Last Updated on July 27, 2024 by admin
चन्द्रशूर (हलीम) क्या है ? : What is Chandrachur in Hindi
चन्द्रशूर (हलीम) के छोटे छोटे, कोमल, चिकने एक दो फुट ऊँचे एकवर्षायु पौधे होते हैं। मूल के पास से निकलने वाले पत्र द्विपक्षवत् खण्डित से होते हैं। इनका वृन्त (शाखा) दीर्घ होता है। काण्ड से निकलने वाले पत्र प्रायः अखण्ड, रेखाकार-भालाकार होते हैं।
पुष्प- छोटे सफेद रंग के, लम्बी मंजरियों में होते हैं। फली चक्राकारलट्वाकार तथा आगे के भाग से कुछ अन्दर की ओर दबी हुयी होती है। फली के प्रत्येक कोष्ठ में एक-एक बीज होता है। ये बीज लाल रंग के नौकाकार होते हैं, जिनको जल में भिगोने से लुआब उत्पन्न होता है। ताजा पत्तों का साग बनाकर खाया जाता है। इसलिये सर्दियों में सोआ की भांति इसके शाखाओं के साथ पत्ते कभी कभी बिकने आते हैं।
चन्द्रशूर कहां पाया या उगाया जाता है ? : Where is Chandrashur Found or Grown?
तिब्बत तथा भारत में चन्द्रशूर (हलीम) की खेती होती है। भारत में विशेषतः महाराष्ट्र में इसकी खेती होती है। यह औषधि के अतिरिक्त सलाद के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है। यह घोड़े, ऊँट आदि पशुओं को भी खिलाया जाता है। इसके बीजों का आयात फारस से भी होता है।
चन्द्रशूर (हलीम) का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Chandrachur in Different Languages
Chandrachur in–
- संस्कृत (Sanskrit) – चन्द्रशूर, चद्रिका, पशुमेहनकारिका
- हिन्दी (Hindi) – चनसुर, हालिम, चमसुर, हालों
- गुजराती (Gujarati) – अशेलियो
- मराठी (Marathi) – असालियो
- बंगाली (Bangali) – हालिम
- पंजाबी (Punjabi) – हालिया, हालों
- राजस्थानी (Rajasthani) – हाल्यू, आसाल्यो
- तामिल (Tamil) – अलिविराई
- तेलगु (Telugu) – अदेली.
- कन्नड़ (Kannada) – अल्लिबिज
- अरबी (Arbi) – हब्बुर्रशाद
- फ़ारसी (Farsi) – सिपदान
- अंग्रेजी (English) – गार्डेन क्रेस (Garden Cress)
- लैटिन (Latin) – लेपिडियम साटीबुम (Lepidum Sativum Linn.)
चन्द्रशूर (हलीम) का रासायनिक विश्लेषण : Chandrachur Chemical Constituents
चन्द्रशूर (chandrachur) के पंचांग में आयोडीन, फास्फोरस, लौह आदि खनिज लवण, एक तिक्त सत्व तथा पर्याप्त गंधक आदि होते हैं। बीजों में एक उड़नशील सुगन्धित तैल तथा एक स्थिर तैल पाया जाता है।
चन्द्रशूर के उपयोगी भाग : Beneficial Part of Chandrashur in Hindi
बीज
सेवन की मात्रा :
मात्रा – 5 से 8 ग्राम।
चन्द्रशूर के औषधीय गुण : Chandrashur ke Gun in Hindi
- रस – कटु, तिक्त
- गुण – लघु, स्निग्ध, पिच्छिल
- वीर्य – उष्ण
- विपाक – कटु
- दोषकर्म – कफ वात शामक
चन्द्रशूर (chandrachur) प्रशमन द्रव्य होने के साथ ही दीपन, वातानुलोमन, ग्राही, कृमिघ्न, रक्त शोधक, वेदनास्थापन, कफनि:सारक, हिक्कानिग्रहण, आर्त्तव (मासिक धर्म) जनन ,स्तन्य जनन, मूत्रल, वृष्य एवं बल्य है।
वेदनास्थापन होने से इसका वात रोगों में तथा जन्तुघ्न, त्वग्दोषहर (त्वचा के रोग हरने वाला) होने से चर्मरोगों में इसका लेप हितावह है।
चन्द्रशूर (हलीम) के फायदे और उपयोग : Chandrashur ke Fayde in Hindi
1. उदरशूल (पेटदर्द) में चन्द्रशूर के प्रयोग से लाभ : चन्द्रशूर (हलीम) , मेथीबीज, कलौंजी और अजवायन का समभाग चूर्ण अथवा इसके अकेले चूर्ण में कुछ काला नमक मिलाकर सेवन करने से वातज शूल दूर होता है। गांवों में वृद्ध स्त्रियां इसे पाचन हेतु प्रयोगार्थ बनाकर रखती हैं। ( और पढ़े – पेट दर्द या मरोड़ के घरेलू उपचार )
2. कब्ज ठीक करे चन्द्रशूर (हलीम) का प्रयोग : चन्द्रशूर (chandrachur) के बीजों को आठ गुने पानी में भिगोवें। इसे तीन चार घंटे भिगोने के बाद मसलकर छानकर पीने से सामान्य विबन्ध (कब्ज) मिटता है। इसकी सेवनीय मात्रा-50-60 मि.लि. है।
