Last Updated on May 26, 2023 by admin
तालीसपत्र क्या है ? (What is Talispatra in Hindi)
हिमालय पर प्रहरी के रूप में खडे ये तालीसवृक्ष दया के शीर्ष हैं, जो हमें अपना सर्वस्व देकर उपकृत करते रहते हैं ।
तालीसपत्र देवदारुकुल (पाइनेसी) की वनस्पति है। महर्षि सुश्रुत ने जो शिरोविरेचनोपयोगी 38 द्रव्य कहे हैं उनमें एक तालीसपत्र भी है। भगवान चरक ने आश्रय भेद से नस्य (शिरोविरेचन) के 7 भेद किये हैं तालीस का पत्र उपयोगी होने से यह पत्रनस्य के अन्तर्गत आता है।
आचार्य भावमिश्र ने इसका कर्पूरादि वर्ग में वर्णन किया है। आचार्य श्री प्रियवत शर्मा ने द्रव्यगुण विज्ञान में छेदन (श्लेष्महर) द्रव्यों के अन्तर्गत इसका विशद वर्णन किया है ।
नोट – जो औषधि कफादि दोषों को अपनी शक्ति से फोड़कर अलग-अलग कर दें तथा श्वासनलिका की श्लेष्मल त्वचा को उत्तेजित कर कफ को पतला कर खांसने में सुभीता कर दें, उसे छेदन (Stimulating Expectorent) कहते है।
तालीसपत्र का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Talispatra in Different Languages)
Talispatra in –
- संस्कृत (Sanskrit) – तालीस, तालीश, पत्राढ्य, धात्रीपन, शुकोदर आदि।
- हिन्दी (Hindi) – तालीस पत्र।
- गुजराती (Gujarati) – तालीसपत्र।
- मराठी (Marathi) – तालीसपत्र।
- बंगाली (Bangali) – तालीशपत्र।
- तामिल (Tamil) – तालीसपत्री।
- तेलगु (Telugu) – तालीसपत्री।
- अरबी (Arbi) – तालीसफर।
- फ़ारसी (Farsi) – जर्नबा
- अंग्रेजी (English) – सिल्वरफर (Silverfir)।
- लैटिन (Latin) – एबीज बेबियाना (Abeis Webbiana)।
तालीसपत्र का पेड़ कहां पाया या उगाया जाता है ? :
तालीसपत्र का वृक्ष सिक्किम, भूटान तथा पश्चिमी हिमालय में 8 से 12 हजार फुट की ऊंचाई पर होता है।
तालीसपत्र का पेड़ कैसा होता है ? :
- तालीसपत्र का पेड़ – तालीसपत्र के ऊंचे सदा हरित सघन वृक्ष होते हैं। जो काले दृढ़ पत्तों से आच्छादित होते हैं। ये वृक्ष लगभग 150-200 फीट ऊंचे होते हैं। यह अपनी हरितमा के कारण चिरहरित नाम से जाना जाता है। हमेशा इसके पत्र हरे रहते हैं, गिरते नहीं है अतएव इसे पत्राढ्य कहा गया है। इसके काण्ड (तना) की परिधि प्रायः 30 फीट होती है। शीर्ष गोलाकार तथा शाखाएं समानान्तर फैली रहती हैं। नवीन शाखाएँ प्रायः सूक्ष्म और भूरे रोमों से ढकी हुई रहती हैं जो प्रायः झुकी हुई होती हैं।
- तालीसपत्र पेड़ के पत्ते – पत्र 1 से 2 इंच लम्बे, 1/12 इंच चौड़े, रेखाकार, चपटे, हरितवर्ण, चमकीले नतान और अग्रभाग पर दो तीक्ष्ण और कठोर नोकों से युक्त होते हैं। पत्रोदर पर एक नलिका सी होती है। पत्रपृष्ठ पर मध्य सिरा उठी रहती है। पत्रवृन्त अत्यन्त छोटा सा होता है। पत्र 8-10 वर्ष तक वृक्ष पर स्थायी रहते हैं। ये काण्ड में पेचदार क्रम में निकलते हैं। किन्तु देखने में दो पंक्तियों में निकले मालूम होते हैं।
