Last Updated on December 7, 2020 by admin
नागबला क्या है ? (What is Naagbala in Hindi)
शाकाहार में सर्वाधिक बल होता है। इसको सिद्ध करने वाला प्राणी है हाथी। हाथी का एक पर्याय नाग भी है जो वनौषधि इस हाथी के समान हमें बल प्रदान करने में समक्षम होती है उस दिव्य वनौषधि का नाम है “नागबला“।
“नागानां हस्तिनां बलं यया सा नागबला।”
आयुर्वेद की दिव्य प्रभावकारी वनौषधियों में नागबला का प्रमुख स्थान है।
नागबला का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Naagbala in Different Languages)
Naagbala in –
- संस्कृत (Sanskrit) – नागबला, गांगेरुकी
- हिन्दी (Hindi) – गुलसकरी, गंगेरन
- मराठी (Marathi) – गोवलि
- गुजराती (Gujarati) – गंगेटी
- तेलगु (Telugu) – जिविलिके
- तामिल (Tamil) – तविदु
- उडिया (Udiya) – कुलो
- बंगाली (Bangali) – कुले
- लैटिन (Latin) – ग्रीविया हिर्राटा (GrewiaHirsuta)
नागबला का पौधा कहां पाया या उगाया जाता है ? :
नागबला हिमालय की तराई, बिहार, उड़ीसा एवं विन्ध्य के जंगलों में तथा राजस्थान, गुजरात व दक्षिण भारत में इसके स्वयं जात क्षुप (झाड़ीनुमा छोटे पौधे) पाये जाते हैं।
नागबला का पौधा कैसा होता है ? :
- नागबला का पौधा – इसके क्षुप (गुल्म) डेढ फुट से 3 फुट तक ऊंचे होते हैं, शाखाएं प्रायः मूल के पास से निकली होती हैं तथा रोमश होती है।
- नागबला के पत्ते – इनके पत्र बनावट में नाना रुपिता पायी जाती है, जो रेखाकार, लटवाकार प्रासवत् अथवा आयताकार, प्रायः लम्बाग्र तथा अल्पवृन्त वाले एवं तीक्ष्ण दन्तुर होते हैं,
- नागबला का फूल – प्रत्येक पत्र के अक्ष से दो-तीन पुष्प निकलते हैं जो पीतवर्ण, दबे हुये 2-4 इंच व्यास के होते हैं ये विकसित होते समय श्वेताभ, फिर पीले और अन्त में भूरे रंग के हो जाते हैं पुष्पकलिका अंडाकार होती है।
- नागबला का फल – फल छोटे, पीले चतुः कोष्ठीय होते हैं जो पकले पर फट कर चार भागों में विभक्त हो जाते हैं। पके फल मधुर स्वादिष्ट होते हैं और खाये जाते हैं ग्रामीण क्षेत्रों तथा वन्यक्षेत्रों में जहां ये पाये जाते हैं स्थानीय लोग इन्हें खाते हैं इन्हें कहीं ‘शिकारी मेवा, तो कहीं सीता चबैना, (गोरखपुर) कहते है इन फलों में पांच-छ: बीज निकलते हैं। वर्षा में पुष्प एवं हेमन्त ऋतु में फल आते हैं।
- इसकी बड़ी जाति ग्रुइया पापूलीफिलिया (Grewia Populifolia) है।
नागबला का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Naagbala Plant in Hindi)
प्रयोज्य अंग – मूल (विशेषत: मूलत्वक)
संग्रह – नागबला को शरद ऋतु के प्रारम्भ में पुष्य नक्षत्र के दिन उखाड़ना चाहिए। जब इसके पत्ते झड जावें तब इसके मूल को छाया में सुखाकर रखें। मूलत्वक को भी पृथक कर पानी में धोकर छाया में सुखाकर रखें। स्थूलमूल होने से मूलत्वक लें।
संरक्षण – मुख बन्द पात्रों में अनार्द्र (सूखे) शीतल स्थान पर सुरक्षित रखकर इसका संरक्षण करें।
वीर्यकालावधि – एक से दो वर्ष तक।
नागबला सेवन की मात्रा :
- क्वाथ – 50 से 100 मिली.
