Banafsha in Hindi | बनफ्शा के फायदे ,गुण ,उपयोग और दुष्प्रभाव

Last Updated on February 29, 2020 by admin

बनफ्शा क्या है ? : What is Banafsha in Hindi

आयुर्वेद चिकित्सक जहां प्रतिश्याय (सर्दी), कास (खाँसी), ज्वर आदि में तुलसी को उपयोग में लाते हैं, वहां यूनानी चिकित्सक (हकीम) बनफ्शा को उपयोग में लाते हैं। दोनों में समन्वय एवं प्रायः समानता की दृष्टि से ही किसी ने यह कहा है –

हकीम और वैद एक से अगर तफशीश अच्छी हो।
हमें सेहत से है मलतब बनफशा या तुलसी हो।।

इस वनौषधि का पंचांग बनफ्शा या बनफसा , फूल ‘गुले बनफसा’ और जड़ बीखे बनफ्शः नाम से जानी जाती है। बनफ्शा नाम से इसका सुखाया हुआ पंचांग या गुले बनफ्शा नाम से केवल पुष्प बाजार में औषधि बिक्रेताओं के यहां मिलते हैं । इसका आयात विशेषतः ईरान से होता है और यही असली बनफ्शा है। उत्तरी भारत में इसके स्थान पर इसकी अन्य प्रजातियों का प्रयोग होता है। अथवा इनका संमिश्रण किया जाता है ।

बनफ्शा और गुल बनफ्शा ईरान से बम्बई होकर या कश्मीर होकर भारतीय बाजारों में आती है जो कश्मीर से आती है उसे कश्मीर बनफशा या बाग बनफ्शा कहते हैं। कश्मीर में भी इसके पौधे होते हैं। पश्चिमी हिमालय पर लगभग पांच हजार फुट की ऊंचाई पर यह बहुतायत से पायी जाती है। अप्रैल से जुलाई तक के समय में इसका संग्रह किया जाता है। बसन्त ऋतु में पुष्पित होने पर इसके पुष्पों का संग्रह करना विशेष गुणप्रद है। लगभग 6 माह बाद इसके पुष्पों का रंग नीलवर्ण से श्वेत वर्ण हो जाता है। तब ये गुणहीन हो जाते हैं। इसके पुष्प ही विशेषतः औषधि कार्य हेतु काम में आते हैं। इनके अभाव में पंचांग लिया जाता है। इसके स्वयं जात पौधे भी होते हैं और इसकी खेती भी की जाती है।

कुल – बनफ्शादि कुल (बिओलासे (Violaceae)

बनफ्शा का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Banafsha in Different Languages

Banafsha in –

  • संस्कृत (Sanskrit) – सूक्ष्मपत्रा, नीलपुष्पा, ज्वरापट्हा, बनप्सिका
  • हिन्दी (Hindi) – बनफ्शा,
  • मराठी (Marathi) – बनफसा, बनफशा,
  • गुजराती (Gujarati) – बनफसा, बनफशा,
  • फारसी (Farsi) – बनफ्शः
  • अरबी (Arbi) – बनफसज,
  • इंगलिश (English) – स्वीट बायोलेट (Sweet Violet)]
  • लैटिन (Latin) – बायो ला ओ डो रे टा (Violaodorata Linn)

बनफ्शा का पौधा कैसा होता है ? :

बनफ्शा का प्रायः काण्डविहीन (तना रहित) छोटा पौधा होता है। इसका मूल दृढ़ होता है। यह मूल फीके पीले रंग का टेढ़ा -मेढ़ा होता है।

बनफ्शा के पत्ते – बनफ्शा के पत्ते रोमश, हृदयाकृति के होते हैं जो ब्राह्मी किंवा मण्डूकपर्णी के पत्रों के समान होते हैं। अत: कई लोग इसे ब्राह्मी या मण्डूकपर्णी का एक भेद मानते हैं।

बनफ्शा के फूल (पुष्प) – बनफ्शा के फूल नीले बैंगनी रंग के सुगन्धित होते हैं। पुष्पों की पंखड़ियों का गोल निम्न भाग ही इसका बीज कोष है।

