Last Updated on January 23, 2024 by admin
शीशम क्या है ? : sheesham in hindi
शीशम के वृक्ष भारतवर्ष में प्रायः सब ओर पैदा होते हैं। इसका वृक्ष ६० फुट तक ऊंचा होता है। इसके पिंड की गोलाई 6 से 12 फुट तक होती है । इसकी छोटी शाखाएं नीचे की तरफ लटकती हुई और रुएंदार होती है। इसके पिंड की छाल एक इंच तक मोटी और कुछ पीलापन लिये भूरे रङ्ग की होती है। इसके पत्ते गोल और नोकदार बेर के पत्तों के समान होते हैं।
नवीन हालत में ये अच्छे साफ हरे रंग के होते हैं मगर पुराने होने पर ये कुछ लाल और भूरे रंग के हो जाते हैं। इसके फूल बहुत छोटे छोटे सफेद या चंंदनियां रंग के गुच्छों में लगते हैं। इसकी फलियां बहुत चपटी और पतली होती है। हर एक फली में दो-दो तीन-तीन चपटे बीज निकलते हैं । शीशम की लकड़ी बहुत मजबूत, भारी और दृढ़ होती है।
विभिन्न भाषाओं में शीशम के नाम :
- संस्कृत – शिशपा, कृष्णसारा, पिपला, युगपत्रिका, कपिला, डलपत्री, तीवधूमका, श्वेतशिशपा, कपिलाशिशपा, पीता इत्यादि ।
- हिन्दी – शीशम, सफेद शीशम, पीनी शीशम ।
- बंगाल – शीशू, सीसू ।
- गुजराती – सीसम तनच ।
- मराठी – सीसू, सीसम ।
- उर्दू – शीशम ।
- पंजाबी – शीशम, नेलकार, ताली, शेवा ।
- अरबी – सीसम ।
- तामील – नीसू, गेट्टा।
- तेलगू – सिसुपा, सीसू ।
- अंग्रेजी – Sissoo।
- लेटिन – Dalbergia sissoo ( डलवेगिया सीसू )।
शीशम की जातियां :
शीशम की तीन जातियां होती हैं। काली, सफेद और पीली। पीली शीशम को संस्कृत में कपिल शिशपा, सफेद शीशम की श्वेतशिशपा और काली शीशम को कृष्णसारा कहते हैं।
इस वृक्ष की लकड़ी और बीजों में से तेल निकाला जाता है जो औषधियों के काम आता है।
आयुर्वेदिक मतानुसार शीशम के औषधीय गुण :
- आयुर्वेदिक मत से शीशम कड़वा, तिक्त, कसेला और गरम प्रकृति का होता है ।
- यह कामोहोपक, कफनिस्सारक और कृमिनाशक है ।
- यह ज्वरनाशक, प्यास को बुझानेवाला, गर्भ को गिरानेवाला और वमन तथा दाह को शान्त करनेवाला होता है।
- शीशम चर्मरोग, व्रण, रक्तरोग, श्वेतकुष्ठ, अजीर्ण, अतिसार और गुदामार्ग की तकलीफों को दूर करनेवाला होता है।
- इसके पत्तों का रस नेत्र रोगों में लाभदायक होता है।
- सफेद शीशम कड़वा, शीतल तथा पित्त और दाह को दूर करनेवाला होता है।
- भूरे रंग का शीशम कड़वा, शीतवीर्य, श्रमनाशक तथा वात, पित्त, ज्वर, वमन और हिचकी को दूर करता है।
- तीनों प्रकार के शीशम, कांतिवर्द्धक, बलकारक, रुचिजनक तथा सूजन, विसर्प, पित्त और दाह को शांत करते हैं।
यूनानी मतानुसार शीशम के औषधीय गुण : sheesham ke gun in hindi
- यूनानी मत से शीशम की लकड़ी, कड़वी, स्वादवाली, कृमिनाशक, रक्तशोधक और नेत्र तथा नाक की बीमारी में उपयोगी होती है।
- यह गीली खुजला, शरीर की जलन, उपदंश, पेट के रोग और पेशाब की जलन को शांत करने वाली होती है ।
- इसकी जड़ संकोचक होती है और इसका तेल चर्म रोगों पर लगाने से लाभ पहुंचाता है।
- इसके पत्तों का लुआब मीठे तेल में मिलाकर फटी हुई त्वचा पर लगाने से लाभ होता है।
