Last Updated on September 3, 2019 by admin
भ्रामक विज्ञापनों का मायाजाल :
सुंदर एवं आकर्षक दिखने की चाह मनुष्य की एक सहजवृत्ति है। अपने सौंदर्य में निखार के लिए मनुष्य क्या कुछ नहीं करता है, स्त्रियों में तो यह आकांक्षा विशेष रूप से बलवती पाई जाती है। फिर आज का तो युग ही विज्ञापन का है। सौंदर्य प्रसाधनों का विज्ञापन पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, दूरदर्शन और केबल टी.वी. में इतनी कुशलता एवं तीव्रता के साथ किया जा रहा है कि इसे पढ़-सुनकर या देखकर सुंदर दिखने की आकुलता में झट से इन विज्ञापित वस्तुओं का प्रयोग शुरू हो जाता है।
प्रतिबंधित रसायनों का धडल्ले से उपयोग :
आज जब बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, देश में पाँव पसार चुकी हैं, ऐसे में यह प्रतिस्पर्धा और भी बढ़ गई है। प्रतिस्पर्धी विज्ञापनों की होड़ से सौंदर्यवर्द्धक वस्तुओं की उपभोक्ता नारी चौंधिया-सी गई है। इन उत्पादों में मुख्य रूप से रासायनिक मिश्रण युक्त सौंदर्य सामग्री की बहुलता रहती है, जिसे पश्चिम की नारियाँ बहुत पहले ही ठुकरा चुकी हैं। उनके देशों में जिन रसायनों पर प्रतिबंध लग चुका है, वे भारत जैसे देश में हर्बल प्रसाधन के नाम पर ऊँची कीमत पर बिक रहे हैं।
बाजार में इनकी खपत और बढ़ती माँग को देखकर नित्य नई प्रसाधन सामग्रियाँ बाजार में आ रही हैं। क्रीम, पाउडर, शैम्पू, हेयर डाई, लोशन, कॉम्पेक्ट फेस पाउडर, हैंड व बॉडी लोशन, टेलकम पाउडर, आई लाइनर, आई शेडो, क्लींजिंग मिल्क, लिपस्टिक, नेलपालिश रिमूवर, हेयर रिमूवर, स्प्रे और जाने कितने ही सौंदर्य प्रसाधन, सौंदर्य के दीवाने आँखें मूंदकर उपयोग कर रहे हैं। इन सभी प्रसाधनों के निर्माण में अलग-अलग रसायनों का उपयोग किया जाता है, जैसे एमल्सिफाइंग एजेंट्स, एंटी बैक्टीरिया एजेंट्स, स्टेविलाइजिंग एजेंट्स, प्रिजर्वेटिव्स आदि। इनमें अधिकांशतः त्वचा पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं और कुछ तो अपने प्रभाव में घातक सिद्ध होते हैं।
साबुन और शैम्पू से होने वाले त्वचा रोग और नुकसान :
सौंदर्य साबुनों और शैपुओं का ही उदाहरण लें। कोई भी त्वचा विशेषज्ञ यह सलाह नहीं देगा कि कास्टिक सोडायुक्त साबुन सौंदर्य में निखार ला सकता है। अत: बिना या कम कास्टिक सोडा वाले साबुन को ही उपयोग में लाना चाहिए। जिन लोगों की त्वचा में सूखापन अधिक रहता हो, उन्हें ऐसे साबुन का उपयोग नहीं करना चाहिए, जिसका पी.एच. अर्थात तेजाबीपन अधिक हो, जबकि तैलीय त्वचा वालों को अधिक पी.एच. वाले साबुनों का उपयोग करना चाहिए। अधिक तेज खुशबू वाले साबुन भी हानिकारक होते हैं।
इसी तरह शैंपुओं में मूल रूप से ‘सोडियम लारेल सल्फेट’ पाया जाता है। यह बालों के लिए बहुत नुकसानदायक तो नहीं होता, किंतु अधिक मुनाफे के लालच में उत्पादक इसके स्थान पर कास्टिक सोडा’ या ‘टी-पॉल’ जैसे डिटरजेंट मिला देते हैं, जो बालों को बेजान एवं रूखा कर देते हैं। यदि इन साबुनों और शैपुओं की जगह शिकाकाई, रीठा और आँवले जैसी उत्कृष्ट वनोषधियों का उपयोग किया जाए तो निश्चित रूप से ये बालों की सुरक्षा एवं बेहतरी की दृष्टि से एक कारगर एवं निरापद उपचार सिद्ध होते हैं।
