Last Updated on June 24, 2024 by admin
बहेड़ा क्या है ? (What is Baheda in Hindi)
सतत परोपकार के लिये समर्पित होने वाले वृक्षों में से एक विभीतक तरु भी है। इसे भगवान चरक ने ज्वरहर एवं विरेचनीय दशेमानि द्रव्यों के अन्तर्गत लिखा है। प्राकृतिक वर्गीकरण के अनुसार यह काम्ब्रेटेसी कुल की वनौषधि है। आचार्य भावमिश्र ने हरीतक्यादि वर्ग में इसका वर्णन किया है। आचार्य श्री प्रियव्रत शर्मा ने द्रव्यगुण विज्ञान द्वितीय भाग के चतुर्थ अध्याय में छेदन (श्लेषमहर) द्रव्यों में इसका सर्वप्रथम वर्णन किया है। जो द्रव्य शरीर में संचित और चिपके हुए कफादि दोषों को अपने प्रभाव शक्ति से अपने स्थान से पृथक् कर दें, उसको छेदन कहते हैं।
बहेड़ा का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Baheda Tree in Different Languages)
Bahera Tree in –
- संस्कृत (Sanskrit) – विभीतक (अर्थात् जिसके सेवन से रोग भय जाता रहे।), कर्षफल,अक्ष,कलिदुम
- हिन्दी (Hindi) – बहेड़ा
- गुजराती (Gujarati) – बहेड़ा, बेड़ा
- मराठी (Marathi) – बहेड़ा
- बंगाली (Bangali) – बयड़ा, बोहेरा
- तामिल (Tamil) – अक्कम्, तोअण्डी
- तेलगु (Telugu) – ताडिकाय, बल्ला, ताण्डे चेटू
- अरबी (Arbi) – बलीलज
- फ़ारसी (Farsi) – बलील, बल्लोलाह
- अंग्रेजी (English) – बेल्लरिक मिरोबेलन (Belliric Myrobalan)
- लैटिन (Latin) – टेमिनालिया बेल्लीरिका (Trrminalia Belerica)
बहेड़ा का पेड़ कहां पाया या उगाया जाता है ? :
बहेड़ा भारत में सर्वत्र पाया जाता है। विशेषकर निचले पार्वत्य प्रदेशों में अधिक होता है। म्यांमार और श्रीलंका के जंगलों में इसके समूहों में इसके पेड़ बहुतायत से पाये जाते हैं। चूने युक्त भूमि में यह बहुत फूलता है।
बहेड़ा का पेड़ कैसा होता है ? :
- बहेड़ा का वृक्ष – बहेड़ा के वृक्ष 30 से 60 फुट तक ऊंचे होते हैं। कहीं-कहीं 80 फुट तक के वृक्ष भी होते हैं।
- बहेड़ा वृक्ष का तना – काण्डस्कन्ध लम्बा, सीधा और व्यास में 6 फुट से 10 फुट कभी-कभी 20 फुट तक भी होता है।
- बहेड़ा वृक्ष की छाल – काण्डत्वक (तने की छाल) गाढ़े भूरे रंग की और ऊंची-नीची होती है ।
- बहेड़ा वृक्ष के पत्ते – बहेड़ा वृक्ष के पत्र 4 इंच से 9 इंच लम्बे, छोटी शाखाओं पर तथा एकान्तरक्रम में स्थित एवं शाखाओं पर समूहबद्ध होते हैं। पत्र वृन्त से 2.5 इंच लम्बा होता है
- बहेड़ा वृक्ष के फूल – बहेड़ा वृक्ष के पुष्प छोटे-छोटे हरिताभ पीत वर्ण एवं सुगन्ध युक्त होते हैं। नरपुष्प एवं उभयलिंगी दोनों ही प्रकार के पुष्प एक ही मंजरी में पाये जाते हैं। बाह्यदल कोश रोमश होता है।
- बहेड़ा वृक्ष का फल – फल-लम्बगोल लगभग एक इंच व्यास का तथा पकने पर हल्का भूरापन लिये खाकस्तरी मखमली रंग का होता है। यह सूखने पर धारीदार या हल्का पंचकोणीय दिखता है। फल के भीतर एक बीज होता है।
फरवरी माह में इसके पत्ते झड़कर नये ताम्र वर्ण पत्र निकलते हैं उसी के साथ मई तक पुष्प निकलते हैं बसन्त में पुष्पित होने से इसे बासन्त भी कहा जाता है। इसके बाद फल आ जाते हैं। जो फरवरी तक पक जाते हैं।
बहेड़ा वृक्ष के प्रकार :
छोटे और बड़े फल के भेद से इसकी दो जातियां होती हैं छोटी जाति के फल गोलाकार तथा बड़ी
