Last Updated on October 12, 2019 by admin
भृंगराज (भांगरा) क्या है ? : false daisy in hindi
भांगरे के पौधे बरसात के दिनों में सब जगह पैदा होते हैं और तर जमीनों में ये बारहों मास रहते हैं। इसके पौधे आधे से लेकर दो फीट तक लम्बे होते हैं, कुछ पौधे तो सीधे खड़े रहते हैं और बाकी पौधे जमीन पर फैले हुये रहते हैं । इसको शाखाएं हरी, चमकीली और कुछ काले रंग की छाया लिये हुये होती हैं।
शाखाओं के ऊपर सफेद रङ्ग के सख्त रुएँ रहते हैं । पत्ते १ से लेकर ३ इंच तक लम्बे और आधे से लेकर १ इंच तक चौड़े होते में हैं। इनको मसलने से इनसे कुछ कालापन लिये हुये हरे रंग का रस निकलता है जो थोड़े ही समय में काला पड़ जाता है । इसके फूल सफेद और फल काले होते हैं।
विभिन्न भाषाओं में भृंगराज (भांगरा) के नाम :
✦ संस्कृत – भृगराज, भृङ्ग, भेकराज, भृगरज, कुंतलवर्धन, केशरंजन, पितृप्रिय, रंगक, अंगारक, माकंव, इत्यादि ।
✦ हिन्दी – भांगरा, भंगरा।
✦ मराठी – माका, बांगरा, भृगराज ।
✦ पंजाबी – किशोरी, केशराज, केसटी, भीमराज ।
✦ गुजराती – भांगरो, कालो भांगरो, कालूगंथी ।
✦ संयाल – लाल केसरी ।
✦ सिन्ध – टिक ।
✦ तामील – केकेशी, केवी शिलाइ, कृष्णलंगानि ।
✦ तेलगू – गलागरा, गुंट कलगरा।
✦ उर्दू – भांगरा।
✦ लेटिन – Eclipta Prostrata ( एकलिप्टा प्रोस्ट्रेटा )। Wedelia Calandulacea ( वेडेलिया केलेंडयू लेसीइ)।
✦ इंग्लिश – false daisy
भृंगराज (भांगरा) के प्रकार :
आयुर्वेदिक निघण्टुओं में भांगरे की सफेद, पीली और काली ये तीन जातियां मानी हैं। सफेद जाति को. भृंगराज, पीली जाति को पीत भृंगराज और काली जाति को नील भृंगराज कहा गया है।
लोगों का ख्याल है कि काली जाति वाले भांगरे धातुओं से सोना बनाने के काम में आते है और यह जाति बड़ी कठिनता से भाग्यशाली मनुष्यों को ही मिलती है, मगर आधुनिक वनस्पति शास्त्रियों का खयाल हैं कि भांगरे की काली जाति होती ही नहीं सिर्फ सफेद फूल वाले भांगरे की सफेद पंखड़िया खिल जाने के बाद उसका नीला या काले रंग का जो हिस्सा रह जाता है उसी को लोग काले रङ्ग का भांगरा समझते हैं। इसलिये औषधि शास्त्र में अभी तक जहां भांगरे का वर्णन आता हैं वहां सफेद जाति का ही भांगरा काम में लिया जाता है।
आयुर्वेदिक मतानुसार भृंगराज (भांगरा) के औषधीय गुण :
☛ आयुर्वेदिक मत से भांगरे का पौधा कड़वा, गरम, धातु परिवर्तक, कृमिनाशक और विषनाशक होता है।
☛ यह बालों के सौन्दर्य को बढ़ाने बाला होता है ।
☛ यह नेत्रों की ज्योति को तेज करने वाला और दांतों को मजदूत करने वाला है ।
☛ भृंगराज सूजन, हर्निया (आंत्रवृद्धि), नेत्र रोग, कफ, वात, खांसी, दमा आदी रोगों को दूर करता है भृंगराज
☛ यह श्वेत कुष्ठ, पाण्डुरोग, हृदय रोग, चर्मरोग, खुजली, रतौंधी, उपदंश और विष को नष्ट करने वाला होता है।