- तालीसपत्र के फल – पुरुष फल-अवृन्त एकाकी या गुच्छों में होते हैं। स्त्री फल लंबगोल 4-6 इंच लम्बा, 1.5 से 3 इंच व्यास का, वर्षपाकी होता है।
- तालीसपत्र के बीज – बीज 1/2 से 1 इंच लम्बे पक्ष से युक्त अण्डाकार या आयताकार होते हैं। ये पकने पर गहरे बैगनी रंग के होते हैं।
तालीसपत्र के प्रकार :
तालीसपत्र की एक प्रजाति Abies Pindrow होती है जो पश्चिमी हिमालय में होती है। उपर्युक्त वृक्ष से यह बहुत मिलता जुलता हैं इसके पत्र कुछ बड़े होते हैं। इसे जौनजार में मारिण्डा और कुमायु में रोधा कहते हैं।
तालीसपत्र का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Talispatra Tree in Hindi)
प्रयोज्य अंग – पत्र या शाखाग्रसमन्वित पत्र ।
तालीसपत्र सेवन की मात्रा :
मात्रा – 2 से 5 ग्राम।
तालीसपत्र का रासायनिक संघटन :
- इसके पत्र में मुख्यरूप में स्फटिकीय क्षार तत्व तथा टेक्सीन नामक एल्कलायड होता है।
- पत्र में एक उड़नशील तेल भी होता है।
- पेड़ से एक सफेद राल (गोंद) भी निकलती है।
तालीसपत्र के औषधीय गुण (Talispatra ke Gun in Hindi)
- रस – तिक्त, मथुर (अभिधान रत्नमाला में इसका कटु रस कहा गया है)।
- गुण – लघु, तीक्ष्ण ।
- वीर्य – उष्ण।
- विपाक – कटु।
- वीर्यकालावधि – एक वर्ष तक ।
- गुणप्रकाशिका संज्ञा – मुखरोगहर।
- प्रतिनिधि – जीरा।
तालीसपत्र का औषधीय उपयोग (Medicinal Uses of Talispatra in Hindi)
आयुर्वेदिक मतानुसार तालीसपत्र के गुण और उपयोग –
- तालीसपत्र तिक्त, कटु, उष्ण और तीक्ष्ण होने से श्लेष्महर है। मुख्यतया श्लेष्महर होने से इसका वर्णन कफघ्न (कफ नाशक) व छेदन द्रव्यों के अन्तर्गत किया गया है।
- तालीसपत्र कफघ्न के साथ श्वासहर होने से श्वसनसंस्थान की व्याधियों में परमोपयोगी है।
- कास विकृति प्राण और उदान के संघर्षण से उत्पन्न होने वाली व्याधि है। इसके साथ में ही कफ वृद्धि भी होती है। तालीसपत्र इनको सम कर कास (खांसी) का शमन करता है। प्राणवहस्रोतस के साथ कास में रसवह स्रोतस में विकृति होती है।
- तालीसपत्र कफ-वातशामक होने के अतिरिक्त धात्वाग्निवर्धक है।
- तालीसपत्र रस दुष्टि को समाप्त कर कास को शीघ्र नष्ट करता है। राजयक्ष्मा में भी हृदयस्थ रस विकृति होकर ही कास आदि लक्षण प्रगट होते हैं ।
- कास (खांसी) में आचार्यों ने तालीसादि चूर्ण, तालीसादि वटी आदि का वर्णन किया है। तालीसादि चूर्ण से सभी परिचित है यह कास, श्वास, स्वर भेद, राजयक्ष्मा की उत्तम औषधि है।
- तमक श्वास में पुराण गोघृत में थोड़ा नमक मिलाकर छाती-पसली पर मलकर स्वेदन करने के पश्चात् तालीसादि वटी (चूर्ण से निर्मित) का उपयोग हितावह है।
- थोड़ा-थोड़ा तालीसादि चूर्ण सेवन करते रहने से स्वरभेद (वातज, कफज) भी शान्त होता है। तालीसादि चूर्ण के अतिरिक्त चव्यादि चूर्ण भी स्वरभेद में लाभप्रद है। इस चूर्ण का भी तालीस मुख्य घटक द्रव्य है।
