Patharchatta in Hindi | पत्थरचट्टा के फायदे ,गुण ,उपयोग और दुष्प्रभाव

Last Updated on March 10, 2020 by admin

पत्थरचट्टा क्या है ? : What is Bryophyllum pinnatum in Hindi

पत्थरचट्टा (पर्णबीज) का पौधा स्वास्थ्य रक्षा के साथ ही अपनी सुहानी पर्ण रचना से घर की शोभा भी बढ़ाता है। तब ही तो इसे घरों में, बाग बगीचों में लगाया जाता है। बंगाल के दक्षिण भाग में इसके स्वयंजात पौधे भी मिलते हैं जैसा कि इसके नाम से प्रकट होता है दूसरे पत्तों के दन्तुर किनारों पर एक प्रकार के बीज होते हैं जिनसे पत्तों के जमीन पर गिरने से यथा समय नवीन पौधे उग आते हैं अत: इसका पर्णबीज नामकरण किया गया है।
वर्षाकाल में जमीन को थोड़ी खोदकर इसके एक पत्ते को तिरछाकर गाड़ देने से अंकुरित होकर इसमें शाखायें बढ़ने लगती हैं फिर शीघ्र ही पूर्ण पौधा तैयार होकर शोभा देने लगता है।

इस वनौषधि का वर्णन आदर्श निघन्टु और द्रव्यगुण विज्ञान भाग-2 में मिलता है इसके बाद अन्य ग्रन्थों में भी इसका वर्णन कर इसके गुण धर्म का बखान किया गया है।

पत्थरचट्टा का पौधा कैसा होता है ? :

यह स्वकुल- पर्णबीज कुल (क्रेसुलेसी) Crassulaceae) का बहुवर्षायु मांसल क्षुप है। यह क्षुप चार फुट ऊचा होता है। इसका काण्ड चिकना, रोमश, पोला तथा रक्ताभ होता है।

पत्थरचट्टा के पत्ते (patharchatta ka patta) – पत्थरचट्टा के पत्र स्थूल, मांसल,अखण्ड या त्रिखण्डीय एवं दन्तुर होते हैं ।ये अग्रभाग में गोल चौड़े तथा निम्न भाग की ओर क्रमशः पतले होते हैं।

पत्थरचट्टा के फूल – पत्थरचट्टा के पुष्प नलिकाकार, प्रायः दो इंच लम्बे, बैंगनी हरे होते हैं आभ्यन्तर कोश नीचे हरा, ऊपर रक्ताभ, बैंगनी होता है।

पत्थरचट्टा की फली – पत्थरचट्टा की फली चार भागों में विभक्त एवं अनेक बीज युक्त होती है। ये बीज चिकने और लम्बाई में धारीदार होते हैं। शीतकाल में इन पौधों पर पुष्प और ग्रीष्मकाल में फली लगती है।

महामहोपाध्याय गणनाथ सेन जी ने इसे ही पाषाण भेद माना है वस्तुतः पाषाणभेद के नाम से प्रयुक्त वनौषधियों में इसकी गणना है।

पत्थरचट्टा के प्रकार :

पत्थरचट्टा की ही एक बड़ी जाति को बंगाल की ओर हेमसागर, हिमसागर, कोमपाना आदि स्थानीय नामों से जानते हैं जिसका लैटिन नाम कैलंची लेसिनएटा या पिनाटा (Kalanchoe Laciniaea or K. Pinnata) कहते हैं। इसके क्षुप पत्रादि अपेक्षाकृत बड़े तथा अधिक मांसल होते हैं। इसमें पुष्प वर्षाकाल और फल शीतकाल में आते हैं।

इसकी एक जाति कैलंची स्पेथ्युलेटा K. Spathulata) भी है। इसे भाषा में निनुरी, तातारा आदि कहते हैं। यह बकरियों के लिये विषैला है। इस क्षुप के ऊपर के पत्तों की अपेक्षा नीचे के पत्र अधिक लम्बे ( दस इंच तक) होते हैं। लम्बी मंजरियों में पीले रंग के पुष्प लगते हैं इन सभी के गुण धर्म प्रायः प्रस्तुत पत्थरचट्टा के गुणधर्म के ही हैं।

पत्थरचट्टा का उपयोगी भाग : Useful Parts of Patharchatta in Hindi

पत्थरचट्टा के ओषधि के रूप में पत्र ही उपयोग में लाये जाते हैं इन पत्रों का स्वरस पिलाया जाता है।

पत्थरचट्टा की खुराक : Dosage of Patharchatta

मात्रा – पत्रों का स्वरस 10 से 20 मिली

पत्थरचट्टा का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Bryophyllum pinnatum in Different Languages

