शराब के गुण दोष | Sharab ke Fayde aur Nuksan in Hindi

Last Updated on December 29, 2019 by admin

शराब के गुण-दोषों की चर्चा करने से पहले, आयुर्वेद के अनुसार यह जानकारी प्रस्तुत करना उपयोगी होगा कि शराब क्या है, कैसे बनती है, कितने प्रकार की होती है और इसका उपयोग क्या है। इतना विवरण प्रस्तुत करने के बाद इसके सेवन के गुण दोषों की चर्चा करना उपयुक्त रहेगा।

शराब शब्द का अर्थ :

‘शराब’ अरबी भाषा का शब्द है जो फारसी और उर्दू भाषा में भी प्रयोग किया जाता है। अरबी भाषा में ‘शर’ शब्द के मतलब होते हैं बदी, बुराई, उपद्रव, फसाद आदि। ‘आब’ शब्द फ़ारसी भाषा का है जिसका अर्थ होता है पानी। ‘आबकार’ मदिरा बेचने वाले या मद्य का व्यवसाय करने वाले को तथा ‘आबकारी’ मद्य के व्यवसाय या मद्यविभाग को कहते हैं। ‘शराब’ शब्द ‘शर’ और ‘आब’ को मिला कर बनाया गया है या नहीं, यह तो हम नहीं जानते लेकिन इतना जरूर जानते हैं कि ‘शर’ का अर्थ बुराई या उपद्रव होता है और ‘आब’ का अर्थ होता है पानी, तो शराब का अर्थ ‘बुराई या उपद्रव का पानी’ करने में, किसी को एतराज़ नहीं होगा।

‘मद्य’ संस्कृत भाषा का शब्द है जिसके पर्यायवाची (समान अर्थ रखने वाले) शब्द हैं मदिरा, सुरा, वारुणी, सीधु, अरिष्ट, आसव आदि जो सभी गुणवाचक हैं। जिस द्रव को पीने से मादकता पैदा हो उस मादक यानि नशा करने वाले द्रव को मद्य या मदिरा कहते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार मद्य (मदिरा) की प्रकृति :

  • सभी प्रकार की मदिरा उष्ण प्रकृति की होती है ।
  • यह पित्तकारक, वातनाशक, मल भेदक, शीघ्र पचने वाली होती है ।
  • यह रूखी, अत्यन्त कफनाशक, खट्टी, अग्निप्रदीपक, रुचिकारक, पाचक, शीघ्रता करने वाली होती है ।
  • यह तीखी, विशद (घाव भरने और सुखाने वाली) व्यवायि (पहले पूरे शरीर पर प्रभाव करके पीछे पचने वाली) तथा विकाशी आदि गुणों वाली होती है।

सुरा क्या है ? आयुर्वेदिक मतानुसार इसके गुण : sura in hindi

यह चावल को चूर्ण करके बनाई जाती है।

‘सुरा गुवोबल स्तन्यपुष्टि मेदः कफ प्रदा।
ग्राहिणी शोथभ गुल्माशोग्रहणीमूत्रकृच्छनुत्’

के अनुसार चावलों से बनाई गई सुरा भारी ग्राही, बल, दुग्ध, पुष्टि, मेद तथा कफ की वृद्धि करने वाली होती है और सूजन, गुल्म, बवासीर, संग्रहणी तथा मूत्रकष्ट का नाश करती है।

वारुणी क्या है ? आयुर्वेदिक मतानुसार इसके गुण : varuni in hindi

पुनर्नवा को शिला पर पीस कर या ताड़ी और खजूर से तैयार की गई मदिरा को वारुणी कहते हैं।

सुरावद्वारुणी लघ्वी पीनसाध्मानशूलनुत्

के अनुसार वारुणी सुरा जैसी ही होती है परन्तु सुरा की अपेक्षा हलकी होती है और पीनस, पेट फूलना (अफारा) और शूल (दर्द) को नष्ट करती है।

