तंबाकू क्या है ? : Tobacco in Hindi
तंबाकू एक समूह में उत्पन्न होने वाली वनस्पति है। इसका पौधा लगभग 90 सेंटीमीटर तक ऊंचा होता है। बीड़ी तथा सिगरेट के रूप में अधिकतर लोग तंबाकू के पत्तों का सेवन करते हैं। इसका उपयोग धूम्रपान करने में अधिक किया जाता है। स्वास्थ्य के लिए धूम्रपान करना हानिकारक होता है।
तंबाकू का मूल उत्पत्ति स्थान अमेरिका है पर शायद सम्राट अकबर के ज़माने में पहली बार पुर्तगाली लोग इसे भारत में लाये थे। अब तो इसकी खेती लगभग सारे भारत में होती है और देश भर में इसका उपयोग व्यापक रूप से होता है। भारत में इसकी कई क़िस्में पाई जाती हैं जैसे देशी तंबाकू, कलकतिया, पूरबी, सुरती, मैनपुरी, गुजराती, भोपाली आदि। अनेक निर्माता अनेक नामों, नम्बरों और छापों (Brands) के रूप में खुशबूदार तंबाकू बना रहे हैं और लाखों रुपया इसकी पब्लिसिटी पर खर्च करके इसे लोकप्रिय बना कर खूब धन कमा रहे हैं।
तंबाकू का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Tobacco in Different Languages
Tobacco in –
✦ संस्कृत (Sanskrit) – ताम्रपर्ण
✦ हिन्दी (Hindi) – तमाकू, तमाखू
✦ मराठी (Marathi) – तम्बाखू
✦ गुजराती (Gujarati) – तमाकू
✦ बंगला (Bengali) – तामाकू
✦ तेलगु (Telugu) – पोगकु
✦ तामिल (Tamil) – पुगैलई
✦ मलयालम (Malayalam) – पोकल
✦ कन्नड़ (Kannada) – होगेसोप्पु
✦ फ़ारसी (Farsi) – तंबाकू
✦ इंगलिश (English) – टोबैको (Tobacco)
✦ लैटिन (Latin) – निकोटियाना टेबेकम(Nicotiana Tabacum Linn)
तंबाकू के नुकसान : Tambaku Sevan ke Dushparinam in Hindi
तंबाकू में अनेक विषैले तत्व होते हैं जिनमें सबसे प्रमुख विषैला तत्व ‘निकोटिन’ नामक विष है जिसका नामकरण इसकी खोज करने वाले वैज्ञानिक ‘जीन निकोट’ के नाम पर करके इसे ‘निकोटिन’ या ‘निकोटियाना’ कहा गया है। इसी विष के कारण तंबाकू लाभकारी कम और हानिकारक ज्यादा होता है।
निकोटिन का प्रभाव –
1- तंबाकू के सेवन से, इसमें मौजूद ‘निकोटिन’ के प्रभाव से, स्नायविक संस्थान को शुरू-शुरू में जो उत्तेजना मिलती है उससे ऐसा लगता है कि बड़ी चुस्ती-फुर्ती पैदा हो रही है लेकिन बाद में यही ‘निकोटिन’ (Nicotine) स्नायविक-संस्थान में शिथिलता पैदा करता है।
2- इसका उत्तेजक प्रभाव आंतों में गतिशीलता पैदा कर देता है जिससे दस्त जल्दी और खुलासा हो जाता है पर धीरे-धीरे निकोटिन के असर से आंतें शिथिल होती जाती हैं और फिर क़ब्ज़ रहने लगता है लिहाज़ा तंबाकू के सेवन की ज़रूरत बराबर पड़ती रहती है।ज्यादा मात्रा में, बार-बार और ग़लत ढंग से तंबाकू का सेवन करने पर ही ऐसे परिणाम होते हैं।
3- इसके सेवन से लार का स्राव बढ़ता है, मुख की त्वचा, तालू, गले, अन्ननलिका और लालारस-ग्रन्थियों के माध्यम से निकोटिन आमाशय से होता हुआ गुर्दो तक पहुंचता है और इस तरह इन सभी अंगों को अपने विषाक्त प्रभाव से दूषित करता है।
4- तंबाकू में पाये जाने वाले प्रमुख विष ‘निकोटिन’ के अलावा अन्य और भी विषाक्त तत्व पाये जाते हैं। डॉ. गंगा प्रसाद गौड़ ने ‘तंबाकू के गुण दोष’ नामक पुस्तिका में 33 प्रकार के विषों का उल्लेख किया है जिनके नाम निम्नलिखित हैं –
