Last Updated on February 26, 2024 by admin
पान क्या है ? : Betel Leaf in Hindi
ताम्बूल या नागरबेल का पान सारे भारतवर्ष में भोजन के पश्चात् खाने के काम में लिया जाता है । इसको सब कोई जानते हैं । इसलिये इसके विशेष वर्णन की आवश्यकता नहीं। इसकी खेती मद्रास, बङ्गाल, बनारस, महोबा, साँची, लङ्का और मालवा के रामपुरा, भानपुरा जिले में बहुत होती है। इन सब पानों में बनारस का पान सर्वोत्तम माना जाता है ।
पान का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Betel Leaf in Different Languages
Betel Leaf in –
- संस्कृत (Sanskrit) – नागवल्ली, नागिनी, नागवल्लिका, पर्णलता, तांबूली, तांबूलवल्ली, सप्तशिरा, मुखभूषण
- हिन्दी (Hindi) – नागरबेल का पान, ताम्बूल, बंगलापान
- मराठी (Marathi) – नागबेल
- गुजराती (Gujarati) – नागरबेल, पान
- कन्नड़ (Kannada) – नागरबल्लि, पर्ण
- तेलगु (Telugu) – तामलपाक्, नागबल्ली
- तामिल (Tamil) – बेटिली
- फ़ारसी (Farsi) – वर्ग तम्बोल
- अरबी (Arbi) – तम्बोल
- उर्दू (Urdu) – पान
- इंगलिश (English) – Betel leaf बेटल लीफ
- लैटिन (Latin) – Piper Betel पायपर बीटल।
पान के पत्ते के औषधीय गुण : Paan ke Aushadhi Gun in Hindi
श्लोक-ताम्बूलं कटु तिक्तमुष्णमधुरं क्षारं कषायान्वितं ।
वातघ्नं कृमिनाशनं कफह दुःखस्य विच्छेदनम् ।।
स्त्री-सम्भाषण-भूषणं धृतिकरं कामाग्निसन्दीपनम् ।
ताम्बूले निहितास्त्रयोदशगुणः स्वर्गऽपि ते दुर्लभाः ।।
अर्थात्-पान चरपरा, कड़वा, गरम, मधुर, क्षारगुण युक्त, कसैला तथा वात, कृमि, कफ और दुःख को हरने वाला है । स्त्री सम्भाषण के विषय में यह अलङ्कार के समान है तथा धारणा शक्ति और काम शक्ति को यह बढ़ाता है । पान में यह जो तेरह गुण विद्यमान हैं वह स्वर्ग में भी दुर्लभ हैं ।
- राजनिघण्टु के मतानुसार पान चरपरा, तीक्ष्ण, कड़वा और पीनस, वात, कफ तथा खाँसी में लाभदायक है।
- यह रुचिकारक, दाहजनक और अग्निदीपक है।
- भावप्रकाश के मतानुसार पान विषघ्न, रुचिकारी, तीक्ष्ण, गरम, कसैला, सारक, वशीकरण, चरपरा, रक्तपितकारक, हलका, बाजीकरण तथा कफ, मुँह की दुर्गन्ध, मल, व त और श्रम को दूर करता है।
- पुराना पान- पुराना पान अत्यन्त रसभरा, रुचिकारक, सुगन्धित, तीक्ष्ण, मधुर, हृदय को हितकारी, जठराग्नि को दीप्त करने वाला, कामोद्दीपक, बलकारक, दस्तावर और मुख को शुद्ध करने वाला है।
- नवीन पान- नवीन पान त्रिदोषकारक, दाहजनक, अरुचिकारक, रक्त को दूषित करने वाला, विरेचक और वमनकारक है । वही पान अगर बहुत दिनों तक जल से सींचा हुआ हो तो श्रेष्ठ होता है । रुचि को उत्पन्न करता है । शरीर के वर्ण को सुन्दर करता है और त्रिदोषनाशक है ।
- मालवे का पान- मालवे का पान पाचक, तीक्ष्ण, मधुर, रुचिकारक, दाहनाशक, पित्तनाशक, अग्निदीपक, मादक, काम शक्ति को बढ़ाने वाला, मुख में सुगन्ध पैदा करने वाला, स्त्रियों के सौभाग्य को बढ़ाने वाला और उदर शूल को नष्ट करने वाला होता है ।
यूनानी मत में पान के लाभ : Paan ke Labh Hindi Mein
- यूनानी मत से पान गरम, काविज और शान्तिदायक है ।
- यह दिल, जिगर, मेदा, दिमाग और स्मरण शक्ति को ताकत देता है ।