बनफ्शा के प्रकार :

बनफ्शा की अन्य प्रजातियों में मुख्य है –
बायोला सांइनेरिया (Viola Cineria Bioss) और बायोला सर्पेन्स (Viola Serpens pilosa blume)।

बनफ्शा का रासायनिक विश्लेषण : Banafsha Chemical Constituents

बनफ्शा के पुष्पों में बायोलिन नामक कटु तिक्त वामक द्रव्य पाया जाता हैं इसके अतिरिक्त रुटिन सायनिन आदि भी होते हैं। पत्र में एक सुगन्धित तैल, क्षाराभ, रंजक द्रव्य आदि होते हैं। पुष्पों में भी एक उड़नशील तैल पाया जाता है। मूल में सेपोनिन नामक तत्व एक सुगन्धित तैल आदि होते हैं।

बनफ्शा का उपयोगी भाग : Useful Parts of Banafsha in Hindi

फूल ,पत्ते ,फल और जड़

बनफ्शा के औषधीय गुण : Banafsha ke Gun in Hindi

गुण – लघु, स्निग्ध।
रस – मधुर, तिक्त।
विपाक – मधुर।
वीर्य – शीत।
प्रधानकर्म – वातपित्तशामक, कफनिःसारक, ज्वरघ्न, रक्त स्तम्भक, अनुलोमन, शोथहर, श्वासहर और स्वेद जनन है।
यूनानी मतानुसार यह पहले दर्जे में शीत एवं तर है।

बनफ्शा के फायदे और उपयोग : Uses and Benefits of Banafsha in Hindi

  1. गर्मियों में इसके पुष्पों का गुलकन्द या चूर्ण सेवन करने से लू नहीं लगती है।
  2. विबन्ध में गुलकन्द का पुष्पों के चूर्ण में शक्कर मिलाकर गर्म जल से सेवन करना चाहिये।
  3. अनिद्रा एवं तज्जन्य शिरःशूल में पुष्पों का रस पिलाया जाता है। पुष्पों का सिर पर लेप किया जाता है और पुष्पों को सुंघाया जाता है।
  4. पित्त प्रकोप से उत्पन्न आंखों की जलन, सूजन पुष्पों के लेप से मिटती है।
  5. पुष्पों को भिगोकर मल छानकर पिलाने से गले की सूजन दूर होती है।
  6. इससे आमाशय की जलन और पित्तज कास का भी शमन होता है।
  7. इसके ताजा पुष्प विष विकारों में भी लाभप्रद है।
  8. रक्त विकार एवं रक्तभाराधिक्य (हाई ब्लड प्रेशर) में बनफ्शा के मूल का क्वाथ हितकर है। इसके मूल में स्थित क्षाराभ , ओडोरिटिन रक्तभार को कम करता है।
  9. मूल की अधिक मात्रा (तीन ग्राम) देने से वमन-विरेचन होता है।
  10. पित्तवृद्धिजन्य शिरःशूल, शोथ(सूजन), अर्बुद (रसौली या ट्यूमर) , कर्कटार्बुद (कैंसर) आदि में पंचांग का लेप हितकारी है। इसके लेप से वेदना कम होती है। इसका पंचांग, पतंग और लाल चन्दन क्वाथ बनाकर इस क्वाथ से विद्रधि का कैंसर को धोना चाहिये।
  11. बनफ्शा चूर्ण 6 ग्राम को लेकर 60 मिली. जल में पकावें। पकाते समय उसमें 6 ग्राम नमक भी मिला दें। भली भांति पक जाने पर इस घोल में से कुछ रुई पर या स्वच्छ अंगुली पर लगाकर गले में लगाने से गले का शोथ दूर होता है। क्वाथ में जौ का आटा मिलाकर लेप करने से सूजन और सिर का दर्द मिटता है।
  12. रक्तार्श, रक्तप्रदर या रक्तपित्त में इसके क्वाथ को ठण्डा कर उसमें द्राक्षासव, अशोकारिष्ट या उशीरासव मिलाकर पिलावें।
  13. रक्तार्श में द्राक्षासव, रक्तप्रदर में अशोकारिष्ट और रक्तपित्त में उशीरासव उपयोगी हैं अथवा उक्त सभी रोगों में द्राक्षासव मिलाकर सेवन करना चाहिये। यह ध्यान रखें कि इसके क्वाथ को अधिक नहीं उबालना चाहिये अन्यथा वह गुणहीन हो जाता है।
  14. प्रतिश्याय (सर्दी जुकाम) में बनफ्शा पंचांग, तुलसी पत्र और कालीमिर्च का फाण्ट बनाकर पिलाना हितकारी है। बनफ्शा चूर्ण में कालीमिर्च चूर्ण और अदरक का स्वरस मिलाकर गोलियां बनाकर सेवन करना भी लाभप्रद है।
  15. प्रतिश्याय ज्वर एवं कास में वनफ्शा का सेवन करने से लाभ होता है। बनफ्सा चूर्ण में सेंधा नमक और पिप्पली चूर्ण मिलाकर मधु मिश्रित कर सेवन करने से उक्त रोगों का कफ निकल जाता है और रोगी को आराम मिल जाता है। बनफ्शा फाण्ट में कलमीसोरा मिलाकर सेवन कराने से उक्त रोगों में उत्तम लाभ होता है।
  16. बनफ्शा का शर्बत भी बहुत लाभप्रद है। जो व्यक्ति ज्वर, कास आदि रोगों में तिक्त (चरपरा) औषधि लेना पसन्द नहीं करते उन्हें इसका शर्बत पिलाना चाहिये। यह शर्बत (शार्कर) पित्तज्वर में अतीव लाभप्रद है।

