Choti Dudhi ke Fayde | छोटी दूधी के फायदे ,गुण ,उपयोग और नुकसान

Last Updated on May 10, 2020 by admin

छोटी दूधी क्या है ? : What is Thyme Leaved Spurge (Choti Dudhi) in Hindi

धवल दुग्ध-सी अपनी मुस्कान बिखेरने वाली बहुत-सी वनौषधियां हैं, परन्तु दुग्धिका का सम्बोधन पाने वाली तो दुद्धी ही है। तोड़ने पर भी धवल दुग्ध सी मुस्कान बिखेरकर यह अपनी परहित-भावनाओं को व्यक्त करती है ।

एरण्डकुल (युफर्बिएसी) की इस वनौषधि के यहां प्राय: सभी मैदानी भागों में एवं निचली पहाड़ियों पर स्वयं जात क्षुप पाये जाते हैं। यह उष्ण प्रदेश में तथा उष्णकाल में अधिक होती है। यह भूमि पर छायी हुयी रहती है।

छोटी दूधी का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Thyme Leaved Spurge (Choti Dudhi) in Different Languages

Choti Dudhi in –

  • संस्कृत (Sanskrit) – दुग्धिका (लघु), नागार्जुनी, विक्षीरिणी
  • हिन्दी (Hindi) – छोटी दुद्धी, छोटी दूधी, टुधिया घास, निगाचूनी, दूधी।
  • गुजराती (Gujarati) – नान्ही दुधेली
  • मराठी (Marathi) – लहान नायटी
  • बंगाली (Bangali) – केरई
  • तामिल (Tamil) – सित्रपलड़ी
  • तेलगु (Telugu) – पेडडवरि
  • फ़ारसी (Farsi) – शीरेगियाह, शीरक
  • अंग्रेजी (English) – Thyme leaved spurge (थाईम लीव्ड स्पर्ज)
  • लैटिन (Latin) – युफर्बिया थाइमिफोलिया (Euphorbia. Thymiflia Linn.)

छोटी दूधी का पौधा कैसा होता है ? :

  • छोटी दूधी का पौधा – छोटी दूधी बहुशाखा युक्त रोमश 5 से 10 इंच लम्बा, भूमि पर प्रसरणशील क्षुप होता है। यह क्षुप ऊपर की ओर प्रायः कम उठता है। क्षुप रक्ताभ या ताम्रवर्ण का होता है।
  • छोटी दूधी के पत्ते – इसके पत्र चने के पत्तों के समान किन्तु उनसे कुछ छोटे होते हैं। पत्र का पृष्ठ भाग हरा एवं ऊपरी भाग रक्तवर्ण होता है।
    इन पत्तियों के तोड़ने से दूध निकलता है। इसी कारण इसे दुग्धिका किंवा दूधी कहा जाता है। यद्यपि ऐसी बहुत सी वनौषधियां हैं, जिनके तोड़ने से दूध जैसा स्राव होता है किन्तु दुद्धी नाम इसी के लिये रूढ़ हो गया है।
  • छोटी दूधी के फूल – इस पर पुष्प एवं फल वर्षा ऋतु में आते हैं। ये पुष्प और फल बहुत बारीक, गोल, शाखाओं पर पत्रों के बीच में होते हैं। फलों से जो बीज निकलते हैं, वे सिकुड़े हुये से नुकीले तथा चतुष्कोण होते हैं।

छोटी दूधी का रासायनिक विश्लेषण : Thyme Leaved Spurge (Choti Dudhi) Chemical Constituents

छोटी दूधी में एक हरितवर्ण सुगन्धित तैल होता है, जिसमें ‘साइमोल, कार्वाक्रोल, लाइमोनिन तथा सैलिसिलिक अम्ल होते हैं काण्ड एवं पत्र में ग्लाइकोसाइड़ होता है।

छोटी दूधी के पौधे का उपयोगी भाग : Beneficial Part of Choti Dudhi plant in Hindi

पंचांग

सेवन की मात्रा :

  • कल्क – 10 से 20 ग्राम,
  • स्वरस – 10 से 20 मि.लि.
  • चूर्ण – 2 ग्राम,
  • क्वाथ – 25 से 30 मि.लि.

