शंकर वटी के फायदे और नुकसान – Shankar Vati in Hindi

Last Updated on July 11, 2021 by admin

शंकर वटी क्या है ? (What is Shankar Vati in Hindi)

शंकर वटी टेबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक दवा है। हृदय को बल प्रदान करने में शंकर वटी एक कारगर औषधि है । इस आयुर्वेदिक औषधि का विशेष उपयोग हृदय रोग, मधुमेह, खांसी, आमवात, साइनस आदी रोगों के उपचार में किया जाता है ।

घटक और उनकी मात्रा :

  • शुद्ध पारद – 40 ग्राम,
  • शुद्ध गन्धक – 80 ग्राम,
  • लोह भस्म 100 पुटी – 30 ग्राम,
  • नाग भस्म – 20 ग्राम।

भावनार्थ घटक द्रव्य –

काकमाची स्वरस,
चित्रकमल क्वाथ,
अदरक स्वरस,
जयन्ती पत्र स्वरस,
वासा स्वरस,
विल्व पत्र स्वरस,
अजुर्नत्वक क्वाथ,

भावनार्थ द्रव्यों को आवश्यकतानुसार लेना है ।

प्रमुख घटकों के विशेष गुण :

  1. कज्जली : योगवाही, जन्तुघ्न, रसायन ।
  2. लोह भस्म : रक्तवर्धक, बल्य, बृष्य, यकृत बलवर्धक, रसायन।
  3. नाग भस्म : अग्निप्रदीपक, अम्लनाशक, प्रमेन, मधु मेहन, बल्य।
  4. काकमाची : हृदय रोग शामक, वृक्क (गुर्दे) रोग शामक, शोथन, यकृत बलवर्धक।
  5. चित्रक : दीपन, पाचन, पित्तसारक, कुष्ठघ्न, ग्राही, स्वेदजनन ।
  6. अदरक : कफवात शामक, दीपक, पाचक, रोचक, वातानुलोमक।
  7. जयन्ती : दीपन, कृमिघ्न, कुष्ठघ्न, शोथन, केश्य (बाल बढ़ानेवाला), विषघ्न (विष नाशक) ।
  8. वासा : पित्तकफ शामक, रक्त स्तम्भक, कफनि:सारक, कुष्ठघ्न, धात्वग्निवर्धक।
  9. विल्व : कफवात शामक, दीपन, पाचन, ग्राही, हृदय, रक्त स्तम्भक।
  10. अर्जुनत्वक : सन्धानीय, मेदोहर (मोटापा हरनेवाला), हृद्य (हृदय हितकारी), स्तम्भक।

शंकर वटी बनाने की विधि :

यूं तो यह योग बना – बनाया बाज़ार में मिल जाता तथापि नुस्खे और निर्माण विधि को जानने की इच्छा एवं रुचि रखने वाले पाठकों के लिए यहां इस योग के घटक द्रव्य और निर्माण करने के ढंग के विषय में आवश्यक जानकारी प्रस्तुत की जा रही है।

निर्माण विधि –

पारद एवं गंधक की निश्चन्द्र कज्जली होने तक मर्दन करें, फिर लोह भस्म और नाग भस्म मिलाकर क्रमश: काकमाची स्वरस, चित्रकमूल क्वाथ, अदरख स्वरस, जयन्ती स्वरस, वासा पत्र स्वरस, विल्व पत्र स्वरस एवं अर्जुनत्वक क्वाथ की एक भावना देकर 100 मि.ग्रा. की वटिकायें बनवा कर धूप में सुखाकर सुरक्षित कर लें।

शंकर वटी की खुराक (Dosage of Shankar Vati)

एक से दो वटिकाएँ प्रातः सायं भोजन से पूर्व ।

अनुपान : गुनगुना पानी, अर्जुनक्षीर पाक, दशमूल क्वाथः या मधु ।

शंकर वटी के फायदे और उपयोग (Benefits & Uses of Shankar Vati in Hindi)