जाति के फल अण्डाकार एवं अपेक्षाकृत दुगने बड़े होते हैं। बड़े फलों में टेनिन की मात्रा अधिक होने से ये विशेष फलदायी हैं।
बहेड़ा वृक्ष का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Baheda Tree in Hindi)
प्रयोज्य अंग – फल (प्रायः फल का छिलका)
- संग्रह एवं संरक्षण – पके हुये फलों को ग्रहण कर उनकी गुठली निकालकर और फिर इसे सुखाकर शीतल स्थान में मुखबंद पात्रों में रखें।
- वीर्य कालावधि – एक वर्ष ।
- बाजार में यह प्रायः सछिद्र, कीड़ों में खाये हुऐ या बहुत पुराने मिलते हैं, जिनके भीतर का गूदा भूरा या काला हो गया है। ऐसे फल निवीर्य बेकार होते हैं, ये चिकित्सोपयोगी नहीं हो सकते हैं।
- प्रतिनिधि – आंवला, काली हरड़।
बहेड़ा सेवन की मात्रा :
- एक से तीन ग्राम (सामान्य मात्रा)
- पांच से 6 ग्राम (विशेष मात्रा)
बहेड़ा का रासायनिक संगठन :
- बहेड़ा की छाल में सात प्रतिशत और फल में 21 प्रतिशत टेनिन पाया जाता है।
- फल के एल्कोहल विलेय सत्व का कुछ भाग पेट्रोलियम ईथर में घुलनशील होता है और कुछ भाग नहीं घुलता है ।
- बहेड़ा की बीजमज्जा से 38.6 प्रतिशत चमकीले पीले रंग का स्थिर तैल निकलता है।
बहेड़ा के औषधीय गुण (Baheda ke Gun in Hindi)
- रस – कषाय।
- गुण – रुक्ष, लघु।
- वीर्य – उष्ण।
- विपाक – मधुर।
- दोषकर्म – यह रुक्ष, लघु, कषाय होने से कफ का शमन करता है। कषाय रस एवं मधुर विपाकी होने से यह पित्त का शमन करता है। तथा उष्ण वीर्य होने से वात का शमन करता हैं इस प्रकार यह त्रिदोषहर कहा गया है। इसका विशेष कर्म कफ पर होता है।
बहेड़ा का औषधीय उपयोग (Medicinal Uses of Bahera in Hindi)
आयुर्वेदिक मतानुसार बहेड़ा के गुण और उपयोग –
- बहेड़ा कफघ्न है और श्वासनलिकाओं के शोथ (सूजन) को दूर करता है।
- बहेड़ा श्वास, कास (खांसी), प्रतिश्याय (सर्दी-जुकाम), स्वरभेद आदि प्राणवहस्रोतस के रोगों में लाभ पहुंचाता है।
- कासवटी, लवंगादि वटी, विभीतकावलेह इसके प्रसिद्ध योग हैं।
- अनेक शास्त्रों में इसकी उपादेयता कासश्वासादिकों के विनाशार्थ व्यक्त की गई है।
- इसे ज्वरघ्न भी कहा गया है ।
- यह दीपन, अनुलोमन, कृमिघ्न, छर्दिनिग्रहण एवं तृष्णानिग्रहण है तब ही इसे अग्निमांद्य, आध्मान, अरुचि, अर्श, कृमि, छर्दि, तृष्णा आदि रोगों में उपयोग में लाया गया है।
- इसका अर्धपक्वफल रेचन और पक्व शुष्कफल ग्राही है अतः जहां त्रिफला के रूप में रेचनार्थ आवश्यकता हो वहां अर्धपक्वफल लेना चाहिये और अतिसार प्रवाहिका आदि में पक्वशुष्कफल को उपययोग में लाना चाहिये। पक्वफल की भस्म भी अतिसार को दूर करने के काम में आती है।
- यह चक्षुष्य (आँखों के लिए हितकर) होने से अनेक रोगों में व्यवहृत होता है। सप्तामृत लौह, नेत्राशनिरस, नयनामृत लौह, क्षतशुक्रहर गुग्गुल, त्रिफलाघृत, मन:शिलादिगुटिका, नेत्रस्रावहरीवर्ति आदि नेत्ररोगों में व्यवहृत प्रायः सभी योगों में बहेड़ा की चक्षुष्य होने से योजना की गई है।
- बहेड़ा के बीजों का तैल बहुत उपयोग में आता है यह श्वित्र (सफेद दाग) की प्रशस्त औषधि कही गई है।