(1) निकोटिन (2) पूसिक एसिड (3) कॉर्बनमोनो ऑक्साइड (4) पाइराडीन बेसेज़ (5) पोलोनियम (6) एक्रोलिन (7) फुरफुरल (8) कोलोडीन (9) कार्बोलिक एसिड (10) अमोनिया (11) राजोलिन (12) पाइरिन (13) रेडियम (14) आर्सेनिक संख्या (15) कृमिनाशक विषैला घोल (16) साइनोजिन (17) मार्शगेस (18) कॉरबन डाइ ऑक्साइड (19) कोलटार (20) मेथिलेमिन (21) सल्फरेटेड (22) पारोलिन (23) केरिडीन (24) पायक्रोलिन (25) लूटीडीन (26) रुबीडीन (27) वारीडीन (28) मोनो साइनाइड्स (29) साइनाइड्स (30) पाइरोल (31) फार्मिक एल्डीहाइड (32) हाइड्रोसाइनिक एसिड (33) फेनोल्स।
हमें यह तो ज्ञान नहीं कि निकोटिन के अलावा पाये जाने वाले ये 32 विषाक्त तत्व क्या-क्या कारनामें करते हैं पर इतना तो समझते ही हैं कि इन सब तत्वों के खलीफ़ा निकोटिन की तरह यह भी शरीर में विष ही घोलते होंगे।
5- अकेला निकोटिन ही इतना तीव्र विषाक्त क्षाराभ ( A very Poisonous alkoloid, C, H, N, Obtained from tobacco) होता है कि ‘द्रव्य गुण विज्ञान’ नामक ग्रन्थ के अनुसार निकोटिन की 40 मि. ग्रा. मात्रा ही मनुष्य के लिए घातक सिद्ध होती है।
6- इन विषों से युक्त तंबाकू का सेवन करने से हमारे शरीर और स्वास्थ्य पर दीर्घकाल में जो प्रभाव पड़ता है उससे कई प्रकार की व्याधियां पैदा हो सकती हैं और ‘तदुःख संयोगा व्याधय उच्यन्ते’ (सुश्रुत) के अनुसार जिसके संयोग से दुःख होता हो उसे व्याधि कहते हैं लिहाज़ा कोई भी व्याधि हो, दुःखदाई ही होगी। इन व्याधियों में मुख, गले, अन्न नलिका, फेफड़े, आमाशय या आंतों में कहीं भी कैंसर होने की सम्भावना पैदा हो सकती है।
7- भारत में मुंह के कैंसर के रोगी ज्यादा पाये जाते हैं और इसका एक कारण तंबाकू सेवन करना भी है।
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8- इसके अलावा कालान्तर में स्नायविक दौर्बल्य, नेत्रों की ज्योति कम होना, धातु विकार, यौन शक्ति में कमी होना, अम्लपित्त (हायपरएसिडिटी), पित्त प्रकोप, स्मरण-शक्ति में कमी, सांस फूलना, श्वास कष्ट पेप्टिक अलसर, स्मरणशक्ति में कमी, क़ब्ज़ होना, तंबाकू को अति मात्रा में लम्बे समय तक सेवन करने के दूरगामी निश्चित परिणाम हैं।
9- निकोटिन के विषय में श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन के संस्थापक वैद्य पं. रामनारायणजी शमा अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ आरोग्य प्रकाश’ के पृष्ठ 54 पर लिखते हैं
‘तंबाकू में निकोटिन नामक इतना विषैला पदार्थ होता है कि उसकी केवल दो बूंद से कुत्ता और आठ बूंद से घोड़ा मर सकता है। यह विष मनुष्य-शरीर में, धीरे-धीरे रक्त में मिल कर अनेकानेक भयंकर रोगों का कारण बनता है। तंबाकू में मादक तत्व होते हैं इसलिए वह कुछ दिन लेने से आदत में बस जाती है।’
10- इसको अधिक मात्रा में लम्बे समय तक सेवन करने से यह ओज क्षय करता है, धातु क्षीण करता है और स्नायविक दौर्बल्य उत्पन्न करता है।
11- फेफड़ों में दोष और क्षय उत्पन्न करता है।