सीधु क्या है ? आयुर्वेदिक मतानुसार इसके गुण :

यह गन्ने (ईख) से बनाई जाती है और दो प्रकार की होती है-
(१) पक्वरस सीधु और (२) शीतरस सीधु ।

ईख के पके हुए रस से बनाई गई मदिरा को ‘पक्वरस सीधु’ और कच्चे रस से बनाई गई मदिरा को ‘शीतरस सीधु’ कहते हैं।

सीधुः पक्वरसः श्रेष्ठः स्वराग्निबलवर्णकृत्।
वातपित्तकरः सद्यः स्नेहनों रोचनो हरेत् ।
विबन्धमेदः शोफार्शः शोषोदरकफामयान्।

के अनुसार पक्वरस वाली सीधु श्रेष्ठ, स्वर को उत्तम करने वाली, अग्निप्रदीपक, बलवर्धक, वर्ण को उत्तम करने वाली, वात तथा पित्त कारक, तत्काल स्निग्धता करने वाली, रुचिकारक होती है और कब्ज़, मेद, सूजन, बवासीर, उदर की सूजन तथा कफ सम्बन्धी रोगों का नाश करने वाली होती है।

तस्मादल्पगुणः शीतरसः संलेखनः स्मृतः।

के अनुसार शीतरस सीधु ‘पक्वरस सीधु’ की तुलना में हीन गुणवाली और लेखन (धातुओं एवं मल को सुखाने वाली) होती है।

अरिष्ट क्या है ? तथा इसके गुण : arista in hindi

यह योग काढ़ा विधि से, औषधियों को जल में पका कर बनाया जाता है और औषधि के ही नाम से पुकारा जाता है जैसे अशोकारिष्ट, दशमूलारिष्ट, द्राक्षारिष्ट आदि। ‘अरिष्टं लघु पाकेन सर्वतश्च गुणाधिकम्’ के अनुसार अरिष्ट पाक में हलकी तथा सबसे अधिक गुणकारी औषधि होती है।

‘अरिष्टस्य सुधा ज्ञेया बीजद्रव्य गुणैः समाः’

के अनुसार जो अरिष्ट जिस पदार्थ से बनाया जाता है उस अरिष्ट में उसी पदार्थ के समान गुण रहते हैं।

आसव क्या है ? तथा इसके गुण : asava in hindi

कच्ची औषधियों और पानी से जो मदिरा तैयार की जाती है उसे आसव कहते हैं तथा –

‘आसवस्य गुणा ज्ञेया बीज द्रव्य गुणैः समाः’

के अनुसार ‘आसव’ में भी उन्हीं पदार्थों के गुण होते हैं जिन पदार्थो से यह तैयार की जाती है। अरिष्ट और आसव पुराने हों तो गुणकारी तथा लाभप्रद होते हैं और नये हों तो अवगुणकारी तथा दोष कारक होते हैं।

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शराब के शरीर पर होने वाले प्रभाव : effects of alcohol on the body and brain

आयुर्वेद ने मदिरा के इतने भेद बताने के बाद इसके प्रयोग और प्रभाव की भी चर्चा की है

यथासात्विके गीतहास्यादि राजसे साहसादिकम्।
तामसे निन्द्यकर्माणि निद्रा च मदिरी चरेत् ।।
-भाव प्रकाश

अर्थात् अगर सात्विक गुण और प्रकृति वाला व्यक्ति मद्यपान कर ले तो काव्यात्मक और हास्यजनक विचार एवं कार्य करता है।
यदि राजसी (रजोगुणी) मनुष्य मदिरा पी ले तो साहसिक कल्पनाएं और काम करता है तथा तामसी (तमोगुणी) व्यक्ति मदिरापान करके निन्दनीय विचार और कार्य करता है और बेसुध रहता है।