- बहेड़ा तैल सफेद दाग के अतिरिक्त अन्य चर्मरोग, अग्निदग्ध, पलित (बाल पकना) में भी उपयोगी है। शोथ (सूजन) वेदना युक्त सन्धिवातादिकों में भी यह लगाया जाता है। सुश्रुतोक्त नील तैल एवं महानील तैल में बहेड़ा एवं बहेड़ा तैल डाला गया है जो पलित (बाल पकना) की श्रेष्ठ औषधि कही गई हैं । बहेड़ा तैल का नस्य भी पलित में हितकर है (शां.सं.)। बाह्य प्रयोग के अतिरिक्त आभ्यन्तर प्रयोग में भी इसकी उपादेयता सिद्ध की गई है।
- पूतिकर्ण (कान से बदबूदार पीप बहना) में इससे सिद्ध तैल या धूपन हितकारी कहा गया है ।
- शोथ (सूजन) में गोमूत्र के साथ पीसकर लेप करने से तथा वेदना में तैल के साथ पीसकर सुखोष्ण लेप करने से लाभ होता है।
- यह कषाय होने से रक्त स्तम्भन भी है। रक्तस्राव में इसका बाह्य प्रयोग भी हितकर है।
- इसकी मज्जा मादक होने के साथ वेदना स्थापन भी है। अतः अनिद्रा एवं वातव्याधि में इसे उपयोग में लाया जाता है।
- प्रमेह की त्रिफला प्रशस्त औषधि है। प्रमेह के प्रायः सभी योगों में इसकी योजना की जाती है। एक प्रयोग सर्वोत्तम है।
- इसकी मज्जा बाजीकरण है। कहते हैं कि इसका एक बीज प्रतिदिन सेवन करने से क्लैब्य (नपुंसकता) रोग दूर होता है और कामोत्तेजना बढ़ती है।
- रस, रक्त, मांस, मेद के विकारों में बहेड़ा उपयोगी है।
- सामान्य दुर्बलता इसके सेवन से समाप्त होती है। त्रिफला की गुणवत्ता से सभी परिचित हैं। स्वस्थ व्यक्ति भी अपने स्वास्थ्य के संरक्षणार्थ इसका सेवन करते हैं।
- त्रिफला का सेवन मिश्रित रूप में तथा पृथक-पृथक भी किया जाता है। आचार्य अग्निवेश ने हरड़, बहेड़ा एवं आंवला के सेवन विधि के प्रसंग में भोजन से पहले दो बहेड़ा का, भोजन के पश्चात् चार आमला एवं भोजन के जीर्ण हो जाने पर एक हरड़ के खाने का निर्देश किया है।
यूनानी मतानुसार बहेड़ा के गुण और उपयोग –
- यूनानीमतानुसार बहेड़ा पहले दर्जे में शीतल एवं दूसरे में रुक्ष है।
- यह भूख बढ़ाता है। त्रिदोष को मिटाता है कुछ व्यक्तियों को यह कब्ज करता है तो कुछ को मृदु विरेचन का कार्य करता है।
- दस्तों के जरिये यह पित्त को निकाल देता है।
- भुना हुआ बहेड़ा दस्तों को रोकता है इसके सेवन से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं।
- यह नेत्रज्योति को बढ़ाने वाला और दिमाग को ताकत देने वाला है।
- यह बवासीर में भी फायदेमंद है।
रोगोपचार में बहेड़ा के फायदे (Benefits of Bahera in Hindi)
1). सद्योव्रण (ताजा घाव) में बहेड़ा का उपयोग फायदेमंद
बहेड़ा के बारीक चूर्ण को सद्योव्रण पर बुरकने से उससे निकलने वाला रक्तस्राव बन्द हो जाता है। इसके बाद अन्य कोई व्रण रोपण दवा से व्रण बन्धन करना चाहिये।
2). वृश्चिक दंश में लाभकारी बहेड़ा
बहेड़े को पीसकर वृश्चिक दंश पर लेप करने से दंश जात वेदना मिट जाती है। यह लेप ततैया के काटने पर भी होता है।
3). आन्त्रवृद्धि दूर करे बहेड़ा का प्रयोग
आन्त्रवृद्धि में भी बहेड़ा का लेप बनाकर शोथ शूलयुक्त स्थान पर लेप करने से रोगी को शीघ्र आराम मिलता है।
4). ग्रन्थि (गाँठ) ठीक करने में लाभकारी है बहेड़ा का प्रयोग
- बहेड़ा को पीसकर पोटली बनाकर आक्रान्त स्थान पर सेक करें। अथवा बहेड़ा को जल में पीसकर लेप करें। इससे दाह एवं पीड़ा का शमन होता है।
- बहेड़ा चूर्ण का मोटा लेप या पुल्टिस बांधे और सेक करें। इससे गांठ का दाह- वेदना शीघ्र ही समाप्त होती है। एरण्ड तैल में बहेड़ा को सेक सिरके में मिलाकर लेप करते हैं।
