Last Updated on July 15, 2021 by admin
प्राय: बहुत से लोगों को यह विदित नहीं है कि मस्तिष्काघात-पक्षाघात या लकवा की बीमारी का प्रमुख कारण होता है। यह रोग सारी दुनिया के लिए आज भी एक समस्या है। विकसित और विकासशील देशों में बहुत से लोगों की मौतों और बहुत से लोगों को अपंग बनाने में इस रोग का हाथ है।
मस्तिष्काघात क्या है ? (What is Stroke Disease in Hindi)
वास्तव में यह स्थिति मस्तिष्क को रक्त पहुँचाने वाली विभिन्न रक्तवाहिकाओं में से किसी रक्तवाहिनी के दबाववश फटने अथवा उनमें रुकावट आने या फिर वाहिकाओं के सँकरा (Stenosis) हो जाने से बनती है। जब रक्तवाहिका फटती है (Rupture) है तो खून निकलकर मस्तिष्क के विभिन्न भागों में जम जाता है जिससे मस्तिष्क के कार्य प्रभावित होते हैं क्योंकि मस्तिष्क की कोशिकाएँ थक्का जमने के कारण अपना कार्य नहीं कर पाती हैं। तब शरीर के अन्य अंग जैसे–चेहरा, तालु, मुख, हाथ, पैर इत्यादि भी प्रभावित होते हैं। और उनमें लकवे की शिकायत हो जाती है।
इसी तरह जब रक्तवाहिका सँकरी हो जाती है या उसमें थक्के के कारण कोई रुकावट आ जाती है तो मस्तिष्क को रक्त के द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति रुक जाती है जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएँ मरने लगती और इससे मस्तिष्क (Brain) के प्रभावित भाग के अनुसार शरीर के अंग निष्क्रिय हो जाते हैं अर्थात् उनमें लकवा लग जाता है। इसे हिन्दी में पक्षाघात भी कहा जाता है।
रोग की गम्भीरता रक्तवाहिकाओं से रक्तस्राव की मात्रा एवं मस्तिष्क के प्रभावित हिस्सों पर निर्भर होती है। वास्तव में यह स्वयं मस्तिष्क का रोग न होकर मस्तिष्क को खून पहँचानेवाली रक्तवाहिनियों का रोग होता है जिसमें बाद में मस्तिष्क भी प्रभावित हो जाता है। इसलिए इस रोग को मस्तिष्क एवं रक्तवाहिनियों की दुर्घटना वाला रोग (Cerebro Vascular Accident) भी कहते हैं।
मस्तिष्काघात और रक्तचाप (Stroke Causes and High Blood Pressure in Hindi)
मस्तिष्काघात अधिकतर मामलों में उच्च रक्तचाप से सम्बन्धित होता है। न केवल उच्च रक्तचाप बल्कि निम्न रक्तचाप से भी रोग का खतरा होता है। जैसा कि ऊपर बतलाया गया है। यह बीमारी भी लोगों को अपंग बनाने और मृत्युओं का एक बहुत बड़ा कारण है। मस्तिष्काघात के पश्चात् अक्सर आधे शरीर अथवा कुछ अंगों अथवा पूरे शरीर में लकवा (Paralysis) या पक्षाघात हो जाता है। कई बार तो रोगी बेहोश होकर कोमा में चला जाता है और फिर उसकी मृत्यु हो जाती है। इस तरह यह एक बहुत ही खतरनाक रोग है। लेकिन लोग यदि अपने रक्तचाप पर नियंत्रण एवं जीवन को संयमित बनाने के साथ कुछ सावधानियाँ रखें तो रोग से बचा भी जा सकता है। (बचाव की जानकारी आगे दी जाएगी) यदि रक्तचाप दो सौ से ऊपर जाता हो तो इस रोग का खतरा बढ़ जाता है। अत: रक्तचाप पर नियंत्रण आवश्यक है।
युवा मरीजों में मस्तिष्काघात के कुछ कारण (Causes of Stroke in Hindi)
मस्तिष्काघात क्यों होता है ?