☛ गर्भपात और गर्भस्राव को रोकने के लिये तया प्रसूति के पश्चात् गर्भाशय में होने वाली वेदना को रोकने के लिये इसका उपयोग किया जाता है।
☛ भांगरे में अंग्रेजी औषधि टेरेक्सेकम की तरह पित्त को शुद्ध करने, बालों को बढ़ाने और दीर्घायु करने के – गुण प्रधान रूप से रहते हैं।
यूनानी मतानुसार भृंगराज (भांगरा) के औषधीय गुण :
☛ यूनानी मत से इसका पौधा कड़वा और तीखा होता है।
☛ यह बालों के रंग को बढ़ाता हैं, नेत्रों की ज्योति को तेज करता हैं ।
☛ पौष्टिक, कफ निस्सारक, अग्निवर्धक और ज्वरनाशक होता है ।
☛ तिल्ली के रोग, दन्तशूल, मस्तकशूल, ज्वर, यकृतशूल, आधा शीशी और मुखरोग में यह बहुत उपयोगी होता है।
☛ इसके सेवन से सिर के चक्कर दूर हो जाते हैं।
भृंगराज (भांगरा) के उपयोग : Bhringraj Uses in Hindi
⚫ भांगरे का प्रधान उपयोग पोष्टिक, यकृत की बीमारी और तिल्ली की वृद्धि को दूर करने तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के पुराने चर्म रोगों को दूर करने के लिये किया जाता है।
⚫ यह बात आम तौर से प्रचलित और मानी हई समझी जाती है कि इस वनस्पति का भीतरी और बाहरी उपयोग करने से बाल, लम्बे, मुलायम और भंवरे के समान काले रहते हैं।
⚫ बम्बई के रहने वाले लोग इस वनस्पति के रस को दूसरे सुगंधित द्रव्यों के साथ एक पौष्टिक और बाधानाशक वस्तु की तरह उपयोग में लेते हैं।
⚫ नवजात शिशुओं का जुकाम दूर करने के लिये इसके रस की दो बंदे ८ बूंद शहद में मिलाकर चटाई जाती है ।
⚫ इसका ताजा पौधा तिल के साथ पीस कर श्लीपद या हाथी पांव को आराम करने के लिये उपयोग में लिया जाता है ।
⚫ इसका ताजा रस यकृत् की विकृति और जलोदर रोग में लाभदायक समझा जाता है।
⚫ इसका अधिक मात्रा में उपयोग करने से वह अपना वामक असर दिखलाता है।
⚫ यह शीतल, शूलनाशक और शोधक गुणों से युक्त रहता है ।
⚫ इसको थोड़े तेल में मिलाकर सिर पर लेप करने से सिर दर्द दूर हो जाता है।
⚫ इसके पत्तों का रस एक चाय के चम्मच की मात्रा में देने से पीलिया और ज्वर में लाभ होता है ।
⚫ इसकी जड़ को पेशाब की जलन दूर करने के उपयोग में लेते हैं ।
⚫ कार्टर के मतानुसार इनके पत्तों के लेप की व्रण और छालों को अच्छा करने के लिये बहुत प्रशंसा है ।
⚫ इसकी जड़ को पेट की बीमारियों को दूर करने के लिये पेट के ऊपर बांधते हैं ।
⚫ चायना में यह पौधा संकोचक माना जाता हैं और प्रसूति के बाद होने वाले रक्तस्राव और विटाल को रोकने तथा मसूड़ों को मजबूत करने के लिये इसका उपयोग किया जाता है।
⚫ दंतशूल को मिटाने के लिये इसके पौधे को मसूडों पर रगड़ते हैं।
⚫ लारिबुनियन में इसका पोधा दमे को दूर करने वाला और छाती के रोगों में लाभदायक माना जाता है ।
⚫ चर्म रोग और श्लीपद में इसका काढ़ा बाहरी उपचार के काम में लिया जाता है।
⚫ इण्डोचायना में इसका पौधा दमा और खांसी को दूर करने के लिये अत्यधिक उपयोग में लिया जाता है।