12- धूम्रपान का सर्वाधिक दूषित प्रभाव गले, श्वास नलिका और फेफड़े पर पड़ता है जबकि चबा कर खाने का मुख, गाल, कण्ठ, अन्न नलिका, आमाशय, आंतों, गुरदों और मलाशय आदि अंगों पर प्रभाव पड़ता है।
13- तम्बाकू को अधिक मात्रा में खाने से श्वास व हृदय पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
14- तम्बाकू सेवन से कई प्रकार के रोग व मृत्यु हो सकती है।
15- तम्बाकू खाने पर चक्कर आने लगते हैं।
16- तम्बाकू को ज्यादा खाने से पौरुष शक्ति कम हो जाती है।
17- बालक व युवकों को तम्बाकू पीना और खाना नहीं चाहिए क्योंकि इससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।
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क्या तमाकू के सेवन से कोई लाभ भी होता है या सिर्फ हानि ही होती है ? अगर सिर्फ हानि ही होती है तो सवाल उठता है कि प्रकृति ने ऐसी हानिकारक वस्तु पैदा ही क्यों की ? इसका उत्तर आयुर्वेद इस प्रकार देता है-
‘अनेनोपदेशेन नानौषधि भूतं जगति किंचिद् द्रव्यमुपलभ्यते तां तां युक्तिमर्थ च तं तमभिप्रेत्य‘ (चरक संहिता सूत्र स्थान)
अर्थात् – इस प्रकार के उपदेश से यह सिद्ध हो जाता है कि संसार में ऐसा कोई भी द्रव्य नहीं है जो औषधि न हो। भिन्न-भिन्न युक्ति एवं प्रयोजन से प्रयोग करने पर प्रत्येक द्रव्य औषधि का काम करता है। वाग्भट ने भी कहा है –
‘जगत्येवमनौषधम् । न किञ्चिदविद्यते द्रव्यं वशान्नार्थयोगयोः‘(अष्टांङ्ग हृदय सूत्र स्थान)
अर्थात् -जगत में कोई भी द्रव्य अनौषध (Non medicinal) नहीं है। प्रयोजन एवं योजना की भिन्न-भिन्न दृष्टि से संसार का प्रत्येक द्रव्य औषधरूप है।
‘विषं प्राणहरं तच्च युक्तियुक्तं रसायनम्’ के अनुसार ज़हर यद्यपि प्राणों को हर लेने वाला (मृत्युकारक) होता है तो भी युक्तिपूर्वक प्रयोग करने पर वह रसायन (औषधि) का कार्य करता है। कोई भी पदार्थ मात्रा, काल, क्रिया, भूमि, देह, दोष और व्यक्ति की अवस्था विशेष के अनुसार ही हितकारी भी सिद्ध हो सकता है और अहितकारी भी सिद्ध हो सकता है। आग से चूल्हा भी जलाया जा सकता है और घर को भी जलाया जा सकता है।
इस दृष्टि से तंबाकू (तमाकू) के विषय में भी यह कहा जा सकता है कि इसे उचित युक्ति, मात्रा और काल आदि का खयाल रख कर यदि प्रयोग किया जाए तो यह औषधि का काम दे सकता है और इसे उचित विधि से, औषधि के रूप में ही सेवन करना चाहिए आहार के रूप में, अति मात्रा में नहीं।
अब इसके औषधि रूप में लाभों के विषय में विचार करें।
तंबाकू के औषधीय गुण : Medicinal Properties of Tobacco in Hindi
☛ इसके पत्ते स्वाद में कड़वे व तीखे, उष्ण, दस्तावर, चक्कर पैदा करने वाले होते है ।
☛ तंबाकू के पत्ते स्नायुओं को उत्तेजित करने वाले, हलका नशा देने वाले, मतली व घबराहट पैदा करने वाले होते है ।
☛ यह कफ एवं वात का नाश करने वाले, श्वास व खांसी का कष्ट दूर करने वाले है ।
☛ तंबाकू शोथनाशक, अफारा व गैस मिटाने वाले है
☛ यह दांत व मसूढों की सड़न दूर करने वाले, कृमि तथा त्वचा रोग नष्ट करने वाले तथा पित्तकारक होते हैं।
