Last Updated on February 17, 2020 by admin
हंसराज क्या है ? : What is Hansraj (Maiden Hair) in Hindi
हंसराज की सुन्दर तथा छोटी अपुष्प वनौषधि पहाड़ी जंगलों के छायादार स्थानों पर लगी रहती है। इसका काण्ड (तना) अन्तर्भूमिशायी होता है। पत्रदण्ड 4-6 इंच लम्बे चमकीले, कुछ लालिमा लिये काले रंग के होते हैं। इन पत्रदण्डों के दोनों ओर धीनये के पत्र जैसी छोटी-छोटी कटावदार पत्तियां लगी रहती हैं। पत्रक के अध:पृष्ठ के किनारे पर प्रजनन कोष्ण होते हैं। जिनसे अन्य क्षुप उत्पन्न होते हैं।
स्वयंजात इस वनौषधि का आचार्य चरक ने मधुरस्कन्ध एवं कण्ठत्र महाकषाय के अन्तर्गत उल्लेख किया है। आचार्य सुश्रुत ने इसे विदारिगन्धादिगण में वर्णित किया है।
हंसराज का पौधा कहाँ पाया जाता है ? :
उत्तर भारत में प्रायः सर्वत्र जलाशयों के पास एवं पार्वत्य स्थानों पर यह वनस्पति पाई जाती है ।
हंसराज का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Hansraj in Different Languages
Hansraj in –
- संस्कृत (Sanskrit) – हंसपादी, रक्तपदी
- हिन्दी (Hindi) – हंसराज, समल पत्ती
- गुजराती (Gujarati) –हंसराज
- बंगाली (Bangali) – कालीझोर गोयालियालता
- फ़ारसी (Farsi) – परसियावशाँ
- इंगलिश (English) – मेडन हेयर (Maiden Hair)
- लैटिन (Latin) – आडि आंटुम लूनाटुम (Adiantum lunatum Burm.)
हंसराज के औषधीय गुण : Hansraj ke Gun in Hindi
- कुल – हंसराज कुल (पोलिपोडिएसी)
- रस – मधुर, तिक्त कषाय
- गुण – गुरु, स्निग्ध
- वीर्य – शीत
- विपाक – मधुर
- दोषकर्म – कफपित्तशामक
हंसराज का उपयोगी भाग : Useful Parts of Hansraj in Hindi
हंसराज का पंचांग (जड़, छाल, पत्ती, फूल एवं फल) औषधि हेतु प्रयुक्त होता है।
सेवन की मात्रा :
स्वरस – 10 से 20 मिली
चूर्ण – 1से 3 ग्राम,
क्वाथ – 50 से 100 मिली।
हंसराज का उपयोग : Uses of Hansraj in Hindi
- यह कंठों के लिये हितकारी होने से स्वरभेद में, कफघ्न होने से प्रतिश्याय (सर्दी) कास (खाँसी)-श्वास में और मूत्रल होने से मूत्रकृच्छ में हितकारी है।
- मलस्तम्भन होने से अतिसार में तथा रक्तपित्तशामक होने से रक्तपित्त में भी प्रयुक्त होता है।
- यह बाह्यप्रयोग में दाहप्रशमन, विषन और व्रणरोपण होने से विसर्प, प्लेग, पैत्तिक शोथ, लूताविष एवं व्रण में लाभदायक है। इन रोगों में इसके पंचांग का लेप किया जाता है।
- डा. श्री कृष्णचन्द्र चुनेकर द्वारा संग्रहीत वानस्पतिक अनुसंधान दर्शिका में वर्णित है कि – रक्तगत शर्करा को कम करने वाली 56 वनौषधियों का अध्ययन खरगोशों पर किया गया। जिनमें इनके सम्पूर्ण सत्वों का मुख द्वारा उपयोग किया गया। इनमें से प्याज, हंसराज (Adiantum Capillus Veneris Linn) गूलरछाल, गुड़मार, करेला (कच्चेफल) केला (फूल) कुमुद (मूल), चीड़ (मूलत्वक) एवं जामुन (फल, बीज) में आशादायक परिणाम पाये गये।
हंसराज के प्रकार :