⚫ इसके पत्तों का चूर्ण प्रसूति के बाद होने वाले रक्तस्राव को रोकने तथा रक्त को शुद्ध करने के लिये उपयोग में लिया जाता है।
⚫ कोमान के मत से इस पौधे की सफेद और पीली दो जातियां होती हैं। पीली जाति के पत्ते कफ की वजह से पैदा हुए पीलिया को दूर करने के काम में लिए जाते हैं । इस रोग में इसके ताजे पत्तों को अच्छी तरह से धोकर कुछ काली मिरच के दानों के साथ पीसकर उनकी नीबू के बराबर गोली बनाकर सबेरे खटटे दही या मट्ठे के साथ देते हैं।
मैंने इस औषधि को इस बीमारी को दूर करने के लिये अत्यन्त उपयोगी पाया।
इसको ५-६ दिन तक देने पर रोगी को बहुत लाभ दृष्टिगोचर होता है। जरूरत पड़ने पर इसकी क्रिया को ठीक तौर से चाल रखने के लिये कुछ जुलाब देने की भी जरूरत पड़ती है ।
⚫ शरीर के अन्दर इस वनस्पति की क्रिया पोडोफिलीन और टेरेक्सेकम की तरह होती है । इस औषधि का स्वरस विशेष रूप से औषधि के काम में लिया जाता है।
⚫ डॉक्टर देसाई के मतानुसार भांगरा कड़वा, गरम, दीपन, पाचक, वातनाशक, मृदुविरेचक, मूत्रल, बल. कारक, चर्मरोग, नाशक, व्रणशोधक, व्रणरोपक और क्रांतिवर्धक होता है।
⚫ आयुर्वेद में इसको रसायन और धातुपरिवर्तक माना है और इस कथन में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं है।
⚫ इसकी प्रधान क्रिया यकृत के ऊपर होती है। इसके लेने से यकृत की विनिमय क्रिया सुधरती है । पित्त का संचालन व्यवस्थित रूप से होता हैं और आमाशय तथा पक्वामय की पाचन क्रिया सुधरने से सारे शरीर में ओज और कांति की वृद्धि होती है ।
⚫ प्रतिदिन भांगरा खाने वाला मनुष्य बुड्ढे में जवान हो जाता है इस कथन में अतिशयोक्ति नहीं है ।
⚫ भांगरे का धर्म टेरेक्सेकम के समान अथवा उसकी अपेक्षा भी अधिक प्रभावशाली होता है। इसकी बड़ी मात्रा में देने से यह वामक हो जाता है।
⚫ भांगरे का रस बिगड़ी हुई यकृत की क्रिया को सुधारने के लिए दिया जाता है । यकृत की क्रिया सुधरने पर कामला अपने आप मिट जाता है। यकृत वृद्धि और तिल्ली की वृद्धि कम हो जाती है। बवासीर, उदर सम्बन्धी रोग और अग्निमांद्य भी इससे मिट जाते हैं । कामला, बवासीर और पेट के रोग विशेष कर यकृत की क्रिया पर ही अवलम्बित रहते हैं। इसलिये इन रोगों को मिटाने के लिये यकृत की क्रिया को शुद्ध करने वाली औषधियां ही देनी चाहिये और इस कार्य के लिये भांगरा बहुत उपयुक्त भी है। यकृत की क्रिया बिगड़ने पर शरीर में एक प्रकार का विष हो जाता है जिसको आयुर्वेद में आम कहते है, जमा हो जाता है और इसकी वजह से आमवात, चक्कर मारना, सिर का दुखना, दृष्टिमांद्य और और-तरह के चर्म रोग पैदा हो जाते हैं । इन सब रोगों में भांगरे को देने से बहुत लाभ होता है। क्योंकि इसका सीधा असर यकृत के ऊपर होता है और ये सभी रोग की खराबी से पैदा होते हैं ।