- शरीर में उत्तम रक्त पैदा करता है।
- दोषों को छांट देता है, शरीर के रोम छिद्रों को खोल देता है।
- इसके खाने से दाँत और मसूड़े मजबूत होते हैं और मसूड़े की सूजन मिट जाती है ।
- कफ की वजह से पैदा हुआ दमा और खांसी इसके सेवन से मिट जाते हैं ।
- गला और आवाज साफ होती है ।
- यह त्रिदोषनाशक और कामशक्तिवर्धक है।
- पान का लेप ताजा जख्मों को भर देता है।
- अगर किसी के अण्डकोष में पानी उतर आवे तो 5 से 6 बंगला पान गरम कर बांध देने से नवीन बीमारी में बहुत फायदा होता है । 2 से 3 दिन में पानी बिखर जाता है। अगर ज्यादा गरमी मालूम पड़े तो पांच-छः की जगह एक, दो पान बाँधना चाहिए और एक-दो रोज का फासला देकर बाँधना चाहिये ।
पान का रासायनिक विश्लेषण : Betel Leaf Chemical Constituents
- पान में स्टार्च, शक्कर, टेनिन और डिप्रास्टोसिस 8 से 18 प्रतिशत तक रहता है।
- इसमें उड़नशील तेल भी रहता है । जो कुछ पानों में 4.2 प्रतिशत तक पाया जाता है ।
- इसमें पाया जानेवाला उड़नशील तेल एक पीले रंग का द्रव पदार्थ होता है । यह गन्ध में उत्तम और स्वाद में तेज होता है ।
- जावा और मनिला में पैदा हुए पानों में फेनोल नाम की वस्तु 55 प्रतिशत तक पाई जाती है ।
- इसमें रहने वाला उड़नशील तेल शरीर में गर्मी का श्रावेश बतलाता है। मुँह में और पेट में अच्छा मालूम पड़ता है। इससे केन्द्रीय स्नायुमण्डल के ऊपर कुछ उत्तेजना मालूम पड़ती है। अगर इसे अधिक खुराक में लिया जाय तो कुछ नशे का अनुभव भी होता है ।
पान के पत्ते के औषधीय उपयोग : Paan ke Upyog in Hindi
- पान के पत्तों से प्राप्त किया हुआ यह तेल नजले में उपयोगी है तथा कृमिनाशक वस्तु की बतौर काम में लिया जा चुका है । यह मस्तिष्क के विकारों को दूर करता है ।
- कम्बोडिया में इसके पिसे हुए पत्तों का पानी माता और ज्वर के बिमारों को स्नान कराने के काम में लिया जाता है।
- सन्याल और घोष के मतानुसार पान सुगन्धित होता है । इसमें उड़नशील तेल पाया जाता है । इस तेल में से कास्टिक पोटास की मदद से चेबीपोल नाम का फेनाल प्राप्त किया जाता है । जो कि कारबोलिक एसिड से पाँच गुना और यूबेनाल से दो गुना अधिक तेज होता है । इस वेटल फिनाल ही के कारण इसमें इतनी सुगन्ध पाई जाती है । इसके पत्तों का डंठल तेल में तर करके गुदा में रखने से बच्चों को साफ दस्त हो जाता है और उनके पेट का फुलाव मिट जाता है।
- डाक्टर वलेइनस्टक का कहना है कि इसका उड़नलीश तेल जुकाम, गले का प्रदाह, स्वरनाली का भंग, रोहिणी रोग [ डिप्थीरिया ] और खांसी में लाभदायक है । यह कृमिनाशक होता है। डिप्थीरिया में इस तेल की एक बूंद, सौ ग्रेन पानी में डालकर उससे कुल्ले करने से और इसका धुआँ सूंघने से लाभ होता है । भारतवर्ष में ४ पानों का रस १ बूंद तेल की बजाय काम में लिया जा सकता है ।
- खन के जमाव, यकृत के रोग और बच्चों के फेफड़ों की तकलीफ में पान को गरम कर के उन पर तेल लगाकर बाँधने से लाभ होता है।
- मिस्टर जे० बुड का कथन है कि इसके पत्तों को अगर श्राग पर गरम करके स्तनों पर बाँधे जाँय तो दूध का बहाव अवश्य बंद हो जाता है और ग्रंथियों की सूजन मिट जाती है।