- मूलत्वक (जड़ की छाल) चूर्ण – 3 से 6 ग्राम।
नागबला के औषधीय गुण (Naagbala ke Gun in Hindi)
- रस – मधुर, कषाय
- गुण – गुरु, स्निग्ध, पिच्छिल
- वीर्य – शीत
- विपाक – मधुर
- प्रभाव – बल्य, रसायन।
- दोषकर्म – वातपित्त शामक।
नागबला का औषधीय उपयोग (Uses of Naagbala in Hindi)
- नागबला बल्य रसायन होने से दुर्बलता क्षीणता में इसका उपयोग लाभदायक है। चरकाचार्य ने इसके रसायनार्थ उपयोग के विषय में लिखा है
- नागबला वृष्य होने से यह शुक्रदौर्बल्य को दूर कर पौरुष शक्ति बढ़ाती है। मंजूषाकार लिखते हैं – “शुक्र नागबला ददाति”।
- स्त्रियों के गर्भस्थापनार्थ तथा सौन्दर्य वृद्धि हेतु भी नागबला की उपादेयता प्रकट की गई है।
- आयुर्वेद की इन रसायन वनौषधियों में शरीर की सप्त धातुओं को पुष्ट करने के साथ-साथ शरीर में प्राकृतिक रूप में हारमोन्स की उत्पत्ति करने के गुण भी विद्यमान हैं।
- नागबला कल्पविधि में नागबला के साथ छागलाद्य घृत एवं मधु के सेवन का उल्लेख किया है और इसके ऊपर रसोनक्षीर पीने को कहा है। यह कल्प यक्ष्मा में उपयोगी कहा गया है। इस कल्प का वर्णन सुधानिधि के प्रयोग संग्रह भाग तीन में किया है।
- यक्ष्मा के अतिरिक्त स्वरभेद, उर:क्षत, कास-श्वास (कफनि:सारक होने से) आदि में यह हितावह है ।
- यह हृद्य होने से हृदय रोगों में तथा रक्तपित्त शामक होने से रक्तपित्त में हितार्थ प्रयुक्त की जाती है।
- नाड़ीबल्य होने से नाड़ी दोर्बल्य में वातहर होने से वातरोगों में तथा मेध्य होने से स्मृतिदौर्बल्य में हितकारी है।
- अम्लता नाशक होने से अम्लपित्त में, अनुलोमन होने से विबन्ध में तथा स्नेहन होने से कोष्ठगत वात को नष्ट करने में भी यह लाभप्रद है।
- मूत्रल होने से इसे पूयमेह, मूत्रकृच्छ में भी देते हैं।
- पित्तशमन, दाहप्रशमन एवं ज्वरघ्न आदि इसके कर्म इसकी ज्वर में उपादेयता सिद्ध करते हैं। उष्णाभिप्राय विषमज्वर में विशेषतः लाभप्रद कही गयी है।
- रक्तस्राव को बन्द करने के लिए क्षतों की वेदना को दूर करने के लिए तथा व्रणों के रोपण हेतु इसके मूल और पत्र बाह्य प्रयोगार्थ हितावह है ।
रोगोपचार में नागबला के फायदे (Benefits of Naagbala in Hindi)
1). घाव ठीक करने में नागबला के इस्तेमाल से लाभ
तलवार आदि से हुये सद्योव्रण (हथियार या अग्नि से उत्पन्न घाव) में नागबला के मूल का रस भर देने से उसी समय वेदना शान्त होती है और व्रण शीघ्र भर जाता है।
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2). स्तनशैथिल्य में नागबला का उपयोग लाभदायक
नागबला को जल में पीस स्तनों पर लेप करने से स्तन कठोर हो जाते हैं।
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3). सूजन (शोथ) कम करने में नागबला करता है मदद
नागबला पत्र को तिल के साथ पीस गरम कर लेप करें।
4). बुखार (ज्वर) में नागबला का उपयोग फायदेमंद
नागबला मूल का क्वाथ बनाकर पीने से ज्वर शांत होता है।