5). बालों का झडना (केशपात) दूर करे बहेड़ा
- बहेड़े के चूर्ण को जल में भिगोकर सिर में मर्दन करें। इसे 15 मिनट रखकर धोलें। फिर भृंगराज तैल लगावें।
- बहेड़ा का तेल लगाने से भी बालों का झड़ना टूटना बन्द होता है। और बाल अकाल में ही श्वेत नहीं होते। यह तैल कुछ दिन नियमित लगाना चाहिये।
6). पलित रोग (बालों का सफेद होना) में बहेड़ा इस्तेमाल से फायदा
- बहेड़ा, आंवला, हरड़, भृगराज तथा मण्डूर (गलाए हुए लोहे की मैल) समान मात्रा में लेकर इक्षु (गन्ना) रस मिलाकर बालों पर लेप लगाकर सिर पर कपड़ा बांध कर रात को सोना चाहिये। प्रातः सिर को धो लें। इससे शिर के श्वेत केश काले होते हैं।
- बहेड़ा का तैल भी पलित रोग में लाभदायक है। बालों में लगाने के अतिरिक्त इसका नस्य भी लाभप्रद है।
7). दन्तरोग में बहेड़ा के उपयोग से लाभ
- बहेड़ा मज्जा 36 ग्राम को दिन रात में आठ घंटे तक खूब चबा-चबा कर उसको सारे मुख में चारों ओर घूमाकर थूकते रहें, इस प्रकार प्रयोग पूर्ण करने से दांतों से बहते हुये रक्त का स्तम्भन हो जाता है।
- बहेड़ा, आंवला, हरड़, इलायची, दालचीनी, तेजपात,सोंठ, मिर्च, पीपल और कूठ के चूर्ण को मधु में मिलाकर मंजन करने से दांतों के समस्त रोग मिटते हैं।
- बहेड़ा, हरड़, सोंठ, अजवाइन और लवंग को समान मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बनाकर मंजन करने से भी दांतों के रोग मिटते हैं और दातं स्वच्छ होते हैं।
8). नेत्र रोग मिटाए बहेड़ा का उपयोग
- बहेड़ा चूर्ण को पानी में पीसकर आंखों पर लेप करने से आखों का दर्द एवं शोथ का शमन होकर आराम मिलता है।
- बहेड़ा की गिरी को मधु में घिसकर अंजन करने से नेत्रों का शुक्ररोग (फूला) नष्ट होता है। इसे स्त्री के दुग्ध में घिसकर भी लगाने से लाभ होता है।
- बहेड़ा फल की गिरी दो भाग, हरड़ की गिरी एक भाग और आंवला की गुठली की गिरी 3 भाग, सबको गुलाबजल में पीसकर बटी बना लें, इसे पुन: गुलाबजल में घिसकर आंजने से नेत्र रोग मिटते हैं।
- बहेड़ा की गिरी, कालीमिर्च, आंवला, फुलाया हुआ नीलाथोथा और मुलहठी को पीस वर्ती (शलाका/बत्ती/गोली) बना छाया में सुखा लें इसे आंखों में आंजने से तिमिरादि नेत्ररोग (जिसमें चीजें,धुँधली, फीके रंग की दिखाई दे) दूर होते हैं।
9). आमवात रोग में बहेड़ा का उपयोग फायदेमंद
बहेड़ा चूर्ण तथा गूगल सम लेकर लेप करने से शोथ शूल का शमन होता है। यह विभिन्न प्रकार के दुर्घटना जन्य शोथ को भी मिटाने में श्रेष्ठ है।
10). अग्निदग्ध व्रण में आराम दिलाए बहेड़ा का प्रयोग
जले स्थान पर बहेड़ा का लेप जलन को मिटाता है। जलेव्रण पर तत्काल मधु में मिलाकर इसका लेप करने से फफोले नहीं होंगे एवं तीव्र दाह का शमन होता है।
11). भिलावे का विष दूर करे बहेड़ा का लेप
भिलावे के विष प्रकोप पर बहेड़ा फल के गूदे को जल में पीसकर लेप किया जाना ठीक है।
बहेड़ा फलामज्जा (गिरी), मुलहठी, नागरमोथा और चन्दन को जल में पीसकर लेप करने से भी विष प्रभाव कम होता है।
12). चर्मरोग में बहेड़ा के इस्तेमाल से लाभ
चर्म रोगों में बहेड़ा के तैल को लगाना चाहिए अथवा बहेड़ चूर्ण में नीम पत्र स्वरस मिलाकर लगाना चाहिये।
13). गले की सूजन (कंठ शोथ) में बहेड़ा का उपयोग लाभदायक