Patharchatta in (Bryophyllum pinnatum) –

  • संस्कृत (Sanskrit) – पर्णबीज,धन्वन्तरि बीज,ऐरावती
  • हिन्दी (Hindi) – पत्थरचट्टा,पर्णबीज, जख्मेहयात, पथरचूर, पत्थर चटी
  • गुजराती (Gujarati) – घायमारी
  • मराठी (Marathi) – घायमारी
  • बंगाली (Bangali) – कोप्पाता, पाथरकुंचि
  • लैटिन (Latin) – Bryophyllum pinnatum (ब्रायोफाइलम पिनटम)

पत्थरचट्टा का रासायनिक विश्लेषण : Patharchatta Chemical Constituents

इसके पत्तों में मैलिक, आइसोसाइटिक तथा साइट्रिक एसिड होता है।

पत्थरचट्टा के औषधीय गुण : Patharchatta ke Gun in Hindi

पत्थरचट्टा का रस – कषाय, अम्ल, विपाक, मधुर,
वीर्य – शीत
दोषकर्म – वात-पित्त शामक है।

पत्थरचट्टा के उपयोग : Uses of Patharchatta in Hindi

पत्थरचट्टा रक्तरोधक होने से रक्त प्रवाहिका, रक्तार्श, रक्तप्रदर और रक्तपित्त में उपयोगी है। बाह्म प्रयोग से भी यह रक्त स्कन्दन (रक्तरोधक) है। इसके प्रयोग से सूक्ष्म धमनियों का संकोच होता है जिससे रक्तस्राव बन्द हो जाता है। यह व्रणशोधन और रोपण होने से सधोव्रण, व्रण आदि में पत्रकल्क का लेप तथा स्वरस लगाया जाता है।

पत्थरचट्टा पर अनुसंधान –

(1) शोथ-शूलहर एवं व्रणरोपण – इसका स्वरस कल्क व्रण (घाव) पर लगाया जाता है। अब अनुसंधानों से इसके Anti Bectorial, Antiviral व anti fungal गुणों का पता चलता है। यह ऐसे Bacteria को नाश करने में सक्षम है जिन्होंने आधुनिक Antibiotic के प्रति प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर ली है। Anti-infl ammatory होने के कारण यह शूल व शोथ दोनों को शान्त करता है।

(2) श्वास रोग – श्वास रोग में इसका चलन इस बात से सिद्ध होता है कि इसके पर बरस Anti Histamine व Anti Allergic गुण वाला है। पशुओं (चूहों व गिनी विग्स) में परीक्षण से ज्ञात होता है कि इसका पत्र स्वरस Anapylitic shock से होने वाली मृत्युदर को कम करता है।

(3) आमाशय व्रण – चिकित्सकीय परीक्षणों व पशुओं के ऊपर लिये परीक्षणों से ज्ञात होता है कि इसका पत्र स्वरस Aspirin, Stress ethanol (मद्यपान) व Histamine द्वारा उत्पन्न होने वाले व्रण से आमाशय की रक्षा करता है।

पत्थरचट्टा के फायदे : Benefits of Patharchatta in Hindi

रक्तस्राव में पत्थरचट्टा से फायदा

पत्थरचट्टा का पत्रस्वरस 10 मिली. ,गोघृत 25 मिली ,जीरक चूर्ण 3 ग्राम मिलाकर पिलावें अथवा स्वरस में मिश्री मिलाकर पिलावें इससे रक्तार्श, रक्तप्रदर, रक्तातिसार, रक्तपित्त आदि रोगों में होने वाला रक्तस्राव बन्द होता है। नासागत रक्तस्राव (नकसीर) में इसके स्वरस की 2-2 बूंद नाक में टपकानी चाहिये।

पेट दर्द (उदरशूल) में पत्थरचट्टा के इस्तेमाल से फायदा

पत्थरचट्टा का पत्र स्वरस 15 मिली. में 1 से 2 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर पिलावें।

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जलन (दाह) मिटाए पत्थरचट्टा का उपयोग

पत्थरचट्टा के पत्र स्वरस में मिश्री का शर्बत मिलाकर पिलाने से समस्त पित्तजन्य दाहादि रोग दूर होते हैं।

अरुचि (भूख न लगना) में पत्थरचट्टा के इस्तेमाल से लाभ

पत्थरचट्टा के पत्तों को अच्छी तरह साफ कर जीरा, धनियां, नमक और मिर्च मिलाकर चटनी पीस लें यह चटनी रुचिवर्धक तथा पित्तशामक है। ज्वर में इस चटनी को पथ्य रूप में दिया जा सकता है।