- इसके पत्तों का काढ़ा सुजाक की तीव्र अवस्था में दिया जाता है।
- इसकी लकड़ी धातु परिवर्तक समझी जाती है और यह कुष्ठ, विस्फोटक, खुजली और वमन को रोकने के लिये उपयोग में ली जाती है।
शीशम के फायदे और उपयोग : sheesham benefits in Hindi
1. फोड़े फुन्सी में शीशम के लाभ : इसके पत्तों का क्वाथ पिलाने से फोड़े फुन्सी मिटते हैं । कोढ़ में भी इसके पत्तों या बुरादे का क्वाथ पिलाया जाता है। ( और पढ़े – फोड़े फुंसी बालतोड़ के 40 घरेलू उपचार )
2. स्तनों की सूजन करने में शीशम के फायदे : इसके पत्तों को गरम करके स्तनों पर बांधने से और इसके काढ़े से स्तनों को धोने से स्तनों की सूजन उतरती है। ( और पढ़े – स्त्रियों के स्तन में सूजन आने के कारण और उपचार )
3. कुष्ठ रोग में इसके लाभ : शीशम के 10 ग्राम बुरादे का आधा पाव पानी में औटाकर, आधा पानी रहने पर उसमें शीशम का शरबत मिलाकर 40 दिन तक पीने से कुष्ठरोग में बहुत लाभ होता है। ( और पढ़े – कुष्ठ(कोढ) रोग मिटाने के उपाय )
4. रक्तविकार दूर करने में शीशम का उपयोग : शीशम के बुरादे का शरबत बनाकर पिलाने से रक्तविकार मिटता है। ( और पढ़े – खून की खराबी दूर करने के अचूक उपाय )
5. वमन के इलाज में शीशम का उपयोग : इसके पत्तें या बुरादे का क्वाथ पिलाने से वमन बन्द होती है । ( और पढ़े – उल्टी रोकने के 16 देसी अचूक नुस्खे )
6. सुजाक में इसके लाभ : सुजाक की अत्यन्त तीव्र पीड़ा में इसका क्वाथ पिलाने से लाभ होता है ।
7. बुखार : हर तरह के बुखार में 20 मिलीलीटर शीशम का सार, 320 मिलीलीटर पानी, 160 मिलीलीटर दूध को मिलाकर गर्म करने के लिए रख दें। दूध शेष रहने पर दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
8. गृघसी (जोड़ों का दर्द) : शीशम की 10 किलोग्राम छाल का मोटा चूरा बनाकर साढ़े 23 लीटर पानी में उबालें, पानी का 8वां भाग जब शेष रह जाए तब इसे ठंडा होने पर कपड़े में छानकर फिर इसको चूल्हे पर चढ़ाकर गाढ़ा करें। इस गाढ़े पदार्थ को 10 मिलीलीटर की मात्रा में घी युक्त दूध पकाने के साथ 21 दिन तक दिन में 3 बार लेने से गृधसी रोग (जोड़ों का दर्द) खत्म हो जाता है।
9. रक्तविकार-
- शीशम के 1 किलोग्राम बुरादे को 3 लीटर पानी में भिगोकर रख लें, फिर उबाल लें, जब पानी आधा रह जाए तब इसे छान लें, इसमें 750 ग्राम बूरा मिलाकर शर्बत बना लें, यह शर्बत खून को साफ करता है।
- शीशम के 3 से 6 ग्राम बुरादे का शर्बत बनाकर रोगी को पिलाने से खून की खराबी दूर होती है।
10. कुष्ठरोग :
- शीशम के 10 ग्राम सार कषाय को, 500 मिलीलीटर पानी में उबाल लें, उबलने पर आधा रहने पर उसमें सार का ही शर्बत मिलाकर रोजाना 40 दिन तक सुबह-शाम पीने से कोढ़ के रोग में बहुत लाभ होता है।
- शीशम के पत्तों के लुआब को तिल के तेल में मिलाकर, छिली हुई चमड़ी पर लगाने से शान्ति मिलती है।
- शीशम के पत्ते या बुरादे का 50 से 100 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाने से फोड़े-फुन्सी खत्म हो जाते हैं।