- बहेड़ा 5 ग्राम, माजूफल 5 ग्राम और रसांजन 2.5 ग्राम का क्वाथ बनाकर उसमें मधु मिलाकर गण्डूष (कुल्ला) धारण करने से कंठ शोथ मिटता
- बहेड़ा एवं अमतलास के गूदे को पीसकर सुखोष्ण लेप गले पर करना भी गलशोथ में हितकारी है।
14). दाह (जलन) में लाभकारी है बहेड़ा का प्रयोग
बहेड़ा की मींगी को घोटकर लेप करने से पित्तज्वरादि रोगों में होने वाला दाह शान्त होता है।
15). खांसी (कास) में लाभकारी बहेड़ा
- बहेड़ा और कायफल का चूर्ण एक-दो ग्राम को मधु के साथ करने से कास-श्वास में लाभ होता है।
- बहेड़ा, पुष्करमूल और काकड़ासिंगी का चूर्ण मधु से चाटना भी कास-श्वास में हितकारी है।
- बहेड़ा, हरड़, पिप्पली, अडूसा, मुलहठी और तुलसी का क्वाथ प्रतिश्याय (सर्दी-जुखाम) कास में लाभप्रद है।
- बहेड़ा, पीपर, मरिच, कुलिंजन, लवंग का क्वाथ यकृत कफघ्न योग है।
- बकरी के दूध में बहेड़ा, अडूसा पत्र और कंटकारी फल का चूर्ण पकाकर छानकर पीने से तर व सूखी खांसी मिट जाती है।
- बहेड़ा, लौंग, पीपर, अनार का छिलका, कत्था, मुलहठी और द्राक्षा का क्वाथ भी खांसी श्वास में हितकारी है।
- फल की छाल का चूर्ण दो भाग तथा पिप्पली का चूर्ण एक भाग मिलाकर रखें। दो-तीन ग्राम की मात्रा में शहद के साथ चाटने से भी खांसी दूर होती है।
- केवल बहेड़ा फल का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में मधु के साथ भोजन के बाद चाटना भी खांसी-श्वास में लाभप्रद है इसके साथ त्रिकटु चूर्ण भी मिलाया जा सकता है।
- बहेड़ा के टुकड़ों को घी में भूनकर चूसने से जमा हुआ कफ पिघलकर बाहर निकल जाता है जिससे कास-श्वास में आराम मिलता है। ये प्रयोग खांसी, श्वास, स्वरभेद, कंठरोग, कफवृद्धि, सर्दी-जुखामआदि सभी में लाभदायक है।
16). गले के रोग में बहेड़ा के इस्तेमाल से फायदा
- बहेड़ा, आंवला, कालीमिर्च तथा गुडुची का समभाग चूर्ण बनाकर एक-दो ग्राम लेकर शहद के साथ दिन में तीन बार चाटने से स्वरभेद (गला या आवाज बैठ जाना) दूर होकर स्वर मधुर होता है।
- बहेड़ा, पिप्पली, सेंधानमक इनके चूर्ण को कांजी के साथ मिलाकर पान करने से स्वरभेद मिटता है। (एक किलो चावलों को अच्छी तरह पकाकर ठण्डा करें। उसमें चार लीटर जल डाल मोटे कपड़े से मुख बन्द कर ढक्कन लगा जमीन में गाढ़ दें, सात दिनों बाद पानी छानकर निकाल लें शेष फेंक दें, बस यही कांजी कहलाता है) इस चूर्ण को बिना कांजी के भी थोड़ा थोड़ा मुख में रखकर चूसने से या मक्खन में मिलाकर सेवन करने से भी लाभ होता है।
- बहेड़ा, हल्दी और रसौत के चूर्ण को जल के साथ सेवन करें।
17). अतिसार (दस्त) कम करने में बहेड़ा करता है मदद
- बहेड़ा चूर्ण में लौंग चूर्ण मिला 1-2 ग्राम सेवन से अतिसार में लाभ होता है।
- बहेड़ा चूर्ण असगंध समभाग चूर्ण 3 ग्राम देने से आमातिसार में लाभ होता है।
- बहेड़ा फल को जला लें इस भस्म में बराबर सेधा नमक मिलाकर 500 मिग्रा. दें। अनुपान तक्र या अनार स्वरस अथवा जल।
- नाभि टलने के कारण यदि अतिसार हुआ हो तो बहेड़ा क्वाथ एक-एक घंटे के अन्तर से तीन-चार बार पिलाना चाहिये। इससे नाभि उचित स्थान पर स्थिर हो जाती है। तथा अतिसार भी बन्द हो जाता है।
18). तृषा (अत्यधिक प्यास) मिटाता है बहेड़ा
बहेड़ा की 3-4 फलों की गिरी को जल में पीसकर 3-4 घंटे से देना तृषा को मिटाता है।