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बवासीर (अर्श) ठीक करे पत्थरचट्टा का प्रयोग

पत्थरचट्टा के स्वरस में 2 से 3 काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पिलावें अथवा पत्र चूर्ण 3 ग्राम को प्रातः काल ठण्डे पानी से सेवन करें। सेवन करने से पहले रात्रि 8 से 10 ग्राम गुड़ अवश्य खा लें सात दिनों तक निरंतर उक्त विधि से इसका सेवन करने से खूनी व बादी बवासीर में लाभ होत है।

( और पढ़े – खूनी बवासीर का इलाज )

मूत्रकृच्छ रोग में पत्थरचट्टा से फायदा

पत्थरचट्टा के पत्र स्वरस 10 मिली., तण्डुलोदक 50 मिली., मिश्री चूर्ण 10 ग्राम मिलाकर पिलाने से पेशाब खुलकर आने लगता है। यह प्रयोग सुजाक के रोगी में भी अच्छा लाभ पहुंचाता है।

वृश्चिक दंश में पत्थरचट्टा फायदेमंद

बिच्छू काटे स्थान पर इसके रस में नमक मिलाकर धीर-धीरे से मलें।

नेत्राभिष्यन्द (आँख आने का रोग) रोग में लाभकारी पत्थरचट्टा

यदि आंखें दुखती हों तो पत्थरचट्टा पत्र को अग्नि में सेककर बांधने से लाभ होता

पत्थरचट्टा के प्रयोग से दूर करे सरदर्द (शिरःशूल)

पत्थरचट्टा (पर्णबीज) पत्र पर गोघृत लगाकर बांधने से सिर की पीड़ा दूर होती है। स्वरस को गर्म कर भी ललाट पर लगाया जा सकता है।

पत्थरचट्टा के इस्तेमाल से घाव (व्रण) में लाभ

पत्थरचट्टा के पत्र को गर्म करके बांधने से घाव शीघ्र भर जाता है उसका शोथ, वेदना भी दूर होती है।

पथरी (अश्मरी) दूर करने में पत्थरचट्टा फायदेमंद

यद्यपि प्रियवत जी ने इसे अश्मरीघ्न नहीं कहा है किन्तु लोक में इसे उपयोग में लाते हैं और उन्हें लाभ भी होता है तब ही इसके नाम पथरचूर, पथरचटी आदि सार्थक हैं। बंगाल में इसका मुख्यत: वृक्काश्मरी (किडनी स्टोन) में प्रयोग किया जाता है।

श्रीराम सुशील सिंह जी ने भी पाषाण भेद के प्रकरण में लिखा है कि -“यह पत्थरचट्टा मूत्रल है और पाषाणभेद का प्रतिनिधित्व कर सकता है”।

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पत्थरचट्टा से निर्मित विशिष्ट योग (आयुर्वेदिक दवा) : Patharchatta ki Ayurvedic Dawa

पर्णबीजारिष्ट – निर्माण विधि और फायदे

पत्थरचट्टा पत्र एक किलो ग्राम लेकर पांच लीटर जल में क्वाथ करें जब आधा जल शेष रह जाय तब मलकर छान लें इसके बाद एक किलो ग्राम शहद मिलाकर चिकने पात्र में भरकर अधोलिखित प्रक्षेपद्रव्य डालें-
धाय पुष्प 100 ग्राम, लोंग, जायफल, जावित्री, इलायची, सोंठ, मिरच, पीपल प्रत्येक 10-10 ग्राम लें, सबको पीसकर पात्र में डाल मुख बन्द करके एक माह तक रखा रहने दें, पश्चात अरिष्ट सिद्ध हो जाने पर छानकर बोतलों में भर लें।

लाभ –

प्रातः सायं 10-20 मिली सेवन करने से अजीर्ण, आध्मान, अग्निमांद्य, गुल्म, यकृत, प्लीहावृद्धि, उदरशूल आदि में लाभ होता है।

पर्णबीजादि तैल (मस्तिष्क शूलहर) – निर्माण विधि और फायदे

पत्थरचट्टा स्वरस 400 मिली. , काले तिलों का तैल 400 मिली. , इलायची श्वेत के पिसे हुए बीज 10 ग्राम लेकर मन्दाग्नि पर पाक करें, तैल सिद्ध हो जाने पर छानलें, बाद में उसमें 10-12 ग्राम कपूर मिला लें ।

लाभ –

इस तैल की मालिश करने से सभी प्रकार के सिर दर्द दूर होकर मस्तिष्क में तरावट होती है इसके नस्य से नासा रोगों में लाभ होता है।