‘विधिना मात्रयाकाले हितैरन्नैर्यथाबलम् ।
प्रहृष्टो यः पिबेन्मद्यं तस्यस्यादमृतं यथा ।।

के अनुसार जो मनुष्य विधि, मात्रा और काल का उचित पालन कर, अपने बल के अनुकूल मात्रा में मद्य का सेवन कर हितकारी अन्न का सेवन करता है उसके लिए मद्य अमृत के समान सिद्ध होती है और जो विधि एवं मात्रा से भ्रष्ट होकर मदिरा का पान करता है उसके लिए मदिरा रोगकारी और विनाशकारी सिद्ध होती है।

इतनी चर्चा, आयुर्वेद के मतानुसार, मद्य के गुण दोषों का परिचय प्रस्तुत करने के लिए की गई, अब मद्य का जो प्रयोग आजकल किया जा रहा है उसके विषय में चर्चा करते हैं। आयुर्वेद ने मद्य का सेवन एक औषधि के रूप में करने का निर्देश देते हुए उसके गुण-लाभ के विषय में विवरण प्रस्तुत किया है और यह चेतावनी भी दी है कि इसका सेवन करने में उचित विधि, मात्रा और काल यानि समय का भी पूरा ध्यान रखा जाए अन्यथा इसका सेवन करना रोगकारक और विनाशकारी सिद्ध होगा।

इसे औषधि के रूप में और नशे के रूप में सेवन करने में बड़ा फर्क है और अधिकांश लोग इस फ़र्क का ख्याल रखे बिना ही इसका सेवन करते हैं यानि इसे औषधि के रूप में नहीं बल्कि नशे के रूप में ही सेवन करते हैं। एक बारीक बात ख्याल में रखने लायक और भी है कि औषधि का सेवन आहार की भांति नहीं किया जाता। आहार जीवित रहने के लिए सेवन किया जाता है जबकि औषधि का सेवन रोग से मुक्त होने और पुनः स्वस्थ अवस्था को उपलब्ध होने के लिए ही किया जाता है।

व्याधितस्यौषधं पथ्यं नीरुजस्य किमौषधैः‘ (हितोपदेश)

के अनुसारऔषधि सेवन करना उसी के लिए उपयोगी होता है जो व्याधि से ग्रस्त हो । जो निरोगी है उसे औषधि सेवन की क्या ज़रूरत है ?

आयुर्वेद ने मद्य के विभिन्न भेद और उनके गुण एवं उपयोग बताते हुए विभिन्न व्याधियों की चिकित्सा के लिए औषधि के रूप में ही सेवन करने का निर्देश दिया है, नशा करने के लिए आहार की तरह सेवन करने का निर्देश नहीं दिया है।

रोग के अनुसार किसी भी पदार्थ का सेवन उचित मात्रा और युक्ति के अनुसार उचित कालावधि (Period) तक किया जा सकता है जिससे वह औषधि का ही काम करता है और रोग का नाश करने वाला सिद्ध होता है जबकि इसके विपरीत ढंग से सेवन करने पर वही पदार्थ विष के समान घातक हो जाता है। शराब के मामले में यही होता आया है कि इसका सेवन मनमाने ढंग से किया जाता रहा है, आज भी किया जा रहा है। परिणाम यह होता है कि पहले तो आदमी शराब को पीता है और थोड़े समय बाद शराब उस आदमी को पीने लगती है। बड़ी-बड़ी हस्तियां शराब के प्याले में डूब कर अकाल मृत्यु की शिकार हो गईं। ऐसा क्यों होता है इसे ज़रा समझें।

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शराब के दुष्परिणाम : side effects of alcohol in hindi

आजकल जिसे शराब कहा जाता है, जिसे शराब के नाम से पिया जाता है वह आयुर्वेद द्वारा निर्देशित शराब नहीं है। आयुर्वेद नशा करने का विरोधी है अतः वह शराब का उपयोग ‘नशा करने के लिए’ करने का निर्देश कर ही नहीं सकता।