⚫ सब प्रकार के प्राचीन चर्म रोगों में भांगरे का भीतरी और बाहरी प्रयोग करने से बड़ा लाभ होता है।
⚫ समय आने के पूर्व ही जिन लोगों के बाल सफेद हो जाते हैं, उन लोगों को भांगरे का सेवन कराने से और बालों पर भांगरे का लेप करने से उनके बाल काले, लम्बे और सुन्दर हो जाते हैं।
⚫ मद्रास में बिच्छू के डंक पर भांगरे का लेप किया जाता है और इसको पिलाया भी जाता है।
भृंगराज के फायदे : Bhringraj Benefits in Hindi
1- अग्नि से जलने पर भृंगराज के फायदे –
अग्नि से जले हुये व्रण के ऊपर भांगरा, मरवा और मेंहदी के पत्तों को पीसकर लगाने से जलन शान्त हो जाती है और नवीन आने वाली चमड़ी शरीर के रङ्ग की हो आती है।
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2- बालों को काला करने में भृंगराज के लाभ – bhringraj benefits for hair in hindi
भांगरे के रस में हीरा कसी को मिलाकर लेप करने से बाल काले हो जाते हैं।
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3- भांगरा और बिच्छू का विष –
योगरत्नाकर के कर्ता लिखते हैं कि बिच्छू के डंक पर इसके पत्तों को कुचलकर लेप करने से तथा इसके रस को नाक में टपकाने से विच्छू का विष उतर जाता है। इसी का समर्थन करते हई डॉक्टर नॉडकरनी लिखते हैं कि भांगरे के पत्ते बिच्छू के विष को दूर करने के लिये एक चमत्कारिक इलाज है। इसका उपयोग में लेने का तरीका यह है कि इसके पत्तों को पीसकर बिच्छ के डंक की वजह से जितने भाग में सूजन आ गयी हो अथवा जहां तक वेदना फैल गई हों वहाँ तक खूब अच्छी तरह से मसलना चाहिये । इस प्रकार मसलने से आस-पास के सब भाग में से वेदना निकल कर डंक पर केन्द्रीभूत हो जाती है। उसके बाद डंक पर इस औषधि को खूब अच्छी तरह मसलने से और इसकी लुग्दी को डंक पर बांध देने से भी वेदना निकल जाती है।
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4- उपदंश के व्रण में भृंगराज के फायदे –
भांगरे के रस से अथवा भांगरे और जूही के पत्तों के रस को मिलाकर उस रस से उपदंश के व्रण को धोने से बड़ा लाभ होता है।
( और पढ़े – उपदंश रोग का आयुर्वेदिक उपचार )
5- आधा शीशी में इसके लाभ –
भांगरे का रस और बकरी का दूध समान भाग लेकर उसको गरम करके नाक में टपकाने से और भांगरे के रस में काली मिर्च मिलाकर सिर पर लेप करने से आधा शीशी मिट जाती है।
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6- नवजात शिशु का जुकाम में भृंगराज के लाभ –
तत्काल पैदा हुए नवजात शिशु को अगर कफ का जोर हो जाय और उसके गले में कफ घड़ – घड़ बोलने लगे तो भांगरे के स्वरस की दो बूंद निकालकर उसमें ८ बूंद शहद मिलाकर उस मिश्रण को उँगली के द्वारा बच्चों के गले में पहुँचा देने पर सब कफ निकल पड़ता है। और बच्चों की चेतना जागृत हो जाती है।
7- धनुर्वात में भृंगराज के फायदे –