11. चर्म रोग : शीशम का तेल चर्म रोगों पर लगाने से राहत पहुंचती है। नीली खुजली, शरीर की जलन, दुष्ट व्रणों (जख्म) पर शीशम का तेल लगाने से लाभ होता है।
12. रक्तप्रदर : 10-15 मिलीलीटर शीशम के पत्तों का रस सुबह-शाम पीने से रक्त प्रदर का रोग ठीक हो जाता है।
13. कष्टार्त्तव (मासिक धर्म का कष्ट का आना) : 3 से 6 ग्राम शीशम का चूर्ण या 50 से 100 मिलीलीटर काढ़ा कष्टार्त्तव ( रोग में दिन में 2 बार सेवन करने से लाभ होता है।
14. कफ : 10 से 15 बूंद शीशम का तेल सुबह-शाम गर्म दूध में मिलाकर सेवन करने से बलगम समाप्त हो जाता है।
15. आंवरक्त (पेचिश): 6 ग्राम शीशम के हरे पत्ते और 6 ग्राम पोदीना के पत्तों को पानी में ठंडाई की तरह घोंटकर पीने से पेचिश के रोग में लाभ होता है।
16. घाव में : शीशम के पत्तों से बने तेल को घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होता है। यहां तक की कुष्ठ (कोढ़) के घाव में भी इसका उपयोग लाभकारी होता है।
17. प्रदर रोग : 40-40 ग्राम शीशम के पत्ते और फूल, 40 ग्राम इलायची, 20 ग्राम मिश्री और 16 कालीमिर्च को एक साथ पीसकर पीने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है।
18. वीर्य रोग में : रात में एक मिट्टी के बर्तन में पानी रखें शीशम के हरे और कोमल पत्तों को रखकर ढक दें। सुबह इन्हें निचोड़कर छान लें और ताल मिश्री मिलाकर खाने से वीर्य रोग में लाभ होता है।
19. कुष्ठ (कोढ़) : कुष्ठ रोग में शीशम के तेल को लगाने से या शीशम के पत्तों से बने तेल को लगाने से कुष्ठ (कोढ़) रोग में आराम आता है।
20. नाड़ी का दर्द : शीशम की जड़ व पत्तें और बराबर मात्रा में सैंधा नमक लेकर कांजी में इसका लेप बनाकर लगाने से नाड़ी रोग जल्द ठीक होता है।
21. मूत्रकृच्छ : मूत्रकृच्छ (पेशाब करते समय परेशानी) की ज्यादा पीड़ा में शीशम के पत्तों का 50-100 मिलीलीटर काढ़ा दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से लाभ मिलता है।
22. पूयमेह : लालामेह और पूयमेह में 10-15 मिलीलीटर शीशम के पत्तों का रस दिन में 3 बार रोगी को देने से लाभ होता है।
23. विसूचिका : सुगंधित और चटपटी औषधियों के साथ शीशम की गोलियां बनाकर विसूचिका (हैजा) में देने से आराम मिलता है।
24. आंखों का रोग : शीशम के पत्तों का रस और शहद मिलाकर इसकी बूंदें आंखों में डालने से दु:खती आंखें ठीक होती है।
25. स्तनों की सूजन : शीशम के पत्तों को गर्म करके स्तनों पर बांधने से और इसके काढ़े से स्तनों को धोने से स्तनों की सूजन कम हो जाती है।
26. उदर दाह : उदर (पेट) की जलन में 10-15 मिलीलीटर शीशम के पत्तों का रस रोगी को देने से लाभ होता है। पीलिया के रोग में भी शीशम के पत्तों का रस 10-15 मिलीलीटर सुबह-शाम पीने से लाभ होता है।
Read the English translation of this article here ☛ Sheesham (Rosewood): 20 Amazing Uses and Health Benefits
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।