- तालीसपत्र तिक्त होने से रोचक, दीपन एवं वातानुलोमन है। अतः यह अरुचि, अग्निमांद्य, आध्मान (पेट फूलना), अर्श (बवासीर) एवं गुल्म रोग (वायु गोला) में लाभदायक है। भास्कर लवण (चरक), महाखांडव चूर्ण (शांर्गधर), प्राणदावटी (बं से. सं.) आदि योगों में इसी लिये इसकी योजना की गई है।
- वातश्लेषिम ज्वर में तालीसपत्र विशेषण उपयोगी है। श्वासनलिका तथा फुफ्फुस (फेफड़ें) के शोथ (सूजन) को यह शीघ्र समाप्त करता है। वातश्लेष्मिक ज्वर का रोगी इसके उपयोग से लाभान्वित होता है। इससे उसका कफ आसानी से निकल जाता है, छाती की पीड़ा समाप्त होती है और ज्वर उतरता है। आन्त्रिक ज्वर में भी कफ शमनार्थ इसकी योजना उपयुक्त है।
- रसतन्त्रसार में वर्णित मधुरान्तक वटी में तालीसपत्र भी मिलाया जाता है। यह मूत्रवह स्रोत के शोथ एवं मूत्रकृच्छ् आदि में भी मूत्रल होने से हितावह है।
- प्रमेह, मूत्रकृच्छ, अश्मरी (पथरी) आदि रोगों में व्यहव शुक्रमातृका वटी में तालीसपत्र की योजना करने का यही कारण है।
- तालीसपत्र वेदनास्थापन होने से शिरःशूल, व्यातव्याधि में भी इसका मुख्यतः बाह्य प्रयोग किया जाता है। शागंधर संहिता में वर्णित वातरोगोपयोगी धतूरादि तैल में भी तालीसपत्र मिलाया जाता है।
- वेदना का निवारण करने के साथ ही तालीसपत्र व्रण का रोपण (घाव भरना) भी करता है।
यूनानी मतानुसार तालीसपत्र के गुण और उपयोग –
यूनानी मतानुसार तालीसपत्र दूसरे दर्जे में गरम और रूक्ष है। यह अर्दित, पक्षवध, रक्तपित्त, रक्तस्राव, अतिसार बवासीर, आन्त्रक्षत में लाभप्रद है।
रोगोपचार में तालीसपत्र के फायदे (Benefits of Talispatra in Hindi)
1. सर दर्द (शिरःशूल) में लाभकारी है तालीसपत्र का प्रयोग :
- तालीसपत्र को पीसकर लेप करने से शिरःशूल मिटता है।
- तालीसपत्र के गोंद को गुलाब तैल में मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है।( और पढ़े – सिर दर्द के 41 घरेलू नुस्खे )
2. बहुमूत्र में तालीसपत्र का उपयोग फायदेमंद : तालीसपत्र और सोंठ को पानी में पीसकर नाभि के नीचे लेप करें। ( और पढ़े – बार बार पेशाब आना (बहुमूत्र) के घरेलू उपचार )
3. व्यंग रोग (मुँह पर काली फुन्सियाँ) में तालीसपत्र के इस्तेमाल से लाभ : तालीसपत्र, मुलहठी, तगर और अगर को जल में पीसकर लेप करने से मुख की व्यंग, नीलिका आदि मिटकर मुख की कान्ति बढ़ती है।
4. खांसी (कास) में लाभकारी तालीसपत्र :
- तालीस चूर्ण को मधु में मिलाकर सेवन करें।
- तालीसपत्र चूर्ण को अद्रक स्वरस के साथ सेवन करें।
- कुकरकास में तालीसपत्र को गरम जल में भिगोकर मसल छानकर पीना चाहिये।( और पढ़े – कफ दूर करने के देशी नुस्खे )
5. श्वास रोग दूर करने में तालीसपत्र फायदेमंद :
- तालीसपत्र चूर्ण को वांसा स्वरस एवं मधु के साथ सेवन करें। इससे तमकश्वास एवं रक्तपित्त में लाभ होता है।
- तालीसपत्र चूर्ण एवं हरिद्रा चूर्ण को चिलम में रखकर धूम्रपान करें।( और पढ़े – दमा (अस्थमा / श्वास) में क्या खाएं और क्या न खाएं )
6. क्षय रोग मिटाता है तालीसपत्र :
- तालीसपत्र चूर्ण को वांसापत्र क्वाथ से सेवन करें।