- हृदय रोगों से उत्पन्न थक्का (Embolism)
- रक्त में लिपिड या कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाना
- गले की रक्तवाहिकाओं (Carotidartery) में खराबी या सँकरापन (Stenosis)
- मस्तिष्क एवं उसके निचले हिस्सों में रक्तस्राव
- रक्त वाहिकाओं में सूजन (Vasculitis)
मस्तिष्काघात का शरीर पर प्रभाव (Effect of Stroke on the Body in Hindi)
स्ट्रोक अथवा मस्तिष्काघात से लगभग 90 प्रतिशत मरीजों को आधे अंगों में लकवा लगता है। अर्थात् वे पक्षाघात के शिकार बनते हैं। लेकिन कुछ रोगियों में केवल पैरों में, हाथों में अथवा आधे चेहरे पर ही लकवा का प्रभाव होता है। बहुत से रोगी बात नहीं कर पाते या बात करते भी हैं तो समझ में नहीं आती। इस तरह के रोगियों को ठीक होने में काफी वक्त लगता है। कई बार ऐसे रोगी ठीक हो भी नहीं पाते। इस तरह पक्षाघात की बीमारी व्यक्ति को असहाय और दूसरों पर निर्भर बना देती है। रोग की गम्भीर स्थिति में जब रोगी गहरी बेहोशी से वापस नहीं आ पाता तो उसकी मृत्यु हो जाती है।
मस्तिष्काघात या स्ट्रोक का वर्गीकरण (Types of Stroke in Hindi)
मस्तिष्काघात के प्रकार कितने हैं ?
वास्तव में यह बीमारी कई तरह के लक्षणों का समूह होती है। इस तरह यह एक जटिल रोग है। इसे कारणों द्वारा गम्भीरता के आधार पर निम्न तरह विभाजित किया गया है –
- मस्तिष्क के कुछ भागों में रक्तस्राव का होना।
- मस्तिष्क के प्रमुख भागों में रक्त का थक्का जमना या मस्तिष्क की रक्तवाहिकाओं में इम्बोलाई अथवा बुलबुला पहुच जाना।
- मस्तिष्क को रक्त पहँचाने वाली धमनियों में रुकावट आ जाना।
- हृदय रोग के कारण (जब मस्तिष्क में कोई खराबी न मिले)
हल्का मस्तिष्काघात (Transcient Ischemic Attack – T.I.A)
कई बार रोगी के मस्तिष्क को रक्त पहुँचानेवाली रक्तवाहिकाओं में बहुत छोटे थक्के (Emboli) मौजूद होने के कारण कुछ समय के लिए मस्तिष्काघात के लक्षण मिलते हैं जो 24 घंटे तक रहते हैं। फिर रोगी ठीक या सामान्य हो जाता है। लेकिन इस तरह का लघु या हल्का मस्तिष्काघात आगे आनेवाले बड़े खतरे का सूचक होता है। अत: रोगी को सावधान हो जाना चाहिए।
मस्तिष्काघात के लक्षण (Stroke Signs and Symptoms in Hindi)
- एकदम से तेज सिरदर्द
- उल्टियाँ
- गर्दन में कड़ापन
- दृष्टिदोष उत्पन्न होना
- शरीर के एक ओर के अंगों या परे अंग संवेदनहीन होना
मस्तिष्काघात के जोखिम कारक (Risk Factors for Stroke in Hindi)
वे कौनसे कारक है जिनसें मस्तिष्काघात का खतरा बढ़ जाता है ?
कुछ ऐसी स्थितियाँ अथवा कारक होते हैं जिनसे इस रोग का खतरा बढ़ जाता है। इनको रिस्क फैक्टर्स (Risk Factors) भी कहा जाता है। अत: इन बिन्दुओं पर हम विचार करेंगे
1). उम्र – विकसित देशों में 80 प्रतिशत मामले 65 वर्ष से ऊपर की उम्र वालों में पाए जाते हैं। लेकिन भारत में 20 प्रतिशत मामले 40 वर्ष से नीचे के व्यक्तियों अर्थात् युवाओं में होते हैं। यह एक चिन्तनीय तथ्य है।
2). लिंग – महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में यह बीमारी 30 प्रतिशत अधिक होती है। लेकिन इसके सही कारण ज्ञात नहीं हैं।
3). अन्य बीमारियों से सम्बन्ध – यह पाया गया है मस्तिष्काघात के 75 प्रतिशत मामलों में रोगी पहले से ही उच्च रक्तचाप हृदय अथवा मधुमेह से पीड़ित था।
4). इनके अलावा कुछ अन्य नशे एवं आदतें जैसे – अत्यधिक सिगरेट या तम्बाकू का सेवन, ज्यादा शराब पीना इत्यादि भी रोग के हमले में सहायक होते हैं।
5). मोटापा – जैसा कि बतलाया गया है रक्त में वसा (लिपिड) की अधिक मात्रा एवं मोटापा भी खतरे वाले कारक हैं।
6). रक्त का जमना – रक्त के जमने की प्रक्रिया में उत्पन्न विकार भी रोग के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।
7). गर्भ निरोधक गोलियां – मुख द्वारा खाई जानेवाली गर्भ निरोधक गोलियों को भी रोग के लिए कभी-कभी उत्तरदायी
समझा जाता है।
मस्तिष्काघात की जाँचें (Diagnosis of Stroke in Hindi)
मस्तिष्काघात का परीक्षण कैसे किया जाता है?