19). प्रमेह में बहेड़ा के इस्तेमाल से लाभ
बहेड़ा चूर्ण 3 ग्राम हरिद्रा चूर्ण 500 मिग्रा. को मधु के साथ चाटकर त्रिफला कषाय (रस युक्त) का पान प्रमेह में हितकारी हैं
20). मानसिक थकान दूर करे बहेड़ा
बहेड़ा एक ग्राम, मिश्री दो ग्राम, को गोघृत के साथ रात को सोते समय सेवन करने से नींद अच्छी आती है बेचैनी दूर होती है, मनोबल बढ़ता है।
21). हिक्का (हिचकी) मिटाए बहेड़ा का उपयोग
नियंत्रण में न आने वाली प्रबल हिचकी दो ग्राम बहेड़ा चूर्ण मधु के साथ सेवन करने से मिट जाती है। इससे कास श्वास में लाभ होता है।
22). हृदयरोग में लाभकारी है बहेड़ा का सेवन
बहेड़ा, असगंध को गुड़ के साथ गोलियां बनाकर गरम पानी से देने से वातज हृदय पीड़ा मिटती है।
23). भगन्दर ठीक करे बहेड़ा का प्रयोग
बहेड़ा, आंवला, हरड़ और विडंग का क्वाथ भगन्दर के रोगी के लिये हितावह है।
24). चक्कर आने में लाभकारी है बहेड़ा का प्रयोग
बहेड़ा 6 ग्राम, जवासा 6 ग्राम, जौकुट कर क्वाथ बना इसमें घृत मिला पीने से चक्कर आना मिटता है।
25). नपुंसकता दूर करने में बहेड़ा फायदेमंद
बहेड़ा चूर्ण 6 ग्राम, गुड़ 6 ग्राम प्रतिदिन सेवन करने से काम बढ़ता है।
26). मन्दाग्नि में बहेड़ा के इस्तेमाल से फायदा
बहेड़ा के सेवन से मन्दाग्नि दूर होकर भूख लगने लगती है।
27) . श्वेत कुष्ठ में लाभकारी है बहेड़ा का प्रयोग
बहेड़ा, कठगूलर की जड़ की छाल समभाग जौकुट कर 25 ग्राम चूर्ण को 200 मिली. जल में 12 घंटे भिगोकर चतुर्थाश क्वाथ सिद्ध कर उसमें 10 ग्राम गुड़ (पुराना) मिला बावची बीज के चूर्ण 1.5 ग्राम प्रक्षेप देकर नियमित पथ्यापथ्य के पालन पूर्वक सेवन करने से श्वेत कुष्ठ एवं पुण्डरीक कुष्ठ में लाभ होता है।
28). अश्मरी (पथरी) में बहेड़ा के इस्तेमाल से लाभ
बहेड़ा फलमज्जा को यवक्षार के साथ सेवन करने से पथरी नष्ट होती है।
बहेड़ा की गिरी, बलामूल, गोखरू, कौंच के बीज, तालमखाना, देवदारु और चित्रक को समभाग ले शीतल जल में पीसकर मधु मिलाकर सेवन करने से भी मूत्र विकार दूर होकर पथरी मिटती है।
29). श्वास रोग ठीक करे बहेड़ा का प्रयोग
- 100 ग्राम उत्तम स्वच्छ बहेड़ा को दोगुने गोदुग्ध में भिगोइए। 24 घंटे भीगने के पश्चात इसे दूध में से निकालकर सुखाइये भली प्रकार सूख जाने पर इसका बारीक चूर्ण बना लें, यह चूर्ण 1-2 ग्राम मधु अथवा उष्ण जल के अनुपान से सेवन करें। इससे श्वास, कास (खांसी), प्रतिश्याय (सर्दी जुखाम) आदि दूर होकर लाभ होता है।
- फल सूखा गूदा, अनार का छिलका 3-3 ग्राम, कालीमिर्च 6 दाने तथा सेंधा नमक 1.5 ग्राम पीस तीन मात्रा बना लें। दिन में तीन बार उष्ण जल से देने से श्वास व कास में भी लाभ मिलता है।
30). ज्वर (बुखार) में बहेड़ा का उपयोग फायदेमंद
- बहेड़ा चूर्ण चार ग्राम को मधु के साथ दिन में तीन बार चाटने से वातकफ ज्वर का शमन होता है।
- बहेड़ा और जवासे के क्वाथ में घृत मिलाकर सेवन करने से पित्तकफज ज्वर मिटता हैं इसके प्रयोग से आंखों के आगे अंधेरा छा जाना और चक्कर आना जैसे विकारों का भी शमन होकर रोगी को आशातीत लाभ मिलता है।
31). छर्दि (उल्टी) मिटाए बहेड़ा का उपयोग
- बहेड़े की गिरी, मुनक्का, छोटी इलायची तथा सत्व पोदीना मिलाकर ताजे जल के अनुपान से बार-बार देने से वमन शान्त हो जाता है। इसकी गोलियां भी बनाकर उपयोग में लाई जा सकती है।