- डाक्टर थामसन वाट्स डिक्शनरी में लिखते हैं कि इसके पत्तों का रस आँखों की बीमारी में, आँखों में डालने से फायदा पहुँचता है।
- इससे मस्तिष्क के अन्दर होने वाले खून के जमाव पर भी लाभ पहुँचता है।
- बी० डी० बसु के मतानुसार इसके पत्तों का रस आँख में डालने से रतौंधी की बीमारी में लाभ होता है ।
- बंगसेन के मतानुसार टांगों के श्लीपद में इसके ७ पानी को लेकर उनमें सेंधा निमक डालकर गरम पानी के साथ छान कर प्रातःकाल पीने से कुछ दिनों में अच्छा लाभ होता है।
- कर्नल चोपरा के मतानुसार पान सुगन्धित, पेट के श्राफरे को दूर करने वाला, उत्तेजक और संकोचक होता है ।
- सर्प विष में इसे अन्तःप्रयोग के काम में लेते हैं। इसमें उड़नशील तेल और चेवी कोल रहता है ।
- पुराने हिन्दू लेखकों का लिखना है कि पान को सुबह खाना खाने के बाद और सोते समय खाना चाहिये ।
- सुश्रुत के मतानुसार यह सुगन्धित, शान्तिदायक, पेट के श्राफरे को दूर करने वाला, उत्तेजक और संकोचक होता है। यह श्वास में मधुरता लाता है, स्वर को सुधारता है । मुँह की दुर्गन्ध को मिटाता है ।
- अन्य लेखकों के मतामुसार यह कामोद्दीपक है ।
- कफ की खराबी से जो बीमारियां पैदा होती हैं उनमें इसे काम में लेते हैं।
- इसका रस इन बीमारियों में दी जानेवाली औषधियों में विशेष लाभदायक है ।
- कोंकण में इसके फल को शहद के साथ खांसी की बीमारी में देते हैं ।
- उड़ीसा में गर्भ न रहने देने के लिये इसकी जड़ को उपयोग में लेते हैं ।
- यह वनस्पति इण्डियन फर्मा कोपिया के अन्दर भी सम्मत मानी गई है। मगर इसकी उपचारिक उपयोगिता के विषय में कुछ भी नहीं लिखा गया है।
पान के पत्ते के फायदे : Paan ke Patte ke Fayde Hindi me
1. कफ प्रधान रोगों में पान के पत्ते के प्रयोग से लाभ : पान के पत्ते का उपयोग कफ प्रधान रोगों में विशेष रूप से होता है । खास करके दमा, फुफ्फुसनलिका की सूजन और श्वास मार्ग की सूजन में इसका रस पिलाया जाता है और इसके पत्ते को गरम करके छाती पर बाँधते हैं। (और पढ़े – कफ दूर करने के घरेलू उपाय )
2. सर्दी का जोर मिटायें पान के पत्ते का उपयोग : बच्चों की सर्दी में भी पान के ऊपर अरंडी का तेल लगाकर, उनको जरा गरम करके छाती पर बाँध देते हैं । जिससे बच्चों की घबराहट कम हो जाती है और सर्दी का जोर मिट जाता है।
3. डिप्थीरिया रोग में पान के पत्ते के इस्तेमाल से फायदा : इस रोग में गले के अन्दर एक विशिष्ट जन्तु का परदा पैदा होकर श्वासावरोध हो जाता है और अत्यन्त कष्ट के साथ रोगी की मृत्यु होती है । इसमें भी पान का रस सेवन करने से उस जन्तु का नाश हो जाता है, गले की सूजन कम हो जाती है और कफ छूटने लगता है । इस रोग में 2 से 5 पत्तों का रस थोड़े कुनकुने पानी में मिलाकर कुल्ले करने से भी फायदा होता है।
4. गाँठ सूजन में पान के पत्ते का उपयोग फायदेमंद : गठानों की सूजन पर पान को गरम करके बाँधने से सूजन और पीड़ा की कमी होकर गठान बैठ जाती है । (और पढ़े – गाँठ (गिल्टी) के कारण लक्षण और इलाज)
5. पान के पत्ते के इस्तेमाल से घाव में लाभ : व्रणों के ऊपर पान के पत्ते को बाँधने से व्रण सुधर जाते हैं और जल्दी भर जाते हैं। पान का रस एक प्रभावशाली पीबनाशक वस्तु है । कारबोलिक एसिड की अपेक्षा इसका रस पाँच गुना अधिक जन्तुनाशक है।