यूनानी वैद्यक में “परसिया वशां” के नाम से जो औषधि उपयोग में लायी जाती है वह फारस से हमारे यहां आती है यह आडिआंटुम वेनु स्टुम (Adiantum Venustum Don.) का पंचांग होता है। यह उपर्युक्त हसंराज की ही एक प्रजाति है। यह हिमालय प्रदेश में भी पायी जाती है। शिमला में यह खूब पायी जाती है। इसके पत्र 3-4 उपपत्र युक्त, झिल्लीदार, चिकने नीचे की ओर कुछ गोल, हरे, छोटे वृन्तयुक्त होते हैं। इसके गुण धर्म पूर्वोक्त हसंराज के समान ही है। हकीम लोग मुख्यतया कुत्ते के विषपर तथा ज्वर के पश्चात की दुर्बलता में इसे उपयोग में लाते हैं। इसमें बालों के गिरने की व्याधि को दूर करने की भी शक्ति
है।
उत्तरी भारत तथा दक्षिण में तमिलनाडु प्रान्त में पायी जाने वाली आडिआंटुम कापील्लुस वेनेरिस (Adiantum Capillus Veneris Linn.) Hifat gal भी प्रयोग हसंराज के नाम से होता है। इसका पौधा लगभग 4-5 इंच ऊंचा होता है। जिसका काण्ड(तना) श्याम आभा वाला होता है। इसके पत्ते हंस नामक जलचर के पाद तुल्य आकृति के होने से इसे भी हंसराज या हसंपदी कहते हैं। इसके पत्तो पर सूक्ष्म सिरायें होती हैं। ये पत्रकाण्ड के दोनों ओर होते हैं। पत्र का अग्रभाग मोटा होता है। बीज-पत्र के अन्त के भाग में लगते हैं।
अरबी में इसे शेरुलजिन और फरसी में सिरसिया पेशानी कहते हैं। वनौषधि चन्द्रोदय के लेखक इसके विषय में लिखते हैं कि – फ्रांस में इस वनौषधि से एक प्रकार का शर्बत बनाया जाता है जो खांसी, गले की खराबी और वायुनलियों की खराबी में दिया जाता है। मैक्सिको में इसके पौधे की चाय बनाकर उदरशूल में देते हैं। इस चाय के सेवन से स्त्रियों को होने वाली मासिक धर्म की रुकावट भी मिट जाती है। यह एक लुआबदार कफनि:सारक औषधि होने से छाती के रोगों में हितकर होती है।
यह ज्वर, जुकाम और खांसी में लाभदायक है। पंजाब में इसके पत्तों को कालीमिर्च के साथ ज्वर को दूर करने के लिये देते हैं। जुकाम में इसके पत्तों का रस शहद मिलाकर देने से लाभ होता है। शेष गुण धर्म पूर्वोक्त हसंराज की भांति ही है।
हंसराज के फायदे : Hansraj ke Fayde Hindi me
खाँसी ठीक करे हंसराज का प्रयोग (Hansraj Benefits in Cures Cough in Hindi)
हंसराज का क्वाथ बनाकर पिलाने से कफजन्य कास खाँसी) में लाभ होता है। हंसराज 20 ग्राम लेकर उसे एक लीटर पानी में पकावें। जब चतुर्थाश जल शेष रहे तब इसे छानकर उसमें 50 ग्राम शहद मिलाकर पिलाने से स्वरभेद, कास, श्वास,प्रतिश्याय (सर्दी) आदि में उत्तम लाभ मिलता है। गर्मियों के मौसम में शहद के स्थान पर मिश्री मिलाकर उपयोग में लाना चाहिये। बालकों में कफप्रकोप होने पर इसके पंचांग को पानी के साथ पीसकर छानकर उसे गरमकर उसमें गुड़ या शक्कर मिलाकर पिलाने से वमन होकर कफ निकल जाता है और खांसी आदि का प्रकोप कम हो जाता है।
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नाक से खून बहने में आराम दिलाए हंसराज का सेवन
हंसराज 10 ग्राम, मुलहठी 5 ग्राम, छोटी इलायची एक ग्राम, गिलोयसत्व एक ग्राम और मिश्री 10 ग्राम लेकर सब को पीसकर मक्खन में मिलाकर 7-8 दिन सेवन कराने से नकसीर बन्द होती है और नासिका से निकलने वाला बलगम भी मिट जाता है।