☛ यह पहले उत्तेजना एवं बाद में अवसाद तथा शिथिलता उत्पन्न करने वाले होते हैं।
औषधि रूप में तंबाकू के फायदे : Tambaku ke Fayde in Hindi
तंबाकू का सेवन एक लत यानी आदत के रूप में न करके, आवश्यक होने पर, औषधि के रूप में ही करें और उचित विधि, युक्ति तथा मात्रा का पालन करते हुए ही करें।
1- कफजन्य रोग –
यह तीक्ष्ण (तीखा) और उष्ण होने से कफ एवं वात का शमन करता है अतः कफजन्य एवं वातजन्य रोगों को दूर करता है ।
2- कब्ज –
खांसी, श्वास कष्ट, अफारा, गैस ट्रबल (वायु प्रकोप) कब्ज आदि व्याधियां इसी कारण से दूर करता है।
3- लालास्राव –
यदि अल्प मात्रा में सेवन किया जाए तो स्नायविक ग्रन्थियों और पेशियों की क्रिया को गति एवं उत्तेजना प्रदान करता है जिससे लालास्राव (Saliva) और आमाशयिक स्राव में वृद्धि होती है।
4- गैस –
आन्त्र पेशियों की गति बढ़ाने से वायु का अनुलोमन होता है जिससे अधोवायु निकल जाती है और गैस का तनाव दूर हो जाता है।
5- कृमिनाशक –
कृमिनाशक होने से दांतों व मसूढ़ों के कृमियों को नष्ट कर दन्तपीड़ा दूर करता है मसूढ़ों की सड़न और पायरिया रोग को रोकता है इसलिए दन्त मंजन में तंबाकू का प्रयोग किया जाता है।
6- श्वास रोग –
यह श्वास रोग में लाभ करता है।
7-हिचकी –
मूत्र प्रणाली शोथ (Renal colic) शूल, श्वास कास, हिचकी, शूल, आध्मान आदि व्याधियों को दूर करने में उपयोगी होता है।
तंबाकू और स्वास्थ्य :
अब स्वास्थ्य की रक्षा की दृष्टि से हम तंबाकू सेवन करने की विधियों पर विचार करते हैं। यह बात तो बिल्कुल स्पष्ट है कि तंबाकू का सेवन किसी भी विधि से किया जाए, यह है तो प्रकृति के विरुद्ध ही। इसका अकाट्य प्रमाण यह है कि हमारी प्रकृति इसे एकदम से स्वीकार नहीं करती बल्कि इसको मुंह में रखते ही प्रबल विरोध करती है।
आप जितनी आसानी से किसी सब्ज़ी का पत्ता, पान का पत्ता या तुलसी का पत्ता मुंह में रख कर चबा जाते हैं उतनी आसानी से तंबाकू की 2-3 पत्ती भी मुंह में नहीं रख सकते । मुंह में तंबाकू रखते ही जी घबराना, मिचलाना, चक्कर आना, पसीना आना आदि उपद्रव शुरू हो जाते हैं। बीड़ी या सिगरेट का धुआं अन्दर खींचते ही ज़ोर का ठसका लगता है। इसी तरह नस्य सूंघने पर एक के बाद एक छींकें तब तक आती रहती हैं जब तक नस्य बिल्कुल निकल न जाए।
किसी भी विधि से तंबाकू का सेवन शुरू करने पर ये उपद्रव होते ही हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि किसी भी पद्धति से तंबाकू का सेवन करना प्राकृतिक कार्य नहीं है बल्कि यह कार्य हमारी प्रकृति के विपरीत है। लेकिन कोशिश करते करते हमारी प्रकृति बदलने लगती है और फिर हम धूम्रपान करने या तंबाकू खाने के आदी हो जाते हैं यानी हमारी प्रकृति ही वैसी हो जाती है।
यदि तंबाकू के सेवन की विधियों में से कोई विधि चुनना ही पड़े तो धूम्रपान करने की अपेक्षा तंबाकू खाना ही चुनना चाहिए क्योंकि धूम्रपान करना हर हालत में सिर्फ हानिकारक ही होता है, लाभदायक क़तई नहीं जबकि तंबाकू खाना अपेक्षाकृत उतना हानिकारक नहीं होता ।
सबसे मुख्य बात तो यह है कि तंबाकू का सेवन किया ही क्यों जाए ?