6. स्तनों की सूजन में लाभकारी पान के पत्ते : जिन स्त्रियों का बच्चा मर गया हो और स्तनों में दूध भरकर सूजन आ गई हो उन स्त्रियों के स्तनों पर पान को गरम करके बाँधने से सूजन कम हो जाती है और दूध उड़ जाता है। (और पढ़े – स्तनों(ब्रेस्ट) की देखभाल के टिप्स)
7. रतौंधी में फायदेमंद पान के पत्ते का औषधीय गुण : रतौंधी और नेत्राभिष्यन्द रोग में भी पान का रस आँख में डालने से लाभ होता है ।
8. सीने का दर्द दूर करे पान : पान पर तेल चुपड़कर भाग पर गरम करके सीने पर बाँधने से जुकाम और सीने का दर्द मिट जाता है । इसी प्रयोग से दिल और जिगर में जमा हुआ खून भी विखर जाता है। इसको पेट पर बाँधने से पेट की हवा निकल जाती है और पेट हलका हो जाता है।
9. पान के पत्ते के प्रयोग से दूर करे नेत्र रोग : पान के अर्क की बूँद आँखों में डालने से आँखों में होने वाला वादी का दर्द मिट जाता है । (और पढ़े –आंखों की रोशनी बढ़ाने के उपाय)
10. रतौंधी में पान के इस्तेमाल से फायदा : पान का रस आँखों में लगाने से रतौंधी जाती रहती है।
11. बच्चों की सूखी खांसी मिटाए पान का उपयोग : पान के रस को शहद के साथ चटाने से बच्चों की सूखी खांसी मिटती है ।
12. बच्चों की कब्ज में पान से फायदा : पान के डंठल पर तेल चुपड़कर बच्चों की गुदा में रखने से बच्चों की कब्ज और बादी के रोग मिटते हैं।
13. सूजन मिटाता है पान : पान पर तेल चुपड़ कर गरम करके बाँधने से सूजन का दर्द मिट जाता है।
14. बुखार में पान का उपयोग लाभदायक : 2 से 3 ग्राम पान के अर्क को गरम करके दिन में 2 से 3 बार पिलाने से ज्वर आना बन्द हो जाता है।
15. पित्ती: पान खाने वाले 3 पान (नागरबेल) और 1 चम्मच फिटकरी को पानी में डालकर, पीसकर, पित्ती (गर्मी के कारण शरीर में निकलने वाले चकत्ते) निकलती हुई जगह मालिश करने से पित्ती रोग ठीक हो जाता है।
16. गुर्दा के रोग: पान का सेवन वृक्क (गुर्दे) के रोगों में लाभदायक है।
17. यकृत (जिगर) के दर्द: छाती (सीने) पर पान का तेल लगाकर गर्म करके बांधने से यकृत (जिगर) के दर्द और सांस की नली की सूजन में लाभ होता है।
18. खांसी-जुकाम: पान में लौंग डालकर खायें। अगर खांसी बार-बार चलती हो तो सेंकी हुई हल्दी का टुकड़ा पान में डालकर पान खायें। खांसी रात को अधिक चलती हो तो पान में अजवायन डालकर खायें। बच्चों को सर्दी लगने पर पान के पत्ते पर तेल लगाकर गर्म करके सीने पर बांधने से लाभ होता है।
19. फोड़ा: फोड़ों पर पान के पत्तों को गर्म करके बांधने से सूजन व दर्द कम होकर जल्दी ही ठीक हो जाता है।
20. मीठी आवाज:
- पान की जड़ चूसने से आवाज मीठी होती है। गले में जमा हुआ कफ निकालने व स्वर भंग में आवाज की खराबी ठीक करने के लिए कुलंजन (पान की जड़) अत्यंत लाभकारी है।
- पान खाने से गले की आवाज मीठी हो जाती है।
21. बदबू को नष्ट करने के लिए: घी और तेल में पान के पत्ते डालकर गर्म करने से उनमें मौजूद बदबू दूर हो जाती है।
22. उत्तेजक: पान खाने से स्नायु (नसों) में उत्तेजना आती है। यह उत्तेजना सुपारी में पाये जाने वाले `ऐरेकोलिन´ नामक पदार्थ से मिलती है। पान में लगा हुआ चूना प्रक्रिया को बढ़ाता है।