फोड़े-फुन्सी में हंसराज का उपयोग फायदेमंद
हंसराज और मेथी को जल में पीस गरम कर लेप करने से फोड़े-फुसी जल्दी पककर ठीक हो जाते हैं।
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बालों की समस्याओं में हंसराज के इस्तेमाल से लाभ
सिर के बाल झड़ने पर हंसराज के पत्तों को पीसकर (जल के साथ) लेप करना चाहिये। इसके स्वरस और कल्क (चटनी) के साथ तैल तैयार कर बालों में लगाने से बाल काले एवं लम्बे होते
हैं।
विसर्प रोग में हंसराज का उपयोग लाभदायक
हंसराज के पत्तों को पीसकर लेप करने से ज्वर, दाह युक्त विसर्प (एक चर्मरोग जिसमें त्वचा खूब लाल हो जाती है) में लाभ होता है। हंसराज के साथ स्वर्ण गैरिक को पानी में पीसकर लेप करने से अधिक लाभ होता है। इस रोग में हंसराज के स्वरस को कुछ गरम कर पिलाना भी हितकर कहा गया है।
सर्दी जुखाम में फायदेमंद हंसराज का औषधीय गुण
हसंराज (परसियावंशा) 20 ग्राम, खतमी के बीज 5 ग्राम, खुब्बाजी के बीज 5 ग्राम, अंजीर 10 ग्राम, इनका क्वाथ बनाकर सेवन करने से नजला मिट जाता है।
पीलिया ठीक करने में हंसराज फायदेमंद
हसंराज 30 ग्राम (जौकुट) को 200 मिली पानी में रात को भिगो दें सुबह मिश्री मिलाकर गरमी के मौसम में प्रयोग करने से गले की जलन और सूखी खांसी को दूर करता है।अधिक दिनों तक सेवन करने से कलेजे की गरमी और पीलिया को मिटाता है।
सीने के दर्द में हंसराज लाभकारी
हंसराज 60 ग्राम, मुलहठी 25 ग्राम, खतमी के बीज 12 ग्राम, खुब्बाजी के बीज 12 ग्राम, बेदाना 6 ग्राम, और बनसा के फूल 30 ग्राम, इन्हें रातभर पानी में भिगोकर 150 ग्राम मिश्री से विधिवत शरबत बनावें। इसे 15-15 मिली की मात्रा में सेवन करने से दमा और खांसी में उत्तम लाभ होता है। यह सीने के दर्द में लाभकारी है। गरम, खुश्क व मौसम गरमी के नजले तथा जुकाम के लिये यह विशेष लाभदायक है।
रक्तपित्त में हंसराज से फायदा
हंसराज 10 ग्राम ,मुलहठी 5 ग्राम ,इलायची 1 ग्राम, गिलोय सत्व 1 ग्राम, मिश्री 1 ग्राम, सबको मक्खन में मिलाकर 1 सप्ताह तक सुबह-शाम सेवन करने से नक्सीर एवं अन्य रक्तपित्त में लाभ होता है।
विसर्प में हंसराज का उपयोग लाभदायक
हंसराज के पत्तों को पीसकर लेप करने से विसर्प रोग (विसर्प में ज्वर के साथ-साथ सारे शरीर पर छोटी-छोटी फुंसियाँ निकल आती हैं) में विशेष लाभ होता है यह विसर्प जन्य दाह के लिये अति उत्तम योग है। इसमें थोड़ी मात्रा में गैरिक भी मिलाकर लगाने से विशेष लाभ होता है।
मूत्रावरोध मिटाए हंसराज का उपयोग
हंसराज के पंचांग को जल के साथ पीसकर ठण्डाई के समान पीने और वस्ति स्थान पर लेप करने से मूत्रावरोध में लाभ होता है।
हंसराज के दुष्प्रभाव : Hansraj ke Nuksan in Hindi
प्लीहा (तिल्ली /Spleen) के रोगियों को इसका सेवन नही करना चाहिये।
दोषों को दूर करने के लिए : इसके दोषों को दूर करने के लिए मस्तंगी और गुले बनफसा का उपयोग किया जाता है ।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)