3. पेट के रोग मिटाए चन्द्रशूर का उपयोग : चन्द्रशूर (chandrachur) , अजवायन, सौंफ, पोदीना, सोंठ, कालीमिर्च, जीरा, धनियां,विडंग,छोटी हरड़, काला नमक, सेंधानमक, नौसादर खपरियों वाला इन सबको समान मात्रा में लेकर पहले छोटी हरड़ को घी में या एरण्ड तैल में भून लें तथा नौसादर को पीसकर तवे पर भून लेवें फिर सबको कूट पीसकर चूर्ण बनालें। इसे एक ग्राम से तीन ग्राम तथा दिन में तीन-चार बार सेवन करें। इससे – पेट का दर्द, कब्ज, अरुचि, कृमि रोग, यकृत प्लीहा की वृद्धि, अग्निमांद्य आदि उदर रोगों में तथा अनिद्रा, गृध्रसी आदि में भी लाभ होता है। ( और पढ़े – पेट के रोगों को दूर करने के घरेलू नुस्खे और उपाय )
4. दस्त में चन्द्रशूर के इस्तेमाल से फायदा : चन्द्रशूर (हलीम) को पानी में भिगोकर पिलाने से आमातिसार रोगी को लाभ मिलता है।
5. संग्रहणी में चन्द्रशूर का उपयोग लाभदायक : चन्द्रशूर (chandrachur) बीज 25 ग्राम, कलौंजी 25 ग्राम, घी में भुने हुये मेंथी के बीज 25 ग्राम और काली मिर्च 12 ग्राम सबको पीसकर बारीक चूर्ण बनालें। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा में सेवन कराते रहें।
अनुपान (दवा के साथ ली जाने वाली) – वत्सकादि क्वाथ अथवा ताजा जल।
6. प्रसूता स्त्रियों के लिये फायदेमंद चन्द्रशूर के औषधीय गुण : प्रसव के पश्चात् स्त्रियों को चन्द्रशूर (हलीम) का सेवन कराने से गर्भाशय का संशोधन होता है, वायु के उपद्रव शान्त होते हैं तथा दूध व बल बढ़ता है। इसे दूध में पकाकर खिलाना चाहिये।
विधि – पहले दूध गरम करें। दूध उबलने पर 5 से 6 ग्राम बीज मिलाकर उबालते रहें। चन्द्रसुर गल जाने पर गुड़ या शक्कर मिला दें और ठण्डा होने पर खिलावें। इसका प्रयोग 40 से 50 दिनों तक निरन्तर करावें। इसके अतिरिक्त इसके मोदक बनाकर भी खिलाये जा सकते हैं। इनकी एक विधि आगे दी गई है।
चन्द्रशूर क्षीर पाक पुरुषों के लिये भी बलाधान हेतु उपयोगी है। इससे गृध्रसी (एक तरह का वात रोग), कटिशूल (कमरदर्द) आदि वात रोगों में भी लाभ मिलता है। ( और पढ़े -प्रसूति (डिलीवरी) के बाद खान पान और सावधानियां )
7. प्रमेह रोग दूर करने में चन्द्रशूर फायदेमंद : इसका फांट बनाकर सेवन कराने से दस्त साफ आता है तथा मूत्र खुलकर आता है। इससे मूत्र का गंदलापन, वातज कफज प्रमेह दूर होते हैं।
विधि – चन्द्रशूर (हलीम) 10 ग्राम, काली अनन्तमूल 5 ग्राम को जौकुट कर 20 मि.लि. उबलते हुये पानी में मिलाकर 20-25 मिनट तक ढक्कन लगाकर रख दें। इसके बाद छानकर रोगी को पिला दें। आवश्यकतानुसार इसमें शक्कर मिलायी जा सकती है।
8. चन्द्रशूर के प्रयोग से दूर करे हिचकी : चन्द्रशूर (chandrachur) 10 ग्राम को 400 मि.लि. उबलते हुये पानी में मिलावें और पुन: दस मिनट उबालें। बाद में थोड़ा गुड़ मिलाकर निवाया (कवोष्ण) पिला देने से हिचकी (हिक्का) का शमन होता है।
9. धातुपुष्टि व शक्ति बढ़ाने में लाभकारी चन्द्रशूर : सर्दियों में चन्द्रशूर के मोदक बनाकर सेवन कराने चाहिये। जिनको कब्ज प्राय: रहता है उन दुर्बल रोगियों के लिये यह अधिक उपयोगी है। ये वातरोगों को भी दूर करते हैं।
निर्माण विधि –चन्द्रशूर (हलीम) 200 ग्राम, सूजी 800 ग्राम, उड़द का आटा 200 ग्राम, घृत 800 ग्राम और शक्कर एक किलो 200 ग्राम लेकर पहले उड़द के आटे को 25 मि.लि. दूध का मोमन देवें फिर चनसुर चूर्ण और उड़द के आटे और सूजी को अलग अलग घी में भूनें। इसके बाद शक्कर की चाशनी कर सब मिला दें। इसमें बिहीदाना, चिरोंजी, छोटी इलायची के बीज, जायफल, जावित्री और पीपरामूल इच्छानुसार मिलाकर थाल में जमाकर चक्की बना लें और मोदक बनालें। यह पाक शीत काल में पौष्टिकता के लिये सेवन करने योग्य है। ( और पढ़े – वीर्य को गाढ़ा व पुष्ट करने के आयुर्वेदिक उपाय )
चन्द्रशूर (हलीम) के दुष्प्रभाव : chandrachur ke Nuksan in Hindi
- चन्द्रशूर (हलीम) की अधिक मात्रा मूत्रपिंडों के लिये हानिकारक है जिसके निवारण हेतु शक्कर एवं खीरा ककड़ी के बीज सेवन करने चाहिये।
- चन्द्रशूर को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
- गर्भवती महिलाओं को चंद्रशूर (chandrachur) का सेवन नहीं करना चाहिए।
Read the English translation of this article here ☛ Garden cress (Chandrasur): 6 Medicinal Uses and Health Benefits
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।