23. मुंह का फटना: पान में अधिक चूना लग जाने से मुंह फट जाता है। मुंह फटने पर देशी घी लगायें, पान में कत्था अधिक लगाकर खाना चाहिए।
24. अम्लता (एसिडिटीज): पान खाने से अम्लता (एसिडिटीज) का रोग कम होता है।
25. मुह के छाले और पायरिया: पान में चने की दाल के बराबर कपूर का टुकड़ा डालकर पान चबायें और उसकी पीक को थूकते जायें। ध्यान रहे कि पान की पीक पेट मे न जाये। ऐसा करने से जल्दी लाभ मिलेगा।
26. नाभि का पकना: कभी-कभी नाभि से खून और मवाद आने लगता है। बच्चों की नाल काटने पर नाभि पक जाती है। इस पर चिकनी सुपारी गर्म पानी में घिसकर सुबह-शाम 2 बार रोजाना लगाने से नाभि ठीक हो जाती है।
27. आंखों के रोग: पान के पत्तों के रस को शहद के साथ अंजन (आंखों में काजल की तरह) करने से आंखों के रोगों में आराम आता है।
28. सिर का दर्द: कनपटियों पर पान का पत्ता बांधने से सिर की पीड़ा मिट जाती है।
29. क्रोध: पान का रस दूध में मिलाकर पिलाने से स्त्रियों का क्रोध शांत हो जाता है।
30. रतौंधी (रात को दिखाई न देना):
- पान के पत्तों के रस में शहद मिलाकर आंखों में रोजाना 3 से 4 बार डालने से रतौंधी रोग दूर होता है।
- पान के रस की 2-2 बूंदे आंखों में डालने से आंखों की रोशनी तेज होने के साथ रतौंधी रोग समाप्त हो जाता है।
31. बच्चों को सर्दी लगने पर: पान को गर्म करके उस पर एरंड का तेल चुपड़कर छाती पर बांधने से, बच्चों की घबराहट कम हो जाती है और सर्दी का प्रभाव मिट जाता है।
32. जुकाम:
- पान के पत्तों में एरंड का तेल लगाकर गर्मकर छाती पर बांधने से जुकाम ठीक हो जाता है।
- 2-3 बूंदे पान के रस की निकालकर नाक में डालने से जुकाम के रोग में खुश्की होने के कारण नाक में से खून निकलना बंद हो जाता है।
- पान की जड़ और मुलेठी को पीसकर शहद के साथ रोगी को चटाने से जुकाम दूर हो जाता है।
33. डिप्थीरिया (गले की सूजन):
- जब सांस में परेशानी पैदा होकर रोगी को बहुत दर्द होता है, तब पान के रस का सेवन करने से गले की सूजन कम हो जाती है और कफ टूटने लगता है। इस रोग में 2-5 पत्तों का रस थोड़े से गुनगुने पानी में मिलाकर कुल्ले करने से भी फायदा होता है।
- 3-4 मिलीलीटर पान के रस को शहद के साथ चाटने से सूखी खांसी दूर हो जाती है।
- पान की डंठल को घिसकर शहद मिलाकर रोगी को चटाने से बच्चों की सर्दी और कफ में आराम मिलता है।
34. पाचन क्रिया:
- पान के चूसने पर लार की मात्रा अधिक निकलती है, जिससे पाचन क्रिया में मदद मिलती है। यह पेट की वादी को मिटाने वाला उत्तेजक और ग्राही (पाचनशक्तिवर्धक) है। इससे श्वास में मिठास हो जाता है। बोली साफ हो जाती है और मुंह की दुर्गंघ दूर हो जाती है।
- पान खाने वालों को दूषित जलवायु से होने वाले रोग नहीं होते हैं।
- 35. कमजोरी: पान के शर्बत में चरपरी चीजें या गर्म चीजों को मिलाकर 25-25 मिलीलीटर दिन में 3 बार पिलाने से शरीर की कमजोरी दूर होती है।
35. ग्रंथि (गांठ) सूजन: शरीर में सूजन होने पर पान को गर्म करके बांधने से सूजन और पीड़ा दूर होकर गांठ बैठ जाती है।
36. घाव:
- पान के पत्ते गरम कर घाव पर बांधने से सूजन और पीड़ा जल्दी ही ठीक होकर घाव भी अच्छे हो जाते हैं।
- जख्मों के ऊपर पान के पत्तों को बांधने से जख्म जल्दी भर जाते हैं।
- अल्सर में आधा चम्मच पान के हरे पत्तों का रस रोजाना पीना चाहिए।
37. सूजन: पान को औरत के प्रसूता (प्रजनन) के स्थान पर रखने तथा पान का सेंक व लेप करने से सूजन नष्ट हो जाती है तथा उनका दूध साफ होकर निकलता है।
38. वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस): पान का रस 5 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम शहद के सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में लाभ मिलता है।
39. फेफड़ों की जलन और सूजन: पान के पत्ते का रस 5 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम को सेवन करने से फेफड़ों की जलन और सूजन नष्ट हो जाती है।
40. अंडकोष की जलन: पान के पत्ते पर चूना, कत्था और तंबाकू को डालकर बने बीड़े को पीसकर उसमें थोड़ा-सा घी मिलाकर एरंड के पत्ते पर फैलाकर कसकर अंडकोष पर बांधने से अंडकोष की जलन और दर्द में लाभ मिलता है।
41. कालीखांसी: 3 मिलीलीटर पान के पत्तों के रस में शहद मिलाकर 1-1 बार चाटने से काली खांसी में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
42. जुएं का पड़ना: पान और मूली के रस में पारा मिला करके लगाने से जूएं जल्द मर जाती हैं।
43. हिचकी: 10 मिलीलीटर पान के बीज में 3 ग्राम कुटकी पीसकर शहद के साथ खाने से हिचकी मिट जाती है।
44. कान का दर्द: पान के रस को थोड़ा सा गर्म करके बूंद-बूंद करके कान में डालने से ठंड लग जाने के कारण पैदा हुआ कान का दर्द ठीक हो जाता है।
45. मोच: पान के पत्ते पर सरसो का तेल लगाकर पत्ते को गर्म करके बांधना चाहिए।
46. हृदय रोग:
- हृदय की अनियमित गति, उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) के रोग में 1 चम्मच पान का रस तथा इतनी ही मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय की गति नियंत्रित होकर, रक्तचाप कम हो जाता है।
- दिल की कमजोरी में पान का प्रयोग लाभदायक है। डिजिटैलिस के स्थान पर इसका प्रयोग कर सकते हैं।
- पान का शर्बत पीने से हृदय का बल बढ़ता है, कफ और मंदाग्नि (भूख कम लगने का रोग) मिटती है।
47. शीतपित्त: 3 पान और 1 चम्मच फिटकरी पानी डालकर और उसे पीसकर पित्ती निकली हुई जगह पर मालिश करने से पित्ती ठीक हो जाती है।
48. स्तनों का दर्द और सूजन : पान के पत्ते को हल्का-सा गुनगुना करके बांधने से स्तनों का दर्द और सूजन दूर होता है। सावधानी : इसका प्रयोग करते समय नवजात या छोटे बच्चो के होने पर किसी अन्य चिकित्सा से इलाज करें इसका प्रयोग बिल्कुल भी न करें।
49. पेट के कीड़े: पान का रस पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
50. स्तनों में दूध की अधिकता: पान के पत्तों को हल्का-सा गर्म करके स्तनों पर बांधने से स्त्री के स्तनों पर आने वाली सूजन समाप्त होकर दूध रुक जाता है।
51. ज्वर (बुखार):
- पान के रस को गर्म करके 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से बुखार में बहुत लाभ होता है।
- लगभग 3 मिलीलीटर पान के रस को गर्म करके दिन में 2-3 बार रोगी को पिलाने से बुखार आना बंद हो जाता है।