भांगरे का रस १२ ग्राम , तूंबी का रस ३ ग्राम , निगुडी का रस १२ ग्राम और अगस्त्य के पत्तों का रस ३६ ग्राम इन सब रसों को मिलाकर इन सब रसों से चौगुना नारियल का स्वरस मिलाकर उस सब रस में थोड़ा सा चावल डालकर खीर बना लेना चाहिये। इस खीर में थोड़ा सा गुड़ मिलाकर प्रतिदिन दोनों टाइम खाने से धनुर्वात में लाभ होता है।
8- कामला(पीलिया) के उपचार में इसके लाभ –
भांगरे के रस में काली मिर्च मिलाकर सबेरे दही के साथ लेने से ७ दिन में कामला आराम हो जाता है।
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9- बच्चों के डिब्बा रोग में इसके लाभ –
भांगरे के रस में घी मिलाकर ३ दिन तक देने से बच्चों का डिब्बा रोग आराम होता है।
10- पारे के विष में भृंगराज के फायदे –
भांगरे का रस, अगस्त्य का रस और सोरा । मट्ठे में मिलाकर उस मट्ठे को ४८ ग्राम को मात्रा में खिलाने से शरीर के अन्दर फैला हा पारे का जहर मूत्र मार्ग से निकल जाता है।
11- अग्निदग्ध में भृंगराज के लाभ –
अग्नि से जले हुए स्थान पर दिन में दो बार भांगरे के पत्तों और तुलसी के पत्तों का रस निकाल कर लगाने से जलन शान्त हो जाती है और शरीर पर किसी प्रकार का दाग नहीं पड़ता।
12- मोटापा (मेद रोग) में भांगरे के लाभ –
प्रतिदिन रात को सोते समय भांगरे का स्वरस शरीर पर मसल कर रमा देना चाहिये । इस प्रकार ६ महीने तक लगातार करते रहने से शरीर की बढ़ी हुई चर्बी और उस चर्बी की वजह से जगह – जगह होने वाली गठाने दूर हो जाती हैं।
( और पढ़े –मोटापा कम करने के आसान उपाय )
13- अग्निमांद्य (भूख न लगना) में भृंगराज के फायदे –
भांगरे के पौधे को जड़ समेत लाकर छाया में सुखाकर उसका चूर्ण करके उस चूर्ण में समान भाग त्रिफले का चूर्ण मिलाकर दोनों का जितना सम्मिलित वजन हो उतनी ही उसमें मिश्री देनी चाहिये इस चूर्ण में से १२ ग्राम चूर्ण उचित अनुपान के साथ खाने से पाण्डुरोंग और मन्दाग्नि भिटती है ।
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14- पेट के कृमि में भृंगराज के लाभ –
इसके पत्तों का रस गुदा में ३-४ बार लगाने से पेट के कृमि नष्ट हो जाते हैं।
( और पढ़े – पेट के कीड़े दूर करने के उपाय )
15- कुष्ठ रोग में भृंगराज के फायदे –
भांगरे के स्वरस और गुञ्जा की लुग्दी से सिद्ध किये हुए तेल की मालिश करने से कंडू, कुष्ठ और मस्तक पीड़ा मिटती है।
( और पढ़े – कुष्ठ(कोढ)रोग मिटाने के कामयाब 84 घरेलु उपाय )
16- विसर्परोग में भृंगराज के लाभ –
भांगरे की जड़ और हल्दी को लगातार लेप करने से विसर्प रोग मिटता है।
17- गज चर्म में भृंगराज के लाभ –
इसके ताजे पौधे की लुग्दी को तिल के तेल में औटाकर उस तेल को गज चर्म के ऊपर मालिश करने से लाभ होता है।
भृंगराज से निर्मित आयुर्वेदिक औषधियां :
1- भृगराज तेल –
❂ भृगराज तेल के घटक द्रव्य और बनाने की विधि – process of making bhringraj oil