- तालीसपत्र चूर्ण से दुगना सितोपलादि चूर्ण धृत, मधु से सेवन करें।
7. कमजोरी मिटाए तालीसपत्र का उपयोग : तालीसपत्र चूर्ण, इलायची, वंशलोचन चूर्ण को मधु के साथ सेवन करें।( और पढ़े – चमत्कारी 18 उपाय जो शरीर को बनाये तेजस्वी और बलवान )
8. अतिसार (दस्त) में तालीसपत्र के सेवन से लाभ : तालीसपत्र चूर्ण को इन्द्र जौ के साथ या विल्वपानक (बेल का मीठा पेय) के साथ सेवन करना हितकर है।
9. उदरशूल में तालीसपत्र के प्रयोग से लाभ : तालीसपत्र चूर्ण में कालानमक मिलाकर सेवन करें।
10. स्वरभंग में तालीसपत्र के इस्तेमाल से फायदा : तालीसपत्र क्वाथ या फांट (सर्बत) पीवें।
11. सूतिका रोग (प्रसव के बाद महिलाओं के रोग) में लाभकारी है तालीसपत्र का सेवन : प्रसूता स्त्री की बलवृद्धि के लिये तालीसपत्र चूर्ण को दुग्ध के साथ सेवन करना लाभप्रद है।
12. अरुचि में तालीसपत्र का उपयोग फायदेमंद : तालीसपत्र चूर्ण एवं थोड़े कपूर को मिश्री की चासनी में मिलाकर गोलियां बनाकर सेवन करने से अरुचि मिटती है। यह राजयक्ष्मा जन्य अरुचि में विशेषकर लाभप्रद है। ( और पढ़े – मंदाग्नि दूर कर भूख बढ़ाने के 51 अचूक उपाय )
13. मिर्गी (अपस्मार) में आराम दिलाए तालीसपत्र का सेवन : तालीसपत्र चूर्ण में वचा व ब्राह्मी चूर्ण को मिलाकर खायें।
14. पेट फूलना (आध्मान) ठीक करे तालीसपत्र का प्रयोग : तालीसपत्र चूर्ण को अजवायन चूर्ण के साथ सेवन करें।
15. मुह के छाले (मुखपाक) में फायदेमंद तालीसपत्र : तालीसपत्र क्वाथ का गण्डूष (कुल्ला) धारण करना हितकर है। ( और पढ़े – मुंह के छाले का आयुर्वेदिक इलाज )
16. बालरोग मिटाए तालीसपत्र का उपयोग : दांत निकलने के कारण उत्पन्न ज्वर में तालीसपत्र स्वरस 5 से 10 बूंद जल या माँ के दूध में मिलाकर सेवन कराना हितकारी है।
17. दन्त रोग ठीक करे तालीसपत्र का प्रयोग :
- तालीसपत्र क्वाथ में सिरका मिलाकर गण्डूष (कुल्ला) करने से दन्तशूल मिटता है।
- तालीसपत्र, रूमीमस्तंगी, फिटकरी और सैंन्धव चूर्ण का दन्तरोगों में मंजन हितकर है।
19. अरुचि होना: लगभग 3 ग्राम मिश्री और 3 ग्राम तालीसपत्र का चूर्ण दिन में 2 बार सेवन करने से अरुचि (भोजन की इच्छा न होना), खांसी, श्वास (दमा) व स्वर भंग आदि रोगों में लाभ मिलता है।
20. बुखार : चंदन लकड़ी और तालीसपत्र को पानी में पीसकर लेप करने से बुखार, खांसी, जुकाम व सिरदर्द आदि में लाभ होता है।
21. सभी रोगों में : 10 ग्राम तालीसपत्र, 20 ग्राम काली मिर्च, 30 ग्राम सोंठ, 40 ग्राम पीपल, 50 ग्राम वंशलोचन, 60 ग्राम इलायची तथा मिश्री 320 ग्राम इन सब को लेकर कूटकर छान लें और इसे शहद के साथ सेवन करें। इससे प्राय: सभी रोगों में लाभ मिलता है।
22. ब्रोंकाइटिस (श्वासनली की सूजन) : पुराने श्वासनली की सूजन को ठीक करने के लिए तालीसपत्र का काढा सेवन करें। इसे प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। जीर्णश्वसनिका (वायु प्रणाली) शोथ में शीतलचीनी का तेल गरम पानी में डालकर, वाष्प सूंघने से बहुत लाभ मिलता है।
