यवक्षार क्या है? इसके फायदे, उपयोग, मात्रा, बनाने की विधि और दुष्प्रभाव 

Last Updated on September 28, 2023 by admin

परिचय:

आयुर्वेद की सागर-समान गहराई में अनगिनत रत्न छिपे हुए हैं, जिनमें से ‘यवक्षार’ एक अनूठा रत्न है।

जौ का पौधा तो आप सभी जानते ही हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसी जौ के पौधे से एक जादुई दवा बनती है? जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ यवक्षार की!

यवक्षार एक आयुर्वेदिक औषधि है जो जौ के पौधे से बनाई जाती है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर यह यवक्षार इतना खास क्यों है? यवक्षार में अनेक औषधीय गुण पाए जाते हैं। यह मूत्र रोगों, पेट दर्द, सूजन आदि कई समस्याओं का इलाज करने में मदद करता है। इसके अलावा यह शरीर को डिटॉक्सिफाई भी करता है।

इस प्रकार जौ का साधारण सा पौधा भी यवक्षार के रूप में हमारे लिए एक अमूल्य औषधि बन जाता है! आइए, हम आपको यवक्षार की अद्वितीय दुनिया में ले जाते हैं, जहां हर रहस्य और उपयोग आपके सामने उजागर होगा। चलिए, शुरू करते हैं!

यवक्षार क्या है? (Yavakshara in Hindi)

आयुर्वेद की अद्वितीय गहराई में प्रवेश करते ही हमें अनेक जड़ी-बूटियों और उपायों से रूबरू होने का अवसर मिलता है, जिसमें ‘यवक्षार’ विशेष रूप से प्रमुख है।

यवक्षार का अर्थ:

‘यव’ एक संस्कृत शब्द है जिसे हम “जौ” के रूप में जानते हैं, और ‘क्षार’ अल्कलाइन प्रक्रिया को दर्शाता है। इस तरह, ‘यवक्षार’ का तात्पर्य है – जौ से निर्मित अल्कलाइन समाधान।

यवक्षार की प्राकृतिक उत्पत्ति:

यह जौ के पौधे (Hordeum vulgare) से प्राप्त होता है।

यवक्षार के विभिन्न नाम

यवक्षार को विभिन्न संस्कृत ग्रंथों और आयुर्वेदिक पाठ्यक्रमों में विभिन्न नामों से जाना जाता है:

  • यवक्षार
  • जवक्षार
  • यवक्षारम्
  • यवज
  • यवशुकज

यवक्षार के मुख्य गुण:

यवक्षार के अनेक गुण हैं जो इसे आयुर्वेद में विशेष बनाते हैं:

  1. मूत्रवर्धक: यह यूरिन की मात्रा में वृद्धि करता है, जिससे यूरिन संबंधित विकारों का इलाज होता है।
  2. पाचक: यह पेट में दर्द, गैस और ब्लोटिंग को दूर करता है।
  3. शोथहार: यह शोथ और अन्य सूजन संबंधित विकारों के लिए उपयोगी है।

इस प्रकार, यवक्षार आयुर्वेद की एक अनमोल जड़ी-बूटी है जो अनेक लाभ प्रदान करती है।

यवक्षार: ऐतिहासिक प्रसंग और पारंपरिक उपयोग

आयुर्वेद, जो भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, उसमें यवक्षार का विशेष स्थान है। इस अनुभाग में हम यवक्षार के ऐतिहासिक प्रसंग और इसके पारंपरिक उपयोगों पर प्रकाश डालेंगे।

प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख:

यवक्षार का उल्लेख भारतीय आयुर्वेदिक ग्रंथों, जैसे कि ‘चरक संहिता’ और ‘सुश्रुत संहिता’ में किया गया है। इन ग्रंथों में इसके गुण, उपयोग और निर्माण की विधि का विस्तार से वर्णन किया गया है।

पारंपरिक उपयोग:

यवक्षार का उपयोग विभिन्न रोगों और विकारों के उपचार में किया जाता है:

  • मूत्र संबंधित विकार: यह मूत्रवाहक नलियों को साफ करता है और संक्रमण से बचाव करता है।
  • पाचन संबंधित समस्याएं: यवक्षार पेट की गैस, अजीर्ण और अन्य पाचन संबंधित समस्याओं के उपचार में सहायक है।
  • त्वचा रोग: इसके शोथनाशक गुण त्वचा संक्रमण और अन्य त्वचा रोगों के उपचार में उपयोगी हैं।

इस प्रकार, यवक्षार का उपयोग आयुर्वेद में विभिन्न रोगों और विकारों के उपचार में किया जाता है, और इसकी महत्वपूर्णता को पहचाना जाता है।

यवक्षार के औषधीय गुण (Yavakshara Medicinal Properties in Hindi)

आयुर्वेद में हर जड़ी-बूटी के अद्वितीय औषधीय गुण होते हैं, और यवक्षार इसमें कोई अपवाद नहीं है। इस अनुभाग में हम यवक्षार के मुख्य औषधीय गुणों पर प्रकाश डालेंगे जो इसे आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण उपाय बनाते हैं।

यवक्षार के प्रमुख औषधीय गुण:

रोग/समस्यायवक्षार के लाभ
मूत्र रोगलक्षणों को कम करता है, गुर्दे को बल प्रदान करता है
उदर शूलपाचन प्रणाली को मजबूत करता है, दर्द में राहत प्रदान करता है
अधिक गैसपेट की सूजन को कम करता है, आंतों को बल प्रदान करता है
हृदय रोगहृदय के कार्य में मदद करता है, सामर्थ्य बढ़ाता है

इसके अलावा, इसके शोथनाशक गुण इसे विभिन्न प्रदाहकारी स्थितियों, जैसे कि जोड़ों का दर्द और त्वचा रोगों के लिए एक लाभदायक उपाय बनाते हैं।

यवक्षार के अन्य औषधीय गुण:

  • जलन और अम्लता को दूर करना: यवक्षार का अल्कलाइन प्रकृति होता है, जो जलन और अम्लता को दूर करने में मदद करता है।
  • शोथ और सूजन को कम करना: इसके शोथनाशक गुण शरीर में सूजन और शोथ को कम करने में मदद करते हैं।
  • पाचन में सुधार: यवक्षार पाचन प्रक्रिया को मजबूती प्रदान करता है और अपच की समस्या को दूर करता है।

इस प्रकार, यवक्षार के अनेक औषधीय गुण हैं जो इसे आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण और प्रभावी उपाय बनाते हैं। इसका सही उपयोग और सेवन विभिन्न रोगों और समस्याओं के उपचार में मदद कर सकता है।

यवक्षार के फायदे (Benefits of Yavakshara in Hindi)

आयुर्वेद में यवक्षार को उसके अनगिनत फायदों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। यह एक ऐसा उपाय है जिसने लाखों लोगों को उनकी समस्याओं से राहत दिलाई है। आइए जानते हैं यवक्षार के मुख्य फायदों के बारे में:

1. मूत्रजनक गुण: यवक्षार में मूत्रजनक गुण होते हैं, जो मूत्र संबंधित विकारों के उपचार में मदद करते हैं और शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में सहायक होते हैं। (और पढ़े – मूत्र रोग के 15 सरल घरेलू उपचार )

2. पाचन में सहायक: यह पेट में दर्द, गैस और ब्लोटिंग को दूर करता है, जिससे पाचन प्रक्रिया में सुधार होता है। (और पढ़े – पाचन शक्ति बढ़ाने के चमत्कारी उपाय)

3. शोथनाशक गुण: यवक्षार में शोथनाशक गुण होते हैं, जिससे यह सूजन और अन्य शोथ संबंधित विकारों के उपचार में उपयोगी है। (और पढ़े – शरीर में सूजन दूर करने के चमत्कारी नुस्खे)

4. दोषों का संतुलन: आयुर्वेद में माना जाता है कि यवक्षार कफ और वात दोष को संतुलित करता है, जिससे शरीर की आंतरिक संतुलन बनी रहती है। (और पढ़े – वात दोष से बचने के उपाय)

