Last Updated on May 12, 2021 by admin
ग्रीष्म ऋतु में सूर्य का प्रभाव अपने प्रखर पर होता है। जिससे भूमंडल का तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है। इस ऋतु में बच्चों में निम्न रोग प्रभावी होते है।
1). अतिसार व जलाल्पता :
गुदामार्ग से पतले मल का बार बार त्याग करना । 3 या 3 से अधिक बार 24 घंटे के अन्दर मल त्याग करना।
चिकित्सा (घरेलू उपाय) –
- अजवाइन का चूर्ण व जायफल घिसकर चटायें।
- शरीर मे पानी की कमी होने पर नारियल का पानी या उबले हुए जल में 1 चम्मच शक्कर, 1 चुटकी नमक एवं 5 बूंद नीबू का रस मिलाकर पिलायें।
- हल्का आहार का प्रयोग करें।
- शिशु को मातृ स्तन्य पान अवश्य करायें।
आयुर्वेदिक दवा –
- बालचातुभ्रद चूर्ण,
- कुटजारिष्ट,
(औषधियों द्रव्यों का प्रयोग चिकित्सक की सलाह पर ही दे)
( और पढ़े – बच्चों के रोग और उनका घरेलू इलाज )
2). पेट में दर्द होना :
चिकित्सा (घरेलू उपाय) –
- आजवायन एंव सौफ को उबालकर या 4 घटें पानी में भिगोकर दिन में 3 बार पान करायें।
- हींग को गुनगुने पानी में घोलकर पान करायें।
- बालक को थोड़ी देर पेट के बल लिटाये या शयन करायें।
( और पढ़े – बच्चे को दूध पिलाने का सही तरीका और विधि )
3). सर्दी-खांसी (प्रतिश्याय) :
चिकित्सा (घरेलू उपाय) –
- ठंडी वस्तुओं का प्रयोग नही करें।
- सरसों के तेल में अजवायन, सेंधा नमक, लहसुन डालकर गरम कर छाती, पीठ व तलवों पर मालिश करे।
- पानी मे हल्दी मिलाकर भॉप दे।
- गिलोय का काढा बनाकर दे।
- सोठं एवं गुड़ को मिलाकर खिलाये।
( और पढ़े – बच्चों की त्वचा की देखभाल और सुरक्षा के उपाय )
4). ज्वर (बुखार) :
शरीर का तापमान 98 डिग्री फारेनहाइट से अधिक होना।
चिकित्सा (घरेलू उपाय) –
सूती कपड़े को पानी में भिगोकर पूरे शरीर की स्पाजिगं करे (छाती को छोड़कर)
आयुर्वेदिक दवा –
- सुर्दशन फाण्ट का प्रयोग सुर्दशन चूर्ण का शहद के साथ प्रयोग ।
- बालचार्तुभ्रद चूर्ण,गिलोय क्वाथ का पान।
(औषधियों द्रव्यों का प्रयोग चिकित्सक की सलाह पर ही दे)
5). मुँहासे (मूख दुषिका) :
ललाट, गाल, नाक पर वेदना युक्त पिडीकाओ की उत्पत्ति होना।
चिकित्सा (घरेलू उपाय) –
- गरिष्ठव तैलीय आहार का सेवन बच्चों को नही दें।
- प्रलेप – शाल्मली कंटक, लोध्र, कुष्ठ, हल्दी, जामुन, वट, पोश्तादाना एवं जायफल को बकरी के दुग्ध में मिलाकर प्रलेप करें (जो भी उपलब्ध हो)
आयुर्वेदिक दवा –
- आरोग्यवर्धनी वटी
- गंधक रसायन
- महामंजिष्ठादि क्वाथ
(औषधियों द्रव्यों का प्रयोग चिकित्सक की सलाह पर ही दे)
6). घमौरी (राजिका) :
शरीर के पृष्ठ व आगे के भागों पर सूक्ष्म पिडीकाओ का होना।
चिकित्सा (घरेलू उपाय) –
- निम्ब पत्र के पानी से स्नान
- मंजिष्ठा चूर्ण व शहद का लेप
- स्वच्छ व सूती वस्त्रों का प्रयोग
( और पढ़े – शिशुओं और बच्चों के लिए संतुलित आहार )
7). नकसीर फूटना :
नासिका से अचानक ही रक्तस्राव होना
चिकित्सा (घरेलू उपाय) –
- दूर्वा स्वरस का प्रयोग
- सिराहना निचे कर आराम करना
( और पढ़े – बच्चों की बीमारियां और उनका सरल उपचार व नुस्खे )
8). गुहेरी :
आंखों के पलकों पर पिड़का की उत्पत्ति
चिकित्सा (घरेलू उपाय) –
गुनगुने पानी को रूई के फाये से सिकाई करना।
9). वृषण कण्डू :
वृषण प्रान्त (जननांग) मे खुजली होना।
चिकित्सा (घरेलू उपाय) –
- स्नान करते समय वृषण प्रान्त की भी अच्छी तरह से सफाई करना।
- निम्ब पत्र के पानी से वृषण को साफ करना।
- त्रिफला व खदिर के क्वाथ से परिषेक करना।
10). अहिपूतना (Napkin rashes) :
गुदा में खुजली होना।
चिकित्सा (घरेलू उपाय) –
- मलमूत्र त्याग के पश्चात ठीक से मन्दोष्ण जल से सफाई करना।
- मधु एवं रसांजन मिश्रित जल का पान या लेपन।
- सेंधा नमक को कांजी में पीसकर लेप करें।
11). मुखपाक :
मुख के अन्दर व्रण या घाव होना।
चिकित्सा (घरेलू उपाय) –
- उष्ण जल से गरारा (कवल) करें
- औषधी युक्त जल या तैल से गण्डूष (कुल्ला करना) धारण करें।
- अमरूद के पत्ते को मुख में चबाए परंतु रसपान नहीं करें।
- मुखगत व्रण पर घृत का लेप लगायें।
- टंकण भस्म और शहद को मिलाकर लेप करें।
आयुर्वेदिक दवा –
- खदिरादि वटी
- एलादि वटी
- इरमेदादि तैल
- पचवल्लकल कषाय
(औषधियों द्रव्यों का प्रयोग चिकित्सक की सलाह पर ही दे)