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5). हृदयरोग में नागबला जड़ के प्रयोग से लाभ
नागबला जड़ की छाल, अर्जुनछाल चूर्ण चार ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करने से वातज हृदयरोग में लाभ होता है।
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6). कमजोरी (दौर्बल्य) में लाभकारी है नागबला का प्रयोग
- नागबला के जड़ की छाल का चूर्ण 5 ग्राम में समभाग मिश्री चूर्ण मिलाकर गरम दूध के साथ दो सप्ताह तक सेवन करना चाहिये। क्षीणवीर्य रोगी के लिए इसका चाय की तरह फाण्ट बनाकर दूध, चीनी मिलाकर देना चाहिये।
- नागबला, अश्वगंधा, उड़द के चूर्ण को गुड़के साथ सेवन करने से भी बल वीर्य की वृद्धि होकर सौन्दर्य में वृद्धि होती है।
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7). मूत्रकृच्छ में नागबला का औषधीय गुण फायदेमंद
नागबला पत्र कालीमिर्च के साथ पीसकर ठण्डाई की तरह पिलाना मूत्रकृच्छ, सुजाक आदि रोगों में लाभप्रद है।
8). खांसी (कास) मिटाए नागबला का उपयोग
नागबला छाल को दूध में पकाकर देना कास,श्वास, हृदयरोग में हितकारक है।
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9). विषमज्वर में नागबला से फायदा
नागबला मूल और सोंठ का क्वाथ पीना विषमज्वर में लाभप्रद है।
10). क्षय रोग में नागबला के इस्तेमाल से लाभ
नागबला की जड़ की छाल का चूर्ण घृत एवं मधु के साथ सेवन करना क्षय में हितकारी है।
11). प्रमेह में नागबला का उपयोग लाभदायक
नागबला के पत्तों को जल में भिगोकर मल छानकर पिलाया जाता है।
12). रक्तप्रदर मिटाए नागबला का उपयोग
नागबला मूल छाल चूर्ण और नागकेशर चूर्ण को तण्डुलोदक (चावल का पानी या मांड) से देना रक्तप्रदर में लाभप्रद है।
13). अस्थिभग्न में लाभकारी नागबला
नागबला मूल क्वाथ, पत्र स्वरस या मूल छाल चूर्ण को घृत व दुग्ध के साथ सेवन करना हितकर है।
नागबला के अन्य विशेष लाभदायक प्रयोग :
1). धातु पौष्टिक प्रयोग – गंगेरन का छिलका 5 किलो छाया में सुखाकर कूट पीसकर चूर्ण करें इसमें 25 ग्राम रुमीमस्तंगी, बीजबन्द 25 ग्राम, तालमखाना 25 ग्राम, सफेद मूसली 60 ग्राम, नागकेशर 25 ग्राम, कालीमूसली 25 ग्राम, सालममिश्री 25 ग्राम, सालमपंजा 25 ग्राम, गोखरु 25 ग्राम, ब्राह्मी 60 ग्राम एवं मिश्री 250 ग्राम पीसकर मिला दें।
पहले विरेचन करा कोष्ठ शुद्धि करा लें, फिर इसके बाद सुबह-शाम 2-2 ग्राम दवा गाय या बकरी के दूध के साथ दें। नमक, मिर्च, गुड़,तैल, खटाई न दें, गेहूं की रोटी, देशी खाड़, देशी घी इच्छानुसार लें। सोमरोग में इसके साथ मालकांगनी की खीर ऊंटनी के दूध में बनाकर दें, कम से कम 40 दिन तक इस योग का अवश्य सेवन करें। – वैद्य श्री अर्जुनराय (धन्व. स.सि. प्रयोगांक)
2). उपदंश नाशक प्रयोग – नागबला (गंगेरन) के एक मुट्टी पत्रों को स्वच्छ कर धो लें, और इसमें एक चुटकी सफेद जीरा डालकर सिल पर खूब महीन भाग की तरह घोटकर थोड़ी मिश्री मिलालें। इसे 14 से 21 दिन तक प्रातः सायं गाय के नित्य पिलाने से हर प्रकार के उपदंश ठीक हो जाते हैं। यह अनुभूत प्रयोग है। – पं. श्री सूरज प्रसाद दीक्षित (धन्व. अनुभवांक)