5. हृदय के लिए लाभदायक: यह कुछ हृदय संबंधित विकारों के उपचार में सहायक है और हृदय को बल प्रदान करता है। (और पढ़े – ह्रदय रोग के कारण और बचाव)

6. त्वचा रोगों के उपचार में: यवक्षार का अल्कलाइन प्रकृति और शोथनाशक गुण इसे विभिन्न त्वचा संक्रमण और सूजन में उपयोगी बनाते हैं। (और पढ़े – चर्म रोग के कारण, लक्षण, इलाज, दवा और परहेज)

7. उपचार में मेटाबोलिज़्म: यवक्षार मेटाबोलिज़्म को बढ़ावा देता है, जिससे पाचन और पोषण पदार्थों का सही अवशोषण होता है।

8. प्राकृतिक एंटीएसिड: इसका अल्कलाइन प्रकृति इसे एक प्राकृतिक उपचार बनाता है जो अम्लता और एसिड रिफ्लक्स को दूर करता है। (और पढ़े –एसिडिटी की छुट्टी कर देंगे यह 27 आसान उपाय)

9. डिटॉक्सिफिकेशन: नियमित सेवन से, यह शरीर को विषैले पदार्थों से मुक्त करता है और समग्र स्वास्थ्य में सुधार करता है। (और पढ़े – शरीर से गंदगी को बाहर निकालने के उपाय)

10. श्वसन संबंधित राहत: यह अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और खांसी जैसी श्वसन संबंधित स्थितियों से राहत प्रदान कर सकता है। (और पढ़े – श्वास के 170 आयुर्वेदिक घरेलू उपचार)

इस प्रकार, यवक्षार के अनेक फायदे हैं जो इसे आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण औषधीय उपाय बनाते हैं। इसका सही उपयोग और सेवन विभिन्न रोगों और समस्याओं के उपचार में मदद कर सकता है।

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण में यवक्षार 

आयुर्वेद, जिसे जीवन का विज्ञान कहा जाता है, हर जड़ी-बूटी और उपाय को उसकी अद्वितीय प्रकृति और गुणों के आधार पर वर्गीकृत करता है। यवक्षार भी इसका कोई अपवाद नहीं है। आइए जानते हैं आयुर्वेद में यवक्षार के विभिन्न पहलुओं को:

1. रस (स्वाद): यवक्षार का स्वाद मधुर (मिठा) होता है, जो शरीर को शांति प्रदान करता है।

2. गुण (औषधीय क्रियावली): यवक्षार में रुक्ष (सुखाने वाला), मृदु (मुलायम) और अगुरु (हल्का) जैसे गुण होते हैं, जो इसे उपचार में विभिन्न लाभों को प्रदान करने वाला बनाता हैं।

3. वीर्य (ऊर्जा): यवक्षार की ऊर्जा शीतल (ठंडी) होती है, जो शरीर को ठंडक प्रदान करती है।

4. विपाक (परिणाम): यवक्षार का परिणाम कटु (तीखा) होता है, जो पाचन में मदद करता है।

5. प्रभाव (प्रमुख असर): यवक्षार कफपित्तहर (कफ और पित्त दोष को शांत करने वाला) और लेखन (धातु और मलों का शोषण करके उन्हें शरीर से बाहर निकालने वाला) होते हैं।

इस प्रकार, आयुर्वेद में यवक्षार को उसकी विशेषताओं और गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, जो इसे एक अद्वितीय और शक्तिशाली उपाय बनाता है।

आधुनिक चिकित्सा में यवक्षार (Yavakshara in Modern Medicine)

जबकि आयुर्वेद ने यवक्षार की महत्वपूर्णता को सदियों से माना है, आधुनिक चिकित्सा भी अब इसके गुणों और लाभों को मानने लगी है। आधुनिक अनुसंधान और विज्ञान ने यवक्षार के विभिन्न पहलुओं को प्रमाणित किया है। आइए जानते हैं आधुनिक चिकित्सा में यवक्षार के कुछ मुख्य पहलुओं को:

1. मूत्रजनक गुण: आधुनिक अनुसंधान ने यह साबित किया है कि यवक्षार में मूत्रजनक गुण होते हैं, जो मूत्र संबंधित विकारों के उपचार में मदद करते हैं।

2. जठरांत्रिकी लाभ: आधुनिक चिकित्सा ने भी यह माना है कि यवक्षार पाचन में सहायक होता है और जठर संबंधित समस्याओं को दूर करता है।

3. शोथनाशक और जीवाणुनाशक गुण: आधुनिक अनुसंधान में पाया गया है कि यवक्षार में शोथनाशक और जीवाणुनाशक गुण होते हैं, जो विभिन्न संक्रमणों और सूजन में उपयोगी होते हैं।

4. हृदय और रक्तदाब में लाभ: आधुनिक अनुसंधान ने यह भी दिखाया है कि यवक्षार हृदय की स्थिति में सुधार कर सकता है और रक्तदाब को नियंत्रित कर सकता है।

इस प्रकार, आधुनिक चिकित्सा ने यवक्षार के विभिन्न गुणों और लाभों को माना है, जो इसे एक महत्वपूर्ण औषधीय उपाय बनाते हैं। आधुनिक अनुसंधान और आयुर्वेद के संयोजन से हमें यह समझ में आता है कि प्राकृतिक उपाय भी आधुनिक चिकित्सा में उत्तराधिकारी हो सकते हैं।

यवक्षार बनाने की विधि (Method of making Yavakshara in Hindi)

आयुर्वेद में हर औषधी की तैयारी का अपना विशेष महत्व होता है। यवक्षार की तैयारी भी इसी परंपरा में की जाती है, जिससे इसके औषधीय गुण संरक्षित रहते हैं। आइए जानते हैं यवक्षार की तैयारी के प्रक्रिया को:

  1. जौ का चयन: सबसे पहले, अच्छी गुणवत्ता वाले जौ को चुना जाता है। जौ के बीज और पौधे का उपयोग किया जाता है।
  2. सूखाव: जौ को प्राकृतिक रूप से धूप में सुखाया जाता है। यह सूखाव प्रक्रिया उसके औषधीय गुणों को संरक्षित रखता है।
  3. पीसने की प्रक्रिया: सूखे हुए जौ को बारीक पीसा जाता है। इससे एक महीन पाउडर प्राप्त होता है।
  4. शोधन: पाउडर को विभिन्न प्रक्रियाओं से शोधित किया जाता है ताकि अनवांछित तत्व निकाल दिए जा सकें।
  5. अंतिम प्रक्रिया: शोधित पाउडर को फिर से सूखाया जाता है और यवक्षार के रूप में पैक किया जाता है।

यवक्षार की तैयारी की इस प्रक्रिया में प्राकृतिक तत्वों का संरक्षण और उसके औषधीय गुणों की सुरक्षा की जाती है। इसलिए, जब भी आप यवक्षार का सेवन करें, तो सुनिश्चित करें कि वह उचित रूप से तैयार किया गया है और उसमें कोई मिलावट नहीं है।

यवक्षार: मात्रा और सेवन विधि (Yavakshara: Dosage and Administration)

आयुर्वेदिक उपायों का प्रभाव उनकी सही मात्रा और सेवन विधि पर निर्भर करता है। यवक्षार भी इसका कोई अपवाद नहीं है। इस अनुभाग में, हम यवक्षार की सही मात्रा और सेवन विधि पर प्रकाश डालेंगे:

1. सुनिश्चित मात्रा: यवक्षार की सामान्य मात्रा 250-500 मिलीग्राम होती है, लेकिन यह व्यक्ति की शारीरिक स्थिति और उसकी समस्या पर निर्भर करती है।

2. सेवन विधि: यवक्षार को सुबह या शाम में गुनगुने पानी या शहद के साथ लिया जा सकता है। यदि संभव हो, तो इसे खाली पेट लेना चाहिए।

