Last Updated on January 10, 2020 by admin
धमनी काठिन्य रोग क्या है ? (what is Arteriosclerosis Disease in Hindi)
धमनी काठिन्य इस रोग को हार्दिकी धमनी या धमनी काठिन्य अथवा धमनी जठरता के नामों से भी जाना जाता है । हृदय के कई रोग …अपतर्पण (कार्य) से होते हैं जबकि, दूसरे इससे विपरीत संतर्पण (आत्यधिक तृप्ति) से होते हैं । यह Arterio Sclerosis सन्तर्पण मेदोन्तर्गत रोग है जिसे Athero Sclerosis नाम से भी जाना जाता है।
आयुर्वेद मतानुसार –
धमनी काठिन्य का रोग संतपर्णजन्य कफज हृदय है । आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार कफज हृद्रोग के ये लक्षण होते हैं –
गौरवं कफसंस्स्रावोऽरुचिः स्तम्भोऽग्निमार्दवम् ।
माधुग्रमपिचास्यस्य वलासवव्रते हृदि ॥ (सु. उ.)
अर्थात्-
कफज हृदय रोग में शरीर व हृदय में भारीपन का अनुभव, मुख से बार-बार थूकना (कफस्राव), अरुचि, दिल में बेचैनी, अंगों व हृदय की जकड़ाहट, अग्निमांद्य और मुख से मधुरता व चिकनाहट बने रहना-ये लक्षण इस रोग में भी लक्षित होते हैं तथा तन्द्रा, निद्रा की अधिकता या आलस्य के लक्षण भी मिलते हैं ।
इस रोग में हृदय रोगों के साधारण लक्षण भी मिलते हैं जैसे-
बिना श्रम थकावट, अवसाद (दिल बैठना), भ्रम, कृशता, श्वास लेने में कष्ट हृदय की गति तीन या अनियमित और छाती में बार-बार पीड़ा का अनुभव, कब्ज, अजीर्ण और रक्त वाहिनियों का टेढ़ा-मेढ़ा हो जाना आदि । कभी-कभी कास व हिक्का के तथा शोथ व विवर्णता के लक्षण भी मिलते हैं।
एलोपैथिक मतानुसार –
रक्त वाहिनी नलिका भीतर की चिकनी बीच की इलास्टिक और बाहर की रक्षात्मक (Protective) होती है । रक्त वाहिनी के भीतर के और बीच के मध्य लेयर अपना पोषण अपने अन्दर बहते हुए रक्त से ही पाती है।
जब कोई व्यक्ति वसा-मेदमय पदार्थों का आहार में अधिक प्रयोग करने का अभ्यस्त होता है तब उसके रक्त में वसामय स्निग्ध द्रव्यांश अधिक बहता है । वसामय तत्वों युक्त रक्त जब रक्त वाहिनी से निरन्तर गुजरता रहता है तब वसा के कई अंश भीतर के पटल पर एकत्रित होते रहते हैं । दीर्घकाल तक उसी प्रक्रिया से भीतरी परत व मध्य पटल के बीच चर्बी (फेट) की घनी परत बन जाती है । इससे रक्त वाहिनी नली की चौड़ाई का जो प्राकृतिक नाप होता है, वह कद में बढ़ जाता है और भीतर का वहन मार्ग सिकुड़कर छोटा हो जाता है । कई बार लम्बी रुग्ण अवस्था से रक्त वाहिनियाँ वसा से बिल्कुल बन्द हो जाती है। जिससे रक्त वहन में अवरोध उत्पन्न होकर भीतरी व मध्य परतों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता । जब धमनी संकीर्ण हो जाती है तब रक्त के यथेष्ट परिभ्रमणार्थ हृदय को अधिक ताकत लगानी पड़ती है। उसी से रक्तदाब या ब्लड- प्रैशर उत्पन्न होता है। रक्त वाहिनी जितनी संकीर्ण होती है, उसमें रक्त जम जाने की सम्भावना अधिक होती है।
☛ इस प्रकार रक्तवाहिनी में जब इस प्रकार विकृति उत्पन्न होती है तब उसे ‘धमनी काठिन्य’ कहते हैं जिससे रोगी हृदय सूल का अनुभव करता है।
☛ जब वसाकृत अवरोध विकृति पैरों की रक्त वाहिनियों में स्थान बनाती है, तब रोगी सहज भाव से चल नहीं पाता ।
☛ जब विकृति नेत्रों में स्थान बनाती है, तब अन्धापन आता है ।