सेवन की मात्रा :

मात्रा 3 से 6 ग्राम है।

बनफ्शा के दुष्प्रभाव : Banafsha ke Nuksan in Hindi

  • बनफ्शा उन व्यक्तियों के लिए सुरक्षित है जो इसका सेवन चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार करते हैं।
  • यदि ज्वर के साथ अतिसार हो तो इसे नहीं देना चाहिये।
  • गर्भवती को इसका सेवन नहीं कराना चाहिये। यदि आवश्यकता हो तो पुष्पों का शर्बत पिलाया जा सकता है।

दोषों को दूर करने के लिए : यदि इसके अधिक सेवन से किसी प्रकार की हानि की संभावना हो तो गुलाब के फूल, मुलहठीसत्व, बिही और अनीसून इसके हानि निवारक हैं। इसके अभाव में प्रतिनिधि रूप में गावजवान, गुलनीलोफर और खुब्बाजी के पत्र लिये जा सकते हैं।

बनफ्शा से निर्मित विशिष्ट योग :

फाण्ट बनफ्शा : बनाने की विधि और इसके फायदे

(क) बनफ्शा पंचांग चूर्ण 50 ग्राम को उबलते हुये 500 मिली पानी में भिगोकर ढककर रख दें आधा घंटे बाद छानकर थोडा थोड़ा सेवन करें। यह स्वेदजनन तथा कफ नि:सारक हैं।

(ख) लगभग 250 मिली. पानी को उबाल कर उसमें 5 ग्राम चूर्ण बनफ्शा पंचांग का चूर्ण डालकर आग से उतार कर रख दें फिर इसे छान कर मिश्री मिलाया हुआ गर्म दूध मिलाकर चाय की भांति घूट-घूट सेवन करें। इससे प्रतिश्याय में लाभ मिलता हैं। यदि रोगी लंघन करे तो अधिक लाभ मिलता है।

(ग) बनफ्शा के पुष्प 200 ग्राम लेकर उन्हें 400 मिली. उबलते हुए पानी में 24 घंटे तक डालकर ढक दें। पश्चात स्वच्छ वस्त्र से छानकर उसमें 400 ग्राम दानेदार शक्कर मिलाकर बोतल में भरकर रख लें। यह फाण्ट गुल बनफ्शा शर्बत बनफ्शा की भांति ही गुणप्रद हैं यह ग्रीष्मकाल में पेट की गरमी, विबन्ध और चर्मरोगों में लाभदायक है। इसे चार-पांच दिनों में ही उपयोग में ले लेना चाहिये।