इसका उत्तर आयुर्वेद यह देता है कि औषधि के रूप में इसका सेवन किया जा सकता है। इस दृष्टि से धूम्रपान तब तक किसी भी दृष्टि से औषधि साबित नहीं हो सकता जब तक तंबाकू की जगह आयुर्वेदिक द्रव्यों से बनी आयुर्वेदिक धूम्रपान के अनुसार बनी हुई बीड़ी या सिगरेट का उपयोग नहीं किया जाए ।
धूम्रपान में धुआं सीधा फेफड़ों तक पहुंचता है और फेफड़ों पर विषाक्त प्रभाव डालता रहता है इसे तो नहीं रोका जा सकता पर तंबाकू खाने वाला इसकी पीक बराबर थूकता ही रहे, अन्दर न निगले और पानी से खूब कुल्ले करने के बाद ही कुछ खाए-पिए तो तंबाकू को पेट के अन्दर जाने से रोक सकता है। अब लालारस ग्रन्थियों के माध्यम से तंबाकू का जितना अंश या प्रभाव शरीर में ग्रहण किया जाएगा उसकी मात्रा बहुत ही कम होगी और यह न्यून मात्रा विष का नहीं, औषधि का ही काम करेगी। तंबाकू खाने वाले इसकी पीक यदि निगलते हैं तो इसकी मात्रा बढ़ती है और तंबाकू पेट में भी पहुंचता है बस यही स्थिति हानिकारक होती है।
जितनी बार तंबाकू खाएंगे और निगलेंगे उतनी ही मात्रा में तंबाकू पेट के माध्यम से सारे शरीर में पहुंचता जाएगा और बढ़ता जाएगा लिहाज़ा जो द्रव्य अल्प मात्रा में औषधि का काम कर सकता था वह मात्रा बढ़ जाने से विष का काम करने लगेगा।और अधिक मात्रा में लेने पर तो ‘प्राणाः प्राणभृतामन्नंतदयुक्त्या हिनस्त्यसून’ (चरक संहिता) के अनुसार प्राणों का रक्षक अन्न भी प्राणों के लिए अहितकारी एवं घातक (Food Poison) सिद्ध हो कर हमारे प्राण संकट में डाल देता है।
स्वास्थ्य रक्षा के विषय में, धूम्रपान विधि से तंबाकू का सेवन करना किसी भी दृष्टि से उपयोगी और हितकारी सिद्ध नहीं होता अतः इस विधि के विषय में कोई चर्चा न करके सिर्फ तंबाकू खाने वालों को, स्वास्थ्य रक्षक सावधानियों के विषय में कुछ बातें बता रहे हैं।
तंबाकू खाने वालों के लिए सावधानियाँ :
१) तंबाकू का सेवन एक लत यानी आदत के रूप में न करके ।
२) यदि आप तंबाकू खाने के आदी हो ही चुके हैं तो दिन भर में कई बार न खा कर कम से कम बार खाया करें ताकि इसकी अति न हो। विशेषकर भोजन करने से आधा घण्टे पहले से और आधा घण्टा बाद तक की अवधि में तंबाकू कदापि न खाएं ताकि थूकना न पड़े और मुंह का लालारस पेट में पहुंचता रह जो भोजन पचाने के लिए उपयोगी व ज़रूरी होता है।
३) भूखे पेट, परिश्रम करते समय, तेज़ धूप में, प्रचण्ड गरमी में, प्यास की स्थिति में और सोते समय तंबाकू कदापि न खाएं। जब-जब तंबाकू खाने की तलब लगे तब-तब यही कोशिश करें कि अभी नहीं, थोड़ी देर से। जितना रुक कर खा सकें उतनी देर रुक कर खाएं। इससे तंबाकू की मात्रा कम होगी और आपका मन पर नियंत्रण बढेगा ।
४) सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब तक मुंह में तंबाकू हो तब तक कोई चीज़ खाना पीना तो बहुत दूर की बात है आप थूक तक न निगलें ताकि तंबाकू का ज़रा सा अंश भी पेट में न पहुंच सके। कुछ लोग आलस्यवश या थूकने का उचित स्थान या अवसर न मिल पाने पर पीक निगलते रहते हैं और ऐसी आदत डाल लेते हैं जिससे तंबाकू उनके पेट में पहुंचता रहता है और इसकी मात्रा बढ़ जाने से विष का काम करने लगता है। यह विष रक्त संचार के माध्यम से सारे शरीर और इसके अवयवों को दूषित करने लगता है। इसके विपरीत, तंबाकू न निगलने पर मुख की ग्रन्थियों द्वारा जिस न्यूनमात्रा में तंबाकू का अंश शरीर में पहुंचेगा वह विष का नहीं औषधि का ही काम करेगा।
५) सिर्फ तंबाकू मसल कर खाने वालों से कहनी है कि तंबाकू को मुंह में – किसी स्थान पर गाल से दबा कर न रखा करें, बल्कि पूरे मुंह में घुमाते रहें ताकि उस खास स्थान पर घाव (अलसर) न बन सके।
६) सिर्फ़ खेत की सादी पत्ती खाना ही निरापद होता है अतः खूशबुदार, सेन्थेटिक पद्धति से बनाई गई तंबाकू न खा कर सादी तंबाकू का ही सेवन करना चाहिए।
७) खाते, पीते और सोते समय मुंह में तंबाकू नहीं होना चाहिए। तीनों अवस्थाओं में मुंह खूब साफ़ करना और दन्त मंजन करना अनिवार्य है। यह सभी बातें उनके लिए हैं जो पहले से ही तंबाकू का सेवन करने के आदी हो चुके हैं। जो अभी तक इससे बचे हुए हैं वे बचे ही रहें यही उत्तम होगा।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)