☛ जब विकृति मस्तिष्क में स्थानापन्न होती है तब ऐसा व्यक्ति पक्षाघात या मृत्यु का शिकार होता है ।
आर्टियो स्क्लेरोसिस और एथेरो स्क्लेरोसिस में अंतर (Difference Between Arteriosclerosis & Atherosclerosis in Hindi)
एथेरो स्क्लेरोसिस – जब ‘धमनी काठिन्य’ रोग हृदय के अतिरिक्त किसी अन्य अंग में स्थान बनाता है तब उसे एथेरो स्क्लेरोसिस (Atherosclersis) अर्थात् अवरोधजन्य रोग कहते हैं ।
आर्टियो स्क्लेरोसिस – जब आर्टियो स्क्लेरोसिस शब्द का प्रयोग किया गया हो, तब हृदय, महाधमनी और महाधमनी की मुख्य शाखाओं में वसामय अवरोध का अर्थ अभिप्रेत होता है।
किस आयु में होता है धमनी काठिन्य रोग :
इस रोग में प्रायः 40 वर्ष से ऊपर की आयु के लोग अधिक ग्रसित होते हैं । मुख्यतः 30 से 60 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों में यह रोग अधिक पाया जाता है । स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में यह रोग अधिक पाया जाता है । इस रोग की अधिकता, तीव्रता और शीघ्र प्रसार का आधार व्यक्ति की जाति (स्त्री या पुरुष), खुराक, धन्धा, शारीरिक कारणों, रक्त का संगठन, कौटुम्बिक, वंश परम्परा प्रभाव इत्यादि पर निर्भर होता है।
धमनी काठिन्य रोग के कारण : Arteriosclerosis Causes in hindi
‘कोलेस्ट्रोल’ एक चर्बी (वसामय) पदार्थ है, जो रक्त में पाया जाता है। यह तत्त्व प्रत्येक प्रकार की प्राणिज, चर्बी, अण्डे की जर्दी और अपने शरीर के कई हिस्सों में पाया जाता है । जब खाई हुई खुराक पूर्णरूपेण पच नहीं पाती, तब उसमें से वसामय (कफज) चिकना अंश ‘कोलेस्ट्रोल’ रक्त में मिलकर तैरता रहता है । स्वस्थ मानव रक्त में 100 सी. सी. मानव रक्त में इसका प्राकृतिक मान 140 से 200 मि.ग्रा. तक होता है । इससे अधिक कोलेस्ट्रोल वाले व्यक्ति शरीर से मोटे, पुष्ट ही हों, ऐसा आवश्यक नहीं है । जो लोग चर्बीली खुराक कम खाते हैं, उनके शरीर में कोलेस्ट्रोल का अंशमान कम रहता है । वनस्पति तेल, मक्खन, मलाई,घी, माँस, चर्बी, भैंस का दूध, वनस्पति (वेजीटेबिल) जमाये हुए तेल (घी) आदि में यह तत्त्व सर्वाधिक है। इनके प्रयोग से ही यह रोग पैदा होता है और बढ़ता है ।
कोलेस्ट्रोल की वृद्धि से ही शरीर की रक्त वाहिनियाँ कड़ी होकर अवरुद्ध हो जाती है। रक्त परिभ्रमण व्यवस्था अपूर्ण होती है। अत: आर्टरियो स्केलेरोसिस, कोरोनरी थ्राम्बोसिस तथा हार्टफेल्योर इत्यादि रोग होते हैं।
धमनी काठिन्य रोग के लक्षण : Arteriosclerosis Symptoms in Hindi
- धमनी काठिन्य के रोग में-रक्तवाहिनियाँ (धमनियाँ) मोटी व छोटी रस्सी जैसी कड़ी होकर रोगी के हस्त और कपोल पर उभरी हुई दिखती हैं ।
- हृदय और वृक्क रोगों के साथ हाई ब्लडप्रैशर रहता है।
- पैरों की पिण्डलियों, उरु (जंघा) व नितम्ब की माँसल पेशियों में कैल्सीफिकेशन होने से रोगी चलने में दर्द अनुभव करता है और किसी आधार को चाहता है ।
- पुरुष में लिंगोत्थान और उत्थान को अधिक समय तक टिका रखने की तकलीफ, इस दर्द से प्रायः होती है ।
- इसके अतिरिक्त दोनों पैरों के पंजे शीतल मालूम होते हैं ।
- जंघा की नाड़ियों का स्पन्दन या तो बहुत ही मंद और दुर्बल होता है अथवा फिर मालूम ही नहीं होता ।