छोटी दूधी के औषधीय गुण : Choti Dudhi ke Gun in Hindi

  • रस – कटु, तिक्त, मधुर
  • गुण – लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण
  • वीर्य – उष्ण
  • विपाक – कटु
  • दोषकर्म – कफवातशामक
  • छोटी दूधी अनुलोमन, कृमिघ्न, रक्तशोधक, कफनि:सारक, श्वासहर (इससे श्वास प्रणालिकाओं का संकोच दूर होकर उनका विष्फार होता है), मूत्रल, वृष्य, अश्मरी (पथरी) नाशन, आर्तवजनन, कुष्ठघ्न, विषघ्न आदि।
  • यूनानी मतानुसार छोटी दूधी दूसरे दर्जे में उष्ण और रूक्ष मतान्तर से दूसरे दर्जे में शीत और रूक्ष है।
  • यह आंत्र पर संग्राही कर्म करती है। अतएव इसे जल में पीस-छानकर अतिसार प्रवाहिका में देते हैं।
  • शुक्रमेह, योनि से नाना प्रकार के स्राव, शुक्रतारल्य और शीघ्रपतन आदि में इसका चूर्ण दिया जाता है।
  • इससे चांदी और बंग की बनायी हुयी भस्म सुजाक, शुक्रमेह एवं शुक्रतारल्य (वीर्य का पतलापन) आदि रोगों में उपयोग में लायी जाती है।
  • जीर्ण श्वास-कास में भी यह उपयोगी है।
  • डा. वामन गणेश देसाई के कथनानुसार यह सब प्रकार के श्वास रोग में हितकर है। हृदय, श्वासोच्छवास की क्रिया तथा ज्ञान तन्तुओं के केन्द्रों पर शामक प्रभाव कर यह दमा को कम करती है। किन्तु इसका अत्यन्त सावधानीपूर्वक व्यवहार करना चाहिये।

छोटी दूधी के फायदे और उपयोग : Benefits of Choti Dudhi in Hindi

प्रमेह में छोटी दूधी के प्रयोग से लाभ

(क) छोटी दूधी चूर्ण, कच्ची बबूल की फली का चूर्ण 100-100 ग्राम और पिसी हुई मिश्री 200 ग्राम मिलाकर रखलें। इसमें से 10- 10 ग्राम चूर्ण गाय के दूध के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के प्रमेहों में लाभ होता है।

(ख) छोटी दूधी पंचांग चूर्ण 100 ग्राम, गोखरू चूर्ण 50 ग्राम, सफेद जीरे का चूर्ण 50 ग्राम और पिसी हुयी मिश्री 200 ग्राम मिलाकर इसमें से 5-7 ग्राम चूर्ण दूध के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से प्रमेह विशेषत: शुक्रमेह में लाभ होता है।

(ग) छोटी दूधी, गुडमार, जामुन के फलों की गिरी और खुरासानी अजवायन बराबर मात्रा में लेकर इनका चूर्ण बनाकर उसमें छोटी दूधी का स्वरस मिलाकर घोटकर छोटे बेर जैसी गोलियां बनालें। प्रातः सायं जल से या निम्बपत्र स्वरस से एक एक गोली खिलाना मधुमेह में लाभदायक है। ये गोलियां कुमारी स्वरस से भी सेवन करायी जा सकती है।

खाँसी ठीक करे छोटी दूधी का प्रयोग

छोटी दूधी 50 ग्राम, कालीमिर्च 10 ग्राम, भुनी हुयी लोंग 10 और मुलेठी 25 ग्राम लेकर चूर्ण बनाकर 3-3 ‘ग्राम चूर्ण शहद या गरम जल से दिन में 3 से 4 बार सेवन करावें।

श्वास रोग में छोटी दूधी का उपयोग फायदेमंद

छोटी दूधी के ताजा पंचांग को लाकर उसका कल्क बनाकर दस ग्राम कल्क को थोड़े पानी में मिलाकर पीने से श्वास का वेग शान्त होता है। अथवा इसके स्वरस 10 मि.लि. में एक चम्मच शहद मिलाकर सेवन करना लाभदायक है।