23. दमा या श्वास का रोग :
- तालीसपत्र का चूर्ण 1200 मिलीग्राम से लेकर 2400 मिलीग्राम की मात्रा दिन में सुबह-शाम दोनों समय सेवन करने से श्वास रोग (दमा) में लाभ मिलता है।
- तालीसपत्र का चूर्ण 1 से 2 ग्राम शहद एवं वासा रस के साथ सुबह-शाम सेवन करने से श्वास रोग (दमा) में लाभ मिलता है।
24. काली खांसी : 2 से लगभग 4 ग्राम की मात्रा में तालीसपत्र को गर्म पानी में भिगोकर रोगी को पिलाने से कुत्ता खांसी (कुकुर खांसी) ठीक हो जाती है।
25. खांसी :
- तालीस 10 ग्राम, 20 ग्राम सोंठ, 30 ग्राम मिर्च, 40 ग्राम पीपल, 50 ग्राम वंशलोचन व 10 ग्राम तज इन सभी को पीसकर छानकर चूर्ण बना लें। इस बने चूर्ण को लगभग 480 से 720 मिलीग्राम तक की मात्रा को सुबह के समय सेवन करने से बुखार, खांसी, श्वास रोग, हिचकी तथा पेचिश रोग दूर हो जाते हैं।
- 120 से 240 मिलीग्राम तालीसपत्र का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से खांसी ठीक हो जाती है।
- तालीसपत्र के 1 से 2 ग्राम चूर्ण के साथ शहद एवं वासा का रस सुबह-शाम पीने से खांसी तथा श्वास से सम्बंधित रोगों में लाभ मिलता है।
26. जीभ की जलन और सूजन : तालीस के पत्तों का काढ़ा बनाकर 20 से 40 मिलीलीटर रोजाना सुबह-शाम पीने से जीभ की जलन और सूजन मिटती है।
तालीसपत्र से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (कल्प) :
तालीसादि चूर्ण –
(क) तालीसपत्र, सोम, मुलहठी, अडूसे के फूल और पुष्करमूल सब समभाग लें, कपड़छन चूर्ण कर, 500 से 700 मि.ग्रा. की मात्रा में दिन में 3 से 4 बार शहद के साथ दें।
इस चूर्ण से श्वास, खांसी और जुकाम में लाभ होता है। – सि. यो. संग्रह
(ख) तालीसपत्र 12 ग्राम, कालीमिर्च 24 ग्राम, सोंठ 36 ग्राम, पीपल 48 ग्राम, वंशलोचन 60 ग्राम, छोटी इलायची 6 ग्राम और दालचीनी 6 ग्राम इन सबका मलीन चूर्ण कर सब द्रव्यों के चूर्ण से दुगनी (384 ग्राम) मिश्री या चीनी पीसकर मिलाकर रख लें। 2-3 ग्राम चूर्ण प्रातः सायं मधु और घी के साथ दें। इस चूर्ण के सेवन से खांसी, विशेषकर सूखी खांसी, जीर्णज्वर, अग्निमांद्य, संग्रहणी, अरुचि और पाचन शक्ति की कमी आदि विकार मिटते हैं। यह चूर्ण कुछ उष्ण, पाचक, अग्निदीपक और दस्त को रोकने वाला है। – आ. सा. सं.
(ग) तालीसपत्र, काकड़ासिंगी, पिप्पली, कालीमिर्च, सोंठ, हरड़, मुनक्का, लौंग, छुहारा, अनारदाना, दालचीनी, नागकेशर, सफेद जीरा, कालाजीरा, इलायची, नेत्रवाला, तोखाखीर, तमालपत्र, वंशलोचन, कचूर सब बराबर और सबके बराबर मिश्री मिला कपड़छन चूर्ण कर 3 से 4 ग्राम रोगी को सेवन करावें तो बवासीर, श्वास, कास, उदररोग, पाण्डु, ज्वर, उदरशूल, मन्दाग्नि, अरुचि, रक्तपित्त, अजीर्ण ये सब रोग दूर होते हैं। – मेघ विनोद
तालीसादि वटी –
(क) चूर्ण के प्रसंग ख में चूर्ण को शर्करा की चासनी बनाकर उसमें समस्त द्रव्य मिलाकर वटी भी बनाई जा सकती है। – शा. सं.