हेयर डाई के नुकसान /साइड इफेक्ट्स :
बालों की खूबसूरती के लिए हेयर डाई का उपयोग भी आज एक आम फैशन है। बालों के सफेद होने से बचाने या छिपाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है, किंतु इसका उपयोग भी कम हानिकारक नहीं है। इसको प्रयोग करने वाले इसमें होने वाले हाइड्रोजन पैराक्साइड, अमोनिया एसिड जैसे विषैले पदार्थों से सर्वथा अपरिचित हैं। इसके कारण सिर के बाल ही नहीं झड़ते हैं, कभी-कभी भयंकर खुजली और एग्जिमा का शिकार बनना पड़ता है। हेयर डाई की गंध से जुकाम भी हो सकता है। दमा के मरीजों की हालत तो हेयर डाई के उपयोग से और अधिक बिगड़ सकती है। इसी प्रकार बालों में लगाई जाने वाले क्रीम भी बुरा असर डालती है। इनसे लगाने से बाल लाल-भरे हो जाते हैं।
लिपस्टिक के नुकसान /साइड इफेक्ट्स :
लिपस्टिक भी कम हानिकारक नहीं है। इसमें प्रयोग होने वाला इयोसिन नाइट्रोजन एपिडाइन के रंग और लेनोलिन के कारण ओंठ काले भी पड़ सकते हैं। लिपस्टिक में विद्यमान रासायनिक द्रव्यों की धीमी क्रिया इसका बराबर उपयोग किए जाने पर ओंठों की त्वचा पर बुरा असर डालती है। इससे ओंठों की त्वचा धीरे-धीरे सिकुड़ने लगती है और ओंठों की स्वाभाविक रंगत नष्ट हो जाती है। इसमें विद्यमान हलके एवं नकली रसायनों के निरंतर एवं प्रचुर प्रयोग से यकृत की क्षति, प्रजनन संबंधी दोष, कैंसर और अन्यान्य शारीरिक विकृतियाँ तक पैदा हो सकती हैं।
पाउडर व क्रीम के दुष्प्रभाव :
इसी तरह पाउडर व क्रीम का अधिक उपयोग स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक ही सिद्ध होता है। अधिक पाउडर के कारण पाउडर के कण त्वचा के छिद्रों में भर जाते हैं और फिर जब गरमी के कारण पसीना निकलता है तो ये कण पसीना सोखकर फूल जाते हैं। परिणामस्वरूप त्वचा के छिद्र भी फूल जाते हैं और त्वचा कुछ समय बाद रूखी और खुरदुरी हो जाती है। इसी तरह क्रीम के अधिक उपयोग करने से त्वचा के छिद्र बंद हो जाते हैं, जिसके कारण त्वचा का पसीना ठीक ढंग से नहीं निकल पाता और न ही त्वचा में मौजूद तैल-ग्रंथि में से निकलने वाला द्रव त्वचा से बाहर आ पाता है, जिससे त्वचा में स्वाभाविक चमक नहीं रह पाती। अधिकतर फेस क्रीम में जानवरों की चरबी, पैट्रोकेमिकल्स, ईथाइल, अल्कोहल आदि का प्रयोग किया जाता है। ये तत्त्व त्वचा में दाद, खुजली और एग्जिमा जैसी बीमारियों को जन्म देते हैं।
गोरा बनाने वाली क्रीम का सच :