- उरु (फीमोरल) तथा पाद की नाड़ियों में स्पन्दन नहीं होता ।
- उदरस्थ महाधमनी का स्पन्दन स्पर्श से मालूम हो सकता है ।
- रोग बढ़ने से रोगी शारीरिक व मानसिक शक्ति में ह्रास का अनुभव करता है तथा वह असमय में वृद्ध-सा हो जाता है।
धमनी काठिन्य रोग का आयुर्वेदिक इलाज : arteriosclerosis ka ilaj in hindi
धमनी काठिन्य रोग में यदि कफ-वात दोषनाशक चिकित्सा की जाए तो सफलता मिलती है।
(माप :- 1 रत्ती = 0.1215 ग्राम )
धमनी काठिन्य रोग में पिप्पली के प्रयोग से लाभ(Pippali : Home Remedies for Arteriosclerosis in Hindi)
इस रोग में वर्द्धमान पिप्पली का प्रयोग परम लाभप्रद है। एक-एक रत्ती पिप्पली चूर्ण गोदुग्ध के साथ आरम्भ करके क्रमश: से 22 रत्ती तक बढ़ाएँ तदुपरान्त उसी क्रमानुसार घटाएँ । यदि रोगी को दूध अनुकूल न हो तो यह प्रयोग शहद के साथ किया जाता है । इस प्रयोग के समय आहार में दोपहर के समय सिर्फ भुना हुआ दलिया और रात्रि में मैंथी के शाक की सब्जी के साथ बाजरे या जौ की रोटी अथवा मूंग का प्रयोग कराना हितकारी है।
नीम के प्रयोग से धमनी काठिन्य रोग का उपचार(Neem: Home Remedies to Cure Arteriosclerosis in Hindi)
बच, नीम की छाल व पिप्पली का काढ़ा बनाकर शहद के अनुपान से दिन में 2 या 3 बार सेवन कराएँ।
हरड़ के उपयोग कर धमनी काठिन्य रोग का इलाज (Harad : Home Remedies for Arteriosclerosis Treatment in Hindi)
मदनफल (मैनफल), छोटी पीपल, हरड़, कायफल व सौंठ का क्वाथ बनाकर दिन में 2 बार रोगी को सेवन कराना लाभकारी है।
धमनी काठिन्य रोग में चिन्तामणि रस का इस्तेमाल फायदेमंद
चिन्तामणि रस 1 रत्ती, पीपल चूर्ण 3 रत्ती मिलाकर सुबह-शाम दिन में 2 बार चटाना लाभप्रद है।
सिद्ध हरड़ चूर्ण के इस्तेमाल से होता है धमनी काठिन्य रोग ठीक
गोमूत्र सिद्ध हरड़ चूर्ण मलावरोध में सेवन कराएँ । इसके प्रयोग से रक्त वाहिनियाँ भी खुल जाती हैं । रोग से मुक्ति हेतु गोमूत्र सिद्ध हरड़ चूर्ण 2 ग्राम और हल्दी 1 ग्राम मिलाकर शहद के साथ सेवन कराएँ।
चन्द्रोदय रस से धमनी काठिन्य रोग का इलाज
चूर्ण चन्द्रोदय रस चौथाई रत्ती से तिहाई रत्ती तक पिप्पली चूर्ण 2 रत्ती के साथ सुबह-शाम दें । हत्शूल पर रबड़ की थैली में गरम पानी भरकर सेंक करें।
धमनी काठिन्य रोग में वृहद कस्तूरी भैरव रस से लाभ
वृहद कस्तूरी भैरव रस 1 रत्ती शहद से सेवन करने के बाद में ऊपर से दशमूलारिष्ट सुबह व दोपहर दिन में 2 बार सेवन कराएँ।
धमनी काठिन्य रोग में हेम गर्भपोटली रस से फायदा
मकरध्वज या हेम गर्भपोटली रस पिप्पली, त्रिकटु चूर्ण या मधु के के साथ दें।
आर्टियो स्क्लेरोसिस में कुवेराक्ष वटी का उपयोग लाभदाय
अग्निमांद्य व कोष्ठ में वायु रुद्ध होने से हृत्पीड़ा होती हो तो कुवेराक्ष वटी का प्रयोग कराएँ । इस वटी को स्वयं बनाना चाहें तो विधि है-
लता करंज व कांकच बीज मज्जा (भृष्ट) 8 भाग, यवानी चूर्ण 2 भाग, मरिच चूर्ण 1 भाग, भृष्ठ हिंमू चूर्ण चौथाई भाग, सोवर्चल चूर्ण डेढ़ भाग लें । इन चूर्णों को एकत्र करके ग्वारपाठा (घृत कुमारी) के रस या शहद से गोलियाँ बनाकर-भोजन के पूर्व, मध्य तथा अन्त में 2-2 गोली ताजा पानी से सेवन कराएँ।
