्रिया में हम किसी चुनी हुई वस्तु पर चेतना टिकाते हैं । यह चेतना कुछ देर के लिए टिकती है तथा फिर हट जाती है। धारणा का नियमित तथा दीर्घ अभ्यास ध्यान की अवस्था में बदल जाता है। ध्यान धारणा की पूर्ण विकसित अवस्था है। जब किसी वस्तु या विषय पर टिकाई हुई चेतना अविचलित रूप से स्थिर रहती है, तो इसे ध्यान कहते हैं। हमारी मानसिक ऊर्जा का संरक्षण ध्यान का उद्देश है।
( और पढ़े – विज्ञान ने भी माना अदभुत है ध्यान की महिमा )
समाधि –
योग का अंतिम अंग समाधि है। इस अवस्था में ज्ञात तथा ज्ञेय का अंतर समाप्त हो जाता है। इस अवस्था का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता क्योंकि यह परम आनंद की अवस्था में होती है। इस अवस्था में चेतना अपनी विशुद्ध अवस्था होती है।
उपयुक्त विवेचन से यह बात पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि योग पूरी तरह से मन-प्रबंधन का विज्ञान है।
तनाव मन की एक विशिष्ट अवस्था है। तनावग्रस्त होना है या नहीं, यह बहुत हद तक हम पर ही निर्भर करता है। यह विरक्त व्यवहार के अंगीकार से सम्भव है। योग हमें इस प्रकार के विरक्त व्यवहार को प्राप्त करने में सहायता करता है।
( और पढ़े – समाधि क्या है इसके प्रकार व प्राप्त करने का क्रम )
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