अनुभव :-

(क) छोटी दूधी मुख्यतः कटु तिक्त तथा उष्णवीर्य है। उष्णवीर्य कफ और वात दोनों का शामक है। कटु और तिक्तरस कफ पर विशेष कार्यकर होते हैं। तीक्षण होने के कारण प्रथमत: यह छेदन कर्म के द्वारा संचित श्लेष्मा का निर्हरण करता है। तदन्तर उसके संचय को रोकता है। उष्णवीर्य से स्रोतोगत संकोच को दूर करता है। छोटी दूधी की संकोचहर (Ant-spasmodic) क्रिया प्रयोग द्वारा सिद्ध हुई है। यह इसका वातहर कार्य ही है। उष्ण वीर्य होने के कारण यह पित्त स्थान को भी प्रकृत स्थिति में लाने में सहायक होता है। यद्यपि कटु तिक्त तथा उष्ण वीर्य द्रव्य अनेक हैं. जिनमें सबकी क्रिया समान रूप से होना सम्भव नहीं है, अत: छोटी दूधी के प्राणवह स्रोतोगत दुष्टिहरण तथा श्वासशमन के विशिष्ट कर्म कर्तृत्व को प्रभाव भी कह सकते हैं। श्वासरोग के निवारण के लिये इसके स्वरस तथा टेबलेट का प्रयोग किया जा सकता है।
दुग्धिका (छोटी दूधी) के रस क्रिया विधि से निर्मित घनसत्व को 500 मि.ग्रा. के दो टेबलेट दिन में तीन बार दिये गये। यह प्रयोग एक सप्ताह तक चला। इससे औसत तीन दिनों में रोगी के श्वास कष्ट में शान्ति हुई और प्राणशक्ति में वृद्धि देखी गई किन्तु युसिनोफिल पर कोई विशेष प्रभाव नहीं देखा गया। –श्री गुरूप्रसाद शर्मा, श्री पियव्रत शर्मा (सचित्र आयुर्वेद)

(ख) दमा के लिये छोटी दूधी का अनुपान खीर है जिसमें किसी तरह की बाहरी मिठास नहीं मिलायी गयी हो। खीर जब पूरी तरह ठंडी हो जाये तब प्राय: तोला भर दुद्धी अच्छी तरह धो-पीसकर खीर में मिलाकर खानी चाहिये। हमारे दो-तीन मित्रों को इसके प्रयोग से लाभ हुआ। उन्होंने हमें यह भी बताया कि छोटी दूधी ने उन्हें केवल त्राण (बचाव) ही नहीं दिया है, कुछ अंश में रोग निवारण भी किया है। (एक तोला – 12 ग्राम)। –श्री राधावल्लभ चतुर्वेदी (आयुर्वेद विज्ञान)

(ग) छोटी दूधी श्वास रोग के आवेग-दौरे को समाप्त करने के लिये विशेष लाभप्रद एवं अनुभूत है। अनेक बार जब अति प्रसिद्ध औषधियां भी असफल हो जाती हैं, ऐसी निराशा जनक परिस्थितियों में भी यह बूटी साधारणतया अपना कार्य करती है। यही नहीं, इसके कुछ दिन के सेवन से दमा का दौरा हो ही नहीं पाता अथवा दीर्घकाल के बाद साधारण सा होता है।

सेवन विधि-

गरम किया हुआ दूध जब पूर्णरूप से शीतल हो जाय तब इसमें छोटी दूधी को भली भांति धोकर स्वच्छ कर 12 ग्राम को कूट पीसकर मिलावें और रोगी को खिला दें। दूध में किसी प्रकार का कोई मीठा नहीं मिलावें। इस प्रकार दिन में दो बार दें।
ताजा बूटी का रस निकाल एक छोटा चम्मच ले, इस प्रकार दिन में दो-तीन बार दें।