- बहेड़ा 10 ग्राम, मुनक्का 10 ग्राम, इलायची 10 ग्राम और पोदीना सत्व 1.5 ग्राम मिलाकर 250 मिग्रा. की गोलियां बनाकर उपयोग में लाई जा सकती है।
32). लालास्राव में लाभकारी है बहेड़ा
मुख में अधिक लार के बहने या कफस्राव अधिक होने पर फल के गूदे या छाल के चूर्ण बराबर शक्कर मिलाकर मुख में रखकर चूसते रहने से लाभ होता है।
मात्रा – 3 ग्राम। इसे दिन में 3-4 बार सेवन करना चाहिये। यह कफस्राव में भी लाभदायक है।
33). कफ स्राव में बहेड़ा से फायदा
भुने हुये बहेड़ा फल की छाल को ताम्बूल पान (ताम्बूल) में रखकर मुख पर रखकर चबावें। इसी तरह सायंकाल भी करें इससे बार-बार होने वाला कफस्राव मिट जायेगा। एक बार में डेढ़ से दो ग्राम चूर्ण पान में रखकर सेवन करें। यह प्रतिश्याय, कास, श्वास, राजयक्ष्मा आदि रोगों में हितकारक है। इसके सेवन से इन रोगों के मिटने के अतिरिक्त बल की भी वृद्धि होती है।
34). वातरोग मिटाए बहेड़ा का उपयोग
बहेड़ा चूर्ण और सोंठ चूर्ण वातरोगों एवं उदर रोगों में लाभदायक है।
बहेड़ा से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (कल्प) :
1. बहेड़ा क्वाथ –
बहेड़ा, अमलतास, कुटकी, त्रिफला और हल्दी का समभाग क्वाथ बनाकर सेवन कराने से तृषा, दाह और विषमज्वर आदि में लाभदायक होता है। – ग. नि.
2. बहेड़ा पुटपाक –
- बहेड़े के फलों पर थोड़ा घृत चुपड़कर उन पर गीले आटे का एक अंगुल मोटा लेप कर दें। फिर इसे उपलों की आंच में पकावें। जब पूर्णतया पककर लालवर्ण का सा हो जाय तब उसे निकालकर बहेड़ा के छिलकों को मुख में रखकर चूसें। इससे खांसी, श्वास, प्रतिश्याय, स्वरभंग (गले के रोग) आदि रोग नष्ट होत हैं। – शा. सं.
- बहेड़े के फलों पर थोड़ा घृत चुपड़कर उन पर गोबर का एक अंगुल मोटा लेप कर पुटपाक विधि से पकावें। पक जाने पर स्वांगशीतल होने पर निकालकर इसके छिलकों को मुख में धारण करने से भी कास श्वासादि में लाभ होता है। इसका चूर्ण बना मधु से भी सेवन किया जा सकता है। – भै. र.
3. बहेड़ा वटी –
बहेड़ा फल का छिलका, अनार का छिलका, यवक्षार और पिप्पली को समभाग लेकर चूर्ण बनाकर गुड़ मिलाकर बेर जैसी गोलियां बनाकर चूसते रहने से कण्ठ के विकार, स्वरभंग तथा अत्यधिक लालाश्राव (अत्यधिक लार), गले की सूजन आदि में लाभ होता है। – वनौषधि चन्द्रोदय
4. बहेड़ा वटक –
बहेड़ा फल की छाल, मण्डूर भस्म, सोंठ और तिल का कल्क समान मात्रा में लेकर इसमें गुड़ मिलाकर 6-6 ग्राम के मोदक (लड्डू) बना लें। एक-एक मोदक प्रात: सायं तक के साथ सेवन करने से भयंकर पांडुरोग भी नष्ट हो जाता है। – ग. नि.
5. बहेड़ा सीधु (आसव) –
बहेड़े के क्वाथ में गुड़ और धाय के फूलों को मिलाकर कुछ दिन रखते हैं। बाद में जो सीधु (आसव) तैयार होता है वह मधुर पित्त नाशक, संग्राही, रक्तविकृति पाण्डु व्रणहर है। -सुश्रुत सू. 45
6. बहेड़ा मुरब्बा –
इसके फलों को आठ गुने जल में मिला पकावें। जब आधा जल रह जाय तब बहेड़ों को अलग निकाल उस जल में मिश्री मिला गाढ़ी चासनी का पाक करें तथा उस पाक में उक्त पकाये बहेड़ों को व थोड़ा पिप्पली चूर्ण मिला बरनी में रखें। यह कास (खांसी) के लिये बहुत हितकारी है। यह पुराना अधिक लाभकारी है। – ब. गु.