3). शक्तिवर्धक योग – नागबला की छाल 250 ग्राम, देशी शक्कर 350 ग्राम, बादाम 50 ग्राम, किशमिश 50 ग्राम, इनको कूट पीसकर 25-25 ग्राम के लड्डू बना लें। दिन में एक लड्डू खावें और एक ही बार भोजन करें। जैसे दाल-रोटी पहले दिन खावें तो एक महीने तक दाल रोटी ही खावें। यह शरद ऋतु में प्रयोग करने हेतु अत्यन्त उत्तम शक्तिवर्धक योग है। – कवि श्री प्रताप सिंह रसायनचार्य (धन्व. सफल सि. प्रयोग०)
नागबला से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (कल्प) :
नागबला रसायन –
नागबला मूल को अच्छी प्रकार जल से धोकर पीस लेवें। 3 से 5 ग्राम की मात्रा में अच्छी तरह पीसकर दूध में घोलकर सुबह पीना चाहिए या इसका चूर्ण बनाकर दूध के साथ पीवें अथवा शहद और घी के साथ भक्षण करें। दवा के पच जाने पर शाली या साठी चावलों का भात घी दूध मिलाकर खिलावें एक वर्ष तक इसका प्रयोग करने से व्यक्ति 100 वर्ष तक अजर हो जाता है। शेष गुण अन्य रसायनों के समान हैं। – चरक संहिता
पुष्टिदायक नागबला कल्प –
नागबला (गंगेरन या गुलशकरी) के मूल की छाल को 6 ग्राम चूर्ण से प्रारम्भ कर 6-6 ग्राम तीसरे तीसरे दिन बढ़ाता हुआ क्रमश: 48 ग्राम तक ले जायें अनुपान दूध मिश्री रखें। इस प्रकार इस कल्प को एक मास तक करें। अधिक मात्रा में हो जाने पर दिन में कई बार में विभाजित कर सेवन करना चाहिये। इसका प्रयोग करते समय अन्न न खाता हुआ केवल दूध का ही उपयोग (पर्पटीवत्) करना चाहिये। यह कल्प पुष्टि आयु और आरोग्य प्रदान करने वाला है क्षतक्षीण के लिए परम हितकारी है। – चरक संहिता
नागबला घृत –
इसका स्वच्छ पंचांग या मूल 5 किलो जौकुट कर 12 लीटर 250 मिली. जल में पकाकर चतुर्थाश शेष रहने पर छानकर इसमें गोघृत तथा गोदुग्ध प्रत्येक 3 किलो 200 ग्राम तथा खरेंटी जड;, पुनर्नवा, गंभारी छाल, चिरोंजी, कोंचबीज, असगंध, शतावर, गोखरु, कमलनाल, कमलमूल, सिंघाड़ा और कसेरु 100-100 ग्राम कल्क कर मिलावें तथा घृत सिद्ध करें। इसके 10-25 ग्राम की मात्रा को गोदुग्ध के साथ सेवन करने से रक्त पित्त, उर:क्षत, क्षय, दाह, भ्रम, तृषा, आदि दूर होकर बल, पुष्टि, ओज, आयु की वृद्धि होती है । – भै. र.
नागबला तैल –
स्वच्छ किया हुआ नागबला का मूल या पंचांग जौकुट कर 5 किलो चूर्ण को 12 लीटर 775 मिली जल में पकावें। चौथाई शेष रह जाने पर छानकर इसमें तिल तैल 3.200 किग्रा. तथा इतना ही बकरी का दूध एवं तगर व मुलहठी का कल्क 250-250 ग्राम मिला तैल सिद्ध करें। यह तैल वातरक्त में उपयोगी है। इस तैल की बस्ति देने से सात दिन में और 10 दिनों में रोग की शान्ति होती है। -च. द.
नागबला के दुष्प्रभाव (Naagbala ke Nuksan in Hindi)
- नागबला लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- नागबला को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)