जाँचों में यह पता किया जाता है कि रक्त का थक्का मस्तिष्क के किस हिस्से में मौजूद है एवं उसका आकार क्या है। या फिर यदि रक्तस्राव हुआ है तो वह किस रक्तवाहिका से कहाँ हुआ है। इसके लिए निम्न जाँच करते हैं –
- सी.टी. (Computerised Tomography) या एम.आर.आई. (Magnetic Resonance Imaging) – ये आधुनिक जाँचें हैं जिनमें कम्प्यूटर की मदद से मस्तिष्क के भीतर की सारी संरचनाओं और असामान्यताओं के चित्र दिख जाते हैं। इससे रक्त का थक्का (Thrombus) एवं रक्तस्राव और उसके आकार का पता चल जाता है। परन्तु ये जाँच बड़े शहरों के बड़े अस्पतालों में ही उपलब्ध होती है। इन जाँचों से मस्तिष्क में रक्त की कमी (Ischemic) का भी पता चलता है।
- रीढ़ की हड्डी के द्रव की जाँच (C.S.F.) Examination – रीढ़ की हड्डी के अन्दर सुषुम्ना नाड़ी के चारों ओर दुहरी झिल्ली में द्रव पदार्थ रहता है जिसका सम्बन्ध सीधा मस्तिष्क से होता है। मस्तिष्काघात के 12 घंटे पश्चात् इस द्रव में परिवर्तन होता है और वह रंगीन हो जाता है जिसकी परीक्षा चिकित्सा विशेषज्ञ या पैथोलॉजी विशेषज्ञ करते हैं।
- अन्य जाँचें – हृदय धमनी के रोगों की जाँच के लिए ई.सी.जी. (Electro Cardio Gram) कलर डाप्लर, एम.आर.ए. (Magnetic Resonance Angiography) करते हैं।
खतरे वाले कारकों को जानने के लिए रक्त की जाँचें कोलेस्ट्रॉल, रक्त के जमने का समय (Clotting Time), प्लेटलेट्स की संख्या ज्ञात करते हैं। मधुमेह का पता करने के लिए रक्त द्रव में ग्लूकोज या शर्करा की जाँच करते हैं।
मस्तिष्काघात का इलाज (Stroke Treatment in Hindi)
मस्तिष्काघात का उपचार कैसे किया जाता हैं ?
इलाज का पहला उद्देश्य होता है कि मस्तिष्क की कोशिकाओं की क्षति कम से कम हो । लेकिन जो क्षति पहुच चुकी है उसको पूर्णत: ठीक करना या उसकी भरपाई मश्किल होती है।
दूसरा उददेश्य होता है जटिलताएँ कम-से-कम हों। इसके लिए पुनः मस्तिष्काघात की स्थिति न बने यह प्रयास किया जाता है।
फिर शरीर के अंगों में आई अपंगता या शिथिलता को दूर करने के लिए दवाइयों एवं व्यायाम का सहारा लिया जाता है। विटामिन ‘बी’ के इंजेक्शन भी दिए जाते हैं। कुछ ऐसे रोगी जिनके मस्तिष्क के निचले हिस्से में रक्तस्राव हो चुका होता है, उनके ऑपरेशन से ठीक होने की सम्भावना होती है अत: उन्हें अति शीघ्र न्यूरोसर्जन के पास भेजा जाता है। वे इस बेरी एन्यूरिज्म नामक विकृति का शल्य क्रिया द्वारा निदान करते हैं।
1). उच्च रक्तचाप की चिकित्सा – स्ट्रोक के बाद अक्सर रोगी का रक्तचाप बढ़ जाता है। यह बढ़ा हुआ रक्तचाप 24 से 48 घंटे में सामान्य हो जाता है। यदि रक्तचाप 8 से 10 दिन तक बढ़ा रहता है तो फिर दवाइयों द्वारा उसे धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में लाते हैं। ( और पढ़े – हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप) का घरेलू इलाज )
2). रोगी को पोषण एवं ऑक्सीजन देना – रोगी के लिए रक्तवाहिकाओं द्वारा ग्लूकोज, मेनीटाल इत्यादि देने के साथ ऑक्सीजन देते हैं। ताकि रक्त के अभाव से ग्रसित (Ischemic) मस्तिष्क की कोशिकाएँ सक्रिय हो सकें।
