Last Updated on November 10, 2019 by admin
अभयारिष्ट क्या है ? : Abhayarishta in Hindi
अभयारिष्ट एक बहुत ही प्रभावशाली आयुर्वेदिक औषधि है जिसका उपयोग बवासीर, कब्ज, बदहज़मी, पेट फूलना, आँव, गैस और पेट की गड़बड़ी सहित कई अन्य व्याधियों के उपचार के लिए किया जाता है।
आयुर्वेद में, किसी भी योग का नाम, उसके प्रमुख घटक-द्रव्य के नाम पर रखने की परम्परा है। अभयारिष्ट का प्रमुख घटक-द्रव्य है अभया यानी हरड़ है , इसलिए इस योग का नाम अभयारिष्ट रखा गया है। आयुर्वेद ने हरड़ की बहुत प्रशंसा की है। अब अभया से बने अभयारिष्ट के विषय में विवरण देना शुरू करते हैं।
अभयारिष्ट के घटक द्रव्य : Abhayarishta Ingredients in Hindi
✦ हरड़ – आधा किलो
✦ मुनक्का – 250 ग्राम
✦ वायविडंग – 50 ग्राम
✦ महुए के फूल – 50 ग्राम
✦ गुड़ – आधा किलो
✦ गोखरु – 10 ग्राम
✦ निसोत – 10 ग्राम
✦ धनिया – 10 ग्राम
✦ धाय के फूल – 10 ग्राम
✦ इन्द्रायण की जड़ – 10 ग्राम
✦ चव्य – 10 ग्राम
✦ सोंठ – 10 ग्राम
✦ सौंफ – 10 ग्राम
✦ दन्तीमूल – 10 ग्राम
✦ मोचरस -10 ग्राम
अभयारिष्ट बनाने की विधि :
हरड़, मुनक्का, वायविडंग और महुवे को मोटा-मोटा जौ कुट कूट कर 5 लिटर पानी में डाल कर काढ़ा करें। जब सवा लिटर पानी बचे तब उतार कर छान लें। पानी ठण्डा हो जाए तब इसमें गुड़ गोखरु आदि द्रव्यों को जौ कुट, कूट कर डालें और इस मिश्रण को अमृतबान (कांच के जार) में भर कर ढक्कन लगा कर अच्छी तरह बन्द कर दें। इसे एक मास तक रख कर छान लें और बाटलों में भर लें। यही अभयारिष्ट है।
उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।
मात्रा और सेवन विधि :
भोजन के बाद दोनों वक्त, आधा कप पानी में दो बड़े चम्मच भर अभयारिष्ट डाल कर पूर्ण लाभ न होने तक पीना चाहिए।
अभयारिष्ट के उपयोग : Abhayarishta Uses in Hindi
अभयारिष्ट का उपयोग कठोर क़ब्ज़, पेशाब की रुकावट, बवासीर का कष्ट और उदर रोग दूर कर जठराग्नि को प्रदीप्त करने में बहुत गुणकारी है।
रोग उपचार में अभयारिष्ट के फायदे : Abhayarishta Benefits in Hindi
कब्ज में अभयारिष्ट का उपयोग फायदेमंद
यथा नाम तथा गुण के अनुसार, कब्ज व मन्दाग्नि के रोगी को अभयारिष्ट, रोग से मुक्त कर, अभय प्रदान करता है। यह उत्तम सारक, मूत्रल और पाचक है इसलिए मलावरोध दूर करता है, पेशाब की रुकावट दूर करता है और पाचन शक्ति तीव्र करता है जिससे क़ब्ज़, मूत्रकृच्छ और मन्दाग्नितीनों व्याधियां दूर हो जाती हैं।
( और पढ़े – कब्ज का आयुर्वेदिक इलाज )
अभयारिष्ट सेवन से मिलते है हरड़ के औषधीय गुणों के लाभ
मुख्य घटक द्रव्य अभया यानी हरड़ (हेरें) का परिचय आप हरड़ वाले लेख में पढ़ ही लेंगे। हरड़ के सारे गुण अभयारिष्ट में होते हैं इसलिए इसके सेवन से हरड़ के गुणों का लाभ मिलता है।
( और पढ़े – हरड़ के फायदे और नुकसान )
कृमि रोग में अभयारिष्ट से फायदा
वायविडंग का मुख्य गुण कृमिनाश करना है सो अभयारिष्ट के सेवन से पेट और मलाशय की कृमि भी नष्ट होते हैं। जिनके पेट में कृमि होते हैं वे बढ़ते जाते हैं और खाये हुए आहार का अधिकांश भाग चट कर जाते हैं जिससे शरीर का उचित पोषण नहीं हो पाता। अभयारिष्ट के सेवन से, वायविडंग के कारण, यह व्याधि भी दूर हो जाती है।
( और पढ़े – पेट के कीड़े दूर करने के 55 घरेलू उपचार )
अभयारिष्ट के सेवन से बढ़ती है शारीरिक-मानसिक ताकत