क्वाथ बनफ्शा : बनाने की विधि और इसके फायदे

गुले बनफ्शा, गावजवां, जूफा, कासनी, मुलहठी, सारिवा, गिलोय, नीम की अंतस्त्वक् (अन्दर की छाल), कुटकी, चिरायता, हरड़ और आमला सबको समान मात्रा में लेकर यथाविधि क्वाथ तैयार कर पिलाने से कफज्वर, जीर्ण प्रतिश्याय, जीर्णज्वर और जीर्ण कास के रोगियों को लाभ मिलता है। क्वाथ में मिलाकर छोटे बच्चों को सेवन कराने से उनका ज्वर, कास, उत्फुल्लिका (डब्बारोग) मिटता है।

अर्क बनफ्शा : बनाने की विधि और इसके फायदे

बनफ्शा को आठगुने गरम जल में रात्रि के समय भिगोकर प्रातः अर्क खींच लेंवे। यह अर्क 25-30 मिली. पिलाना चाहिये।

जीर्णज्वर, आन्त्रिक ज्वर आदि में इसे अन्य औषधियों के साथ अनुपान के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। इसके पुष्पों का अर्क सन्धिवात एवं कफ विकारों में प्रयुक्त होता है। यह अर्क सुगन्धित एवं स्वादिष्ट होने से मिठाइयों में या अन्य भोज्य पदार्थों में भी डाला जाता है।

शरबते बनफ्शा : बनाने की विधि और इसके फायदे

(क) बनफ्शा के बारीक चूर्ण को आठगुने पानी में रातभर पड़ा रहने दें,प्रातः काल इसका क्वाथ तैयार कर छानकर उसमें दोगुनी या तिगुनी मिश्री डालकर चाशनी बना लें। क्वाथ को अष्टमांश शेष रहने पर ही छानें। यह शर्बत पित्तज्वर में बहुत लाभदायक है। छोटे बच्चों में ज्वर, कास में भी यह उपयोगी है। इसके साथ अन्य औषधि को मिलाकर आसानी से पिलाया जा सकता हैं

(ख) बनफ्शा 20 ग्राम, मुलहठी, मुलहठी 10 ग्राम, तुख्मे खतमी (खतमी के बीज) 70 ग्राम, सपिस्तान (लिसोड़ा) 10 नग , अंजीर 20 नग इन सबका पूर्वोक्त विधि से शर्बत बना लें। यह शरबत कास, रक्तपित्त, गले के रोग, ज्वर आदि में लाभप्रद है।

केवल बनफ्शा पुष्पों का भी शर्बत तैयार किया जा सकता है। यह शरबत रंग, स्वाद और सुगन्ध में मनोहर होता है। यह बच्चों को अधिक प्रिय होता है। यह नेत्र रोग, प्रतिश्याय, उष्णवात, ज्वर, अतिसार, दाह आदि में अधिक हितकारक होता है।

गुलकन्द बनफ्शा : बनाने की विधि और इसके फायदे

इसके ताजा पुष्प 200 ग्राम को 600 ग्राम शक्कर में या मिश्री के चूर्ण के साथ अच्छी तरह हाथ से मसल कर सात दिनों तक धूप में रखें। इस तैयार गुलकन्द की मात्रा 10-20 ग्राम है। इसके प्रयोग से मस्तिष्क का तथा आंतों का शोधन होता है।

बनफ्शा का मूल्य : Banafsha Price

  • YUVIKA Gulbanafsha Spl | Gul Banpsa – Viola Odorata – Sweet Violet (50 GM) – Rs 750
  • DAV Pharmacy Banafsha Syrup (750 ml) – Rs 410

कहां से खरीदें :

अमेज़न (Amazon)

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