3). मधुमेह पर नियंत्रण – रोगी यदि पूर्व से मधुमेह रोगी है तो उसकी रक्त शर्करा को दवाइयों
द्वारा सामान्य स्तर तक लाते हैं। क्योंकि बढ़ी हुई रक्त शर्करा मस्तिष्क के बेजान हुए हिस्से के क्षेत्र को और बड़ा बना देती है। रक्त शर्करा कम करने के लिए इन्सुलिन का प्रयोग करते हैं। ( और पढ़े – मधुमेह क्या है ? कारण ,लक्षण ,आहार और उपचार )
4). एस्प्रिन और रक्त को न जमने देनेवाली दवाएँ (Anti-coagulents) – ये दवाएँ केवल तभी दी जाती हैं जब हृदय द्वारा उत्पन्न इम्बोलाई (थक्का) मस्तिष्काघात पैदा करता है। और मस्तिष्क में कोई रक्तस्राव मौजूद नहीं होता। चिकित्सक एस्प्रिन का भी उपयोग इस स्थिति में करते हैं।
5). अतिरिक्त देखभाल – चूँकि ये मरीज पक्षाघात के कारण दूसरों पर निर्भर रहते हैं अत: इनकी उचित देखभाल जरूरी होती है। कई बार ऐसे रोगी को पीठ इत्यादि पर फोड़े (बेड सोर) हो जाते हैं। अत: यह ध्यान देना जरूरी है कि ये न हों।
रोगी के ठीक होने की सम्भावनाएँ-इस रोग के 75 प्रतिशत रोगी जिन्दा रहते हैं और कई की हालत में धीरे-धीरे सुधार होता जाता है। कुछ रोगियों को छह महीनों के भीतर पुन: मस्तिष्काघात भी हो जाता है।
मस्तिष्काघात से बचाव (Prevention of Stroke in Hindi)
मस्तिष्काघात की रोकथाम कैसे करें ?
यद्यपि पूर्णत: अथवा 100 प्रतिशत तो रोग से बचाव सम्भव नहीं है फिर भी खतरे वाले कारकों को कम करके इस रोग का खतरा भी कम किया जा सकता है। इस रोग से सुरक्षित रहने के लिए हमें उच्च रक्तचाप हृदय रोगों, मधुमेह एवं अधिक मोटापे से बचना होगा। यदि इनमें से कोई रोग है तो रोग को दवाइयों, योग एवं परहेज द्वारा नियंत्रण में रखना पड़ेगा। तभी इस खतरनाक रोग से सुरक्षित रहने की बात सोची जा सकती है क्योंकि उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसे रोग मस्तिष्काघात रोग को बढ़ावा देते हैं या उसकी सम्भावनाओं को बढ़ा देते हैं। अत: रोग से बचाव के लिए निम्न सावधानियाँ रखें –
1). रक्तचाप पर नियंत्रण – बढ़ा हुआ रक्तचाप (High Blood Pressure) को दवाइयों से नियंत्रित रखें। यह ध्यान रखें कि रक्तचाप सामान्य से अधिक कम कभी न हो। उच्च रक्तचाप के रोगी अपने रक्तचाप की जाँच करवाते रहें और चिकित्सक के परामर्श के अनुसार दवाइयाँ भी लेते रहें। इन्हें स्वयं बन्द न करें।
2). मधुमेह (Diabetes) पर नियंत्रण – रोगी अपनी रक्त शर्करा पर भी नियंत्रण रखे। क्योंकि इन रोगियों को हृदयाघात के साथ मस्तिष्काघात का भी खतरा सामान्य लोगों की अपेक्षा कई गुना अधिक होता है।
3). हृदय रोगों पर नियंत्रण – हृदयावरोध या हार्ट फेलयर एवं एंट्रियल फिब्रीलेशन नामक हृदय रोगों में मस्तिष्काघात का खतरा (इम्बोलाई द्वारा) अधिक होता है। अत: रोगों का इलाज कर उन्हें नियंत्रण में रखें। ( और पढ़े – हृदय रोग एवं आयुर्वेदिक उपचार )