द्वितीय विधि – रविवार को प्रात: छोटी दूधी ला, उसमें से 6 ग्राम लें एवं सफेद जीरा 3 ग्राम लें। दोनों को सिल पर पीस पानी में घोल पिलावें।
पथ्य दही चिउड़ा लें। एक दिन छोड़कर मंगलवार को पूर्ववत् दवा सेवन करावें। पथ्य दही चिउड़ा इच्छानुसार लें।
तीसरी बार पुन: रविवार के पूर्ववत् दवा एवं पथ्य सेवन करावें। इस प्रकार तीन दिन सेवन से पुराने से पुराने दमा में लाभ होता है।

अपथ्य – मादक द्रव्य भांग, गांजा, तमाखू, चरस, शराव एवं अफीम आदि जीवन भर सेवन न करें। -वैद्य श्री मोहर सिंह आर्य (सुधानिधि)

वैद्यजी का यही अनुभव पूर्ण लेख ‘स्वास्थ्य’ के अंक में भी प्रकाशित हुआ है। वहां स्वास्थ्य’ के तत्कालीन प्रधान सम्पादक वैद्य श्री ब्रह्मानन्द त्रिपाठी ने टिप्पणी की है कि हमारे विचार से छोटी दूधी की चटनी को दूध में घोलकर पीने की अपेक्षा यदि घोटकर उसकी गोलियां बनाकर गोली के समान उन्हें दूध से निगल लें तो सुविधा रहेगी। जैसी भी रोगी को सुविधा हो उसी प्रकार लेवें।

बवासीर मिटाए छोटी दूधी का उपयोग

50 ग्राम ताजा छोटी दूधी और 25 ग्राम रसोंत को पानी के साथ पीसकर दो-दो ग्राम की गोलियाँ बनाकर दिन में तीन बार एक एक गोली सेवन करने से रक्तार्श में लाभ होता है। वातार्श में रसोंत के स्थान पर शुद्ध कुचला लेकर एक-एक ग्राम की गोलियां बनाकर दिन में तीन बार दूध से सेवन करावें।

पीलिया में फायदेमंद छोटी दूधी का औषधीय गुण

गाय का दूध 250 मि.लि. लेकर उसे गरम कर ठण्डा कर लें। इसमें 12 ग्राम छोटी दूधी का कल्क मिलाकर प्रात: काल पिलावें। इस प्रकार तीन दिन पीने से पाण्डु कामला के रोगीको लाभ मिलता है।

छोटी दूधी सेवन से बढ़ती है शारीरिक ताकत

छोटी दूधी के स्वरस या कल्क को दूध के साथ सेवन करने से शरीर को पोषण प्राप्त होता है। श्री जगदीश चन्द्र असावा लिखते हैं कि-‘अनुभव के आधार पर यह देखा गया है कि दुग्धिका का धातु पोषक प्रभाव होता है। क्षीणकाय रोगियों में इसके प्रयोग से बलवृद्धि तथा भार में वृद्धि होती है।

हृदय विकार में फायदेमंद छोटी दूधी

ताजी छोटी दूधी 12 ग्राम लेकर कल्क बनाकर उसे दूध में औटाकर मिश्री मिलाकर सेवन करने से धड़कन की अधिकता तथा हृदय के दाह में कमी होती है। इसमें इलायची, वंश लोचन, गिलोय सत्व 500-500 मि.ग्रा. मिलाकर देने से अधिक लाभ होता है।

कुत्ते के काटने पर छोटी दूधी के इस्तेमाल से फायदा

छोटी दूधी का पंचांग 20 ग्राम, काली मिर्च 6 नग को पानी के साथ घोटकर पिलाने से विष का प्रभाव कम होता है। दंश स्थान पर इसका लेप भी करें।

श्री भागीरथ जी स्वामी के अनुसार 20 ग्राम छोटी दूधी के कल्क में 20 ग्राम शहद मिलाकर सेवन कराने से श्वानदंश में लाभ होता है। यह प्रयोग 2-3 दिन करना चाहिये।
सहायक औषधि के रूप में इसे सेवन कराया जा सकता है।