चेहरे को गोरा बनाने वाली क्रीम एवं लोशनों से भी इस संदर्भ में सावधान रहना आवश्यक है। आज देश में कुछ ऐसे चेहरे को गोरा बनाने वाले उत्पाद बिक रहे हैं, जो चंद सप्ताह में चेहरे को गोरा और खूबसूरत बनाने का दावा करते हैं। लेकिन इसके साथ ये उस खतरनाक रसायन का नाम-पता नहीं बताते, जिसका इसमें उपयोग किया जाता है और यह खतरनाक रसायन है – हाइड्रोक्विनॉन। यह ऐसा रसायन है, जो धीरे-धीरे त्वचा की प्राकृतिक चमक को खत्म कर देता है। हमारी बाह्य त्वचा में मेलिनोसाइट्स नामक तत्त्व होता है, जिससे त्वचा के रंग को कायम रखने वाले मेलनिन नामक पदार्थ का निर्माण होता है। हाइड्रोक्विनॉन मेलनिन को बनने से रोकता है और त्वचा की भीतरी सतह में पहुंचकर कोलेजन रेशों को मोटा कर देता है, जिससे त्वचा फूलकर चकत्तेदार हो जाती है और मुरझाने लगतीहैं।
लुभावने काजल, सुरमा भी हो सकते हैं घातक :
आँख जैसे कोमल अंग के लिए आजकल अनेक प्रकार की हानिकारक प्रसाधन सामग्रियाँ बनाई जा रही हैं। काजल, सुरमा, मस्करा, आई लाइनर, आई शैडो जैसी वस्तुएँ कम हानिकारक नहीं हैं। आँखों के चारों ओर कालापन छा जाना, त्वचा का खुरदुरा हो जाना, भौहों और पलकों के बाल झड़ना, आँखों की प्राकृतिक आभा का कम होना इनमें प्रमुख हैं। पिछले दिनों एक अमेरिकी फर्म द्वारा निर्मित आई लाइनर तथा मस्करा के प्रचार के लिए मॉडलिंग करने वाली एक महिला की आँखों की रोशनी ही जाती रही।
नेल्पोलिस के दुष्प्रभाव :
नाखूनों को सुंदर बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली नेलपॉलिश भी स्वास्थ्य की दृष्टि से निरापद नहीं है। ये नाखूनों के रंध्र बंद करके उन्हें बीमार तो करती ही हैं, इसके हानिकारक तत्त्व भोजन के साथ शरीर में पहुंचकर हानि भी पहुंचा सकते हैं। नाखून पर लगातार पॉलिश से नाखून पीले पड़ जाते हैं और उनकी स्वाभाविक चमक नष्ट हो जाती है। लगातार प्रयोग से नाखूनों की बनावट भी बिगड़ सकती है और नाखून टूट सकते हैं।
इस तरह आज धड़ल्ले से और बिना सोचे-विचारे सौंदर्य पसाधनों के उपयोग पर अंकुश की जरूरत है। जहाँ तक हो सके रासायनिक प्रसाधनों के प्रयोग से बचा जाए।
सौंदर्य को निखारने के आयुर्वेदिक उपाय :
सौंदर्य को निखारने के लिए अपनी संस्कृति में चिरकाल से प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग होता रहा है। इनका भरपूर लाभ उठाया जा सकता है। हमारे यहाँ सौंदर्य निखारने के लिए सौंदर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल प्राचीनकाल से होता आया है।
☛ तरह-तरह के अंगरागों का वर्णन प्राचीन शृंगार काव्य में मिलता है। पान से ओंठों की शोभा बढ़ाना, काजल, बिंदी और हल्दी का उबटन, कुंकुम लगाना और चंदन का आलेपन, महावर रंगना जैसी प्रसाधन विधियाँ यहाँ चिरकाल से प्रचलित रही हैं। जड़ी-बूटियों पर आधारित आयुर्वेदीय पद्धति भी सौंदर्य-संरक्षण एवं संवर्द्धन के संदर्भ में सहायक रही है। पूरे विश्व में यह सबसे प्राचीन पद्धति है।
☛ सौंदर्य विशेषज्ञों के अनुसार, आधुनिक जरूरतों के मद्देनजर आयुर्वेद सारी समस्याओं का एक सटीक जवाब है। प्रत्येक सौंदर्य समस्या का उपचार आयुर्वेद में विद्यमान है। इसके उत्पादों में त्वचा के कोशिकीय स्तर तक लाभ पहुंचाने की क्षमता है। यह त्वचा की प्राकृतिक कार्यक्षमता में भी वृद्धि करता है। इसमें नई कोशिकाओं के जन्म से लेकर मृत कोशिकाओं की साफ-सफाई तक शामिल है। इस तरह कहा जा सकता है कि आयुर्वेद न सिर्फ त्वचा के स्वास्थ्य और सौंदर्य की रक्षा करता है, बल्कि उन्हें निखारकर लंबे समय तक यथास्थिति भी रखता है।