भांगरे का रस ८ लीटर , त्रिफले का काढ़ा ४ लीटर , तिल का तेल ४ लीटर सेर, गाय का दूध ४ लीटर, कमल की नाल, कमल की जड़, मजीठ, सुरमा, नील, कमल गट्टा, नागरमोथा, पुनर्नवा की जड़, हरड़ बहेड़ा, आंवला, भांगरे की जड़, चिरमी के बीज, नाग केशर, आम की गुठली, अनन्त मूल, मुलैठी, कटसरैया, देवदारु, पद्माक, लाल चन्दन, तमालपत्र, मेंहदी के बीज, बरियारा, शतावरी, बड़ के अंकुर, गोलोचन, नीलाथूथा ,इन्द्रायण के बीज, केवड़ा, जटामांसी, कमल के फूल, जासूद के फूल, बहेड़े के बीज, रासना की जड़, गेरू, दारुहलदी, रसोत, असगन्ध, बिदारी कन्द, डोड़ी, लाख, केले का कन्द, अगर, लाद और हाथी दांत की राख । इन सब चीजों को ४८ – ४८ ग्राम लेकर पानी के साथ पीसकर लुग्दी बनाकर एक लोहे की कड़ाही में रख दें और उसी कड़ाही में भांगरे का रस, त्रिफले का काढ़ा, गाय का दूध और तिल्ली का तेल भी भर दें और नीचे हलकी आंच लगा दें। जब औटते २ सब चीजें जलकर तेल मात्र शेष रह जाय तब उतार कर उसको छान लें।
❂ भृगराज तेल के फायदे – bhringraj oil benefits
✦ इस तेल को प्रतिदिन सिर में लगाने से असमय में सफेद हुए बाल फिर से काले हो जाते हैं ।
✦ बालों की जड़ें मजबूत होकर बालों का गिरना बन्द होता है,
✦ बालों का रंग भंवरे के समान काला और चमकदार हो जाता है।
✦ बाल सघन हो जाते हैं।
✦ मस्तिष्क और आंखों को गरमी दूर हो जाती है।
✦ यहां तक कि सिर की गंज(गंजापन) भी समय आने पर मिट जाती है और नये बाल पैदा होने लगते हैं ।
2- रस मंडूर :
❂ रस मंडूर के घटक द्रव्य और बनाने की विधि –
शुद्ध गंधक ९६ ग्राम और शुद्ध पारा २४ ग्राम लेकर खरल में डालकर कज्जली कर लें। फिर एक लोहे की कड़ाही में उसको डालकर उसमें १९२ ग्राम हरड़ का चूर्ण, ९६ ग्राम मंडूर भस्म और १५३६ ग्राम भांगरे का स्वरस डालकर लोहे के दस्ते में घोटना चाहिये । घोटते – घोटते जब रस का भाग सूख जाय तब उसे निकालकर कांच की बरनी में भर लेना चाहिये ।
❂ रस मंडूर की सेवन विधि और फायदे –
इस औषधि को डेढ़ ग्राम से २ ग्राम की मात्रा में प्रति दिन सबेरे शाम १२ ग्राम शहद और ६ ग्राम घी के साथ मिलाकर चाटने से और पथ्य में सिर्फ दूध और भात लेने से पित्त की शुद्धि होकर जठराग्नि प्रदीप्त हो जाती है और भोजन के पश्चात् होने वाला उदर शूल, अम्लपित्त, खट्टी डकार , छाती की जलन, कामला तथा यकृत और तिल्ली की वृद्धि नष्ट हो जाती है ।
3- भृङ्गराज रसायन –
ताजे भांगरे को पीसकर उसका निकाला हुआ स्वरस प्रतिदिन प्रातः काल १२ ग्राम की मात्रा में पीने से और पथ्य में सिर्फ दूध पर ही रहने से १ महीने में शरीर निरोग हो जाता है । बल और कान्ति बढ़ती है तथा मनुष्य दीर्घायु होता है ।
भृंगराज के नुकसान :
अधिक मात्रा में देने से यह वामक हो जाता है।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)