4). कोलेस्ट्रॉल (Lipid) पर नियंत्रण – रक्त में वसा या लिपिड का स्तर अधिक होने से हृदय रोगों के साथ ही मस्तिष्काघात का भी खतरा बढ़ जाता है। अत: लिपिड (कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स इत्यादि) का रक्त में स्तर नियंत्रित करने के लिए जमने वाले घी, तेलों एवं मक्खन का सेवन बहुत कम करें। फिर भी स्तर बढ़ा हुआ है तो अपने डॉक्टर से सलाह लेकर उचित दवाइयों का सेवन करें। याद रखें लिपिड पर नियंत्रण आपको न केवल मस्तिष्काघात से बचाएगा बल्कि हृदयाघात (Heart Attack) और उच्च रक्तचाप जैसे रोगों का भी खतरा कम होगा। ( और पढ़े – कोलेस्ट्रॉल कम करनेवाले 16 आहार )
5). धूमपान (Smoking) बन्द करना – धूम्रपान भी इस रोग के लिए एक खतरे वाला कारक है अत: इसे छोड़ने से भी आप कैंसर एवं उच्च रक्तचाप के साथ मस्तिष्काघात के खतरे को भी कम कर सकते हैं। ( और पढ़े – सिगरेट (धूम्रपान) की लत छोड़ने के उपाय )
6). अधिक शराब पीना छोड़ना – यह देखा गया है कि अलकोहल का ज्यादा मात्रा में सेवन करने वालों को यह रोग अधिक होता है। अत: शराब की लत पर नियंत्रण भी मस्तिष्काघात से बचा सकता है । ( और पढ़े – शराब छोड़ने के उपाय )
7). गर्भ निरोधक गोलियों के सेवन में सावधानियाँ – इस तथ्य का भी पता चला है कि लम्बे समय तक ये गोलियाँ खाने से स्ट्रोक या मस्तिष्काघात की सम्भावना बन जाती है। अत: इनका सेवन अपने चिकित्सक की सलाह पर आवश्यक होने पर ही करें। केवल इसी तरीके पर निर्भर न रहकर गर्भ निरोध के अन्य साधन भी अपनाएँ। (और पढ़े – सावधान गर्भ निरोधक गोलियों से हो सकता है कैंसर )
8). पॉली साइथीमिया (Polycythaemia) नामक बीमारी का इलाज – इस रोग में रक्ताणुओं की संख्या और उनका आयतन बढ़ जाता है। अत: मस्तिष्क में थक्का बनने और रक्तवाहिकाओं द्वारा मस्तिष्क को पर्याप्त रक्त पहँचाने में बाधा होने के कारण मस्तिष्काघात हो जाता है। अत: इस बीमारी का जो भी सम्भव इलाज है करवाएँ।
9). मानसिक तनाव (Mental Tension) कम करना – मानसिक तनाव की केवल इसी रोग में क्या, बल्कि कई रोगों (जैसे हृदय रोग, उच्च रक्तचाप) में प्रमुख भूमिका होती है। अत: बहुत अधिक तनाव न पालें। दिनचर्या को नियमित बनाएँ। उचित व्यायाम या योग को भी दिनचर्या में शामिल कर शुद्ध सात्त्विक ताजा भोजन करें। पर्याप्त विश्राम भी जीवन में आवश्यक है। इसके साथ ही कुछ समय मनोरंजन एवं अपनी रुचियों को भी दें।
तनाव कम करने के लिए प्राणायाम और योग इत्यादि का सहारा लिया जा सकता है। इसके लिए व्यावहारिक अनुभव रखनेवाले किसी अच्छे योगाचार्य से सम्पर्क करें। (और पढ़े – मानसिक तनाव दूर करने के 26 सबसे कारगर उपाय )
10). मोटापा कम करना – बहुत अधिक वजन कई रोगों के साथ इस रोग की सम्भावना को भी बढ़ाता है। अत: वजन पर नियंत्रण रखें। (और पढ़े – मोटापा कम करने के 58 अचूक घरेलू उपाय )
इस तरह अपनी अस्वास्थ्यप्रद आदतें बदलकर हम इस रोग से सुरक्षित रह सकते हैं। क्योंकि यदि एक बार इस रोग का शरीर पर आक्रमण हो गया तो यह खतरनाक रोग शरीर को अपंग बनाकर छोड़ता है।