मुंह में छाले मिटाती है छोटी दूधी

छोटी दूधी के बराबर कत्था लेकर पीसकर इस कल्क में गुलाबजल मिलाकर पिलाने से मुखपाक (मुंह में छाले) में लाभ होता है।

कण्डू (खुजली) में लाभकारी है छोटी दूधी का प्रयोग

छोटी दूधी के कल्क 20 ग्राम में शतधौत घृत 10 ग्राम मिलाकर लेप करने से कण्डू दूर होती है।

दाद में छोटी दूधी से फायदा

छोटी दूधी के पंचांग से आधी मात्रा में गन्धक लेकर दोनों को पीसकर मिट्टी के तैल में मिलाकर दाद पर लगावें। इस पर इसका दूध भी लगाया जा सकता है।

बुखार (ज्वर) में छोटी दूधी का उपयोग लाभदायक

छोटी दूधी ताजी 30 ग्राम, कालीमिर्च और छोटी पीपल 10-10 ग्राम लेकर तीनों को महीन पीसकर दुद्धी के स्वरस में घोटकर काली मिर्च के जैसी गोलियां बनालें। एक-एक गोली प्रात: सायं शहद से सेवन करावें। इससे सर्वज्वरों का नाश होता है।

विषमज्वर ठीक करे छोटी दूधी का प्रयोग

छोटी दूधी 50 ग्राम, कालीमिर्च, करंज गिरी, तुलसी पत्र व कुटकी 20-20 ग्राम सबको छोटी दूधी के – स्वरस में महीन पीसकर कालीमिर्च के समान गोलियां बनाकर रख लें। इसमें एक गोली ज्वर आने से लगभग दो-घन्टे पूर्व शहद के साथ खिलावें फिर एक घन्टे के बाद एक गोली और खिलावें।

बालकों के सूखा रोग में छोटी दूधी के इस्तेमाल से लाभ

छोटी दूधी स्वरस 25 मि.लि., इलायची, जायफल, तालीसपत्र और बालछड़ (जटामांसी) 20-20 ग्राम इन्हें कूट पीसकर कल्क बनालें। गोदुग्ध और तिल तैल 500-500 मि.लि. सबको मिलाकर मंद आंच पर तैल सिद्ध कर लें। इस तेल की मालिश करने से बालकों के शोष (सूखा रोग) में लाभ मिलता है।

नाड़ी व्रण (नासूर) मिटाए छोटी दूधी का उपयोग

पं. श्री भागीरथ स्वामी – के अभिमतानुसार इसका पंचांग कल्क 25 ग्राम को दुगने घी में पकावें। इसे इतना पकावें कि यह पक भी जाय और जलने भी न पाये। टिकिया के लाल हो जाने पर उसे नीचे उतार कर खरल में पीस पुन: आग पर रख, उसमें मोम 6 ग्राम मिलाकर रख लें। इसकी बत्तियां बनाकर एक-एक बत्ती रोजाना सात दिनों तक रखने से लाभ होता है।

( और पढ़े – पुराने घाव ठीक करने उपाय )

पसली के दर्द में आराम दिलाए छोटी दूधी का लेप

छोटी दूधी के महीन चूर्ण को जैतून के तैल में या नारायण तैल में मिलाकर लेप करने से पार्श्व पीड़ा (पसली का दर्द), कमर का दर्द, सिर का दर्द आदि का शमन होता है।

( और पढ़े – पसली में दर्द का देशी इलाज )

तुतलाना या हकलाना दूर करने में छोटी दूधी के सेवन से लाभ

छोटी दूधी की जड़ 2 ग्राम को पान (ताम्बूल) में रखकर धीरे-धीरे चबाकर खा जावें। इस प्रकार कुछ दिन सेवन करने से हकलाहट में लाभ होता है।

जलोदर मिटाए छोटी दूधी का उपयोग

छोटी दूधी के शुष्क पंचांग के जौकुट चूर्ण एक भाग में आठ भाग पानी मिलाकर बारह घन्टों के बाद भवके से अर्क खींच लें। यह अर्क जलोदर के रोगी को पानी के स्थान पर पिलावें। इससे यकृत् शोथ (लिवर की सूजन) में भी लाभ होता है।