- 6 मिलीलीटर पान का रस, 6 मिलीलीटर अदरक का रस और 6 ग्राम शहद को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बुखार दूर हो जाता है।
52. अंगुलबेल (डिठौन): अंगुली की सूजन व दर्द को कम करने के लिए पान के पत्तों को गर्म करके अंगुली पर बांधने से लाभ मिलता है।
53. फीलपांव (गजचर्म):
- 7 नाग नागर पान को ठंडाई की तरह घोंटकर कुछ दिनों तक सेवन करने से फीलपांव के रोगी को लाभ मिलता है।
- पान के 7 पत्तों का चूर्ण गर्म पानी और सेंधानमक के साथ दिन में 3 बार लेने से पीलपांव के रोग में आराम आता है।
54. कंठ रोहिणी के लिए:
- साधारण आकार के चार पान के पत्तों के रस को गुनगुने पानी में मिलाकर गरारे करने या पान के तेल की 1 बूंद को 125 ग्राम गर्म पानी में डालकर वाश्प (गैस) को सूंघने को रोगी को कहे तो कंठरोहिणी रोग में जरूर लाभ होता है।
- पान के रस में भुना हुआ सुहागा मिलाकर गले में लगाने से श्लैष्मिका झिल्ली समाप्त हो जाती है।
55. गले की सूजन: पान की जड़ के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर मुंह में रखकर चूस लें। इससे गला साफ होता है और आवाज भी साफ होती है।
56. बंद आवाज खोलना : चिराग का गुल पान में रखकर खाने से सिंदूर के खाने की वजह से बंद हुई आवाज खुल जाती है।
57. स्तनों के रोग: स्त्रियों के स्तनों पर पान के रस से मालिश करके सिंकाई करने से स्तनों की सूजन दूर होकर स्तनों का दूध साफ होता है।
58. स्तनों की सूजन: जिन औरतों का बच्चा मर गया हो और उनके स्तनों में दूध जमा होने की वजह से सूजन आ गई हो तो उन औरतों के स्तनों पर पान को गर्म करके बांधने से उनके स्तनों की सूजन कम हो जाती है और स्तनों में जमा हुआ दूध निकल जाता है।
59. मुंह के छाले:
- पान के पतों का रस शहद में मिलाकर छालों पर रोजाना 2-3 बार लगाने से लाभ होता है।
- मुंह में छाले हो जाने पर पान की पत्ती को सुखाकर चबाएं।
60. बिच्छू के काटने पर: पान के रस में सोंठ को घिसकर बिच्छू के काटे हुए स्थान पर लगाने से राहत मिलती है।
61. प्यास:
- पान के रस में थोड़ी-सी पिपरमिंट को मिलाकर सेवन करने से प्यास मिटती है।
- पान खाने से प्यास कम लगती है।
62. खांसी:
- सूखी खांसी में पान के सादे पत्ते में 1-2 ग्राम अजवायन रखकर उसे खाकर उसके ऊपर से गर्म पानी पीकर सो जाने से सूखी खांसी, दमा और सांस का रोग ठीक हो जाता है।
- पान के फलों को शहद के साथ मिलाकर रोजाना 2-3 बार चाटने से खांसी में लाभ मिलता है।
- पान के साथ 240 मिलीग्राम जायफल को घिसकर सेवन करने से खांसी के रोग में आराम आता है।
- 3 मिलीलीटर पान के रस को शहद के साथ चटाने से बच्चों की खांसी में बहुत लाभ होता है।
- पान के रस में शहद मिलाकर दिन में 1-2 बार सेवन करने से खांसी का अंत होता है।
- सूखी खांसी को दूर करने के लिए हरे पान के पत्ते पर दो चुटकी अजवायन रखकर पान को चबाएं तथा रस को धीरे-धीरे गले के नीचे उतारते जाएं।
- खांसी बार-बार चलती हो तो सेंकी हुई हल्दी का टुकड़ा पान में डालकर खाना चाहिए। यदि खांसी रात को ज्यादा देर तक चलती हो तो पान में अजवाइन डालकर खाएं तथा पान का पीक निगलते जाएं।