गुड़ाईक का प्रयोग रोग में लाभप्रद
कफ-पित्तात्मक प्रकृति के रोगी को गुड़ाईक का प्रयोग विशेष लाभप्रद है।
धमनी काठिन्य रोग की गुणकारी दवा रसोनकल्प
आमवातिक हृदय विकृति में रसोनकल्प का प्रयोग लाभप्रद रहता है।
धमनी काठिन्य का उपचार करने के लिए अन्य उपाय : Other Home Remedies for Arteriosclerosis
- धमनी काठिन्य रोग में लाभकारी द्रव्य हैं-
कर्पूर, कस्तूरी, अम्बर, लवंग, तेजपात, दालचीनी, तालीस पत्र, शुण्ठी, मेथिका, यमानी, कटुकी, निम्ब, शोभाञ्जन, वत्सनाभ, पाठा, गुग्गुल, तुलसी, पुनर्नवा, मरिच, वच, खजूर, या छुहारा, केशर, अजमोद, कुचला, रसौन, रोहित, कटफल, पुष्कर मूल, रसवंती, शिलाजीत आदि । योग्य वैद्य इन द्रव्यों का युक्तिपूर्वक प्रयोग कर रोगी को आरोग्य कर सकते हैं। - भीमसेनी कर्पूर, केसर व कस्तूरी का लवंग के साथ प्रयोग करने से अवरुद्ध हुई रक्त वाहिनियाँ खुल सकती हैं और रक्त परिभ्रमण पूरा हो सकता है । कफज रोगों में रुक्ष, उष्ण, लघु व तिक्त रस प्रधान द्रव्यों का प्रयोग उपादेय है।
- इस रोग में उचित व्यायाम तथा प्राणायाम भी लाभकारी सिद्ध होते हैं।
- संतर्पणात्मक रोग(Arteriosclerosis) में मिट्टी के तेल, रोशा तेल अथवा महाविष गर्भ तेल आदि का प्रयोग मालिश के रूप में कर सकते हैं । मालिश करने से हृत्प्रदेश में होने वाली वेदना अन्त होती है। रक्त परिभ्रमण पूर्णरूपेण होने में यह क्रिया सहायक सिद्ध होती है।
धमनी काठिन्य रोग में आपका खान-पान : Your Diet in Arteriosclerosis Disease
धमनी काठिन्य रोग में परहेज (Avoid These in Arteriosclerosis)
☛ कफजन्य होने से इस रोग में कफबर्द्धक आहार, अत्यधिक मात्रा में बार-बार भोजन करना, गुरु (दुष्पाच्य) तथा स्निग्ध पदार्थों का भोजन, चिन्ता करना, श्रम न करना, अत्यधिक शयन तथा लेटे रहना आदि ।
☛ भैंस का दूध, मलाई, दही व घी, मछली, मेढ़े का माँस, सुअर का माँस, अण्डे, वेजीटेवल घी, चीनी, चर्बी या चर्बीले समस्त पदार्थ, मक्खन, मैदे की बनी दूध द्वारा निर्मित सभी मिठाइयाँ, उड़द, नये गेहूँ, भिण्डी, आलू जैसे कन्द हानिकारक पदार्थ हैं।
धमनी काठिन्य रोग में क्या खाना चाहिए ?
- पुराने साठी चावल, जौ, सूरन, मैथी, चौलाई, मौंठ, कुल्थी, सहिजना, बैगन, लहसुन, पोदीना, अदरक, मिर्च, नमक, हिंगु, राई लवंग, केसर, सौंठ, (नागर) इत्यादि का प्रयोग अधिक करना चाहिए ।
- दूध यदि लेना ही हो तो बकरी अथवा गाय का दूध बगैर मलाई के सेवन करना चाहिए ।
- भोजन के पूर्व अदरक पर नमक लगाकर सेवन करना चाहिए ।
- मीठा खाने की इच्छा हो तो शहद का सेवन करें।
- ठण्डा पानी पीना बन्द करके हमेशा उष्ण जल का ही सेवन करें ।
- यदि तासीर से रोगी के अनुकूल हो तो-हरिद्राखाण्ड से उबाला हुआ जल का प्रतिदिन सेवन कराएँ ।
- भोजन पूर्व जलपान कदापि न करें ।
- दो पेयपानादि आदि के बीच में कम से कम 4-5 घण्टे का अन्तर रखें ।
- रोगी कभी भी भरपेट भोजन न खाए, यदि हो सके तो सप्ताह में 2-4 बार दिन में मात्र 1 ही समय भोजन करे तथा 1 पक्ष में 1 उपवास करे ।
- हल्के द्रव्यों का आहार लेना ही उपर्युक्त है।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)