शंकर वटी के कुछ स्वास्थ्य लाभ –

1). कफज हृदय रोग में लाभकारी है शंकर वटी का प्रयोग

स्थूल हृदय रोगी, हृदयवृद्धि के रोगी एवं रक्तवाहिनियों के अवरोध जन्य हृदय रोगियों जिन रोगियों के रक्त में ‘आम’ (लिपिड) अधिक हो के लिए शंकर वटी एक उत्कृष्ट औषधि है। एक से दो गोली प्रातः सायं भोजन से पूर्व गुनगुने पानी या दशमूल क्वाथ से देने पर श्वास सामान्य होने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए चालीस दिन प्रयोग करवाएँ।

सहायक औषधियों में – सूक्ष्मैलादि चूर्ण, हृदयार्णव रस, हृदय चिन्तामणि रस, नवक गुग्गुलु, पुनर्नवादि गुग्गुलु, चतु:सम चूर्ण का प्रयोग करवाना चाहिए ।
इसके सेवन से आम का नाश होकर रक्त वाहिनियों के अवरोध खुलने लगते हैं। स्थूलता में भी कमी होती है, रोगी अपने को हल्का अनुभव करने लगता है। चिकित्सावधि रक्त वाहिनियों के अवरोध या हृदय वृद्धि मात्रा पर निर्भर करती है।

( और पढ़े – हृदय रोग का आयुर्वेदिक उपचार )

2). जीर्ण ज्वर में शंकर वटी के इस्तेमाल से लाभ

जीर्ण ज्वर में भी शंकर वटी अपना प्रभाव दिखाती है एक गोली दिन में तीन बार गुनगुने पानी से देने से आम पाचन होकर ज्वर उतरने लगता है, धात्वाग्नियों की वृद्धि होकर रोगी के बल मांस की वृद्धि भी होने लगती है। खांसी में भी लाभ होता है कफ पतला होकर सरलता से निकलने लगता है।

सहायक औषधियों में – रसोन क्षीर पाक, च्यवन प्राश अवलेह, स्वर्ण वसन्त मालती रस, स्वर्ण मृगांक रस का उपयोग भी लाभदायक है। औषधि सेवन कालावधि चालीस दिन।

3). प्रमेह में शंकर वटी फायदेमंद

आचार्य माधवकर ने ‘प्रमेह हेतु कफ कच्च सर्व’ लिखकर प्रमेह की चिकित्सा का सूत्र बता दिया है। प्रस्तुत शंकर वटी भी वात कफ नाशक कल्प है, तथा नाग भस्म प्रमेहों की परमौषधि है। लोह भस्म प्रमेहघ्न होने के साथ रक्त एवं बल, वीर्य वर्धक भी है। अत: शंकर वटी का प्रमेह पर विशेष प्रभाव होता है। प्रमेह रोगों में शंङ्करवटी का अवश्य उपयोग करना चाहिए, विशेष रूप से स्थौल्य रोगियों में सहायक औषधियों में वसन्त तिलक रस, वसन्त कुसुमाकर रस, चन्द्रप्रभा वटि, इन्द्रवटी का प्रयोग भी करवाऐं, औषधि सेवन कालावधि चालीस दिन।

4). खांसी मिटाती है शंकर वटी

विशेषत: कफज खांसी में शंकर वटी अत्यधिक लाभदायक है। यह कफ को पतला करके सरलता से निकाल देती है। और नवीन कफ की उत्पत्ती को बाधित करती है एक गोली दिन में तीन बार वासा, गडूची क्वाथ के देने से तुरन्त लाभ करती है।

सहायक औषधियों में – सितोपलादि लेह, श्वासकास चिन्तामणि रस, कण्टकार्यावलेह वासावलेह द्राक्षासव इत्यादि में से किसी एक या दो औषधियों का प्रयोग भी करवाएँ । चिकित्सावधि तीन सप्ताह।

( और पढ़े – खांसी दूर करने के घरेलू देसी नुस्खे )

5). आमवात में लाभकारी है शंकर वटी का प्रयोग

इसमें संशय नहीं कि शंकर वटी आम पाचक है। परन्तु आमवात जैसे शक्तिशाली रोग में यह सहायक औषधि के रूप में ही प्रयुक्त होती है। विशेषतया आमवातज ज्वर में जिस में हत्कपाटों की क्षति होने की आशंका होती है इसका उपयोग होता है ।