- पान के फल को पीसकर बनाये गये चूर्ण को शहद के साथ रोगी को खिलाने से बलगम बाहर निकलकर खांसी में आराम मिलता है।
- पान के पत्ते में 1 लौंग, सिंकी हुई हल्दी का टुकड़ा व थोड़ी-सी अजवायन डालकर 2 से 3 बार खाने से खांसी में आराम मिलता है।
63. नपुंसकता (नामर्दी): पुरुष के लिंग (शिश्न) पर पान के पत्ते बांधने से और पान के पत्ते पर मालकांगनी का तेल 10 बूंद लगाकर दिन में 2 से 3 बार कुछ दिन खाने से नपुंसकता दूर होती है। इस प्रयोग के दौरान दूध और घी का अधिक मात्रा में सेवन कर सकते हैं।
64. चोट:
- पान के पत्ते पर चूना और कत्था लगाकर उसमें थोड़ा-सा तम्बाकू डालकर पीस लें फिर गुनगुना करके चोट पर बांधे। इससे दर्द दूर होता है और जख्म जल्दी भर जाता है।
- पान के रस में थोड़े से चूने को मिलाकर सूजन पर पट्टी बांधने से दर्द और सूजन कम होता है।
- पान के पत्ते को चोट लगी हुई जगह पर लगाने से लाभ होता है।
65. बच्चों के पेट में कब्ज का होना: पान के डंठल में थोड़ा सा घी और नमक लगाकर गुदा में लगाने से दस्त चालू हो जाएंगे और कब्ज का रोग दूर हो जायेगा।
66. श्वास या दमा:
- लगभग 5 से 10 मिलीलीटर पान के रस को शहद के साथ या अदरक के रस के साथ प्रतिदिन 3-4 बार रोगी को देने से दमा या श्वास का रोग ठीक हो जाता है।
- गजपीपली का चूर्ण पान में रखकर सेवन करने से श्वास रोग मिट जाता है।
- बंगाली पान को कूट-पीसकर कपड़े में निचोड़कर 500 मिलीलीटर की मात्रा में रस निकाल लें। इसी तरह अदरक और अनार का रस 500-500 मिलीलीटर की मात्रा में लें। इसके साथ ही कालीमिर्च 60 ग्राम और छोटी पीपल 80 ग्राम लेकर सभी को एक साथ कूट-पीसकर 1 किलो मिश्री मिलाकर धीमी आंच पर रखकर चासनी बना लें। प्रतिदिन इस चासनी को 10-10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से खांसी, श्वास और बुखार आदि रोग दूर हो जाते हैं तथा भूख बढ़ने लगती है।
- जावित्री को पान में रखकर खाने से दमा के रोग में लाभ होता है।
- पान में चूना और कत्था बराबर मात्रा में लगाकर 1 इलायची और 2 कालीमिर्च को डालकर धीरे-धीरे चबाकर चूसते रहने से दमा के रोग में आराम मिलता है।
67. गलाबैठनेपर: पान की जड़ के टुकड़े को मुंह में रखकर 3-4 बार चूसते रहने से गले में बैठी आवाज खुल जाती है और गला साफ हो जाएगा।
पान खाने के दुष्प्रभाव : Paan Khane ke Nuksan in Hindi
- पान के अधिक खाने से भूख कम हो जाती है । दिन – दिन पेट कमजोर होता जाता है । इसलिये इसको हमेशा नियमित मात्रा में खाना चाहिये ।
- इसमें हेपिक्साइन नामक जहरीला पदार्थ रहता है।
- पान के साथ सुपारी भी बहुत कम लेना चाहिये, क्योंकि सुपारी में अर्कोडाइन नामक विषैला पदार्थ रहता है और यह सीने में खुजली पैदा करता है ।
- पान के अन्दर कत्था ज्यादा लगाने से फेफड़े में खराश पैदा हो जाती है।
- चूने का अधिक उपयोग दाँतों को खराब कर देता है । इसलिये पान में कत्था, चूना और सुपारी नियमित मात्रा में डालना चाहिये ।
Read the English translation of this article here ☛ 55 Surprising Health Benefits of Betel Leaves (Paan)
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।