पर्णबीजादि तैल (दाहहर) – निर्माण विधि और फायदे

पत्थरचट्टा पत्र स्वरस 250 मिग्रा. ,एरण्ड तैल 200 मिली. । दोनों को मिलाकर मन्दाग्नि पर पकाकर तैल मात्र रहने पर छानकर रख लें फिर इसमें 4 से 5 ग्राम कपूर मिलाकर हाथ पैरों के तलवों पर मर्दन करने से दाह दूर होता है। यह तैल बिवाइयों पर भी लगाने से लाभ करता है।
ये तीनों विशिष्ट योग कविराज श्री विश्वनाथ प्रसाद जी भिषगाचार्य लखनऊ के पर्णबीज नामक लेख से लिये गये हैं।

पर्णबीजादि तैल (कर्णरोग नाशक) – निर्माण विधि और फायदे

पत्थरचट्टा पत्र स्वरस, धतूरा पत्रस्वरस, आँवला स्वरस और हल्दी का क्वाथ 100-100 मिली. लेकर उसमें मेनसिल 10 ग्राम और लौह भस्म 10 ग्राम मिलाकर 200 मिली. सरसों का तेल मिलाकर मंदआंच पर पकावें। तैल मात्र शेष रहने पर छानकर शीशी में भर लें।

लाभ –

कान का बहना, कर्णपीड़ा, कान में होने वाला फोड़ा, नाडीव्रण (नासूर) आदि चन्द दिनों में दूर होते हैं । दस वर्षों का नाडीव्रण इस तैल से ठीक हुआ है। – राज वैद्य श्री रामगोपाल मिश्र (धन्व. व.वि.)

पर्णबीजादि तैल (व्रणहर) – निर्माण विधि और फायदे

पत्थरचट्टा (पर्णबीज) पत्रक कल्क 200 ग्राम, कंघी (अतिबला) पत्र कल्क – 200 ग्राम तथा गोल बड़ी हरड़ का चूर्ण 50 ग्राम । तीनों को मिलाकर इनकी चकती (टिकिया) बना लें इन्हें 400 मिली. तैल में रखकर मन्दाग्नि से पकावें। चकती पककर लाल हो जाने पर उतार कर तैल को छानकर रख लें ।

लाभ-

इस तैल का व्रण बन्धन करने से घाव शीघ्र भरता है।

इस तैल को छानने के बाद पुनः गर्म कर उसमें 50 ग्राम सफेद मोम मिला देने से यह अपूर्व फलप्रद मलहम बनेगा। हर प्रकार के सूखे गीले फोड़ों, गरमी के चट्टों तथा बवासीर के मस्सों पर लगाने के लिये यह अद्वितीय मलहम है। इस मलहम से इन रोगों में लाभ होता है। – राजवैद्य श्री रामगोपाल मिश्र (धन्व.व. वि.)

पर्णबीज मलहम – निर्माण विधि और फायदे

पत्थरचट्टा पत्र कल्क 400 ग्राम, पत्रस्वरस एक लीटर 600 मिली. और तिल तैल 400 मिली. लेकर मिलाकर मन्दाग्नि पर तैल को सिद्ध करें ।

लाभ –

यह तैल गहरे घावों के लिये और पके हुये घावों के लिये उपकारक है।

यह पत्थरचट्टा तैल 400 मिली., राल 200 ग्राम, मोम 100 ग्राम और नीलाथोथा 5 ग्राम लेवें। तैल, मोम और राल को मिलाकर गर्म करें, फिर तुरन्त छानकर नीले थोथे का चूर्ण डालें। पश्चात अच्छी तरह हिलाकर मिला लेवें। जिन घावों में पूय (मवाद) हो गया हो उन घावों को त्रिफला क्वाथ से धोकर सुखाकर तैल या मलहम का फाया रखकर पट्टी बांधते रहने से वे घाव भर जाते हैं। (गावों में औषधरत्न)

पत्थरचट्टा के दुष्प्रभाव : Patharchatta ke Nuksan in Hindi

  1. पत्थरचट्टा के उपयोग व सेवन से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  2. पत्थरचट्टा का प्रयोग अधिक समय तक करने से रोग क्षमता का ह्रास होता है।
  3. गर्भिणी को इसके स्वरस को नहीं पिलाना चाहिये।

पत्थरचट्टा का मूल्य : Patharchatta Price

  • Ojorey Patharchatta Medicinal Plant (Stone of Kidney) Fresh Live with Pot Outdoor Plant – RS 259
  • Jeevan Ras Patharchur Herbal Juice (500 ml) – Rs 230

कहां से खरीदें :

अमेज़न (Amazon)

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