छोटी दूधी के इस्तेमाल से उपदंश में लाभ

छोटी दूधी शुष्क 20 ग्राम, कत्था और मस्तंगी 10-10 ग्राम, गेरू 5 ग्राम, कपूर देशी 3 ग्राम सबको महीन पीसकर गाय के घी में मिलाकर मरहम बना लें। इसे लगाने से व्रण का रोपण होता है।

( और पढ़े – उपदंश रोग का आयुर्वेदिक इलाज )

गर्भधारण करने में मदद करता है छोटी दूधी का सेवन

ताजी छोटी दूधी का पंचांग, श्वेत कटेरी की जड़ और शिवलिंगी के बीज तीनों को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनालें। ऋतु स्थान के बाद तीन दिनों तक नित्य प्रातः सूर्योदय के समय 3-3 ग्राम चूर्ण गाय के ताजे दूध के साथ सेवन करावें। किसी कारण गर्भ न ठहरे तो तीसरे माह पुनः इसी प्रकार तीन दिन सेवन करावें। यह वैद्यराज पं. श्री शालिग्राम जी का अनुभूत योग है।

सर्पदंश में लाभकारी है छोटी दूधी का सेवन

सर्प के काटने पर छोटी दूधी कल्क 10 ग्राम में 3-4 कालीमिर्च मिलाकर खिलाना चाहिये तथा इस कल्क का लेप भी करना चाहिये।

पलित (बाल सफेद होना) रोग में छोटी दूधी से फायदा

छोटी दूधी और कनेर दोनों का रस मिलाकर बालों में लगाना अथवा इन रसों से सिद्ध तैल को लगाना आचार्य चरक ने पलित में उपयोगी कहा है (चरक. चि. 26-266)। साथ में इसका स्वरस या चूर्ण सेवन भी करना चाहिए।

दंतकृमि मिटाती है छोटी दूधी

इसकी जड़ को चबाकर रस को कुछ देर तक मुख में रखने से कृमि नष्ट होते हैं ( शोढल)। इसमें छोटी दूधी की अपेक्षा बड़ी दूधी अधिक उपयोगी है।

( और पढ़े – दाँतों का दर्द दूर करने के देशी नुस्खें )

विबन्ध में फायदेमंद छोटी दूधी

इसके पंचांग का क्वाथ बनाकर सेवन करने से विबन्ध (खाए हुए पदार्थ का बिना पचा रस मल रूप में पेट में रुका रहता है) दूर होता है।

अतिसार (दस्त) में लाभकारी है छोटी दूधी का सेवन

इसके स्वरस में अमरबेल का स्वरस मिलाकर 10-10 मि.लि. सेवन करने से अतिसार प्रवाहिका में लाभ होता है।

एक अनुभव :-

मैं उन दिनों झालावाड़ (राज.) में रहता था। तब मेरे पुत्र को जो उस समय तीन वर्ष का था भयंकर अतिसार हो गया। योग्य डाक्टर तथा वैद्यों को बुलाया गया लेकिन बच्चे के दस्त कम होने की जगह बढ़ते ही गये। हम बिलकुल निराश हो गये और ईश्वर से बच्चे के जीवन की दुआ मांगने लगे। और ईश्वर ने हमारी दुआ सुनली। एक चमत्कार हुआ और बच्चा बच गया। यह बच्चा आजकल राजस्थान में उच्च अधिकारी है। तो क्या चमत्कार हुआ यह सुनिये। यह चमत्कार किया छोटी दूधी नामक वनौषधि ने।