7. बहेड़ा अवलेह –
बहेड़ा का छिलका 250 ग्राम, बकरी का मूत्र 500 मिली. मधु 500 ग्राम, पीपर 80 ग्राम, पीपरामूल 80 ग्राम, लोह भस्म 80 ग्राम, कटेरी के फलों का चूर्ण 80 ग्राम, पहले अजामूत्र को पकाना, उसमें मधु छोड़कर चासनी करना फिर अन्य औषधियों के कूट कपड़छान चूर्ण को मिला चाटने योग्य अवलेह बना लें। इस अवलेह को 6-12 ग्राम तक दिन में दो-तीन बार , रात्रि में एक-दो बार सेवन करने से कास, श्वास, यक्ष्मा आदि रोगों में लाभ होता है। अजामूत्र से घृणा हो तो गोमूत्र ले सकते हैं किन्तु अजामूत्र फेफड़े की सड़न, घाव तथा यक्ष्मा के कीटाणुओं को नष्ट करता है। गंध से घृणा हो तो इलायची, दालचीनी, तेजपात 20-25 ग्राम डालकर सुगन्धित कर सकते हैं। – ज्वर विवे.
8. बहेड़ा चूर्ण –
बहेड़ा 200 ग्राम, लौंग 30 ग्राम, अपामार्गक्षार, बंग क्षार, बच और सोनागेरु 5-5 ग्राम। बहेड़ा और लौंग को कूट खरलकर लें। यह 3-3 ग्राम प्रातः सायं शहद के साथ सेवन करें। यह चूर्ण कास, श्वास में संग्रहीत कफ को तत्काल दूर करता है। थोड़े दिनों तक सेवन करने से कफ बाहर निकलकर साफ हो जाता है। कफोत्पत्ति बन्द हो जाती है। पाचन क्रिया सबल बनती है तथा कास-श्वास रोग दूर हो जाते हैं। यदि मन्द मन्द ज्वर भी रहता हो तो 250 मिग्रा. श्रंग भस्म भी मिला सेवन करावें। – र.त.सा. भाग 2
9. बहेड़ा घृत –
बहेड़ा, हरड़, आमला, परवल, नीम की छाल और अडूसा समभाग एकत्र जौकुट कर दो किलो चूर्ण को 16 लीटर जल में पका 4 लीटर जल शेष रहने पर छान लेवें। तथा उसमें उक्त 6 द्रव्यों को एकत्र 80 ग्राम लेकर जल के साथ पीस कल्क बना और एक मिली गोमूत्र मिलाकर पकावें। घृत मात्र रहने पर छानकर रख लें। प्रातः सायं 10-20 ग्राम घृत गोदुग्ध से सेवन करने से नेत्ररोग नष्ट होते हैं।
10. बहेड़ा तेल –
- 6 द्रव्य (बहेड़ा, हरड़, आमला, परवल, नीम की छाल और अडूसा) समभाग मिश्रित 160 ग्राम का कल्क कर अरहर के 8 लीटर क्वाथ (क्वाथार्थ अरहर चार किलो जौ कुटकर 32 लीटर जल में चतुर्थाश क्वाथ करें) तथा दो लीटर तिल तैल एकत्र मिला सिद्ध कर लें। इस तैल के सेवन तथा सिर पर मालिश व नेत्रों पर लगाने से तिमिर नामक नेत्ररोग नष्ट होते हैं। -बं. से. सं.
- बहेड़ा, बच, कूठ तथा मैंनसिल का चूर्ण 25-25 ग्राम तिल तैल एक लीटर और जल चार लीटर मिलाकर पकावें। तैल मात्र शेष रहने पर छानकर रखलें, इसे कान में डालते रहने से शीघ्र ही कान का बहना रोग (विशेषत : बालकों का) दूर होता है।
बहेड़ा के दुष्प्रभाव (Bahera ke Nuksan in Hindi)
- बहेड़ा का अधिक सेवन आंत्र एवं गुदा के लिए हानिकारक है।
- बहेड़ा लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- बहेड़ा को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
- बहेड़ा की फल मज्जा (मींगी) अधिक खा लेने से विष के समान प्रभाव होता है। अतियोग से चक्कर आने लगते हैं। आलस्य अधिक होता है। मस्तक पीड़ा एवं वमन होने लगते हैं। किसी के शरीर में उसी दिन तथा किसी दूसरे दिन विष का प्रभाव होता है।
दोषों को दूर करने के लिए – इसके दोषों को दूर करने के लिए मधु एवं शर्करा का उपयोग करें ।
Read the English translation of this article here ☛ Baheda (Terminalia Bellirica): 36 Amazing Uses, Benefits, Dosage and Side Effects
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।