मुख्य औषधियों में – आमवात प्रमाथिनि, योगराज गुग्गुलु, सिंहनाद गुग्गुलु, आमवातरी रस, अमृत मंजरी वटी, व्योषाद्य वटक, चिंचाभल्लातक वटी इत्यादि में से किसी एक या दो औषधियों का प्रयोग करवाएँ ।
आमवात की चिकित्सा में एरण्ड तेल एक महत्त्वपूर्ण औषधि है, अत: चिकित्सावधि में एरण्ड का किसी-न-किसी रूप में सेवन आवश्यक है। चिकित्सावधि तीन से छ: मास।

( और पढ़े – आमवात का आयुर्वेदिक उपचार )

6). ग्रहणी रोग में शंकर वटी से फायदा

ग्रहणी में भी शंकर वटी सहायक औषधि के रूप में प्रयुक्त होती है विशेषत: कफज ग्रहणी में। कफज ग्रहणी का रोगी स्थूल हृष्ट-पुष्ट होता है। उसे प्रातः काल तीन से पाँच बार शौच जाना पड़ता है। मल न अधिक तरल होता है, न बंधा हुआ, रोगी को प्रात: मल के अधिक बार उत्सर्जित होने के कोई कारण नहीं होता, परन्तु उसका मल चिकना आमयुक्त होता है और प्रायः पैन के साथ चिपक जाता है। फलश करने पर भी नहीं छूटता।

स्थौल्य (मोटापा) में होने वाले लक्षण स्वेदाधिक्य, श्वास आलस्य इत्यादि मिलते हैं जो अधिक कष्टदायक नहीं होते। कुछ रोगियों में रक्त में ‘आम’ (लिपिड) की मात्रा भी अधिक होती है।

मुख्य औषधियों में – ऐसे रोगियों में मुख्य औषधि के रूप में चिंचाभल्लातक वटी, व्योषादि वटी, अग्नि कुमार रस (आवश्यकता हो तो कर्पूर रस भी) चित्रकादि वटी, लशुनादि वटी में से किसी एक की योजना करने से और सहायक औषधि के रूप में शंकर वटी के प्रयोग से आशातीत लाभ होता है। चिकित्सावधि तीन से छ: मास।

7). बवासीर मिटाए शंकर वटी का उपयोग

वातार्श में शंकर वटी एक सफल औषधि प्रमाणित हुई है। एक दो वटिकाएँ प्रातः सायं शीतल जल से देने से वेदना और शोथ दोनों में लाभ होता है। परन्तु इसके साथ कोई रेचक या मल वातानुलोक कल्प अवश्य देना चाहिए, अर्शकुठार रस, कंकायण वटी, सूरण मोदक, कन्यालोहादि वटी, गुलकन्द, इसबगोल की भूसी, पंच सकार चूर्ण में से किसी एक या दो का अवश्य प्रयोग करवाना चाहिए।

बवासीर के मस्सों पर कासीसादि तैल का लेपन करवाने से वह शीघ्रता से सिकुड़ने लगते हैं। छाछ का पथ्य में प्रयोग करवाने से चिकित्सा और अधिक फलदायी हो जाती है। चिकित्सावधि एक से दो मास या आवश्यकतानुसार।

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8). उच्चरक्त चाप में शंकर वटी के इस्तेमाल से लाभ

शंकर वटी का प्रयोग उच्चरक्त चाप, (धमनि काठिन्य जन्य) में अधिक सफलता पूर्वक होता है। एक वटिका प्रातः सायं भोजन से पूर्व उष्णोदक से दें साथ में रक्त चाप को सामान्य स्तर पर रखने के लिए सर्पगंधा, जटामांसी इत्यादि के योगों तथा प्रवाल पिष्टि, अकीक पिष्टि, इत्यादि में से किसी का प्रयोग करना चाहिए।