3. अन्य उपायों के साथ सेवन: आमतौर पर, यवक्षार को अन्य आयुर्वेदिक उपायों के साथ लिया जा सकता है, लेकिन यह सलाह दी जाती है कि आप अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।

4. सेवन की अवधि: यवक्षार का सेवन विशेष समस्या या बीमारी के आधार पर होता है। आमतौर पर, इसका सेवन 1 से 3 महीने तक किया जा सकता है, लेकिन इसे लंबे समय तक बिना विशेषज्ञ की सलाह के नहीं लिया जाना चाहिए।

यवक्षार का सही सेवन और उसकी सही मात्रा से ही इसके अधिकतम लाभ प्राप्त होते हैं। इसलिए, यवक्षार का सेवन करते समय सतर्क रहें और अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक से समझौता न करें।

यवक्षार के दुष्प्रभाव (Side Effects of Yavakshara in Hindi)

जैसा कि हर औषधी में होता है, यवक्षार के भी कुछ संभावित दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इसलिए, इसे सेवन करते समय सतर्कता बरतना महत्वपूर्ण है। आइए जानते हैं यवक्षार के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में:

  1. पित्त वृद्धि: यवक्षार का अधिक सेवन पित्त की वृद्धि का कारण बन सकता है, जिससे जलन और अन्य पित्त संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
  2. पाचन संबंधित समस्याएं: अधिक मात्रा में यवक्षार का सेवन पेट में उपस्थिति और अन्य पाचन संबंधित समस्याओं का कारण बन सकता है।
  3. त्वचा पर प्रभाव: कुछ लोगों में यवक्षार का सेवन त्वचा में खुजली और लालिमा का कारण बन सकता है।
  4. अन्य संवेदनशीलता: यवक्षार का सेवन कुछ व्यक्तियों में सिर दर्द, चक्कर आना और अन्य संवेदनशीलता के प्रतिक्रियाओं को उत्तेजित कर सकता है।

यदि आपको यवक्षार के सेवन से कोई भी दुष्प्रभाव महसूस होता है, तो तुरंत अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें और इसका सेवन बंद कर दें।

यवक्षार: सुरक्षा और सावधानियां (Yavakshara: Safety and Precautions in Hindi)

आयुर्वेद में यवक्षार को उसके अनगिनत फायदों के लिए माना जाता है। हालांकि, इसका सही तरीके से और सुरक्षित रूप से उपयोग करना महत्वपूर्ण है। आइए जानते हैं यवक्षार के सेवन से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण सुरक्षा टिप्स और सावधानियां:

  • विशेषज्ञ की सलाह: यवक्षार का सेवन शुरू करने से पहले एक योग्य आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से परामर्श करना चाहिए।
  • सही मात्रा: अनुशंसित मात्रा का पालन करना चाहिए। अधिक सेवन से दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
  • गर्भावस्था और स्तनपान: गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को सावधानी बरतनी चाहिए।
  • बच्चों और वृद्धजन: बच्चों और बुढ़ापे के लोगों के लिए निम्न मात्रा में और विशेषज्ञ की देखरेख में यवक्षार का सेवन करना चाहिए।
  • पित्त संबंधित समस्याएं: उच्च पित्त वाले व्यक्तियों को यवक्षार का सेवन करते समय सतर्क रहना चाहिए।
  • संग्रहण: यवक्षार को ठंडी और सूखी जगह पर संग्रहित करना चाहिए, सीधी धूप से दूर।
  • उपयोग की अवधि: यवक्षार का लगातार और लंबे समय तक उपयोग नहीं करना चाहिए। नियमित रूप से विशेषज्ञ से परामर्श करें।

अंत में, जब भी आप यवक्षार जैसे शक्तिशाली आयुर्वेदिक उपाय का उपयोग करते हैं, तो सुरक्षा और सतर्कता बरतना महत्वपूर्ण है।

आयुर्वेदिक औषधियों में यवक्षार का उपयोग (Yavakshara in Ayurvedic Medicines)

यवक्षार विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों में मुख्य घटक के रूप में शामिल है। आइए जानते हैं कुछ प्रमुख आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में जिनमें यवक्षार का उपयोग होता है:

1. गुग्गुलु तिक्तकम कषायम (Gulgulu Thiktham Kashayam):

यह एक जड़ी-बूटीय डेकोक्शन है जिसे त्वचा रोगों के उपचार में उपयोग किया जाता है। यवक्षार इसमें मुख्य संघटक के रूप में शामिल है, जो त्वचा की सूजन और संक्रमण को शांत करता है।

2. इंदुकांतम घृतम (Indukantham Ghrutham):

यह एक औषधियुक्त घी है जिसे पाचक तंत्र की समस्याओं के उपचार में उपयोग किया जाता है। यवक्षार की उपस्थिति इसे पेट की गैस और अजीर्ण के खिलाफ प्रभावी बनाती है।

3. शोथारी लौह (Shothari Lauh):

इस आयुर्वेदिक औषधि को सूजन के उपचार में उपयोग किया जाता है। यवक्षार की विशेषताएँ इसे जोड़ों की सूजन और दर्द में लाभकारी बनाती हैं।

यवक्षार के उपयोग से उपर्युक्त औषधियाँ और भी प्रभावी होती हैं। इसके अलावा, यह विभिन्न औषधियों में उपयोग होने वाले अन्य घटकों के साथ संगत होता है, जिससे औषधियों का प्रभाव बढ़ जाता है।

यवक्षार का उपयोग आयुर्वेदिक औषधियों में उसकी विशेषताओं और गुणों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। इसलिए, जब भी आप यवक्षार युक्त औषधियों का सेवन करें, तो आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

यवक्षार के बारे में प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

आयुर्वेद में यवक्षार का महत्वपूर्ण स्थान है, और इससे संबंधित कई प्रश्न उठते हैं। इस अनुभाग में हम कुछ ऐसे ही प्रमुख प्रश्नों का उत्तर देंगे:

प्रश्न: यवक्षार क्या है?

उत्तर: यवक्षार जौ (बार्ली) पौधे से प्राप्त एक आयुर्वेदिक औषधि है, जिसे विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार में उपयोग किया जाता है।

प्रश्न: यवक्षार कैसे तैयार किया जाता है?

उत्तर: यवक्षार की प्राकृतिक प्रक्रिया में जौ को सूखाया जाता है, फिर इसे पीसकर और शुद्ध करके यवक्षार प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न: यवक्षार के क्या फायदे हैं?

उत्तर: यवक्षार का उपयोग मूत्र संबंधित समस्याओं, पाचन तंत्र की समस्याओं, और सूजन में किया जाता है। इसके अलावा, यह दोषों को संतुलित करने में भी सहायक है।

प्रश्न: यवक्षार के कोई दुष्प्रभाव हैं क्या?

उत्तर: हालांकि यवक्षार प्राकृतिक है, अधिक मात्रा में इसका सेवन कुछ संभावित दुष्प्रभाव उत्पन्न कर सकता है। इसलिए, इसका सेवन विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए।

प्रश्न: क्या यवक्षार का सेवन सभी के लिए सुरक्षित है?

उत्तर: यवक्षार का सेवन आमतौर पर सुरक्षित है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में इसे सावधानी से लेना चाहिए। गर्भवती महिलाओं, बच्चों, और वृद्धजन को इसका सेवन करते समय विशेष सतर्क रहना चाहिए।

प्रश्न: क्या यवक्षार को अन्य दवाओं के साथ लिया जा सकता है?

उत्तर: आपको हमेशा अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक को जानकारी देनी चाहिए कि आप कौन-कौन सी अन्य दवाएं या पूरक ले रहे हैं। वे संभावित प्रतिक्रियाओं पर सलाह दे सकते हैं और सुरक्षित सेवन सुनिश्चित कर सकते हैं।

प्रश्न: क्या बच्चे यवक्षार ले सकते हैं?

उत्तर: हालांकि यवक्षार को बच्चों को दिया जा सकता है, यह एक निम्न मात्रा में और हमेशा एक आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की देखरेख में होना चाहिए।

अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।

Leave a Comment

Share to...