☛ जड़ी-बूटी पर आधारित सौंदर्य उत्पादों की प्रमुख विशेषता यह है कि इनका विपरीत प्रभाव अर्थात ‘साइड इफेक्ट’ नहीं पड़ता है। सिंथेटिक सौंदर्य प्रसाधन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर ही हमला बोल देते हैं, जबकि आयुर्वेद गुणों से भरपूर सौंदर्य उत्पाद त्वचा की सतह पर व्याप्त अशुद्धियों को तो दूर करता ही है, साथ ही अम्लीय-क्षारीय साम्य को भी बनाए रखता है। इसी दौरान उसकी सुगंध नाड़ी तंत्र को आराम पहुँचाने का काम भी करती है। गुलाब, चमेली, चंदन, गंधराज, ब्राह्मी आदि इसी तरह की कुछ गुणकारी वनोषधियाँ हैं।
☛ वनस्पति उत्पादों को वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों से बचाव में भी उपयुक्त पाया गया है। प्रदूषण के कारण ही आज त्वचा की रंगत, संरचना, दाग-धब्बे व अन्य समस्याएँ सामने आती हैं। जड़ी-बूटियों से तैयार प्रसाधन इन विषैले तत्त्वों को साफ कर देता है। इस संदर्भ में एलोवेरा (घृतकुमारी),नीबू, हल्दी, पपीता आदि के गुणों से भरपूर उत्पाद शक्तिशाली क्लींजर का काम करते देखे गए हैं। इसके अतिरिक्त ये त्वचा में नमी का प्राकृतिक साम्य भी बरकरार रखते हैं। इनमें से कुछ में ऐसे एंजायम भी पाए जाते हैं, जो कोशिकीय परिवर्तनों पर रोक लगाकर त्वचा की अवशोषक क्षमता में वृद्धि करते हैं।
☛ बादाम, व्हीटजर्म, गुलाब, आँवला, ब्राह्मी आदि से तैयार उत्पादन इन विशेषताओं से संपन्न होते हैं।
☛ इसी तरह चंदन, यूकेलिप्टस, लौंग, कैम्पॉइल, कपूर, तुलसी, पुदीना, अर्निका जैसी वनस्पतियों का प्रयोग त्वचा की उत्तेजक स्थितियों के उपचार में होता है।
☛ आयुर्वेद की आधुनिकतम खोजें फूलों द्वारा उपचार की है। विभिन्न शोधों में पाया गया है कि सौंदर्य उत्पादों के क्रम में फूल से तैयार उत्पाद पर्यावरणीय समस्याओं में बेहद लाभदायक सिद्ध होते हैं। गुलाब, चमेली, गुड़हल, गुलमेंहदी, कैलेंदुला, कमल, गेंदा आदि फूलों के सत से तैयार सौंदर्य उत्पादों से त्वचा व बालों की सफलतापूर्वक देखभाल की जा सकती है।
अतः बुद्धि-विवेक का तकाजा यही है कि सौंदर्य के संरक्षण-संवर्द्धन में प्राकृतिक उत्पादों का ही प्रयोग किया जाए। सिंथेटिक एवं रासायनिक तत्वों वाले उत्पादों का प्रयोग एक तरह से अपने शरीर के साथ खिलवाड़ करने जैसी ही बात है। अत: इनसे बचते हुए जड़ी-बूटियों एवं वानस्पतिक तत्त्वों से युक्त आयुर्वेदिक उत्पादों का ही अधिक से अधिक उपयोग किया जाए, इसी में समझदारी है।
आगे पढ़ने के लिए कुछ अन्य सुझाव :
• घर पर बनायें सौन्दर्यवर्द्धक लेप(Face Pack) और उबटन ।
• कुदरती देखभाल से निखरे रूप व सौंदर्य ।
• रुखी व बेजान त्वचा से छुटकारा पाने के आसन घरेलू उपाय ।