आयुर्वेद ने तो धूम्रपान करने का भी विधि-विधान बताया है पर वह धूम्रपान तम्बाकू से बनी बीड़ी या सिगरेट का सेवन करने वाला नहीं बल्कि औषधि द्रव्यों से बनी ‘धूम्रपान दण्डिका‘ का सेवन करने वाला है और रोगों की चिकित्सा करने के लिए बताया है। महज़ ‘लगे दम तो मिटे ग़म’ वाला नारा बुलन्द करके और ‘मूड’ बनाने के लिए किये जाने वाले धूम्रपान में और आयुर्वेदिक धूम्रपान में ज़मीन आस्मान का फ़र्क है।

आज जो शराब पी जा रही है वह सिर्फ़ नशा करने के उद्देश्य से पी जा रही है। नशे के लिए एक रासायनिक तत्व ‘अलकोहल’ (Alcohol) का होना ज़रूरी होता है। अलकोहल के बिना नशा नहीं होता। यह अलकोहल विभिन्न प्रकार का होता है जैसे इथाइल अलकोहल (Ethyl alcohal) एब्सोलूट एलकोहल (Absolute alcohol), डिनेचर्ड अलकोहल (Denatured alcohol) मिथाइल अलकोहल (Methyl alcohol) आदि। चिकित्सा शास्त्र में इन सभी प्रकार के द्रव्यों को मनुष्य के लिए हानिकारक और घातक बताया गया है। ये द्रव्य रासायनिक प्रयोगों के लिए उपयोगी होते हैं न कि पेय के रूप में पीने के लिए फिर भी नशा करने के लिए नशे के आदी लोग, शराब में इन घातक तत्वों को मिलाकर पीते हैं। कई लोग स्प्रिट मिला कर पीते हैं।

शराब आजकल मोटे रूप से दो प्रकार की पाई जाती है। एक तो विदेशी (Foreign Liquor) और दूसरी देशी (Country)।

देशी शराब भी मोटे रूप से दो प्रकार की होती है- (१) एक तो अधिकृत रूप से ठेके की दूकान पर मिलने वाली और (२) दूसरी अनधिकृत रूप से मिलने वाली ठर्रा शराब
सबसे ज्यादा हानि और विनाश करने वाली यह ठर्रा शराब ही है जिसे पीकर आये दिन लोग थोक-बन्द रूप में मर रहे हैं। कितने आश्चर्य और खेद की बात है कि आये दिन अखबारों में ज़हरीली शराब पीकर मरने वालों के समाचार पढ़ कर भी इन शराबियों को यह सबक़ नहीं मिलता कि शराब न पिएं। वे शराब पीना नहीं छोड़ते और नतीजा यह होता है कि दुनिया को ही छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं।

बात शराब की हो या किसी भी नशे की, बात दरअसल यह है कि नशे का आदी हो जाने वाला व्यक्ति ऐसा मजबूर हो जाता है कि यदि वह नशा नहीं करे तो उसे शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत पीड़ा भोगना पड़ती है और इस पीड़ा से बचने के लिए वह फिर से नशा करने के लिए विवश हो जाता है।

सभी विद्वानों ने, सभी धर्मो ने और सभी उपदेशकों ने शराब पीना इसीलिए वर्जित किया है कि इसकी शुरूआत भले ही छोटे रूप में की जाए पर धीरे-धीरे इसकी मात्रा बढ़ ही जाती है। जो चीज़ आज मज़ा देने वाली हो, पर कल को कज़ा का शिकार बना दे वह यदि कुछ लाभ भी करती हो तो भी सेवन करने योग्य नहीं। शराब में गुण बहुत कम हैं और दोष बहुत ज्यादा, इसलिए इसका सेवन शुरू ही न किया जाए यही अक्ल मन्दी की बात है।

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