सहायक औषधियों में – प्रभाकर वटी, सर्वेश्वर रस, पुनर्नवादि गुग्गुलु गोक्षुरादि गुग्गुलु, नागार्जुनाभ्र, सूक्ष्मैलादि चूर्ण, तथा चतु:समचूर्ण में से किसी एक या दो का प्रयोग कर रक्त चाप सामान्य आ जाने पर लाक्षणिक चिकित्सा को त्याग कर रक्त में ‘लिपिड’ सामान्य होने तक चिकित्सा करते रहे।

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9). पीनस (साइनस / पुराना जुकाम) रोग में शंकर वटी का उपयोग फायदेमंद

पीनस में शंकर वटी के प्रयोग से पर्याप्त लाभ मिलता है। एक-एक वटिका प्रात: सायं उष्णोदक के साथ देने से बार-बार नाक से आने वाला स्राव शुष्क हो जाता है अग्नि की वृद्धि होने से धात्वाग्नियों की भी वृद्धि होने लगती है।

सहायक औषधियों में – स्वर्ण वसन्त मालती रस, चित्रक, हरीतकी, व्योषाद्य वटक, सितोपलादि चूर्ण, अभ्रक भस्म एवं हरताल भस्म में से किसी एक का प्रयोग भी करवाए । चिकित्सावधि चालीस दिन।

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10). मधुमेह में आराम दिलाए शंकर वटी का सेवन

मधुमेह के स्थूल रोगियों एवं हृदय रोग युक्त मधुमेहियों में शंकर वटी का प्रयोग सहायक औषधि के रूप में करने से चिकित्सा में सफलता मिलती है। रोग की मूल औषधियाँ चन्द्र प्रभावटी, आरोग्य वर्धिनी वटी, वसन्त कुसुमाकर रस, ओजोमेहान्तक रस में से रोग और उसके लक्षणों के आधार पर किसी एक या दो औषधियों का प्रयोग करवायें।
मधुमेह एक असाध्य रोग है अत: बीच-बीच में छोड़कर या औषधि कल्पों को बदल कर इसकी सतत् चिकित्सा ही रोगी की आयु को बढ़ा सकती है।

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11). चुल्लिका ग्रंथी (थायरायड) स्रावाह्रास में शंकर वटी के प्रयोग से लाभ

इस रोग में भी शंकर वटी को सहायक औषधि के रूप में सेवन से धात्वाग्नियों के पाचक अशों की वृद्धि होकर चुल्लिका ग्रंथी का स्राव सामान्य होने लगता है ।

मुख्य औषधियों में – मुख्य औषधियाँ काँचनार गुग्गुलु, व्योषाद्य वटक, गोमूत्र हरीतकी, गोमूत्र, अखरोट के वृक्ष की अन्तरत्वक् (अंदर की छाल) का मंजन के रूप में प्रयोग भी करवाएं। चिकित्सावधि तीन से छ: मास।

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आयुर्वेद ग्रंथ में शंकर वटी के बारे में उल्लेख (Shankar Vati in Ayurveda Book)

रसस्य भागश्चत्वारो वलेरष्ठौ तथा मतः।
त्र्योलोहस्य नागस्य द्वावित्येकत्र मर्दयेत॥
भावयेत काकमाच्याश्च चित्रकस्याइँ कस्य च।
स्वरसेन जयन्त्याश्च वासाया विल्व पार्थयो॥
ततो गुञ्जा द्वय मितां विदध्याद् वटिका भिषक् ।
एकैकां दापयेदासाम् इषदमुष्णेन वारिणा॥
जयेदियं फुफ्फुसजान् रोगान् हृद्य सम्भवान्।
जीर्ण ज्वरं तथा घोरं प्रमेहानपि विंशतिम्॥
कास श्वासामवातश्च ग्रहणी मपि दुस्तरम्।
वटी श्रीशङ्कर प्रोक्ता वल पुष्टि विवर्धिनी॥

-भैषज्यरत्नावली (हृदयरोगाधिकार 168-72 )

शंकर वटी के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ (Shankar Vati Side Effects in Hindi)

  • शंकर वटी लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें।
  • शंकर वटी को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
  • शंकर वटी एक खनिज धातुओं युक्त रसौषधि है। अतः रसौषधियों और भस्मों के सेवन में अपनाए जाने वाले पूर्वोपाय इस में भी अपनाने चाहिएं।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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