हुआ यह कि हमारे यहां जो दूध बेचने वाली आती थी, वह दूध देने आयी। मातम भरा घर देखकर उसने बजह पूछी। हमने जब बच्चे की बीमारी के बारे में बताया तो बोली कि मैं बच्चे के दस्तों को चुटकी में ठीक कर सकती हूँ। हम हैरान रह गये। वह बाहर गयी और थोड़ी देर बाद छोटी दूधी काफी मात्रा में लेकर आयी। इसे पीसकर उसने रस निकाल लिया और एक चम्मच रस बच्चे को तुरन्त पिला दिया। फिर कहा कि इसी प्रकार एक एक घन्टे पर यह रस निकालकर देते रहना। हमने ऐसा ही किया, शाम तक दस्तों की संख्या आधी रह गयी। दूसरे दिन दस्त और कम हो गये, तीसरे दिन बच्चा बिलकुल स्वस्थ हो गया। इस
छोटी दूधी तथा उस दूधी बताने वाली दूध वाली को हम कभी नहीं भूलते। उसका अहसान हम सदैव स्मरण करते रहते हैं। – श्री हरिहर राम गौड (सुधानिधि)

वनौषधि चन्द्रोदय के लखेक श्री चन्द्रराज जी भंडारी ने लिखा है कि “मुण्डा जाति के लोग इसे प्रवाहिका-अतिसार को रोकने के लिये काम में लेते हैं।

लारियूनियन में प्रवाहिका और अतिसार को रोकने के लिये इस वनौषधि को एक संकोचक वस्तु की तरह काम में लेते हैं।

इसके अतिरिक्त छोटी दूधी के योग से रजत भस्म, ताम्रभस्म, बंग भस्म, नाग भस्म, अभ्रक भस्म, लौह भस्म, हरताल भस्म आदि उत्तम भस्में निर्माण की जाती हैं जो बहुत से रोगों में हितकारी हैं।
इनकी विधियां रस शास्त्र के ग्रन्थों में जिज्ञासुओं को देखनी चाहिए।

छोटी दूधी के दुष्प्रभाव : Choti Dudhi ke Nuksan in Hindi

  1. छोटी दूधी लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  2. छोटी दूधी की अधिक मात्रा फेफड़ें के लिये हानिकारक है।
  3. छोटी दूधी की अधिक मात्रा से पेट मे मरोड आना , वमन आदि लक्षण प्रगट हो सकते है।

दोषों को दूर करने के लिए : मधु को उपयोग में लाना चाहिए।

दूधी के प्रकार :

आकृति भेद से दूधी लघु दुग्धिका (छोटी दूधी) और वृहत् दुग्धिका (बूड़ी दूधी) दो प्रकार की होती है।

छोटी दूधी –

लघु दूधी भी वर्ण भेद से दो प्रकार की है – रक्त और श्वेत

रक्त लघु दुग्धिका के भी फलों के अनुसार दो भेद हैं जिनके लैटिन नाम हैं – युफर्बिया थाइमिफोलिया और युफर्बिया प्रोष्ट्रेटा (E. Prostrata W. Ait) ।

इन दोनों की आकृति में कोई भेद नहीं है। इनके फलों में जो सामान्य भेद है वह सूक्ष्मदर्शक यन्त्र से देखने पर ही ज्ञात होता है।
थाइमिफोलिया प्रजाति में पूरा फल रोमश होते हैं। इनके गुणधर्म में कोई अन्तर नहीं है। श्वेत लघु दुग्धिका (युफर्बिया मीक्रोफिल्ला – E. Microphylla Heyne) इसकी शाखायें श्वेताभ हरित होती हैं। इसके पत्र, रक्त दुग्धिका की अपेक्षा कुछ छोटे होते हैं ‘ दोनों का प्रयोग छोटी दुद्धि के नाम से होता है। ये दोनों दुद्धी खुर्द’ कहलाती हैं। दोनों के गुण धर्म समान हैं।