मुनक्का के मुख्य गुण दस्तावर, स्निग्ध तथा शीतमधुर होने से जलन, वात, पित्त, प्यास और रूक्षता का शमन करना, ज्वर के ताप और सन्ताप कम करना, शरीर में बल पैदा करना, रक्त पित्त का शमन करना तथा मूत्र बढ़ाना हैं अतः अभयारिष्ट के सेवन से इन सभी गुणों का लाभ मिलता है।
आंतों की सरण-क्रिया में अभयारिष्ट के सेवन से लाभ
आज कल अनियमित ढंग से और अनुचित पदार्थों का आहार ग्रहण करने से अपच और क़ब्ज़ से ग्रस्त हो जाना आम तौर पर पाया जा रहा है। ऐसे रोगी कठोर क़ब्ज़ से दुःखी हो कर क़ब्ज़ दूर करने के लिए तेज जुलाब लेने के लिए विवश हो जाते हैं जिससे आंतों की श्लेष्मिक कला (Mucus membrane) में प्रवाह और शोथ पैदा हो जाता है, आंतें कमज़ोर और रुखी हो जाती हैं। इस कारण आंतों की सरण-क्रिया मन्द पड़ जाती है जिससे मल विसर्जन नहीं हो पाता और क़ब्ज़ दूर होने के स्थान पर और भी बढ़ जाता है। यही कारण है कि बार बार तेज़ जुलाब हो कर क़ब्ज़ दूर करने वाला रोगी फिर तेज़ जुलाब लेने का आदी हो जाता है वरना दो दो दिन तक मल विसर्जन होता ही नहीं।
लम्बे समय तक क़ब्ज़ की स्थिति बनी रहे तो आंतों में फंसा हुआ मल सड़ने लगता है। फिर उसमें सेन्द्रिय विष उत्पन्न होता है जो रक्त में मिल कर पूरे शरीर में भ्रमण करता है और नाना प्रकार की व्याधियां उत्पन्न करता है इसीलिए आयुर्वेद ने चेतावनी दी है-
‘सर्वेषामेव रोगाणां निदानं कुपिता मलाः‘ (अष्टांग हृदय)
अर्थात् -अनेक रोगों की उत्पत्ति का कारण मल का कुपित होना होता है। अभयारिष्ट का सेवन करने से सब व्याधियों की जड़ कोष्ठबद्धता (मलावरोध) यानी कब्ज़ का समूल उन्मूलन हो जाता है।
अभयारिष्ट के सेवन से आंतों की सरण-क्रिया पुनः सम्यक अवस्था से होने लगती है और मल विसर्जन स्वाभाविक ढंग से होने लगता है। सेन्द्रिय विष की उत्पत्ति नहीं होती इससे शरीर में विषाक्त प्रभाव नहीं फैलता।
पुरानी कब्ज में अभयारिष्ट के इस्तेमाल से फायदा
पुराने क़ब्ज़ के रोगी को आंतों का रूखा-सूखापन दूर करने के लिए रात को, अभयारिष्ट लेने से पहले 1 चम्मच शुद्ध घी खा लेना चाहिए और 15 मिनिट बाद कुनकुने गर्म पानी के साथ अभयारिष्ट लेना चाहिए। 3-4 दिन यह प्रयोग करने से आंतों में स्नेहन हो जाता है।
बवासीर मिटाए अभयारिष्ट का उपयोग
अभयारिष्ट लेने से उदर, आमाशय, पक्वाशय, बड़ी आंत और मलाशय पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है जिससे इन अंगों के दोष और रोग दूर होते हैं, अर्श (बवासीर) रोग का शमन होता है और पाचन क्रिया ठीक होती है जिससे क़ब्ज़ दूर होता है।
( और पढ़े – बवासीर के 52 घरेलू उपचार )
यह योग बच्चे, युवा, वृद्ध स्त्री-पुरुष सभी के लिए उपयोगी है और इसी नाम से बना बनाया बाज़ार में मिलता है।
अभयारिष्ट के नुकसान : Abhayarishta Side Effects in Hindi
1- अभयारिष्ट लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
2- डॉक्टर के परामर्श बिना अधिक मात्रा में इसके सेवन से दस्त, पेट दर्द,
सिरदर्द और चक्कर आना जैसी परेशानियाँ हो सकती है।
3- गर्भवती महिलाओं , स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों को इस आयुर्वेदिक दवा से बचना चाहिए ।
4- मधुमेह के रोगियों को इस सिरप को लेने से पहले अपने डॉक्टर से पूछना चाहिए क्योंकि ओवरकॉन्सुलेशन रक्त शर्करा के स्तर में गंभीर गिरावट का कारण बन सकता है।