(ख) तालीसपत्र, चित्रक अजवाइन, चव्य, अम्लवेत, त्रिकटु, समभाग लेकर चूर्ण कर उसमें त्रिसुन्धि (दालचीनी, तेजपात, इलायची) का चूर्ण सब चूर्णों का चतुर्थांश मिलाकर और सबका दूना गुड़ डालकर गोली बनावें। इसके सेवन से कास (खांसी), श्वास, अरुचि, पीनस (रोग जिसमें नाक से दुर्गंधमय गाढ़ा पानी निकलता है), हृदय-कंठ, वाणी की स्तब्धता, ग्रहणी आदि मिटते हैं। यह व्योषान्तिका वटी है। -च. द.
तालीसादि पाक –
(क) तालीसपत्र 1 भाग, कालीमिर्च 2 भाग, सोंठ 3 भाग, वंशलोचन 4 भाग, पिप्पली 5 भाग, दालचीनी 1/2 भाग, छोटी इलायची 1/2 भाग इन सब का महीन चूर्ण करें। फिर पिप्पली से अठगुनी (अर्थात आठ भाग) मिश्री की चाशनी में सबको मिलाकर पाक जमा दें या मोदक बना रखें।
3 से 6 ग्राम तक सेवन करने से श्वास, कास, अरुचि, हृदय रोग, पाण्डु, संग्रहणी, प्लीहा, शोथ, ज्वर छर्दि, अतिसार, शूल आदि रोग नष्ट हो जाते हैं यह अत्यन्त जठराग्नि दीपक है। तथा मूढवात (रुके हुये मलवात) का अनुमोलन करता है।
(ख) तालीसपत्र, तज, काल्मी, पत्रज, छोटी इलायची, नागकेशर, सोंठ, मिर्च, पीपल, पीपलामूल, सारुवा के बीज, त्रिफला, जायफल, जायपत्री चित्रक, पोहकरमूल, दोनों अजवाइन, दोनों जीरे, असगन्ध नागौरी, नागरमौंथा, वंशलोचन, भुनी कलौंजी, और धनियां समभाग लेकर चूर्ण करें। पश्चात् सब चूर्ण से दो गुना शक्कर की चाशनी में पाक जमा दें।
3 ग्राम से 6 ग्राम तक प्रातः सायं दूध के अनुपान से सेवन करने से बढ़ा हुआ पित्तज्वर, खांसी, क्षय, दाह, अजीर्ण आदि रोग शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। शरीर में बल की वृद्धि होती है। – वृ. पा. सं.
तालिसादि तैल –
तालीसपत्र, पद्माख, जटामांसी, रेणुका (सम्भालू के बीज) अगर, चन्दन, हल्दी, दारु हल्दी, कमलगट्टा और मुलहठी सब समभाग 6-6 ग्राम लेकर पीसकर कल्क बनायें, फिर उक्त प्रत्येक द्रव्य 48-48 ग्राम, पानी 4 लीटर 384 मि.ली. में पका, चतुर्थांश क्वाथ मिलाकर तैल सिद्ध कर लें। तैल सिद्ध हो जाने पर ठण्डा कर पात्रों में रख लें।
यह तैल सब प्रकार के व्रणों (घावों) के लिये उपयोगी है। इसको बनाकर व्रण बन्धन करने से व्रण का शीघ्र ही रोपण (घाव भरना) होने लगता है। – सुश्रुतसंहिता
तालीसपत्र के दुष्प्रभाव (Talispatra ke Nuksan in Hindi)
- तालीसपत्र का अत्यधिक मात्रा में सेवन फेफड़ों के लिये हानिकारक हो सकता है ।
- तालीसपत्र के सेवन से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- तालीसपत्र को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
दोषों को दूर करने के लिए : इसके दोषों को दूर करने के लिए मधु का सेवन हितकर है।
अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।