बड़ी दूधी (वृहद् दुग्धिका) –

यह दुग्धिका या दूधी का बड़ा भेद है जिसे दूधी कलां भी कहते हैं। इसका वानस्पतिक (लैटिन) नाम युफर्बिया हिर्टा (E. Hirta Linn) है। इसका क्षुप एक-दो फुट ऊँचा होता है। इसकी शाखायें प्रायः चतुष्कोणी, रक्ताभ, रोमश होती हैं। इसके ये क्षुप बारहों मास आर्द्रभूमि पर पाये जाते हैं। इस पर फूल-फल शीतकाल में लगते हैं।

badi dudhi ke fayde

  • बड़ी दूधी के पत्ते – पत्र काण्ड या शाखा के दोनों ओर अभिमुख, युग्मभाव से, तीक्षण दन्तुर किनारे वाले (निम्बपत्र के समान) होते हैं।
  • बड़ी दूधी के फूल – पुष्प प्रायः गुलाबी रंग के, आधा इंच के, कोमल रोमयुक्त, गुच्छों में होते हैं।
  • बड़ी दूधी के फल – फल या बीजकोष बाजरे के दानों जैसे गोल होते हैं।
  • बड़ी दूधी के बीज – बीज फीके, धूसर, सूक्ष्म कोणी, गोल होते हैं।
  • बड़ी दूधी के गुण – इसके गुण-धर्म भी प्राय: छोटी दुद्धी के समान ही हैं। इसमें गैलिक एसिड, क्वर्सेटिन तथा कुछ उत्पत् तैल एवं क्षारोद आदि पाये जाते हैं।
  • सेवन की मात्रा – इसकी मात्रा छोटी दूधी से कम देनी चाहिए। इसका स्वरस 10 से 20 बूदों से तथा चूर्ण 500 मि.ग्राम से अधिक नहीं देना चाहिये।

बड़ी दूधी के फायदे और उपयोग –

  1. जीर्ण कफ विकारों तथा तमक श्वास में इसका क्वाथ बनाकर पिलाना चाहिये।
  2. क्वाथ के लिये ताजा बड़ी दूधी 20 ग्राम या सूखी 10 ग्राम लेकर यथाविधि क्वाथ तैयार कर पिलाना चाहिये।
  3. पंडित श्री ठाकुरदत्त जी शर्मा के अनुसार ताजा यह दूधी लाकर इसे पानी के साथ पीसकर रस निचोड़ लें और एक चाय के चम्मच जितना रस लेकर उसमें उतना ही शहद मिलाकर पिलावें। दिन में दो तीन बार इस प्रकार सेवन कराने से श्वास की सब दशाओं में लाभ होता है।
  4. इसके पत्रस्वरस में मक्खन मिश्री मिलाकर नित्य प्रात: सेवन कराने से रक्तार्श में विशेष लाभ होता है।
  5. रक्त प्रवाहिका एवं उदरशूल में इसका रस दिया जाता है।
  6. बच्चों के कृमि विकार, उदर विकार तथा कफ विकारों में इसे देते हैं।
  7. दाद पर इसके रस का लेप किया जाता है और कांटा चुभने पर इसे पीसकर लेप करने से कांटा सरलता से निकल जाता है।
  8. युफर्बिया पिलुलिफेरा (E. Pilulifera Auct. Non Linn) भी उक्त बड़ी दुद्धी का पर्याय है। इसका एक दूसरा भेद भी होता है, जिसमें पत्र तट सरल तथा क्षुप रोमरहित और हरा होता है। इसको युफर्बिया (E. Hypericifolia Linn.) कहते हैं।
  9. इन दूधियों के गुणों में प्रायः समानता होने से छोटी दूधी के अभाव में बड़ी दूधी और बड़ी दूधी के अभाव में छोटी दूधी ली जा सकती है। ये दोनों परस्पर प्रतिनिधि हैं, किन्तु छोटी दूधी गुण-धर्म की दृष्टि से विशेष प्रशस्त कही गयी है।

बड़ी दूधी के नुकसान –

  • बड़ी दूधी लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें
  • इसका रस यदि अधिक मात्रा में लिया जाता है तो पेट में जलन हो सकती है अत: यह उपयुक्त है कि इसका प्रयोग भोजन करने के पश्चात् ही किया जावे और पर्याप्त जल के साथ ही किया जावे।
  • अधिक मात्रा से उत्क्लेश, वमन आदि होकर घातक स्थिति बन सकती है।

छोटी दूधी के समान ही इसके अतियोग से हानि के निवारणार्थ शहद को उपयोग में लाना चाहिये।

(उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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